बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-2 चित्रकला - कला के मूल तत्व बीए सेमेस्टर-2 चित्रकला - कला के मूल तत्वसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-2 चित्रकला - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- पेस्टल रंगों से क्या समझते हैं? पेस्टल रंगों की चित्रण विधि लिखिए।
उत्तर -
पेस्टल रंग
पेस्टल रंग सर्वसाधारण में प्रचलित माध्य है। चित्र- रचना के समय रंगों में किसी प्रकार का द्रव्य माध्यम मिलाने की आवश्यकता नहीं होती। इसी कारण यह शुष्क माध्यम की श्रेणी में आता है। रंगों के मिश्रण में विविधता की दृष्टि से इसमें सीमित बल ही उत्पन्न किये जा सकते है अतः कलाकार की कल्पना और स्वतन्त्रता को ये माध्यम सीमित कर देता है। क्योंकि इस माध्यम की सबसे बड़ी कमी यही है कि इसका रख-रखाव बहुत कठिन है। रंग प्रायः शुष्क होने के कारण कागज से झड़ जाने का भय रहता है।
पेस्टल रंगों की चित्रभूमि - पेस्टल रंगों के लिए कड़े तथा खुरदेर धरातल अच्छे होते है। विभिन्न धूमिल रंगतों की चित्र भूमि पर पेस्टल रंगों का प्रयोग करके चित्रण कार्य किया जाता हैं यदि चित्रभूमि चिकनी होगी तो रंगों की बत्तियाँ ठीक से नहीं घिस पायेगी। इसके लिए जो कागज उपलब्ध है उन्हें "पेस्टल पेपर" कहते है जो विभिन्न रंगों के होते है। पेस्टल चित्रण में समस्त चित्रभूमि ढक दी जाती है और चित्रभूमि के रंग का कोई महत्व नहीं रह जाता है। परन्तु यदि चित्रण स्कैच के रूप में किया जाये तो उसमें पृष्ठभूमि केवल वहीं-वहीं दिखायी पड़ती है जहाँ स्कैचिंग में चित्रभूमि को बिना रंग के छोड़ दिया जाता है। यदि कागज के रंग को बीच-बीच में छोड़कर चित्रण किया जाता हैं तो पेस्टल रंगों से अति सुन्दर चित्र बनता है।
पेस्टल रंगों की चित्रण विधि - पेस्टल रंगों द्वारा चित्रण कार्य चित्रकार की व्यक्तिगत प्रतिभा एवं कार्यकुशलता का परिचायक है। पेस्टल रंग गोल या चौकारे बत्तियों के रूप में मिलते है। चित्रभूमि पर इन बत्तियों को घिसकर रंग भरे जाते है। रंग की बत्तियों को प्रायः एक ही दिशा में इस प्रकार घिसना चाहिये जैसे एक-दूसरे से मिलती हुयी अनेक रेखायें बना रहे है। सभी दिशाओं रंग की बत्तियों की घिसने से कागज के रेशे उखड़ने लगते हैं। बत्तियों पर अधिक दबाव नहीं डालना चाहिये अन्यथा टूट जाती है। पेस्टल रंगों का मिश्रण या तो बत्तियों से रंग भरने की पद्धति से ही कर लिया जाता है या या कागज की बनी विभिन्न मोटाई को बत्तियों का भी कुछ लोग प्रयोग करते है। जिनसे चित्र में भरे हुए रंगों को पास-पास मिला देते है।
चित्रण करते समय चित्र को इस तरह से झुकाकार रखना चाहिये कि अतिरिक्त रंग झड़कर किसी अन्य रंग में न मिल जाये। उसे या तो हल्की फूँक से उड़ा देते है या कागज पर धीरे से झाड देते है। पेस्टल रंगों में पर्याप्त चमक होती है। अतः वह गहरी रंगतों या गहरे बलों वाले धरातलों पर बहुत चमकते है। श्वेत कागज पर यद्यपि कार्य करना सरल होता है किन्तु उस पर पेस्टल रंगों के गुण पूर्ण रूप से प्रकट नहीं हो पाते है।
पेस्टल रंगों का स्थायीकरण - पेस्टल रंगों से बने चित्र को इस प्रकार से फ्रेम करते है कि फ्रेम का काँच चित्र में स्पर्श न करे इससे चित्र अधिक समय तक सुरक्षित रहता है। रंगों को स्थाई करने के लिए कुछ तरल माध्यम बाजार में मिल जाते है जिन्हे स्प्रे करने से सूखने की बाद रंग पक्के हो जाते है। स्प्रिंट में चपड़ा, लाख मिलाकर, अण्डे की सफेदी में पानी मिलाकर या काईलीन के पतले घोल से स्प्रे किया जाता है। ये घोल फिक्सेटिव ( Fixative) कहलाते हैं एक्रेलिक रंगों को पतला करके भी फिंक्सेटिव के लिए उपयोग में लाया जाता है। यह स्किमण्ड मिल्क (मक्खन निकला दूध) को एल्कोहल में मिलाकर स्प्रे किया जा सकता है।
पेस्टल चित्रों द्वारा जिस प्रकार सम्पूर्ण चित्र को रंगा जाता है उसी प्रकार सुन्दर रेखा चित्र भी बनाये जा सकते कहीं-कहीं छाया-प्रकाश के केवल कुछ संकेतों से ही आश्चर्यजनक प्रभाव उत्पन्न किया जा सकता है।
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