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बीए सेमेस्टर-2 चित्रकला - कला के मूल तत्व

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :144
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2728
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-2 चित्रकला - सरल प्रश्नोत्तर

अध्याय - 16
क्षयवृद्धि (परिप्रेक्ष्य )

(Perspective)

प्रश्न- क्षयवृद्धि (परिप्रेक्ष्य ) क्या है? इस सन्दर्भ में जानकारी दीजिये।

अथवा
क्षयवृद्धि से आप क्या समझते हैं?

उत्तर -

क्षयवृद्धि (परिप्रेक्ष्य )
(Perspective)

 

परिभाषा - क्षय वृद्धि (परिप्रेक्ष्य) वह वैज्ञानिक ढंग है जिसकी सहायता से ठोस आकारों को समतल सतह पर इस प्रकार अंकित किया जाता है जिससे कि उनका रूप आकृति की तरह ही ठोस व प्रमाण युक्त दिखाई दे। मानो उसे एक विशेष दृष्टि बिन्दु से देखा गया है। ऐसा करने पर आकृति के कुछ अंग अवश्य स्पष्ट हो जाते हैं तथा कुछ में क्षय हो जाता है।

वर्तमान समय में नन्दतिक दृष्टिकोण से द्वि-आयामी अंकन का सफलतापूर्वक रूपांकन किया गया परन्तु कुछ कलाकारों ने चित्रकृतियों को बनाते समय चित्रफलक पर रूप के तीनों आयामों का भ्रम उत्पन्न करने का अथक प्रयत्न किया है जिसमें वे सफल रहे। मध्यकालीन यूरोपीय कलाकारों ने इस प्रभाव के लिये अनेक प्रयोग किये हैं। चित्रभूमि के केवल दो आयाम ही होते हैं (लम्बाई और चौड़ाई)। चित्रभूमि पर किसी आकृति के भी दो आयाम ही प्रस्तुत किये जा सकते है परन्तु एक स्थिर बिन्दु से ठोस आंकृति को देखने पर उसकी सीमा रेखायें तथा पक्ष भंग (distort) हो जाते हैं इसलिये वह हमको ठोस दिखाई देता है। एक घन के छः पक्ष होते हैं और प्रत्येक पक्ष का एक वर्ग होता है परन्तु जब उसकी आकृति आयामी सतह पर बताई जाती है तो केवल उसके तीन पक्ष ही दिखाई देते हैं और वे भी वर्ग की परिभाषा के अनुसार वर्ग नहीं होते।

यदि इन छ: वर्गाकार पक्षों को सम्बन्धित पक्ष में पूर्ण दिखाया जाय तो घनाकृति का स्वरूप ही बदल जाता है।

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हमारे नेत्र रूप ज्ञान हेतु ज्यामितीय परिभाषाओं का सहारा न लेकर किन्हीं और ही नियमों का पालन करती है। वास्तव में क्षयवृद्धि से उत्पन्न अन्तर व दूरी का आभास मनोवैज्ञानिक ही है जिसकी वास्तविकता से केवल भ्रमात्मक सम्बन्ध है। क्षयवृद्धि के इन सिद्धान्तों को कुछ साधारण तौर (नियम) पर समझा जाता है। यद्यपि चित्रकार क्षयवृद्धि का प्रयोग करता है परन्तु वह कभी भी गणित जैसी पूर्णता का प्रयत्न नहीं करता। क्षयवृद्धि को दो दृष्टिकोण से देखा जा सकता है।

1. रंगत के धुंधलेपन के अतिरिक्त पृष्ठगांमी आकृति का रूप क्षय होता है तथा पृष्ठगामी समानान्तर रेखायें एक निश्चित कोण पर झुकती हुई प्रतीत होती हैं।

2. दूर की आकृतियों की रंगत पास की आकृतियों के परिप्रेक्ष्य में धुंधली और कम प्रकाशमान होती हैं। सपाट सतह पर शीतल एवं पीत रंगों द्वारा दूरी का प्रभाव दिखाया जाता है।

3. केवल आकार के क्षय अथवा वृद्धि के आधार पर नन्दतिक दूरी का प्रभाव उत्पन्न करने को नन्दतिक क्षय वृद्धि कहते है।

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