बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-2 चित्रकला - कला के मूल तत्व बीए सेमेस्टर-2 चित्रकला - कला के मूल तत्वसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-2 चित्रकला - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- संयोजन में वर्ण सन्तुलन को स्पष्ट कीजिये।
उत्तर -
(Colour Balance)
संयोजन के अर्न्तगत वर्ण सन्तुलन का अपना एक विशेष महत्व है और सुनियोजित रंग संयोजन ही सन्तुलन का सार है। अतः वर्ण सन्तुलन स्थापित करने के लिए निम्न प्रविधियाँ अपनाई जा सकती है -
1. विस्तार सिद्धान्त (Law of Areas) - संयोजन के अन्तर्गत सन्तुलन स्थापना के लिये साधारणतया "विस्तार सिद्धान्त" का प्रयोग किया जाता है। इस नियम के अनुसार रंगत के बड़े आकार क्षेत्र का प्रभाव 'शांत' व छोटे क्षेत्रों में "विरोधाभास" का प्रभाव रखा जाना चाहिये। इसके लिये शीत व उष्ण वर्णों के प्रयोग को ध्यान में रखा जाना चाहिए। "विस्तृत क्षेत्रों में शान्त रंगतें तथा लघु क्षेत्रों में ऊष्ण रंगतों के प्रयोग से यह प्रभाव उत्पन्न किया जा सकता है। शान्त व उष्ण रंगों का विरोधाभास रंगत, तान अथवा सघनता के आधार पर उत्पन्न किया जा सकता है। क्योंकि उष्ण वर्ण का दृष्टिगत भार एवं तरंग गति अधिक होने से इनमें दृष्टि को शीघ्र थकान हो जाती है।
2. परागामी आवृति सिद्धान्त (Crossing Colours of Repetion of colours) - वर्ण सन्तुलन का एक अन्य सिद्धान्त "परिगामी-वर्ण" अथवा "रंगावृति" है अर्थात् वर्ण को समस्त चित्र - फलक पर दुहराकर लगाना। इससे वर्ण तथा तान का सन्तुलन स्थापित होता है और किसी भी वर्ण का भार एक ही स्थान पर केन्द्रित न होकर चित्र - फलक पर समान रूप से बँट जाता है। जिस रंग को मुख्य आकर्षण केन्द्र में लगाया गया हो उसे अन्य छोटे आकारों में लगाने से चित्र में शन्ति का भाव उत्पन्न होता है। वर्ण वैज्ञानिक 'मूनसैल' (Munsell ) के अनुसार एक ही "तान' तथा 'रंगत' वाले वर्ण एक ही 'मान' के होने से आकर्षण शक्ति में भी एक समान होते हैं। अतः ऐसे वर्ण आसानी से सन्तुलन स्थापित कर लेते है। इनके साथ अधिक मान व रंगत वाले वर्णों का सन्तुलन करने के लिए उनकी रंगत की मात्रा बढ़ा देनी चाहिए।
इसी प्रकार एक सा रंग अधिक देर तक देखते रहने से रंग की अनुभूति करने वाली सूक्ष्म पेशियों में भी थकान का अनुभव होने लगता है। अतः इस समस्या का समाधान पूरक रंग के प्रयोग से सरलतापूर्वक किया जा सकता है। पूरक रंग से शक्तिशाली विरोधाभास उत्पन्न होता है और विरोधी वर्ण का लघु आकारों में शुद्ध प्रयोग करने से सन्तुलन उत्पन्न होता है।
अतः सन्तुलन चित्र रचना की मूल आवश्यकता है और कला रचना का प्रमुख सिद्धान्त है। चित्र रचना में प्रयुक्त समस्त तत्वों के समग्र समायोजन को ही सन्तुलन कहा जाता है।
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