बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-2 चित्रकला - कला के मूल तत्व बीए सेमेस्टर-2 चित्रकला - कला के मूल तत्वसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-2 चित्रकला - सरल प्रश्नोत्तर
अध्याय - 7
अन्तराल
(Space)
प्रश्न- अन्तराल क्या है? अन्तराल विभाजन के विषय में आप क्या जानते हैं?
उत्तर -
अन्तराल
(Space)
चित्र के तत्वों में अन्तराल वह तत्व है जो रूप का आधार है। अन्तराल एक व्यापक शब्द है इसका शाब्दिक अर्थ ब्रह्माण्ड के अर्थ में आकाश, दूरी के अर्थ में अन्तर एवं जगह के अर्थ में स्थान, सतह के अर्थ में अन्तराल आदि है। स्थान एक सार्वभौमिक तत्व है। इसका अस्तित्व सब तत्वों के पहले भी है और बाद में भी है। अन्तराल चित्र निर्माण का वह तत्व है जिसके अभाव में चित्र रचना असम्भव है। अन्तराल वह क्षेत्र है जिस पर चित्रकार रूप निर्माण करता है इसके साथ ही भूमि का विभक्तिकरण व व्यवस्था भी अन्तराल के अर्न्तगत आती है। प्राचीन भारतीय शिल्प शास्त्रों में भी स्थान या अन्तराल के महत्व को बताया गया है। समरांगण सूत्रधार एक धार्मिक एवं प्राचीन ग्रन्थ है। इसमें भूमिबंधन कहा गया है। अभिलाषार्थ चिन्तामणि में स्थान निरूपण तथा विष्णु धर्मोत्तर पुराण में इसे स्थान की संज्ञा दी गयी हैं।
जिस धरातल अथवा भूमि पर चित्र रचना की जाती है तो द्विआयामी होती है, अर्थात उसका विस्तार दो दिशाओं में होता है लम्बाई और चौड़ाई। इस पर आकृतियों की लम्बाई व चौड़ाई पर विचार करना पड़ता है। चित्र भूमि का क्षेत्र सीमित होने पर चित्रकार अपने अनुभवों को अभिव्यक्त करने का प्रयास करता है। इसके लिए वो ऐसी रूपरेखा तैयार करता है, जिसमें आकृतियों व रिक्त स्थान की समुचित व्यवस्था हो अर्थात् कितना भाग रिक्त छोड़ा जाये और कितने भाग में आकृतियाँ बनाई जाये, यदि रिक्त यदि रिक्त स्थान कम है, आकृतिय स्थान अधिक हो तो आकृतियां चित्र भूमि से बाहर दिखाई देंगी। यदि रिक्त स्थान अधिक है और आकृतिय स्थान कम है तो आकृतियाँ का महत्व कम हो जायेगा। इस प्रकार देखा जाता है कि आकृतियाँ और उसके चारों ओर का स्थान एक-दूसरे के महत्व को बढ़ाते हैं। इस प्रकार चित्र में विस्तार और और अन्तराल का विशेष महत्व है। आकृतियों में लम्बाई और चौड़ाई के साथ-साथ गहराई अथवा मोटाई भी दिखायी जाती है।
अन्तराल पर चित्र भूमि के गोल, आयताकार अथवा वर्गाकार होने का भी बहुत प्रभाव पड़ता है। प्रायः आयत में चित्र अधिक बनते है, वर्ग में कम। एवं आयत में बने चित्र सर्वोत्तम होते है। इसका कारण यह कि आयत की एक भुजा बड़ी होने से अन्तराल के वर्गीकरण में सुविधा रहती है। इसके विपरीत वर्ग का अन्तराल कसा हुआ रहता है। वृत्त में हमारी दृष्टि बिना रुके चारों ओर घूमना चाहती है।
अन्तराल की परिभाषा - चित्रकार जिस चित्रभूमि पर अंकन कार्य करता है वह स्पष्टतया द्वि-आयामी होती है। यही अन्तराल अथवा स्थान होता है। यही चित्रकार का वह क्षेत्र है जिस पर रूप का निर्माण करता है। यही अन्तराल कहलाता है।
The artist who works in two dimensions begins by making marks a flat surface. The surface is his shace the world in which he constructs the blastic. order of his art. -N. Knobler.
अन्तराल विभाजन (Space Division) - चित्र रचना आरम्भ करने से पूर्व चित्रभूमि पूर्णतया सन्तुलित होती है, परन्तु ज्यों ही कलाकार उसमें रेखाचित्र और बिन्दु के माध्यम से कोई रूप का निर्माण प्रारम्भ करता है, चित्रभूमि का यह अन्तराल खण्डित होकर विभाजित हो जाता है और चित्रकार अनेक रूपाकारों, वर्ण आदि के माध्यम से उसे फिर से सन्तुलित करने में लग जाता है। चित्र के अन्तराल को इस प्रकार विभाजित करना चाहिये जिससे उसका एक भाग दूसरे भाग को प्रभावित करता प्रतीत हो। यदि चित्र के सभी भाग एक स्थान पर होंगे तो सब में समान प्रभाव होगा और चित्र में निश्चेष्टता जैसा प्रभाव उत्पन्न हो जायेगा। इस प्रकार अन्तराल को मुख्य रूप से दो भागों में विभक्त किया जा सकता है -
1. सम-विभाजन (Formal Division) - रेखाओं और कोणों की सहायता से चित्रभूमि को इस प्रकार विभाजित करना चाहिए ताकि सभी प्रकार से विभाजन सन्तुलित रहें अर्थात् चित्र में ऊपर-नीचे, दायें-बायें, आमने-सामने सभी ओर से समान सन्तुलन दिखायी पड़े। प्राचीन भारतीय चित्रकारों में एवं मध्यकालीन यूरोपियन कलाकारों में प्रायः समविभाजन का प्रयोग कर अधिकांश चित्रों की रचना की सम-विभाजन सन्तुलन एकता, शक्ति एवं समानता के भाव को प्रकट करता है।
2. असम - विभाजन ( Informal Division) - दोनों ओर असमान विभाजन होना आवश्यक है अर्थात् जैसा एक ओर बना है वैसा ही दूसरी ओर नहीं बनाते है। इसमें कलाकार किसी भी प्रकार के विभाजन के लिए स्वतन्त्र रहते है। इसके द्वारा मौलिकता व सृजन का पक्ष प्रबल होता है। यह विभाजन उत्तेजना, प्रगति, सृजन व क्रियाशीलता का भाव उत्पन्न करने में सहायक है।
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