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बीए सेमेस्टर-2 शारीरिक शिक्षा - खेल संगठन एवं प्रबन्धन

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :144
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2729
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-2 शारीरिक शिक्षा - खेल संगठन एवं प्रबन्धन - सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- अन्तर विद्यालय खेल प्रतियोगिता के सिद्धान्तों का विवेचन कीजिये।

उत्तर -

अन्तर विद्यालय खेल प्रतियोगिता के सिद्धान्त
(Principles of Extramural Tournament)

कुछ प्रमुख सिद्धान्तों का प्रयोग साधारणतया लोग (आयोजनकर्त्ता) अन्तर विद्यालय प्रतियोगिता के दौरान करते हैं उनका उल्लेख निम्न प्रकार हैं-

(1) प्रतियोगिता का आयोजन छुट्टी के दिन करना चाहिए - एक प्रशासक (शारीरिक शिक्षा का प्रशासक) जब अपने विद्यालय के अन्दर अन्तर विद्यालय स्तर की कोई भी प्रतियोगिता को आयोजित करने का प्रयास करता है तो एक सिद्धान्त के रूप में उसे सदैव यह ध्यान में रखना चाहिए कि जो प्रतियोगिता सम्बन्धी क्रिया-कलाप हो वे सभी छुट्टी के दिनों में ही आयोजित करना चाहिए। लेकिन दूसरी तरफ एक यह भी समस्या है कि कोई भी प्रतियोगिता कई दिनों तक चलती रहती है लेकिन फिर भी प्रशासक को चाहिए कि जो मुख्य प्रतियोगिता हो उसे छुट्टी के दिनों में ही आयोजित किया जाये इस छुट्टी के दिन प्रतियोगिता के आयोजन करने का सबसे बड़ा उद्देश्य यह है कि अधिक से अधिक विद्यार्थी गण इन खेलों का लाभ उठा सकते हैं। यहाँ लाभ उठाने से अभिप्राय यह है कि अधिक से अधिक लोग रखेल को देख सकते हैं एवं बाहर के जो खिलाड़ी हैं वे भी खेलों को देखकर उससे कुछ आनन्द ले सकते हैं एवं अपने अनुभव में थोड़ी वृद्धि भी कर सकते हैं। छुट्टी के दिनों में खेलों को आयोजित करने से शारीरिक शिक्षा के प्रशासक को सबसे बड़ा लाभ यह है कि वह अपने विद्यालय के लड़कों के माध्यम से प्रतियोगिता का सही संचालन करने में सहयोग भी प्राप्त कर सकता है। यदि शारीरिक शिक्षा का प्रशासक अपने विद्यालय के अन्दर छुट्टी के दिनों में प्रतियोगिता का आयोजन नहीं करा पाता है तो उससे कई नुकसान होने की सम्भावना बनी रहती है। जैसे विद्यालय के अध्ययन एवं अध्यापन में बाधा पड़ती है, विद्यार्थियों (सम्पूर्ण विद्यार्थियों) को मुख्य खेल देखने का अवसर प्राप्त नहीं होता है, आदि।

(2) प्रतियोगिता में स्वेच्छा से भाग लेना - शारीरिक शिक्षा के प्रशासक को अन्तर विद्यालय स्तर की प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए भी जोर, दबाव नहीं देना चाहिए क्योंकि किसी भी स्तर की प्रतियोगिता में भाग लेने हेतु टीम भेजना अथवा न भेजना दोनों बातें विद्यालय की आन्तरिक व्यवस्था पर निर्भर करता है क्योंकि अक्सर ये देखा जाता है कि विद्यालय की टीम को भेजने से पूर्व शारीरिक शिक्षा का प्रशासक अपने सम्पूर्ण कार्यक्रमों को पैसे के अभाव में सही रूप देने में असमर्थ हो जाते हैं और ऐसी ही स्थिति में यदि विद्यालय अन्तर विद्यालय प्रतियोगिता में भाग लेने हेतु अपनी टीम जब न भेज सके तो कभी भी उसे बार-बार यह प्रेरित नहीं करना चाहिए कि अपने विद्यालय की टीम भेजो। शारीरिक शिक्षा के प्रशासक को अपने विद्यालय के अन्दर अन्तर विद्यालय प्रतियोगिता के दौरान ऐसी सुन्दर व्यवस्था ही करनी चाहिए, जिससे कि अधिकारी खिलाड़ी, एवं अन्य सभी लोग ऐसी चर्चा करें कि अन्य विद्यालय के लोग प्रभावित हों एवं अगले वर्ष वे अपनी स्वेच्छा से प्रतियोगिता में भाग लेने का प्रयास करें। यदि सभी विद्यालय के लोग अन्तर विद्यालय की प्रतियोगिता में स्वेच्छा से भाग लेना चाहते हैं अथवा लेते हैं इसका अभिप्राय यह है कि सभी विद्यालय चाहते हैं कि अन्तर विद्यालय प्रतियोगिता ओयाजित की जाये।

(3) प्रतियोगिता में कुशल निर्णायक की व्यवस्था करना - शारीरिक शिक्षा के - प्रशासक को सदैव एक सिद्धान्त के रूप में एक अन्य आधार का प्रयोग करना चाहिए और वह आधार यह है कि जिस स्तर की वह प्रतियोगिता आयोजित कर रहा है उसी के अनुसार ही कुशल एवं योग्य निर्णायकों की भी व्यवस्था करनी चाहिए। जिससे कि निर्णयन से सम्बन्धित किसी भी प्रकार की समस्या एवं शंका का प्रतियोगिता के दौरान ठीक एवं सही ढंग से समाधान किया जा सके और यदि प्रतियोगिता के दौरान शारीरिक शिक्षा का प्रशासक योग्य एवं कुशल निर्णायकों का आश्रय नहीं लेता है तो निर्णयन से सम्बन्धित एक समस्या बराबर बनी रहती है और इस कारण प्रतियोगिता आयोजित करने वाले विद्यालय की विशेष रूप से बदनामी होने की पूर्ण सम्भावना नहीं है। क्योंकि अन्तर विद्यालय स्तर की प्रतियोगिता में कई विद्यालय के अच्छे खिलाड़ी आते हैं एवं उन सभी को खेलों के नियमों के सन्दर्भ में थोड़ी जानकारी रहती है और ऐसी ही स्थिति में यदि किसी भी क्रिया-कलाप का निर्णयन स्वयं निर्णायक द्वारा दिया जाता है तो शारीरिक शिक्षा के शिक्षक, शारीरिक शिक्षा के प्रशासक प्रतियोगिता के आयोजनकर्त्ता, आदि कई लोगों को बेज्जती का ही सामना करना पड़ता है। इसलिए शारीरिक शिक्षा के क्षेत्र में उच्चस्तरीय प्रतियोगिताओं को सही ढंग से सम्पन्न करने के लिए शारीरिक शिक्षा के प्रशासक को योग्य एवं कुशल निर्णायकों का ही सम्भवतः प्रयोग करना चाहिए, जिससे कि स्वयं प्रशासक की इज्जत निर्णयन के सन्दर्भ में बनी रहे।

(4) प्रतियोगिता से पूर्व खिलाड़ियों की मेडिकल जाँच करना - शारीरिक शिक्षा के प्रशासक को चाहिए कि अन्तर विद्यालय स्तर की कोई भी प्रतियोगिता को प्रारम्भ कराने से पूर्व प्रतियोगिता के स्थल से नजदीक ही मेडिकल सम्बन्धी सम्पूर्ण व्यवस्थायें करनी चाहिए कि सही समय पर उसका प्रयोग करके भविष्य में उत्पन्न होने वाली समस्याओं को समाप्त किया जा सके। प्रतियोगिता के नियमानुसार यह भी अति आवश्यक है कि खिलाड़ी जिस भी क्रिया में भाग लेने जा रहा हो उसके भाग लेने से पूर्व प्रत्येक विद्यालय से आये हुए सम्पूर्ण खिलाड़ियों का स्वास्थ्य परीक्षण किया जाए और प्रतियोगिता के दौरान यदि किसी खिलाड़ी को किसी भी प्रकार की चोट-चपेट लगती है तो सही समय पर सही ढंग से उपाचार किया जा सके और यदि शारीरिक शिक्षा का प्रशासक खेल मैदान (जहाँ पर प्रतियोगिता चल रही है) के समीप चिकित्सा सम्बन्धी व्यवस्था पहले से नहीं करता है तो स्वयं उसी को विभिन्न प्रकार की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। जैसे यदि कोई खिलाड़ी शारीरिक रूप से रोगग्रस्त है और बैगर परीक्षण के वह खिलाड़ी भाग लेता है एवं उसी दौरान मौत अथवा किसी भयंकर रोग से पीड़ित हो जाता है तो इसके सन्दर्भ में सभी प्रतियोगिता के आयोजनकर्त्ता (शारीरिक शिक्षा के प्रशासक) से ही पूछते हैं कि क्या आपने खेल प्रतियोगिता में चिकित्सा की व्यवस्था नहीं की थी क्या? यदि शारीरिक परीक्षण प्रतियोगिता से पूर्व सम्पन्न कर दिया जाता है तो किसी खिलाड़ी को शारीरिक परीक्षण में असफल होने पर उस खिलाड़ी को प्रतियोगिता में भाग लेने से रोका जा सकता है।

(5) कार्यक्रम खिलाड़ियों के सुविधानुसार बनाना चाहिए - सिद्धान्तों का प्रयोग करते समय शारीरिक शिक्षा के प्रशासक को सदैव एक बात ध्यान में रखनी चाहिए और वह यह है कि शारीरिक शिक्षा का प्रशासक शारीरिक शिक्षा का शिक्षक, प्रतियोगिता के आयोजनकर्त्ता, एवं अन्य सम्बन्धित लोग जब विचार-विमर्श के बाद कार्यक्रम की रूपरेखा के निर्माण का कार्य प्रारम्भ करते हैं तो उस दौरान खिलाड़ियों की सुविधाओं को देखते हुए ही कार्यक्रम का निर्माण करना चाहिए। वैसे तो शारीरिक शिक्षा का प्रशासक कार्यक्रमों को निश्चित करते समय नियमों का आश्रय तो लेता है लेकिन साथ-साथ उसको अपने अनुभव का भी प्रयोग करना चाहिए। एक क्रिया-कलाप से दूसरे क्रिया-कलाप के मध्य कितने समय का अन्तराल होना चाहिए 1 (नियमानुसार) एक दिन में कौन-कौन से क्रियाओं का आयोजन किया जायेगा, किस क्रिया के लिए कौन-कौन अधिकारी एवं निर्णायक होंगे, क्रियाकलाप किस स्थान पर आयोजित किया जायेगा, प्रतियोगिता के दौरान किन-किन उपकरणों की आवश्यकता होगी उनकी सूची, आवश्यक उपकरणों की पूर्व व्यवस्था, आदि विभिन्न बातों के सन्दर्भ में स्पष्ट रूप से उल्लेख करते हैं। लेकिन ये सभी बातें गौण हैं। मुख्य बात तो यह है कि शारीरिक शिक्षा के शिक्षक को चाहिए कि इन सभी बातों से पूर्व खिलाड़ियों को ध्यान में रखकर प्रतियोगिता की तैयारी करें यदि खिलाड़ियों की सुविधाओं पर सही ढंग से ध्यान नहीं दिया जाता है तो खिलाड़ियों का प्रदर्शन प्रभावित होता है।

(6) खिलाड़ियों के सुरक्षा की व्यवस्था करना - शारीरिक शिक्षा के प्रशासक को प्रतियोगिता आयोजन से पूर्व अपने प्रतियोगिता सम्बन्धी क्रिया-कलापों की प्रारम्भिक रूप रेखा में भाग लेने वाले सम्पूर्ण खिलाड़ियों के सुरक्षा व्यवस्था को विशेष रूप से स्थान देना चाहिए क्योंकि विद्यालय के परिसर में अन्तर विद्यालय प्रतियोगिता में भाग लेने हेतु कई विद्यालय के अच्छे-अच्छे खिलाड़ी आते हैं और उन सम्पूर्ण खिलाड़ियों के सुरक्षा व्यवस्था का भार अकेले शारीरिक शिक्षा के प्रशासक के ऊपर सम्पूर्ण रूप से रहता है। प्रतियोगिता के दौरान खेलने वाले खिलाड़ियों एवं दर्शक दीर्घा में बेठे हुए खिलाड़ियों दोनों को विभिन्न प्रकार की समस्याओं के उत्पन्न होने के कारण जान-माल एवं चोट-चपेट लगने की पूर्ण 'सम्भावना होती है। जैसे उदाहरण के लिए निर्णायक द्वारा निर्णय देने के अवसर पर दर्शक दीर्घा की ओर से पत्थर एवं ईंट फेंके जाते हैं। कभी निर्णयन सन्देहास्पद होने के कारण दोनों पक्ष के खिलाड़ी आपस में लड़ जाते हैं, आदि इस प्रकार की स्थिति को नियन्त्रण में रखने के लिए शारीरिक शिक्षा के प्रशासक को पूर्व से ही सुरक्षा सम्बन्धी व्यवस्था कर लेनी चाहिए जिससे कि प्रतियोगिता के दौरान अनियन्त्रित स्थिति पर सही ढंग नियन्त्रण करके सुरक्षा व्यवस्था को शक्तिशाली बनाया जा सके।

अन्तर विद्यालय स्तर की प्रतियोगिता के आयोजन के दौरान यदि शारीरिक शिक्षा का प्रशासक उपरोक्त सद्धिान्तों का सही ढंग से प्रयोग करता है तो प्रतियोगिता के सफलतम ढंग से सम्पन्न होने की पूर्ण सम्भावना बनी रहती है।

अन्तर विद्यालय प्रतियोगिता का संचालन
(Conducting of Extramural Competitions)

अन्तर विद्यालय प्रतियोगिताओं को उत्तम तथा परिणामकारी बनाने के दृष्टिकोण से ही आयोजन तथा संचालन किया जाना चाहिए। इनका अध्ययन तीन प्रमुख शीर्षकों में किया जा सकता है-

(1) अभ्यास मैच - प्रतियोगिता की अधिकारिक शुरूआत होने के पूर्व तयशुदा आबादी के आस-पास के संस्थानों/क्लबों के मध्य अभ्यास मैच प्रशिक्षण के उद्देश्य से खेले जाने चाहिएं। ऐसे मैच दोनों टीमों की कमजोरियों को जानने तथा उनको दूर करने के उपाय करने में सहायक होते हैं। इसके द्वारा प्रतिस्पर्धात्मक अनुभव प्राप्त होते हैं तथा दोनों टीमों में मेल-मिलाप बढ़ता है। ये मैच समय से पूर्व तय किए जाते हैं ताकि संस्थानों तथा दोनों टीमों के मध्य आपसी तालमेल बैठाया जा सके।

(2) आवृत्त प्रतियोगिताएं (क्लोज्ड कम्पटीशन्स) – इस प्रतियोगिता के नाम से ही इसका स्पष्टीकरण हो जाता है। ये प्रतियोगिताएं एक खास प्रकार के संस्थानों तक ही सीमित रहती हैं। उदाहरण के लिए अन्तरशालेय प्रतियोगिता, अन्तर महाविद्यालय प्रतियोगिता, अन्तर्विश्वविद्यालय प्रतियोगिता आदि। सामान्यतः ये प्रतियोगिताएं उनके सम्बन्धित खेल विभागों अथवा खेल संघों / समितियों द्वारा संचालित की जाती हैं। सही नियंत्रण तथा वांछित परिणाम प्राप्त करने के लिए सम्पूर्ण परिक्षेत्र में आने वाले संस्थानों को विभिन्न क्षेत्रों (जोन्स) में बाँट दिया जाता है। प्रत्येक क्षेत्र (जोन) की प्रतियोगिताएँ सम्पन्न होने के पश्चात् विजेता अन्तक्षेत्रीय प्रतिस्पर्धाओं में संस्थागत चैम्पियनशिप हेतु प्रतियोगिताओं में भिड़ते हैं।

(3) खुली प्रतियोगिताएँ - खुली प्रतियोगिता में कोई भी अपनी सम्बद्ध इकाई के माध्यम से भाग ले सकता है। यह किसी एक वर्ग के लोगों तक सीमित नहीं है। खुली प्रतियोगिताओं में कोई भी संस्थान, विभाग अथवा अभिकरण अपनी टीमों को उतारने के लिए पात्र होता है।

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