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बीए सेमेस्टर-2 संस्कृत : संस्कृत गद्य साहित्य, अनुवाद एवं संगणक अनुप्रयोग

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :160
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2727
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-2 संस्कृत - संस्कृत गद्य साहित्य, अनुवाद एवं संगणक अनुप्रयोग - सरल प्रश्नोत्तर


महत्वपूर्ण तथ्य

संस्कृत गद्य साहित्य को स्थूल रूप में वैदिक साहित्य का गद्य एवं लौकिक साहित्य का गद्य में विभक्त किया गया है।

वैदिक साहित्य गद्य के रूप हैं-

1. संहिता कालीन गद्य
2. ब्राह्मण कालीन गद्य
3. उपनिषद कालीन गद्य
4. उपनिषदुत्तर कालीन गद्य।

वैदिक साहित्यों में गद्य प्राप्त होता है।

ब्राह्मण कालीन गद्य में कृत्रिमता और पाण्डित्य प्रदर्शन की प्रवृत्ति नहीं है।

उपनिषदुत्तर कालीन गद्य में वैदिक और लौकिक संस्कृत के गद्य का सामञ्जस्य है।

उपनिषदुत्तर कालीन गद्य को पौराणिक गद्य शास्त्रीय गद्य एवं शिलालेखीय गद्य में विभक्त किया गया है।

लौकिक गद्य साहित्य के पाँच भाग हैं-

(i) सुबन्धु
(ii) दण्डी
(iii) बाणभट्ट
(iv) बाण से परवर्ती गद्य
(v) आधुनिक काल का गद्य

महाकवि सुबन्धु की एकमात्र कृति वासवदत्ता है।

वासवदत्ता का कथानक अति छोटा है।

नायिका वासवदत्ता का वाह्य वर्णन कवि ने लगभग 20 पृष्ठों में किया है।

नायक कन्दर्प केतु का वर्णन भी लगभग 15 पृष्ठों में हुआ है।

वासवदत्ता का प्रधान रस श्रृंगार है।

वासवदत्ता में गौड़ी रीति की प्रधानता दी गयी है।

गद्य काव्य का प्रारम्भिक रूप वैदिक संहिताओं में मिलता है।

वैदिक गद्य का प्राचीनतम रूप हमें शुक्ल यजुर्वेद तथा कृष्ण यजुर्वेद की तैत्तिरीय, काठक और मैत्रायणी संहिताओं में मिलता है।

अथर्ववेद में भी गद्यांश प्रचुर मात्रा में मिलता है।

ब्राह्मण ग्रन्थ में गद्यात्मक अंश के लिए विशेष उल्लेखनीय शतपथ, ऐतरेय, तैत्तिरीय और गोपथ ब्राह्मण है।

ब्राह्मण ग्रन्थों के पश्चात् आरण्यकों और उपनिषदों में भी वैदिक गद्य ग्रन्थ प्राप्त होता है।

वैदिक साहित्य से सम्बद्ध प्रतिशाख्य ग्रन्थ चारों प्रकारों के कल्पग्रन्थ - श्रौत सूत्र, गृह्यसूत्र, धर्मसूत्र और शुल्वसूत्र तथा निरुक्त गद्यात्मक सूत्र पद्धति में लिखे गये हैं।

पुराणों का अधिकांश भाग पद्यमय है परन्तु महाभारत, विष्णु पुराण और भागवत पुराण, आदि में यत्र-तत्र गद्य भी उपलब्ध होता है।

वैदिक ग्रन्थों में कुछ अंश अलंकार शास्त्र और कौटिल्य का अर्थशास्त्र भी शास्त्रीय गद्य के उदाहरण है।

संस्कृत के गद्य काव्य के दो मुख्य भेद माने गये हैं-

1. कथा
2. आख्यायिका

महाकवि दण्डी की दशकुमारचरित एवं अवन्ति सुन्दरी कथा प्रमुख गद्य रचना है। महाकवि दण्डी की कृतियाँ हैं-

दशकुमारचरितम्,
काव्यादर्श,
अवन्तिसुन्दरी कथा,
छन्दोविचिति,
कला परिच्छेद,
द्विसन्धान करना।

दण्डी का समय 600 ई0 के लगभग माना जाता है।

दण्डी भारवि के प्रपौत्र थे।

दण्डी की भाषा सर्वथा प्रसादगुण युक्त है।

आचार्य दण्डी परिष्कृत गद्य शैली के जन्मदाता हैं।

'दण्डी वैदर्भी शैली के कवि हैं।

दण्डी की भाषा में प्रसाद और माधुर्य गुणों की चरम सीमा है।

शृंगार, करुणा आदि के वर्णन में दण्डी की भाषा में प्रसाद और माधुर्य की मंजुल छटा दर्शनीय है?

दण्डी के लिए दण्डिनः पदलालित्यं सुभाषित अत्यन्त प्रचलित है।

दशकुमारचरित के सप्तम उच्छवास में दण्डी ने अपना एक नवीन चमत्कार दिखाया है।

बाणभट्ट के मुख्य रूप से दो ग्रन्थ उपलब्ध होते हैं - हर्षचरित और कादम्बरी ।

बाण ने दुर्गा स्तुति में अपने चण्डीशतक में 100 श्लोक लिखे हैं।

बाण के नाम से प्रचलित 'पर्वती परिणय' नाटक वस्तुतः 15वीं शताब्दी के कवि वामन भट्ट बाण की कृति है।

हर्षचरित बाणभट्ट की रचना है।

हर्षचरित आख्यायिका है जिसमें उच्छ्वास हैं।

कादम्बरी बाणभट्ट की सुप्रसिद्ध कथा एवं उपन्यास रचना है।

कादम्बरी के नायक चन्द्रापीड शूद्रक एवं नायिका कादम्बरी है।

कादम्बरी में तीन जन्मों की कथा वर्णित है।

कादम्बरी के दो भाग हैं पूर्वार्द्ध एवं उत्तरार्द्ध ।

कथा सरित्सागर के 'उनसठवें तरंग' मकरन्दिका वृत्तान्त का अवलम्बन लेकर बाण ने कादम्बरी कथा की रचना की।

महाकवि दण्डी 600 ई0 के लगभग उदित एक श्रेष्ठ गद्यकार हैं।

दण्डी की पहचान पद लालित्य के रूप में की जाती हैं।

दशकुमारचरितम्, काव्यादर्श, अवन्तिसुन्दरी कथा छन्दोविचित, कलापरिच्छेद, द्विसन्धान काव्य दण्डी की सुप्रसिद्ध कृतियां हैं।

दस कुमारों की साहित्यिक विजयगाथाओं का संग्रह दण्डी के दशकुमारचरितम् में है। वासवदत्ता गद्य काव्य के रचयिता महाकवि सुबन्धु हैं।

अम्बिकादत्त व्यास शिवराजविजयम् उपन्यास के प्रणेता हैं।

अम्बिकादत्त की उपाधियाँ निम्नलिखित हैं- सुकवि, घटिकाशतक, शतावधान, भारतरत्न, अभिनवबाण। आधुनिकबाण। भारत भूषण महाकवि आदि।

व्यास जी वक्ता और साहित्यसृष्टा के साथ ही चित्रकारिता, अश्वारोहण संगीत और शतरंग में भी व्यास जी विशेष रुचि रखते थे।

व्यास जी हिन्दी, संस्कृत, अंग्रेजी और बंगला भाषा के ज्ञाता थे।

एक घड़ी (24 मिनट) में 100 श्लोकों की रचना करने से व्यास जी को 'घटिकाशतक' की उपाधि दी गयी थी।

शिवराजविजयम् अम्बिकादत्त व्यास का प्रथम ऐतिहासिक उपन्यास है।

सौ प्रश्नों को एक साथ ही सुनकर उन सभी प्रश्नों को सुने हुए क्रम में ही उत्तर देने की अद्भुत क्षमता होने से उन्हें शतावधान की उपाधि दी गयी थी।

अम्बिकादत्त व्यास का संक्षिप्त परिचय उनकी हिन्दी रचना बिहारी - बिहार में मिलती है।

शिवराज विजयम् ऐतिहासिक उपन्यास है जिसके लेखक अम्बिकादत्त व्यास जी हैं। इसमें 12 निःश्वासों (अध्यायों) में शिवाजी का जीवन चरित वर्णित है।

नये भावों के लिए नए शब्द गढ़े भी गये हैं। इन गुणों के कारण व्यास जी आधुनिक बाण कहे जाते हैं।

हृषीकेश भट्टाचार्य वंश प्रवर्तक नारायण थे। ये यशोहर (जैसोर) जिले में धूलियापुर ग्राम के निवासी थे। श्री हृषीकेश इनके वंशज थे।

हृषीकेश जी के लेखों का संग्रह 'प्रबन्धमञ्जरी' नाम से मुद्रित हुआ है।

हृषीकेश की शैली वैदर्भी है। इनकी भाषा में शक्तिमता ओजस्विता और मन्दाकिनी का सा प्रवाह है।

भट्टाचार्य जी के प्रबन्धमञ्जरी में 11 निबन्ध हैं। इनमें मुख्य हैं - उद्भिज्ज-परिषद, महारण्य- पर्यवेक्षणम, उदर दर्शनम्, संस्कृत भाषाया वैशिष्टयम् ।

संस्कृत के स्त्री लेखिकाओं में पण्डिता क्षमाराव प्रसिद्ध गद्यकार भी हैं।

पण्डिता क्षमाराव का प्रथम 'कथा पंचक' 1663 ई0 में द्वितीय कथा संग्रह 'ग्राम ज्योति 1654 ई0 में और तृतीय कथा संग्रह कथा मुक्तावली 1656 ई0 में प्रकाशित हुए हैं।

पण्डिता क्षमाराव के प्रमुख प्रसिद्ध ग्रन्थ – सत्याग्रहगीता, उत्तरसत्याग्रहगीता, मीरा लहरी, रामदास चरितम्, शंकरजीवनाख्यानम्, विचित्र परिषद यात्री, तुकाराम चरितम् हैं।

डॉ0 रामशरण त्रिपाठी का जन्म बाँदा जिले मरका ग्राम में एक संभ्रान्त एवं विद्वान परिवार में हुआ।

डॉ0 रामशरण त्रिपाठी के 5 ग्रन्थ प्रकाशित हो गए हैं जो हैं -
1. रचनानुवाद रत्नाकर,
2. सरल- ज्योतिविज्ञान,
3. वेदान्तसार,
4. ब्रह्मसूत्र प्रमुखभाव्य पञ्चक समालोचनम्,
5. कौमुदी तथा कल्लोलिनी।

कौमुदी कथा कल्लोलिनी इसमें 11 कल्लोलों (अध्यायों) में कौशाम्बी के राजा उदयन के नरवाहनदत्त की जन्म से लेकर गान्धर्व महाभिषेक तक की कथा वर्णित है।

कविवर धनपाल एक श्रेष्ठ गद्य रचनाकार हैं। ये कश्यप गोत्रीय ब्राह्मण थे। प्रबन्ध चिन्तामणि में इनका जीवन वृत्त विस्तार के साथ प्रस्तुत हुआ है।

धनपाल ने जैन धर्म में दीक्षा ली थी।

कविवर वादीभ सिंह संस्कृत गद्य रचनाकारों में विशेष महत्व रखते हैं। इनका स्थितिकाल 11वीं शती माना जाता है।

बहुमुखी प्रतिभा के धनी प्रकाण्ड पण्डित कविवर विश्वेश्वर पाण्डेय का जन्म 1780 ई0 के लगभग हुआ था।

कविवर विश्वेश्वर पाण्डेय के पिताश्री लक्ष्मीधर पाण्डेय अल्मोडा के अन्तर्गत पाटिया ग्राम में निवास करते थे।

विश्वेश्वर पाण्डेय की रचनायें इस प्रकार हैं-

अलंकार मुक्तावली, अलंकार कौस्तुभ आर्यासप्तशती, कवीन्द्र कर्णाभरण, काव्य तिलक, काव्यरत्न, तुर्क कुतुहल दीधिती प्रवेश, नवमालिका नाटिका, नैषधीम काव्य टीका, रस चन्द्रिका, रस मञ्जरी टीका, रोमावली शतक। लक्ष्मी विलास, वक्षोजशतक, शृंगार मञ्जरी सट्टक, षड ऋतुवर्णन, सिद्धान्त सुधानिधि, होलिका शतक, मन्दार मञ्जरी ग्रन्थ है।

वामन भट्ट बाण वेमभूपाल त्रिलिंग पर शासन करने वाले काम नामक राजा के वंश में उत्पन्न हुए हैं।

वामनभट्ट बाण हर्षचरित से प्रेरित होकर वेमभूपाल चरित या वीर नारायण चरित की रचना की।

वामनभट्ट बाण की उपाधियाँ थी - षडभाषा बल्लभ कवि सार्वभौम और अभिनवभट्ट बाण ।

महर्षि व्यास महाभारत काल (जो 400 ई. पू. से पहले का है) के महर्षि है । कह सकते हैं कि व्यास जी त्रेतायुग के अन्त में हुए और द्वापर युग तक जीवित रहे।

महर्षि व्यास ने अषाढ़ मास की पूर्णिमा को जन्म लिया जो आज भी गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है।

व्यास जी का पूरा नाम 'महर्षि कृष्ण द्वैपायन वेदव्यास' था।

वेद व्यास जी को यमुना के द्वीप में जन्म लेने के कारण द्वैपायन, शरीर से कृष्ण वर्ण होने के कारण कृष्ण और वेदों का विस्तार अर्थात् वेद को याज्ञिय उपयोग के निमित्त चार संहिताओं में विभक्त होने के कारण वेदव्यास कहा जाता है।

वेदव्यास के पिता वैदिक मुनि पराशर थे।

वेदव्यास की माता सत्यवती थीं।

वेदव्यास ने तीन वर्ष के सतत परिश्रम से महाभारत जैसे महाग्रन्थ की रचना की थी।

वेदव्यास ने पञ्चम वेद के रूप महाभारत और अष्टादश पुराणों की रचना की।

कहा गया है कि महर्षि वेदव्यास ने वैदिक ज्ञान को अठ्ठाइस बार संशोधित किया। महाकवि शूद्रक का वास्तविक नाम शिमुक या सिमुक था।

शूद्रक का समय प्रथम शताब्दी ईसा पूर्व था।

शूद्रक की आयु 100 वर्ष 10 दिन थी।

शूद्रक शिव-पार्वती के भक्त थे।

शूद्रक की कृति 'मृच्छकटिकम्' एक अद्वितीय रूपक 'प्रकरण' है।

मृच्छकटिक का मूल स्रोत भास रचित 'दरिद्र चारुदत्त' है।

मृच्छकटिक में 10 अंक हैं। कुल 380 श्लोक हैं। मृत + शकटिक दो शब्द से बना है जिसका अर्थ है मिट्टी की गाड़ी।

मृच्छकटिक के नायक चारुदत्त (धीरप्रशान्त) तथा नायिका वसन्तसेना (प्रगल्भा नायिका) जो गणिका है।

मृच्छकटिक का विदूषक मैत्रेय है।

मृच्छकटिक में 24 पुरुष और स्त्री पात्र हैं। इसमें 7 प्रकार की प्राकृत भाषा का प्रयोग किया गया है।

महाकवि विशाखदत्त का समय चौथी शती का उत्तरार्द्ध है।

महाकवि विशाखदत्त के पितामह बटेश्वरदत्त तथा पिता भास्करदत्त हैं।

इनका निवास स्थान संभवतः बंगाल या बिहार है। विशाखदत्त शिव के उपासक थे।

विशाखदत्त के आश्रयदाता राजा मौखरि वंश के अंवतीवर्मा थे।

विशाखदत्त की रचना 'मुद्राराक्षस' प्रमाणित रचना है। इसके अतिरिक्त 'देवीचन्द्रगुप्त' व अभिसारिकवन्चितकम्' भी इनकी रचनायें हैं।

'मुद्राराक्षस' 7 अंकों का नाटक है जिसमें कुल 166 श्लोक हैं। इसमें 16 छन्दों का प्रयोग किया गया हैं।

मुद्राराक्षस का उपजीव्य विष्णु पुराण तथा श्रीमद्भागवतमहापुराण है।

मुद्राराक्षस का नायक चाणक्य है। नायिका का अभाव है।

मुद्राराक्षस का उपनायक चन्द्रगुप्त है और प्रतिनायक राक्षस है जिसका नाम सुबुद्धि शर्मा है।

'मुद्राराक्षस' राजनीतिक एवं कूटनीतिक विषय पर संस्कृत में यह सर्वश्रेष्ठ नाटक है।

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