बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-2 संस्कृत : संस्कृत गद्य साहित्य, अनुवाद एवं संगणक अनुप्रयोग बीए सेमेस्टर-2 संस्कृत : संस्कृत गद्य साहित्य, अनुवाद एवं संगणक अनुप्रयोगसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-2 संस्कृत - संस्कृत गद्य साहित्य, अनुवाद एवं संगणक अनुप्रयोग - सरल प्रश्नोत्तर
अध्याय - 5
संस्कृत (अपठित) से
हिन्दी अथवा अंग्रेजी में अनुवाद
संस्कृत में 'अनुवाद' शब्द का उपयोग शिष्य द्वारा गुरु की बात के दुहराए जाने, पुनः कथन, समर्थन के लिए प्रयुक्त कथन, आवृत्ति जैसे कई संदर्भों में किया गया है। संस्कृत के 'वद्' धातु से 'अनुवाद' शब्द का निर्माण हुआ है। 'वद्' का अर्थ है बोलना । 'वद्' धातु में 'अ' | प्रत्यय जोड़ देने पर भाववाचक संज्ञा में इसका परिवर्तित रूप है 'वाद' जिसका अर्थ है- 'कहने की क्रिया या कही हुई बात' । 'वाद' में 'अनु' उपसर्ग जोड़कर 'अनुवाद' शब्द बना है, जिसका अर्थ है, प्राप्त कथन को पुनः कहना। इसका प्रयोग पहली बार मोनियर विलियम्स ने अँग्रेजी शब्द ट्रान्सलेशन (translation) के पर्याय के रूप में किया। इसके बाद ही अनुवाद शब्द का प्रयोग एक भाषा में किसी के द्वारा प्रस्तुत की गई सामग्री की दूसरी भाषा में पुनः प्रस्तुति के संदर्भ में किया गया।
वास्तव में अनुवाद भाषा के इन्द्रधनुषी रूप की पहचान का समर्थतम मार्ग है। अनुवाद की अनिवार्यता को किसी भाषा की समृद्धि का शोर मचा कर टाला नहीं जा सकता और न अनुवाद की बहुकोणीय उपयोगिता से इन्कार किया जा सकता है। अँग्रेजी में TRANSLATION के साथ ही TRANSCRIPTION का प्रचलन भी है, जिसे हिन्दी में 'लिप्यन्तरण' कहा जाता है। अनुवाद और लिप्यन्तरण का अन्तर इस उदाहरण से स्पष्ट है-
उसके सपने सच हुए।
HIS DREAMS BECAME TRUE - अनुवाद
USKE SAPNE SACH HUE - लिप्यन्तरण (TRANSCRIPTION)
इससे स्पष्ट है कि 'अनुवाद' में हिन्दी वाक्य को अँग्रेजी में प्रस्तुत किया गया है जबकि लिप्यन्तरण में नागरी लिपि में लिखी गयी बात को मात्र रोमन लिपि में रख दिया गया है। अनुवाद के लिए 'भाषान्तर' और 'रूपान्तर' का प्रयोग भी किया जाता रहा है। लेकिन अब इन दोनों ही शब्दों के नए अर्थ और उपयोग प्रचलित हैं। 'भाषान्तर' और 'रूपान्तर का प्रयोग अँग्रेजी के INTERPRETATION शब्द के पर्याय स्वरूप होता है, जिसका अर्थ है दो व्यक्तियों के बीच भाषिक सम्पर्क स्थापित करना । कन्नड़भाषी व्यक्ति और असमियाभाषी व्यक्ति के बीच की भाषिक दूरी को भाषान्तरण के द्वारा ही दूर किया जाता है। 'रूपान्तर शब्द इन दिनों प्रायः किसी एक विधा की रचना की अन्य विधा में प्रस्तुति के लिए प्रयुक्त है। जैसे, प्रेमचन्द के उपन्यास 'गोदान' का रूपान्तरण 'होरी' नाटक के रूप में किया गया है।
किसी भाषा में अभिव्यक्त विचारों को दूसरी भाषा में यथावत् प्रस्तुत करना अनुवाद है। इस विशेष अर्थ में ही 'अनुवाद' शब्द का अभिप्राय सुनिश्चित है। जिस भाषा से अनुवाद किया जाता है, वह मूलभाषा या स्रोतभाषा है। उससे जिस नई भाषा में अनुवाद करना है, वह 'प्रस्तुत भाषा' या लक्ष्य भाषा है। इस तरह, स्रोत भाषा में प्रस्तुत भाव या विचार को बिना किसी परिवर्तन के लक्ष्यभाषा में प्रस्तुत करना ही अनुवाद है।
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