बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-2 प्राचीन भारतीय इतिहात एवं संस्कृति बीए सेमेस्टर-2 प्राचीन भारतीय इतिहात एवं संस्कृतिसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-2 प्राचीन भारतीय इतिहात एवं संस्कृति - सरल प्रश्नोत्तर
अध्याय - 11
वर्धन वंश
(Vardhan Dynasty)
प्रश्न- हर्ष के समकालीन गौड़ नरेश शशांक के विषय में आप क्या जानते हैं? स्पष्ट कीजिए।
अथवा
शशांक के विषय में आप क्या जानते हैं?
अथवा
शशांक के विषय में विस्तार से बताइए।
उत्तर-
गौड़ नरेश शशांक
ह्वेनसांग के विवरण से पता चलता है कि शशांक कर्ण सुवर्ण का राजा था। ह्वेनसांग ने शशांक कर्ण सुवर्ण को दुष्ट और बौद्ध धर्म का उच्छेदक बताया है। उसने अनेक स्थानों पर शशांक द्वारा बौद्ध धर्म पर किये गये अत्याचार का वर्णन किया है। शशांक ने पाटलिपुत्र के एक पत्थर पर अंकित बुद्ध के पदचिह्नों को मिटाने का प्रयास किया था और बोधिवृक्ष को काटकर गिरा दिया था। महाकवि बाणभट्ट ने इसे गौड़ राजा बताया है। बाण ने शशांक को गोड़धिपाधम, गोड़ाभुज, अनार्य आदि नामों से पुकारा है। सम्राट ने स्वयं कहा था- इस पापी (गौड़ नरेश) का नाम लेने से मेरी जिह्वा मललिप्त हो जाती है। डॉ. बसाक ने इसे जयनागवंश का बताया है।
शंशाक की विजय यात्रा - रोहतासगढ़ के पहाड़ी इलाकें से प्राप्त एक मोहर से पता चलता है कि शशांक ने अपने शासन का प्रारम्भ एक सामन्त शासक के रूप में किया था। इस मुहर पर लिखा है 'श्री महासामन्त शशांक देवस्य। शशांक का गुप्त राजाओं से भी सम्बन्ध था। यह सम्भव है कि मौखरियों ने दक्षिणी बिहार पर विजय प्राप्त करके ही वहाँ का सामन्त रहने दिया है। शशांक ने उत्तरी भारत में अपना एकछत्र राज्य स्थापित करने के लिए मालवा के नरेश देवगुप्त से सन्धि की थी। इसके बाद शशांक की कूटनीति के फलस्वरूप राज्यवर्द्धन मार डाला गया। हर्षवर्द्धन ने उससे बदला लेने की प्रतिज्ञा की परन्तु हर्ष उसका कुछ न बिगाड़ सका। यह भी ज्ञात हुआ है कि भांड़ी ने गौड़ राजा को वापस लौटाने के लिए विवश किया। इस प्रकार हर्ष के हाथों शंशाक का अहित नहीं हुआ।
ऐसा ज्ञात होता है कि अपने जीवन के आखिरी छोर पर वह सामन्त स्थिति से सम्राट स्थिति पर पहुँच गया था। सम्भव है अवन्तिवर्मन की मृत्यु के बाद (602 ईस्वी के बाद) उसने अपनी स्वतन्त्रता घोषित कर दी हो। उसने उड़ीसा तथा बंगाल पर अपना अधिकार कर लिया तथा दक्षिण में गोदावरी नदी तक शायद उसका राज्य विस्तृत हो गया। मगध पर उसका सामन्तकाल से ही शासन था। उसकी स्वर्ण मुद्राएँ भी उसके स्वतन्त्र अस्तित्व को प्रमाणित करती हैं जो अधिकतर बंगाल से प्राप्त हुई हैं। इस प्रकार यह स्पष्ट हो जाता है कि शशांक पूर्वी भारत का सर्वाधिक शक्तिशाली राजा बन गया था। निश्चित रूप से यह नहीं कहा जा सकता कि हर्ष तथा शशांक के बीच कोई सीधा मुकाबला हुआ अथवा नहीं। आर्यमंजुश्रीमूलकल्प के एक श्लोक से पता चलता है कि हर्ष ने सोम की राजधानी पुण्ड्र पर आक्रमण कर उसे परास्त किया तथा उसे उसके राज्य में ही रहने के लिए बाध्य किया। परन्तु इस मध्यकालीन बौद्ध ग्रन्थ के विवरण की ऐतिहासिकता में सन्देह है।
ह्वेनसांग के विवरण से ज्ञात होता है कि शशांक की मृत्यु 637 ईस्वी के कुछ पूर्व हुई थी। उसका अन्त किन परिस्थितियों में हुआ, यह ज्ञात नहीं है परन्तु इतना स्पष्ट है कि उसके जीवनकाल में हर्ष उसके राज्य को जीत नहीं पाया था।
शशांक का धर्म - शशांक एक कट्टर शैव था। उसके सिक्कों के ऊपर शिव तथा नन्दी की आकृतियाँ मिलती हैं। ह्वेनसांग के विवरण से पता चलता है कि उसने बोधगया के बोधिवृक्ष को कटवाकर गंगा में फिकवा दिया तथा पास के ही एक मन्दिर से बुद्ध की मूर्ति को हटवाकर उसके स्थान पर शिव की मूर्ति प्रतिष्ठित करवायी। इसी प्रकार पाटलिपुत्र के मन्दिर में रखे हुए एक पाषाण स्तम्भ, जिस पर बुद्ध के चरण-चिह्न उत्कीर्ण थे, को भी उसने गंगा नदी में फिकवा दिया। आर्यमंजुश्रीमूलकल्प में भी उसका चित्रण बौद्धद्रोही के रूप में किया गया है जिसने पवित्र बौद्ध अवशेषों को जलाया तथा विहारों एवं समाधियों को नष्ट-भ्रष्ट कर दिया। आर. डी. बनर्जी एवं आर. पी. चन्दा जैसे कुछ विद्वान इस मत के पक्ष में हैं कि शशांक वस्तुतः राजनैतिक कारणों से बौद्धद्रोही हुआ था अन्यथा उसमें धर्मान्धता नहीं थी।
प्राचीन भारत के इतिहास में शशांक पूर्णतया असम्बद्ध एवं उपेक्षित शासक रहा है जिसके विषय में जानकारी बहुत ही कम है उसके साथ ही उसका वंश तथा राज्य दोनों ही जाते रहे और उसके राज्य को हर्ष ने अपने साम्राज्य में सम्मिलित कर लिया। निश्चय ही वह एक महान् कूटनीतिज्ञ तथा साहसी योद्धा था जो सातवीं शताब्दी के प्रारम्भिक दशकों में भारत के इतिहास के गगन मण्डल में चन्द्रमा की भाँति चमकता था।
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- उत्तरमाला