बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-2 प्राचीन भारतीय इतिहात एवं संस्कृति बीए सेमेस्टर-2 प्राचीन भारतीय इतिहात एवं संस्कृतिसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-2 प्राचीन भारतीय इतिहात एवं संस्कृति - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- हर्ष का समकालीन शासक शशांक के साथ क्या सम्बन्ध था? मूल्यांकन कीजिए।
अथवा
हर्ष तथा शशांक के मध्य हुए युद्धों की विस्तारपूर्वक चर्चा कीजिए।
अथवा
हर्ष-शशांक शत्रुता को समझाइए।
उत्तर-
हर्ष का समकालीन शासक शशांक के साथ सम्बन्ध
राज्यवर्द्धन की मृत्यु के पश्चात् हर्ष थानेश्वर की गद्दी का एकमात्र उत्तराधिकारी था। हर्षचरित से ज्ञात होता है कि वह पहले सिंहासन ग्रहण करने में संकोच कर रहा था परन्तु परिस्थितियोंवश अनिच्छुक होते हुए भी वह सिहासन पर बैठा। इसने अपने शासन काल में साम्राज्य की सुरक्षा हेतु अनेक युद्ध किए।
हर्ष के सम्मुख निम्नलिखित दो तात्कालिक समस्याएँ थीं-
(1) शशांक को मारकर बड़े भाई राज्यवर्द्धन की हत्या का बदला लेना।
(2) राज्यश्री को कारागार से मुक्त कराना।
शशांक ने हर्ष के बड़े भाई राज्यवर्द्धन की छल कपट से हत्या कर दी थी परन्तु आर.सी. मजूमदार का विचार है कि जब तक कोई प्रमाण न मिले तब तक यह सत्य नहीं कहा जा सकता। हर्षचरित से इस सम्बन्ध में कुछ अवश्य प्रकाश पड़ता है। इसके अनुसार हर्ष ने कई राजनैतिक युद्ध किये थे। हर्ष और भास्करवर्मा की सन्धि उभरते हुए शशांक का ही परिणाम थी। इससे यह सूचित होता है कि हर्ष और शशांक में शत्रुता थी।
गौड़ शासक शशांक ने हर्ष के बड़े भाई राज्यवर्द्धन की हत्या की थी। इसी शत्रुता के कारण हर्ष .शंशाक को मारकर अपने बड़े भाई की हत्या का बदला लेना चाहता था। इसने शीघ्र ही सेना तैयार की तथा युद्ध के लिए प्रस्थान कर दिया। युद्ध में प्रस्थान करने से पूर्व हर्ष ने यह प्रतिज्ञा की "यदि कुछ ही दिनों में धनुष चलाने की चपलता के घमण्ड में भरे हुए समस्त उद्धत राजाओं के पैरों को बेड़ियों की झन्कार से पूर्ण करके पृथ्वी को गौड़ों से रहित न बना दूँ तो घी से धधकती हुई आग में पतंगे की तरह पातकी अपने को जला दूँगा। इसने सरस्वती नदी के तट पर स्थित शिव मन्दिर में पूजा करने के पश्चात् सूर्योदय के समय अपना अभियान प्रारम्भ किया। हर्षचरित के अनुसार सबसे पहले हर्ष ने कामरूप के राजा भास्करवर्मन से मित्रता स्थापित की क्योंकि भास्करवर्मन भी शशांक का शत्रु था। कुछ दिन की सैन्य यात्रा के पश्चात् इसे यह सूचना मिली की भण्डि मालवराज की सम्पूर्ण सेना के साथ आकार अत्यन्त निकट ही शिविर में पड़ा हुआ है। भण्डि स्वयं हर्ष से मिलने इसके शिविर में पहुँचा तथा इसने राज्यवर्द्धन के मारे जाने का पूरा वृतान्त सुनाया और यह भी बताया कि 'गुप्त' नामक व्यक्ति जिसे मुकर्जी शशांक ही मानते हैं, ने कान्यकुब्ज पर अधिकार कर लिया तथा बहन राज्यश्री कारागार से निकलकर विन्धायचल के जंगलों में सती होने के लिए भाग गई हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि शंशाक कन्नौज के बाहर ही उत्तरी या दक्षिणी छोर पर कहीं शिविर लगाकर पड़ा हुआ था, इसीलिये राज्यश्री थानेश्वर जाने के बजाय विन्ध्याचल के जंगलों में चली गई होंगी।
हर्ष को अपनी बहन राज्यश्री के विषय में जानकर बड़ा दुःख हुआ। उसने भण्डि को एक सेना लेकर शशांक पर आक्रमण करने का आदेश दिया तथा स्वयं कुछ सामन्तों के साथ राज्यश्री को ढूँढने विन्ध्याचल के जंगलों की ओर चल पड़ा। बड़ी कठिनाई से दिवाकरमित्र की सहायता से इसने राज्यश्री का पता लगा लिया और उसे बचाकर अपने साथ ले आया। वह पुनः गंगा नदी के तट पर वापस आ गया जहाँ उसकी सेना भण्डि के नेतृत्व में इसके आगमन की प्रतीक्षा कर रही थी। हर्षचरित में यह विवरण यहीं तक प्राप्त होता है जिसके कारण आगे की घटनाओं का ज्ञान नहीं हो पाता है। हर्ष ने शशांक के विरुद्ध जो सैनिक अभियान किया उसका क्या परिणाम निकला। हर्ष और शशांक के बीच युद्ध हुआ या नहीं अथवा शशांक का क्या हुआ, आदि बातें ऐसी हैं जिनके विषय में हर्षचरित मौन है। आर्यमंजुश्रीमूलकल्प से पता चलता है कि 'ह' (हर्ष) नामक राजा पूर्वी भारत की ओर गया तथा पुण्ड्रनगर में जा पहुँचा। दुष्ट कर्म करने वाला 'सोम' (शशांक) पराजित हुआ और अपने राज्य में अन्दर पड़े रहने के लिये बाध्य किया गया। यह विवरण कितना सत्य हैं, यह हम नहीं कह सकते, फिर भी इतना स्पष्ट है कि शशांक साफ बच निकला। लगता है कि शशांक ने बिना युद्ध के ही कन्नौज खाली कर दिया था।
इस प्रकार परिस्थितियों को अपने अनुकूल न पाकर शशांक ने यह बुद्धिमानी की कि बिना युद्ध के ही उसने कन्नौज छोड़ दिया। यह बात इससे भी सिद्ध होती है कि हर्ष अपने भाई की मृत्यु के तुरन्त बाद शशांक से युद्ध नहीं कर पाया तथा अन्य समस्याओं में फंस गया।
यद्यपि प्रमाणों के अभाव में यह स्पष्ट रूप से नहीं कहा जा सकता कि शशांक के साथ हर्ष का युद्ध हुआ अथवा नहीं तथा हर्ष के बाद के युद्धों का कालक्रम क्या था, फिर भी ह्वेनसांग के विवरण के आधार पर उतना स्पष्ट है कि हर्ष एक बड़ी सेना के साथ लगातार छः वर्षो तक युद्ध करता रहा।
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