बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-2 चित्रकला - कला के मूल तत्व बीए सेमेस्टर-2 चित्रकला - कला के मूल तत्वसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-2 चित्रकला - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- फ्रेस्को बनो विधि का विस्तृत वर्णन कीजिये।
उत्तर -
(Fresco Buono)
फ्रैस्को शब्द इटली के फ्रैश शब्द से बना है जिसका अर्थ ताजा प्लास्टर था। इस प्रकार ताजी भित्ति पर बनाए गये चित्र को फ्रैस्को बूनो कहा जाता है।
शुद्ध फ्रेस्को विधि में गीले चूने के प्लास्टर पर पानी अथवा चूने के पानी के माध्यम से रंगों को मिलाकर चित्रण किया जाता है। गीले प्लास्टर से धीरे-धीरे नमी उड़ जाती है तथा चूना हवा में रासायनिक क्रिया करके हवा से कार्बोनिक एसिड सोख लेता है और पानी में अघुलनशील कैल्शियम कार्बोनेट बन जाता है। कैल्शियम कार्बोनेट की यह पतली चमकदार फिल्म सतह पर रंग के ऊपर बन जाती है। जिससे रंग स्थायी हो जाते है। प्लास्टर में गीली अवस्था में लगाए जाने के कारण रंग प्लास्टर द्वारा शोषित होकर गहरे पैठ जाते हैं और प्लास्टर का अविभाज्य अंग बन जाते हैं।
फ्रैस्को चित्रण में चूना एक महत्वपूर्ण अंग होता है अतः रंगों का प्रयोग सावधानीपूर्वक किया जाता है। जो रंग चूने के साथ रासायनिक क्रिया करते है उनका प्रयोग नहीं किया जाता है। जो रंग चूने से अप्रभावित रहते हैं उन्ही रंगों तक चित्रकार सीमित रहता है।
इटली में गीले प्लास्टर को इतना महत्व दिया गया कि कोई त्रुटि शोधन हो अथवा कुछ नया चित्र में जोड़ना हो तो चित्र का वह अंश खुरच कर नया प्लास्टर लगाया जाता था। राजस्थान में ठुकाई, घिसाई और पॉलिश करके रंगों को प्लास्टर में गहरे पहुँचा दिया जाता था तथा चूने की रासायनिक क्रिया भी इस स्थायीकरण में सहायक होती है। राजस्थानी विधि में चुने को शोधित करने की विधि में दही, छाछ तथा गुड़ का प्रयोग किया जाता है। राजस्थानी चित्रों में रंगों की पर्त की ठुकाई तथा घिसाई हो ने के कारण उनमें अत्यधिक ओप (चमक) आ जाती है।
भित्ति की तैयारी में प्रयुक्त सामग्री - भित्ति तैयार करने में प्रयोग की जाने वाली सामग्री निम्न प्रकार हैं-
चूना - चूने को काम में लाने के लिए दो वर्षों तक पानी में भिगों कर रखा जाता है। दो वर्षों तक भीगा हुआ पुराना चूना एकसार मुलायम हो जाता है। चूने को प्रयोग में लाने के लिए दही और गुड़ द्वारा शोधित किया जाता है। चूने को दस-पन्द्रह बार पानी बदलकर छाना जाता है। नित्य पानी बदलना तथा पपड़ी उतारते रहना चाहिये।
रेत अथवा संगमरमर का चूर्ण - रेत अथवा संगमरमन का चूर्ण चूने के साथ मसाले का का मुख्य अव्यव है। यह प्लास्टर को रंध्रमय बनाता है अधिक खुरदरी बजरी जैसे चूरे को प्लास्टर की भीतरी तहों में लगाते हैं तथा बारीक चूर्ण को ऊपरी सतहों में लगाते हैं।
भित्ति - प्लास्टर के लिए सूखी भित्ती का चयन किया जाता है यादि पुरान प्लास्टर होता है जो उस प्लास्टर को उतारकर ईटों अथवा पत्थर की दराजों को गहरा खोद दिया जाता है। प्लास्टर करने के लिए दीवार को छेनी द्वारा टंचाई करके एकसार किन्तु खुरदरा किया जाता है इस दीवार को कई बार पानी से तर किया जाता है इस दीवार को कई बार पानी से तर किया जाता है। तराई करने से दीवार में मसाला पकड़ने की शक्ति आती है।
भित्ति तैयार करना - तैयार चूने के साथ कम पानी में संगमरमर का चूर्ण 'झीकी' मिलाते है। पानी की अधिकता से रेत के कण चूने के साथ जम नहीं पाते है। भित्ती को इतना नम कर लिया जाता है कि वह और अधिक पानी शोषित न करे तथा प्लास्टर की पर्त भी नम बनी रहे।
1. सबसे खुरदरी सतह - इस कार्य के लिए तीन भाग संगमरमर का चूर्ण तथा एक भाग चूना प्रयुक्त किया जाता है। इस परत को लगभग एक से.मी. मोटा लगाते है। इसे 'सरेसी ' करना कहते है। इससे दीवार की दरारें भर जाती है। इस परत को चिकना न करके खुरदरा बनाया जाता है जिससे बाद वाली पर्तों को अच्छी पकड़ मिल सके। मसाले को समतल करने, रगड़ने तथा ठुकाई करने लिए लकड़ी के बटकड़े का प्रयोग करते है।
2. समतल करने वाली सतह - इस सतह को लगाने के लिए भी तीन भाग संगमरमर का चूर्ण तथा एक भाग चूना प्रयुक्त किया जाता है। इसको भी एक सेमी. मोटा बनाते है। इसे भी चिकना नहीं किया जाता है।
3. चित्रण की खुरदरी सतह - दो भाग बारीक संगमरमर के चूर्ण के साथ एक भाग चूना मिलाया जाता है, इसे अस्तर करने के 20-30 मिनट बाप लगाया जा सकता है।
4. अन्तिम लेद - एक भाग बारीक संगमरमर का चूर्ण तथा एक भाग चूना मिला कर पेस्ट बना लेते है। इस पेस्ट को 'सुघालेप' भी कहा जाता है। यह चित्रण कार्य के लिए भित्ती को तैयार करने की अन्तिम परत होती है। यह पेस्ट मुलायम व चमकदार होती है। लगाने से पूर्व इसे छानते है। इस घोल को पतला करके कूँची से भित्ती पर तीन-चार बार लगाते है प्रत्येक बार अस्तर को अकीक पत्थर की घूँटी से घोटते है। इस प्रकार चित्रभूमि की चमक बढ़ जाती है।
चित्रण - विधि - भित्ति के प्लास्टर अँगुली रखकर दबाने से जब तक गढ्ढ़ा न पड़े केवल चिन्ह बने तब ट्रेस करने का कार्य प्रारम्भ किया जाता है। चित्रण कार्य के लिए रेखाचित्र एक ट्रेसिंग पेपर पर बनाकर तैयार कर लेते है और रेखाचित्र की रेखाओं पर सूई की नोक से महीन छेद बना लेते है। इस कागज को भित्ती पर फैला कर हिरमिच अथवा कोयले के चूर्ण की पोटली बनाकर फिराने से भित्ती पर चित्र की रेखाओं चिन्ह बन जाते है।
चित्रण कार्य में प्रयुक्त रंग - भित्ति चित्रण में रंगों का प्रयोग सीमित होता है। चूना एक क्षार है अतः जो रंग क्षार के साथ रासायनिक क्रिया करते है उन्हें काम में नही लाया जाता भारतीय परम्परा में रामरज, हिरमिच, हिंगुल, हरा भाटा, नील, तिल्ली के तेल का काजल अथवा कोयले का चूर्ण भित्ति चित्रण के प्रमुख रंग है। इनके अतिरिक्त पेवड़ी, लाजवर्द एवं सुनहरे रंग भी प्रयुक्त किये जाते है। रंगों को पृथक-पृथक विधियों द्वारा तैयार किया जाता है। राम रज, गेरू आदि रंगों को पत्थर पर ( पानी से ) घिसकर छानकर, निथार कर, गीली अवस्था में रखा जाता है। हिंगुल, सिंदूर आदि को भेड़ के दूध में घोटकर नीबू से शुद्ध किया जाता है। रंगों को हल्का करने के लिए चूना तथा गहरा करने के लिए काजल का प्रयोग किया जाता है।
चित्रभूमि पर रंग लगाना - भित्ती पर रंग लगाकर नैले से ठोकते है। इस प्रकार रंग प्लास्टर पर गहरे पैठ जाते है। पूर्ण चित्र पर मुलायम कपड़े की गद्दी फेरने से जहाँ से उस पर रंग लगता है उस स्थान को नैले से पुनः ठोकते हैं इसके बाद नारियल को पानी में घिसकर हथेली से चित्र पर लगाते है तथा अकीक पत्थर से घुटाई करते हैं, इस प्रकार सारा चित्र दपर्ण की भाँति चमकदार हो जाता है।
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