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बीए सेमेस्टर-2 चित्रकला - कला के मूल तत्व

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :144
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2728
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-2 चित्रकला - सरल प्रश्नोत्तर

अध्याय - 14
लय (प्रवाह)

(Rhythm)

प्रश्न- प्रवाह से आप क्या समझते हैं? गति कितने प्रकार की होती है? समझाइये।

अथवा
लय की परिभाषा लिखिये।
अथवा
लय पर टिप्पणी लिखिये।
अथवा
लय से आप क्या समझते हैं? एक लयात्मक चित्र रचना कैसे संभव है?
अथवा
कला में लय से आप क्या समझते हैं? विस्तार से समझाइए।

उत्तर -

लय या प्रवाह
(Rhythm)

"संयोजन में लय का अर्थ है कि कला तत्वों का चित्र में ऐसा विन्यास क्रम प्रस्तुत करना जो नेत्र दृष्टि को चित्र में सहज गति से प्रवेश कराकर जिधर चाहे उधर घुमाकर प्रवेश करा दे।" "In art Rhythm means an easy, connected path along which the eye may travel in any arrangement of lines, forms of colours,"    -H. and V. Goldstein

लय के लिए अंग्रेजी में रिद्म (Rhythm ) शब्द का प्रयोग हुआ है। जिसका अर्थ है 'प्रवाह'। इसकी उत्पत्ति ग्रीक शब्द Rhein से हुई है जिसका अर्थ है चित्रभूमि पर दृष्टि का स्वतन्त्र विचरण | चित्र के विभिन्न तत्व जैसे रेखा, रूप, वर्ण आदि मिलकर प्रवाह उत्पन्न करते है। इन सभी तत्वों की समान तथा सामंजस्यपूर्ण पुनरावृत्ति द्वारा चित्र में गति या लय के द्वारा दशर्क की सौन्दर्यानुभूति होती है।

जब तक चित्रभूमि पर कुछ अंकित नहीं किया जाता वह अक्षत रहती है। इस अक्षत भूमि पर यदि हम दृष्टिपात करते है तो हमारी दृष्टि एक ही स्थान पर रुकी रहेगी, उसमें कोई गति उत्पन्न नहीं होगी क्योंकि रिक्तस्थान में किसी भी प्रकार की गति नहीं होती है। साथ ही हमारी दृष्टि उदासीन भी रहेगी, क्योंकि चित्रभूमि पर कोई विशेष स्थान या बिन्दु ऐसा नहीं है जिसे देखने में हम अपनी दृष्टि का उपयोग करें। किन्तु इस अक्षत भूमि पर जैसी ही हम कोई बिन्दु अथवा रेखा अंकित कर देते हैं, हमारी दृष्टि दौड़कर तुरन्त उस पर केन्द्रित हो जाती है। बिन्दुओं की संख्या बढ़ने के साथ-साथ हमारी दृष्टि भी निरन्तर एक से दूसरे बिन्दुओं पर विचलन करने लगती है और हमें गति की अनुभूति होती है। बिन्दुओं के आकार और उनके स्थान द्वारा गति का मागदर्शन होता है अर्थात बिन्दुओं के साथ-साथ दृष्टि भी बढ़ती जाती है। वास्तव में चित्र में अंकित बिन्दुओं अथवा रेखाओं में कोई गति नहीं होती है किन्तु हमारी आँखों की माँसपेशियों की क्रियाशीलता और पुतलियों की गति के कारण हम ऐसा अनुभव करते है।
बिन्दुओं अथवा रेखाओं में ही नहीं, आकृतियों के क्रमिक अंकन से भी गति का अनुभव होता है। चित्र में जब एक आकृति का अंकन होता है तो दृष्टि उसी पर रहती है पर जैसे ही दूसरी आकृति का अंकन होता दृष्टि तुरन्त उस पर पहुँच जाती है। यदि अनेक आकृतियाँ पास- पास बनी हो तो दृष्टि स्वयं ही प्रत्येक आकृति को देखती हुयी आगे बढ़ती जाती है और गति का अनुभव होता है।
इस प्रकार गति का मुख्य तत्व दृष्टि को आगे बढ़ाना है। दृष्टि को आगे बढ़ाने में नेत्र की माँसपेशियों में तनाव उत्पन्न होता है। यदि दृष्टि एक ही दिशा में आगे बढ़ती जायेगी तो मांसपेशियों में तनाव भी बढ़ता जायेगा। अतः चित्रकार इस तनाव को कम करने और दृष्टि को बीच-बीच में विश्राम देने के लिये रिक्त स्थान छोडकर या दिशा में परिवर्तन करता है। इस प्रकार तनाव और विश्राम दोनों के समुचित समावेश से गति को नियंत्रित किया जाता है। इसके मुख्य साधन - दिशा अवरोध अथवा दिशा परिवर्तन है।

गति के प्रकार - चित्र में गति साधारणतयः तीन प्रकार की होती है- 

1. सरल गति - सरल रेखा के समान होती है जैसे सरल रेखा के एक बिन्दु से दूसरे तक।

2728_79_A

2. कोणीय गति - कोण दार टूटी रेखा के रूप में जो गति दिखाई जाती है। उसे कोणीय गति कहते है।

2728_79_B


3. लहर गति - सर्पाकार अथवा जल की लहर के रूप में जो गति दिखाई देती है। लहर गति कहलाती है।

सरल रेखा में कोई गति नहीं होती है। गति के दिशा परिवर्तन में कोणीयता होने के कारण दृष्टि का तनाव झटके के साथ बदलता है। किन्तु लहरदार रेखाओं द्वारा दृष्टि को कोमलता तथा आनन्द का अनुभव होता है। इस गति में ही जीवन की प्रगति है। नन्द लाल बोस ने इसे 'जीवन प्रवाह' कहा है। इसमें इस निरूपण की महान क्षमता है।

इस प्रकार गति में जब क्रमिक तनाव और विश्राम अथवा आरोह और अंवरोह होता है तथा दृष्टि उसका अनुसरण करती है तो वहाँ लय की अनुभूति होती है।

प्रवाह की अनुभूति कई रूपों में हो सकती है-

1. समानान्तर क्रम में स्थित समान रेखाओं के सामूहीकरण क्रम द्वारा।
2. लयात्मक क्रम में स्थित विभिन्न लम्बाई तथा मोटाई की रेखाओं के द्वारा।

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