बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-2 चित्रकला - कला के मूल तत्व बीए सेमेस्टर-2 चित्रकला - कला के मूल तत्वसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-2 चित्रकला - सरल प्रश्नोत्तर
अध्याय - 11
अनुपात
(Proportion)
प्रश्न- अनुपात की व्याख्या कीजिए। अनुपात निर्धारण से आप क्या समझते है?
अथवा
प्रमाण पर टिप्पणी लिखिये।
अथवा
अनुपात पर टिप्पणी लिखिये।
उत्तर -
अनुपात
अनुपात का अर्थ. दो दिशाओं, भुजाओं या आकृतियों व वर्णों का परस्पर सम्बन्ध है। जिस चित्रभूमि पर चित्र रचना की जाती है उसकी लम्बाई और चौड़ाई में भी परस्पर अनुपातिक सम्बन्ध होता है। इस पर कोई आकृति किस स्थान पर और कितनी बड़ी अंकित की जाये, उसे ऊपर रखा जाये या नीचे इन सब बातों का विचार अनुपात के अर्न्तगत किया गया है। इसके अतिरिक्त विभिन्न आकृतियों का पारस्परिक सम्बन्ध एवं उनके अंग-प्रत्यंगों का सम्पूर्ण शरीर की तुलना में सम्बन्ध-निर्धारण भी अनुपात के अर्न्तगत आता है। इस दृष्टि से इसे "सम्बद्धता का सिद्धान्त" (Law of Relationship) कहते है।
प्रमाण या अनुपात के सिद्धान्त में कोई निश्चित सिद्धान्त नहीं बनाए जा सकते हैं। वातावरण के अनुसार ही लोगों में अनुपात सम्बन्धी रुचि विकसित होती है। परिणामस्वरूप अनुपात भी बदलते है। जैसे- मिस्र के विशाल मैदान में चौड़ाई का ही प्रभाव अधिक है। अतः वहाँ प्रायः क्षैतिज पट्टियों के रूप में चित्र अधिक बनते है। धार्मिकता के जोश में गोथिक कलाकारों ने ऊर्ध्व अनुपातों को विशेष महत्व दिया है।
आकृतियों के अंग-प्रत्यंगों के अनुपात भी एक समान नहीं मिलते हैं। या फिर अलग-अलग होते है। नीग्रों कला में चौड़ी नाक, मोटे होंठ एवं लम्बी ग्रीवा को सुन्दर मानते है। जबकि राजपूत कला में पतली. एवं लम्बी नाक, पतले होंठ तथा लम्बी गर्दन को ही सुन्दर माना जाता है। भारतीय कला में विशाल नेत्र अंकित किये जाते है। अनुपातों का समस्त विधान चित्र की विषय- वस्तु एवं उद्देश्य पर निर्भर है। अतः उचित या अच्छे अनुपात का कोई निश्चित नियम नहीं है। अध्ययन व प्रयोगों के आधार पर हर कलाकार अपने अलग प्रमाण भी नये कलाकारों के लिए अनुपात का कोई न कोई आदर्श नियम रहना आवश्यक है।
इस दृष्टि से यूनानियों ने जो स्वर्णनुपात का नियम विकसित किया था वह सर्वोत्तम माना जाता है। यह नियम 3:5:8 या 5:8:13 का है अर्थात् यदि आकृति की चौड़ाई 3 भाग है तो उसकी लम्बाई 5 भाग होनी चाहिये और पूरे चित्र के फ्रेम की लम्बाई 8 भाग होनी चाहिए।
इस प्रकार यह स्पष्ट हो जाता है कि अनुपात के नियम गणित पर आधारित न होकर रुचि पर आधारित है। हम यह भी कह सकते है कि हमें गणितीय अनुपातों को नहीं बल्कि कलात्मक अनुपातों की आवश्यकता है।
अनुपात निर्धारण
1. चित्र का विषय - सर्वप्रथम हमें अनुभूति के उस स्वरूप पर विचार करना होता है जिनके भावों की अनुभूति के चित्र में अभिव्यक्ति करने का प्रयास किया जा रहा है। इससे हम यह स्थिर करने में समर्थ होगें कि हमारी चित्रभूमि की लम्बाई-चौड़ाई का क्या अनुपात होना चाहिए? सामान्यतः शान्त भाव के चित्र में क्षैतिज लम्बाई अधिक उपयुक्त होती है। और वीरता, बलिदान, उल्लास, त्याग, भक्ति आदि भावों को व्यक्त करने वाले चित्रों में ऊर्ध्व अनुपात ठीक रहते है। संघर्ष, व्याकुलता, पीडा तथा विलास के भाव के लिए विकर्ण संयोजन उपयुक्त रहता है। अतः उनके हेतु क्षैतिज आयताकार भूमि जिसकी खड़ी भुजाओं से क्षैतिज भुजाओं का अनुपात कुछ अधिक हो तो विशेष प्रभावकारी रहता है।
2. आकृति की स्थिति - भाव के अनुसार चित्रभूमि का निर्धारण करने के बाद उसे दो या दो से अधिक भागों में बाँटा जाता है। उसके लिए ऐसा अनुपात होना चाहिये कि सम्पूर्ण संयोजन के बाद चित्र संयोजन करना चाहिए। स्वर्णिम विभाजन सिद्धान्त के अनुसार आकृति को ठीक बीच में न बनाकर दायें-बायें बनाना चाहिए।
आकृति और रिक्त स्थान में दो और तीन का अनुपात होना चाहिए। यदि सम्पूर्ण चित्रभूमि को तीन भागों में बाँटा दिया जाये तो दूसरे भाग तक आकृति बनानी चाहिये। दृष्टि भ्रम उत्पन्न करने वाली रेखाएं प्रमाण को प्रभावित करती है। अतः आकृति बनाते समय इसका ध्यान रखना चाहिए। जैसे यदि छोटी आकृति को लम्बा दिखाना हो तो लम्बवत् रेखाओं का प्रयोग करना चाहिये, लेकिन किसी लम्बी आकृति को लम्बा दिखाने के लिए क्षैतिज रेखाओं का प्रयोग किया जा सकता है।
आरम्भ में कलाकार मुख्य आकृति को ही अधिक महत्व देते है और पृष्ठभूमि को आकृतियों को मुख्य आकृतियों के अनुपात में बहुत कम महत्व प्रदान करते है किन्तु कलाकार जैसे-जैसे विचारशील होता जाता है, वह पृष्ठभूमि को आकृतियों को भी उचित अनुपात में अंकित करता है। सहायक आकृतियों के अनुपात भी इसी पद्धति से निश्चित किये जाते है।
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