बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-2 प्राचीन भारतीय इतिहात एवं संस्कृति बीए सेमेस्टर-2 प्राचीन भारतीय इतिहात एवं संस्कृतिसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-2 प्राचीन भारतीय इतिहात एवं संस्कृति - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- चन्द्रगुप्त (द्वितीय) की उपलब्धियों के बारे में विस्तार से लिखिए।
अथवा
चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य की विजयों का उल्लेख कीजिए।
सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य की उपलब्धियों को संक्षेप में बताइए।
2. विक्रमादित्य की विजयों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
चन्द्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य' की उपलब्धियाँ
चन्द्रगुप्त द्वितीय 'विक्रमादित्य' गुप्त राजवंश का सर्वाधिक महत्वपूर्ण एवं शक्तिशाली राजा था। वह अपने पिता समुद्रगुप्त के समान एक कूटनीतिज्ञ एवं दूरदर्शी सम्राट था। इसलिए उसने भी वैवाहिक सम्बन्धों द्वारा अपनी आन्तरिक स्थिति को सुदृढ़ किया। इस उद्देश्य से उसने अपने समय के तीन प्रमुख राजवंशों नागवंश, वाकाटक वंश तथा कदम्ब राजवंश के साथ वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित किये।
1. नागवंश - नागवंश प्राचीन भारत का प्रमुख राजवंश था। नांग लोग मथुरा, अहिच्छत्र, पद्मावती आदि में शासन करते थे। ये लोग काफी शक्तिशाली थे। इनका सहयोग प्राप्त करने के लिए चन्द्रगुप्त ने नागं राजकुमारी कुबेरनागा से विवाह कर लिया। नागवंश से वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित कर चन्द्रगुप्त ने उसका समर्थन प्राप्त कर लिया। यह गुप्तों की महत्वपूर्ण उपलब्धि रही।
2. वाकाटक वंश - वाकाटक लोग आधुनिक महाराष्ट्र प्रान्त में शासन करते थे। इनकी गणना दक्षिण की प्रतिष्ठित शक्तियों में की जाती थी। चन्द्रगुप्त द्वितीय को गुजरात और काठियावाड़ के शकराज की विजय करनी थी और इस कार्य के लिए वाकाटकों का सहयोग आवश्यक था। अतः इस उद्देश्य से उसने अपनी पुत्री प्रभावती गुप्ता का विवाह वाकाटक राजकुमार रुद्रसेन द्वितीय के साथ कर दिया। विवाह के कुछ ही दिनों के पश्चात् रुद्रसेन द्वितीय की मृत्यु हो गयी और प्रभावती गुप्ता वाकाटक राज्य की संरक्षिका बन गयी। प्रभावती के शासनकाल में वाकाटक लोग पूर्ण रूप से चन्द्रगुप्त द्वितीय के प्रभाव में आ गये। इस स्थिति का लाभ उठाकर चन्द्रगुप्त ने गुजरात और काठियावाड़ की विजय की। इस कार्य में उसकी विधवा पुत्री प्रभावती गुप्ता ने उसे हर सम्भव सहायता प्रदान की।
3. कदम्ब राजवंश - कदम्ब राजवंश का कुन्तल (कर्नाटक) में शासन था। ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि चन्द्रगुप्त के पुत्र कुमारगुप्त प्रथम का विवाह कदम्ब वंश में हुआ था। भोज के श्रृंगारप्रकाश से ज्ञात होता है कि चन्द्रगुप्त ने कालिदास को अपना दूत बनाकर कुन्तल नरेश के दरबार में भेजा था। कालिदास ने वापस आकर अपने सम्राट को बताया था कि कुन्तल नरेश अपने शासन का भार चन्द्रगुप्त के ऊपर ही डालकर भोग-विलास में लिप्त है। इस वैवाहिक सम्बन्ध की सबसे बड़ी उपलब्धि यह रही कि इससे चन्द्रगुप्त की ख्याति सुदूर दक्षिण में फैल गयी।
चन्द्रगुप्त द्वितीय 'विक्रमादित्य की विजयें - वैवाहिक सम्बन्धों द्वारा अपनी स्थिति सुदृढ़ कर लेने के उपरान्त चन्द्रगुप्त ने अपना विजय अभियान प्रारम्भ किया। उदयगिरि गुहाभिलेख के अनुसार इस अभियान का उद्देश्य सम्पूर्ण पृथ्वी को जीतना था।
अपनी विजय प्रक्रिया में चन्द्रगुप्त ने सर्वप्रथम पश्चिमी भारत के शकों की शक्ति को जड़ से उखाड़ फेंका। पूर्वी मालवा के क्षेत्र से चन्द्रगुप्त द्वितीय के तीन अभिलेख प्राप्त हुए हैं जिनसे परोक्ष रूप से शक विजय की सूचना मिलती है। प्रथम अभिलेख भिलसा के समीप उदयगिरि पहाड़ी से प्राप्त हुआ है जो सन्धिविग्रहिक सचिव वीरसेन का है। इस अभिलेख से ज्ञात होता है कि वह सम्पूर्ण पृथ्वी को जीतने के उद्देश्य से राजा के साथ इस स्थान पर आया था। दूसरा अभिलेख भी इसी स्थान से प्राप्त हुआ है और यह उसके सामन्त 'सनकानीक महाराज' का है। तीसरा सांची का लेख है जिसमें उसके एक सैनिक पदाधिकारी का उल्लेख मिलता है। यह सैनिक सैकड़ों युद्धों का विजेता था। इन तीनों अभिलेखों के सम्मिलित साक्ष्य से यह प्रकट होता है कि चन्द्रगुप्त पूर्वी मालवा में अपने सामन्तों एवं उच्च सैनिक अधिकारियों के साथ अभियान पर गया था। इस अभियान का उद्देश्य निश्चय ही मालवा के ठीक पश्चिम में स्थित शक राज्य को जीतना था। चन्द्रगुप्त का शक प्रतिद्वन्द्वी रुद्रसिंह तृतीय था। वह मार डाला गया था तथा उसका गुजरात और काठियावाड़ का राज्य गुप्त साम्राज्य में मिला लिया गया। चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य ने शक- मुद्राओं के ही अनुकरण पर चाँदी के सिक्के उत्कीर्ण करवायें जिन्हें शक राज्य में प्रचलित करवाया गया। यहीं से रुद्रसिंह तृतीय के चाँदी के कुछ ऐसे सिक्के भी प्राप्त हुए हैं जो चन्द्रगुप्त द्वारा पुनः अंकित कराये गये थे। इन सिक्कों के प्रमाण से भी शक राज्य पर चन्द्रगुप्त का आधिपत्य सूचित होता है।
यह शक- विजय सम्भवतः पाँचवीं शती के प्रथम दशक में ही की गयी थी। यह निश्चित रूप से एक महान सफलता थी। इसके साथ ही तीन शताब्दियों से भी अधिक समय के शासन के पश्चात् पश्चिमी क्षत्रमों के वंश का अन्त हुआ तथा पश्चिमी भारत से विदेशी आधिपत्य की समाप्ति हुई। इस विजय ने चन्द्रगुप्त द्वितीय की ख्याति को चतुर्दिक फैला दिया। सम्भवतः अपनी इस उपलब्धि के बाद उसने 'विक्रमादित्य' की उपाधि ग्रहण की थी। शक राज्य के गुप्त राज्य में मिल जाने से उसका विस्तार पश्चिम में अरब सागर तक हो गया था।
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