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बीए सेमेस्टर-2 शारीरिक शिक्षा - खेल संगठन एवं प्रबन्धन

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :144
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2729
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-2 शारीरिक शिक्षा - खेल संगठन एवं प्रबन्धन - सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- खेल प्रबन्ध की प्रकृति को स्पष्ट कीजिये।

उत्तर -

खेल प्रबन्ध की प्रकृति
(Nature of Sports Management)

खेल प्रबन्ध की प्रकृति से तात्पर्य खेल जगत में क्रियान्वित व्यवस्था से स्वभाव से है अर्थात् जो भी व्यवस्था अपनायी जा रही है, उसका दृष्टिकोण क्या है? उसके तौर-तरीके एवं गतिविधियाँ कैसी हैं? ये सभी खेल प्रबन्ध की प्रकृति को स्पष्ट करती है। प्रबन्ध की प्रकृति के संबंध में विद्वानों के अनेकों व अलग-अलग मत हैं। खेल प्रबन्ध को फेयोल ने सार्वभौमिकता के रूप में, डेविस ने मानसिक प्रक्रिया के रूप में, जॉर्ज टैरी ने प्रक्रिया के रूप में, टेलर ने कला एवं विज्ञान के रूप में, बेंच ने सामाजिक प्रक्रिया के रूप में प्रबन्ध की प्रकृति को स्पष्ट किया है। इस प्रकार से खेल प्रबन्ध की प्रकृति निम्न प्रकार है-

(1) खेल प्रबन्ध विज्ञान या कला या दोनों के रूप में - खेल प्रबन्धन को विज्ञान या कला या दोनों ही कहा जा सकता है। इसके लिए इसका अलग-अलग अध्ययन किया जाना) चाहिए। विज्ञान में निश्चित नियम और सिद्धांत (Laws and Theories) एक क्रमबद्ध (Systematic) रूप में होते हैं और इनका अध्ययन भी निश्चित प्रक्रिया के अंतर्गत आते हैं। चूँकि प्रत्येक विद्यालय के अलग-अलग नियम व सिद्धांत होते हैं और इनका एक निश्चित क्रम में पालन करना अति आवश्यक है। इसी कारण से खेल प्रबन्ध एक विज्ञान है।

जहाँ एक ओर खेल प्रबन्धन एक विज्ञान है वहीं इसको दूसरी तरफ कला की संज्ञा भी दी जाती है। कला वह है, जिसमें किसी भी कार्य को सर्वश्रेष्ठ तरीके से किया जाता है अर्थात् किसी भी खेल प्रशिक्षक द्वारा संबंधित खेल को सिखाया जा सकता है जो उसी खेल को कलात्मक ढंग से अन्य क्रियाओं से जोड़कर खिलाड़ियों को सन्तुष्टि प्रदान करता है।

उपर्युक्त विवेचना द्वारा यह स्पष्ट होता है कि कला व विज्ञान दोनों ही खेल प्रबन्ध का आधार है अर्थात् खेल-प्रबन्ध में दोनों के ही लक्षण आते है क्योंकि विद्यालयों में सर्वश्रेष्ठ खेल और खेलों की व्यवस्था एक निश्चित नियम और सिद्धांतों के आधार पर ही एक निश्चित क्रम में किया जा सकता है।

(2) खेल प्रबन्ध एक सार्वभौमिक विचारधारा के रूप में - खेल प्रबन्ध की यह भी प्रकृति है कि वह सर्वत्र विद्यमान है। इसकी सर्वव्यापकता को निम्न परिभाषा द्वारा भी समझा जा सकता है-

प्रो० थियो हैमन के अनुसार, - “प्रबन्ध के सिद्धान्त विश्वव्यापक है, वे किसी भी उपक्रम में जहाँ पर मनुष्यों के समन्वित विकास होते हैं, प्रबन्ध के सिद्धांत लागू किए जा सकते हैं। "

एफ०डब्ल्यू० टेलर के अनुसार, - “प्रबन्धकीय कार्यों का प्रयोग हमारे परिवार, व्यापार, चर्च, विद्यालय, विश्वविद्यालय, छोटी दुकान या बड़े पैमाने की संख्याओं एवं खेल के मैदानों का प्रबन्ध करने के लिए समान रूप से किया जा सकता है।"

अतः खेल जगत में, खेल प्रारंभ करने की योजना बनाने से लेकर उसे सीखने व खेलने तक की प्रक्रिया में प्रबन्ध की मुख्य भूमिका होती है।

(3) खेल प्रबन्ध एक प्रणाली - खेल प्रबन्ध की प्रकृति के संबंध में यह भी मत है कि इसका स्वरूप एक प्रणाली (System) के रूप में ही है। इसको स्पष्ट करने से पहले सर्वप्रथम हमें 'प्रणाली' को समझना पड़ेगा कि प्रणाली क्या है? (What is System?) इसको स्पष्ट करते हुए जॉन ए० बैकेट ने कहा है कि “एक प्रणाली अन्तःक्रियाशील तत्वों का संकलन है।"

ई० डब्ल्यू० मार्टिन के अनुसार, - “प्रणाली विभिन्न वस्तुओं या भागों का संयोजन है, जो कि एक जटिल इकाई बनाती है।'

उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर यह कहा जा सकता है कि प्रबन्ध एक प्रणाली है, जिसके कारण खेल से संबंधित जटिल से जटिल समस्याओं को समझने में सहायता मिलती है। मि

(4) खेल प्रबन्ध एक व्यवसाय के रूप में - खेल प्रबन्ध को एक व्यवसाय के रूप में संज्ञा दिया जाना बिल्कुल सही है। यहाँ यह जानना अति आवश्यक है कि आखिर पेशा क्या है? (What is Profession?) जब कोई व्यक्ति एक निश्चित प्रशिक्षण (Training) प्राप्त करके एक कुशलतम या दक्षपूर्ण ढंग से कोई कार्य करता है तो यह कहा जा सकता है कि वह अपने कार्य में कुशल है। खेल प्रबन्ध में व्यवस्था करने वाले और दूसरों से कार्य कराने वाले एक-दूसरे से अनभिज्ञ नहीं होते हैं वे भी अपने कार्य में दक्ष होने के कारण ही नियंत्रण (Control)निर्देशन (Guidance) और समन्वय जैसे कार्यों का संपादन कर पाने में सफल होते हैं। खेल प्रबन्ध की व्यवसाय के रूप में निम्न विशेषताएँ होती हैं-

(i) व्यवसाय के लिए उच्च स्तर के खेलों को नियमित और औपचारिक खेलों तथा प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है।

(ii) व्यवसाय के लिए विशिष्ट ज्ञान, चातुर्य और तकनीकी कुशलता की आवश्यकता होती है।

(iii) वित्तीय प्राप्ति को व्यवसाय की सफलता का मापदण्ड माना नहीं जाता है।

(iv) विशिष्ट ज्ञान तथा कुशलता का उपयोग केवल स्वयं के लिए ही नहीं किया जाता है अपितु अन्य लोगो के हितों के लिए भी किया जाता है।

(v) व्यवसाय व्यक्ति सामान्यतः स्वतंत्र रूप से कार्य करते हैं।

(vi) व्यवसाय निपुर्ण व्यक्तियों में खेल कुशलता का सिद्धांत निहित होता है।

(5) खेल प्रबन्ध एक मानसिक एवं सामाजिक प्रक्रिया के रूप में - खेल प्रबन्ध की प्रक्रिया के संबंध में अनेकों मतों के आधार पर इसकी स्थिति स्पष्ट हो चुकी है। इसी आधार पर प्रबन्ध को एक मानसिक प्रक्रिया (Mental Process) भी माना जा सकता है। क्योंकि प्रबन्धकीय कार्यों में बौद्धिक कार्य (Intellectual Work) किए जाते हैं और बौद्धिक कार्यों का संबंध मानसिक प्रक्रिया (Mental Process) से होता है, अर्थात् एक सामान्य मस्तिष्क वाला व्यक्ति प्रबन्धकीय कार्य नहीं कर सकता है। इसी प्रकार प्रबन्धकीय कार्य सीधे ही मानवीय व्यवहार से भी संबंधित होते हैं।

अतः इस आधार पर भी प्रबन्ध को मानवीय व्यवहार तथा मानसिक प्रक्रिया से अलग नहीं रखा जा सकता है। इसी प्रकार प्रबन्ध को एक सामाजिक प्रक्रिया (Social Process) के रूप में भी माना जाता है। चूँकि प्रबन्ध समाज का ही अंग होता है और उनके द्वारा ही संपादित कार्य समाज के हितों को ध्यान में रखकर पूर्ण किए जाते हैं।

(6) खेल प्रबन्ध एक गतिशील प्रक्रिया के रूप में - शैक्षिक प्रबन्ध में जहाँ प्राचार्य प्रबन्ध के द्वारा प्रबन्धकीय योग्यता धारण करके दूसरों के द्वारा कार्य कराने की क्षमता अर्जित करता है वहीं प्रशिक्षक एवं प्रशिक्षण प्राप्त करने पर ही खेलों में सफलता प्राप्त करता है। इसके अभाव में खिलाड़ी खेलों को कुशलतापूर्वक सीख नहीं पाते। जिससे सीखने की गतिविधियों के अनुसार खेल को सीखने व खेलने में वे सफल नहीं हो पाते। इसी कारण से प्रबन्ध एक गतिशील प्रक्रिया (Dynamic Process) है। इसी प्रकार प्रबन्ध निरन्तर विश्लेषण, निर्णयन तथा कार्य करने की गतिशील प्रक्रिया है।

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