लोगों की राय

बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-2 चित्रकला - कला के मूल तत्व

बीए सेमेस्टर-2 चित्रकला - कला के मूल तत्व

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :144
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2728
आईएसबीएन :0

Like this Hindi book 0

5 पाठक हैं

बीए सेमेस्टर-2 चित्रकला - सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- विभिन्न विद्वानों एवं दार्शनिकों ने कला को अपने तरीके से परिभाषित करने का प्रयास किया किया है किन्हीं तीन विद्वानों के मतों का उल्लेख कीजिए।

 

उत्तर -

कला की अवधारणाएँ

"ऑक्सफोर्ड जूनियर इनासाइक्लोपीडिया" में यह बात कही गयी है कि “यद्यपि कला एक शाश्वत मानव क्रिया है परन्तु इसकी परिभाषा करना संसार भर में सबसे कठिन कार्य है।

"परिभाषा तो कला की दी जाती है परन्तु 'ललित कला' की परिभाषा बन जाती है। विद्वानों एवं कला मर्मज्ञों ने कला को जिस प्रकार परिभाषित किया है, उससे प्रायः ललित कला ही ध्वनित होती है।

भारतीय मनीषियों की राय -

रवीन्द्र नाथ टैगोर के शब्दों में - "जो सत् है, जो सुन्दर है, वही कला है।'
मैथलीशरण गुप्त के अनुसार -"कला अभिव्यक्ति की कुशल शक्ति है।"

असित कुमार हाल्दार कहते है - " कला मानव का सात्विक गुण है। एक सरल भाषा है, जो जीवन के सत्यों को सौन्दर्यात्मक एवं कल्याणकारी रूप में प्रस्तुत करती है।'

डा. श्यामसुन्दर दास के अनुसार - "जिस अभिव्यंजना में आन्तरिक भावों का प्रकाशन 7. और कल्पना का योग रहता है, वही कला है।'

1. कला अनुकृति है - निम्नलिखित परिभाषाओं में कला को अनुकृति का माना गया है - प्लेटो के अनुसार "कला सत्य की अनुकृति की अनुकृति है।'

अरस्तु के अनुसार - "कला प्रकृति के सौन्दर्यमय अनुभवों का अनुकरण है।'

गेते के कथनानुसार - "कला के द्वारा महान सत्य की प्रतिकृति प्रस्तुत की जाती है।" इन परिभाषाओं में प्रायः सत्य अर्थात ईश्वरीय सत्य को मूल आधार मानकर उसकी अनुकृति कहा गया है। प्लेटो ईश्वर के सत्य को मानते है। उनके विचार से यह सृष्टि उस ईश्वरीय सत्य की अनुकृति है। कलाकर इसी अनुकृति की अनुकृति करता है। चित्रसूत्र विष्णुधर्मोत्तर पुराण में ही कहा गया है नृत्य तथा चित्र में तीनों लोको की अनुक्रिया की जाती है। शतपथ ब्राह्मण में भी कहा गया है जो कुछ देवशिल्पों का प्रतिरूप हैं वहीं शिल्प है। जैसे- प्रकृति देवशिल्प है अर्थात् देवताओं द्वारा बनायी गयी है और कलाकार उसी की अनुकृति करता है अर्थात् प्रकृति में देखी गयी वस्तुओं की अनुकृति है। इसलिए कला अनुकरण है।

2. कला अभिव्यक्ति है - निम्नलिखित परिभाषाओं में कला को अभिव्यक्ति स्वीकार किया गया है-

क्रौचे की दृष्टि से - "कला वाह्य प्रभाव की आन्तरिक अभिव्यक्ति है।'
हीगल के अनुसार - "कला आधी भौतिक सत्ता को अभिव्यक्त करने की कला है।
टॉलस्टॉय की दृष्टि में - "क्रिया, रेखा, रंग, ध्वनि, शब्द आदि के द्वारा भावों की वह

अभिव्यक्ति जो श्रोता, दर्शक और पाठक के मन में वही भाव जाग्रत कर दे, कला है।'

जॉन रस्किन के अनुसार - "प्रत्येक महान कला ईश्वरीय कृति के प्रति मानव अहलाद की अभिव्यक्ति है।'

सर विलियम्स के अनुसार - "कला स्थायी रूप से उन मस्तिष्कों के विचारों की अभिव्यक्ति है जिनका भौतिक शरीर शताब्दियों से नष्ट हो चुका है।'

मनुष्य में भावनाये रहती है कुछ भावनाओं को तो वह अभिव्यक्त कर देता है। परन्तु कुछ भावनाओं को सामाजिक बन्धनों के कारण अभिव्यक्त नहीं कर पाता है। इस स्थिति उसकी भावनाये उभरती है। और ये उमरी भावनायें ही कला का रूप धारण कर लेती है। इस कारण कलाकृति में कलाकार की आत्मा रहती है।

3. कला कल्पना है - "कल्पना की सौन्दर्यात्मक अभिव्यक्ति का नाम कला है।"

कवि शैली के शब्दों में - "कला कल्पना की अभिव्यक्ति है।'

रस्किन ने कहा है - "कला में कल्पना की अभिव्यक्ति होती है।'

लिपोनार्डो दि विन्ची के अनुसार - "कला कल्पना है।'

धार्मिक चित्र कल्पना के आधार पर बनते है, देवी-देवताओं के चित्र, भूत-प्रेत आदि। कल्पनाप्रियता भारतीय चित्रकला की प्रमुख विशेषता है, विदित है कि अनेक देवी-देवता चाहे यथार्थ में अपनी सत्ता न रखते हो, पर उनका कल्पना जगत स्वरूप अनेक हृदयों में निवास करता है। कल्पना का सर्वश्रेष्ठ रूप बह्मा, विष्णु, महेश के साथ दिखाई देता है। उदाहरण के लिए बुद्ध की जन्म-जन्मान्तर की कथाएँ कल्पना प्रसूत ही है। जिस प्रकार सृष्टि का निरन्तर सृजन और विनाश जीवन और मृत्यु का शाश्वत सत्य है, उसी क्रम में नटराज के स्वरूप को भारतीय कलाकार ने कल्पित किया है।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book