लोगों की राय

बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-2 प्राचीन भारतीय इतिहात एवं संस्कृति

बीए सेमेस्टर-2 प्राचीन भारतीय इतिहात एवं संस्कृति

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :144
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2723
आईएसबीएन :0

Like this Hindi book 0

5 पाठक हैं

बीए सेमेस्टर-2 प्राचीन भारतीय इतिहात एवं संस्कृति - सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- सम्राट के धम्म के विशिष्ट तत्वों का निरूपण कीजिए।

अथवा
अशोक बौद्ध धर्म को मानने वाला था।" इस कथन को सिद्ध कीजिए। वह इस धर्म के प्रचार के लिए किस प्रकार प्रयत्नशील रहा?

सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. अशोक के धम्म पर टिप्पणी लिखिए।
2. बौद्ध धर्म स्वीकार करने के पहले अशोक की वृत्ति क्या थी?
3. अशोक के बौद्ध होने के पक्ष में तर्क दीजिए।
4. अशोक के धर्म की मूल विशेषताएँ क्या हैं?
5. अशोक ने मानव कल्याण हेतु क्या कार्य किये?
6. अशोक की धार्मिक नीति की विवेचना कीजिए।
7. अशोक के दया धर्म का संक्षिप्त विवरण दीजिए।

उत्तर-

अशोक का धम्म

अशोक का हृदय बौद्ध उपदेशों की सादगी और सत्यता से अत्यन्त द्रवित हो गया था और उसने इस धर्म को शीघ्र ही स्वीकार कर लिया। अपने तेरहवें शिलालेख में उसने घोषणा की थी "कलिंग की विजय के शीघ्र बाद देवानांप्रिय धम्म के अनुकरण, धम्म के प्रेम और धम्म के उपदेश के प्रति उत्साहित हो उठा।" कुछ लोगों ने उसके बौद्ध होने में सन्देह किया, परन्तु उनकी यह धारणा इसलिए भ्रमपूर्ण है कि ऐतिहासिक अनुश्रुतियों और अभिलेखों के सम्मिलित प्रमाण से बौद्ध धर्म के प्रति उसकी निष्ठा प्रमाणित है। भमू लेख में उसने बुद्ध, धम्म और संघ तीनों के प्रति अपनी श्रद्धा घोषित की है और पाठ तथा ध्यान के लिए बौद्ध पुस्तकों के कुछ-कुछ स्थलों को संघ तथा साधारण उपासकों के प्रति प्रस्तुत किया है।

बौद्ध धर्म स्वीकार करने से पूर्व अशोक की वृत्ति - अशोक बौद्ध धर्म स्वीकार करने से पूर्व अत्याचारी तथा रक्त पिपास की संज्ञा से पुकारा जाता है। महावंश की टीका में उसे चण्ड अशोक कहा गया है। दिव्यावदान की कथा से विदित होता है कि एक दिन अशोक ने अपने 500 अमात्यों की हत्या कर दी क्योंकि उन्होंने उसकी आज्ञा का पालन नहीं किया था। एक दिन 500 स्त्रियों ने अशोक वृक्ष की पत्तियों को तोड़ डाला। नाम साम्य होने के कारण अशोक को इस पेड़ से अत्यधिक प्रेम था, अतः क्रोध में आकर उसने उन स्त्रियों को जीवित ही आग में जलवा दिया था। दिव्यावदान की भांति अन्य बौद्ध ग्रन्थों में भी इस घटना का उल्लेख मिलता है। महावंश नामक ग्रन्थ में कहा गया है कि अशोक ने एक बार अपने मंत्री को बहुत से भिक्षुओं की हत्या करने की आज्ञा दी थी। इसी प्रकार अशोकावदान में एक स्थान पर कहा गया है कि अशोक ने उन ब्राह्मणों की हत्या करने की आज्ञा दी थी जिन्होंने बौद्ध प्रतिमा का अनादर किया था। चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भी उसके द्वारा किये गये अत्याचारों का वर्णन किया है।

इन बौद्ध साक्ष्यों का पूरी तरह विश्वास नहीं किया जा सकता है। इसका कारण यह था कि वे यह सिद्ध करना चाहते थे कि जो अशोक बौद्ध धर्म स्वीकार करने से पूर्व 'चण्डअशोक' था, वही बौद्ध धर्म स्वीकार करने के पश्चात् कितना उदार तथा महान बन गया। इसी कारण उन्होंने अशोक के प्रारम्भिक अत्याचारों का विस्तारपूर्वक वर्णन किया है।

अशोक का बौद्ध होना - निम्नलिखित शिलालेखों के आधार पर अशोक को बौद्ध मतावलम्बी स्वीकार किया जा सकता है-

1. सारनाथ के लघु शिलालेख से यह ज्ञात होता है कि अशोक ने अपने को बौद्ध धर्म के संरक्षक के स्थान में रखते हुए कुछ दंड विधान भी घोषित किये।

2. भाभ्र अभिलेख से ज्ञात होता है कि अशोक ने बौद्ध त्रिरत्नों (बुद्ध, संघ तथा धम्म) के प्रति श्रद्धा का उल्लेख किया है।

3. आठवें शिलालेख से ज्ञात होता है कि अशोक ने बौद्ध गया की यात्रा की थी। लघु स्तम्भ लेख से ज्ञात होता है कि उसने लुम्बनी वन की यात्रा की थी। यह यात्रा पूर्णतया धार्मिक दृष्टि से रही। ऐसा इतिहासकारों ने अनुमान लगाया है।

4. कुछ इतिहासकारों का कथन है कि शिलालेखों का मुख्य उद्देश्य बौद्ध धर्म का प्रचार था। वे अपनी दृष्टि में चार लघु स्तम्भ लेख, दो स्तम्भ लेख, चौदहवाँ शिलालेख तथा विशेषकर आबू लेख का उल्लेख करते हैं।

5. ह्वेनसांग के कथनानुसार अशोक एक विशाल सेना के साथ गया। लुम्बनी वन, कपिलवस्तु, ऋषिपतन (सारनाथ), श्रावस्ती तथा कुशीनगर आदि के तीर्थस्थानों की यात्रा की, पर अशोक के अभिलेखों में सारनाथ, कुशीनगर आदि तीर्थस्थानों का कहीं उल्लेख नहीं होता है।

6. अशोक ने अपने प्रथम लघु शिलालेख में 'संघ उपयीते' लिखा है, अशोक का संघुपयीते से अभिप्राय था कि धार्मिक सम्राट के नाते अशोक ने बौद्ध संघों का दौरा किया।

7. अशोक संघ उपयीते के आधार पर बौद्ध भिक्षु हो गया था। इसका समर्थन इत्सिंग के इस विवरण से हो जाता है कि उसने भिक्षु के भेष में अशोक की एक मूर्ति देखी थी।

8. पुरातात्विक साक्ष्यों के अतिरिक्त साहित्यिक साक्ष्य भी अशोक के बौद्ध मतावलम्बी होने का समर्थन करते हैं। उदाहरण के लिए दीपवंश, महावंश समन्तपासारिका, दिव्यावदान, सुमंगलपकासिनी आदि अशोक को बौद्ध धर्मावलम्बी मानते हैं।

9. अशोक ने 80 हजार स्तूपों का निर्माण कराया जिनका मंतव्य स्पष्ट होता है।

10. अशोक ने मोग्गलिपुत्र तिव्य के सभापतित्व में तृतीय बौद्ध संगीत का आयोजन किया, जिसका उद्देश्य महात्मा बुद्ध के उपदेशों के पाठ आदि को शुद्ध करना था।

11. सम्राट अशोक ने अपने साम्राज्य में पशुबलि -निषेध आज्ञा दे दी थी। उसके अभिलेखों से ज्ञात होता है कि उसने स्वयं मांस भक्षण तथा मृगया का त्याग कर दिया था। उसने ब्राह्मणों तथा अनुष्ठानों का भी निषेध कर दिया था।

12. बौद्ध अनुश्रुतियों से पता चलता है कि अशोक ने अगणित स्तूपों में महात्मा बुद्ध के भस्मावशेष को वितरित करके रखवाया था।

13. बौद्ध धर्म के प्रचार हेतु अशोक ने बौद्ध भिक्षु एवं भिक्षुणियों को देश- विदेश भेजा था। डॉ. हेमचंद्र राय चौधरी ने अशोक का बौद्ध होना स्वीकार किया है और इस विषय में उन्होंने लिखा है कि "इसमें सन्देह के लिए स्थान नहीं है कि अशोक बौद्ध बन गया था। श्री राधा कुमुद मुकर्जी ने अशोक के धर्म के मूलभूत तत्वों पर प्रकाश डाला है। उन्होंने अशोक के अभिलेखों के आधार पर अपने मत का निर्धारण किया है। अपनी प्रजा तथा समस्त मानव जाति के लिए अशोक ने जो शिक्षायें दी हैं तथा उसके व्यक्तिगत जीवन का जो विवरण हमें प्राप्त होता है, उससे निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि अशोक के धर्म का मूल तत्व परिवार के सुन्दर पारस्परिक संबंध पर आधारित था और इसी सुन्दर पारिवारिक संबंध में व्यक्ति तथा समुदाय, व्यक्ति तथा समाज और व्यक्ति तथा विश्व के पारस्परिक सुन्दर व्यवहारों का मूल निहित है। अशोक का यह दृढ़ विश्वास था कि धर्म का प्रचार घर की चारदीवारी से होता है और यही विस्तृत होकर सम्पूर्ण विश्व को एकता के सूत्र में बाँध लेता है।

सामाजिक जीवन में व्यक्ति को जिन विभिन्न लोगों एवं सम्प्रदायों के सम्पर्क में आना पड़ता है उनके साथ सुन्दरतम व्यवहार करना ही धर्म का मुख्य उद्देश्य है। चरित्र, आचरण तथा व्यवहार धार्मिक कर्मकाण्डों से बहुत ऊंचे हैं। अशोक के धार्मिक उपदेशों को स्पष्ट रूप से समझ लेने पर ही हम उसके धर्म को भली-भाँति जान सकते हैं। अशोक के धार्मिक उपदेश निम्नलिखित थे -

1. अपचित - अशोक अपने धर्म का श्रीगणेश घर से करना चाहता था। अतः उसने माता-पिता, गुरुजनों, बड़े-बूढों की सेवा करना इत्यादि पर जोर दिया।

2. सम्प्रति - समन्वयवादी अशोक ने विभिन्न सम्प्रदाय या अन्य लोगों में सुन्दर सम्पर्क स्थापित करने के लिए ही ब्राह्मणों, सम्बन्धियों, श्रमगो, मित्रबन्धुओं आदि के प्रति दान एवं उचित व्यवहार की प्रशंसा की है।


3. संचेय - दान, दया तथा सत्य 
4. सोचिये - चित्त शुद्ध  
5. दधभक्तिता - साधुता, संयम कृतज्ञता तथा दृढ़ भक्तिता 
6. मदों - माधुर्य 

अन्तिम तीन सिद्धान्त में अशोक द्वारा धर्म के गुण बतलाये गये हैं (द्वितीय तृतीय शिलालेख )। तृतीय स्तम्भ लेख में अशोक ने यह बतलाया है कि क्रोध, निष्ठुरता, ईर्ष्या से उत्पन्न पापों से मुक्ति पाना ही धर्म है। अशोक ने भावनाओं की शुद्धि, धार्मिकता के विकास एवं आचरण के उत्थान के लिए मनुष्यों को आत्म-निरीक्षण करने को कहा है।

 

इन सिद्धान्तों को मूर्त रूप प्रदान करने के लिए अशोक ने निम्नलिखित आचरण करने का सन्देश दिया है-

1. पशुधन का त्याग
2. अहिंसा
3. माता-पिता की सेवा
4. बड़े - वृद्धों की सेवा
5. गुरुजनों के प्रति आदर
6. मित्र परिचित स्वजाति ब्राह्मण व श्रमणों के साथ उचित व्यवहार।
7. सेवकों और मजदूरों के साथ बर्ताव।
8. थोड़ा व्यय करना।

अशोक के धर्म की विवेचना करते हुए यह बताया जाता है कि अशोक का धर्म सभी धर्मों का सार है। अशोक के धर्म की अपनी कुछ मौलिक विशेषताएँ थीं जो निम्नलिखित हैं-

1. सार्वभौमिकता - अशोक के धर्म में कहीं भी साम्प्रदायिकता नहीं है। इसी कारण यह धर्म विश्व में सार्वभौम धर्म के रूप में माना जाता है।

2. अहिंसा - प्रथम शिलालेख से ज्ञात होता है कि अशोक अहिंसा का कितना पुजारी था। उसने यज्ञों में होने वाले पशु वध को समाप्त कर दिया था।

3. धार्मिक सहिष्णुता - अशेक के धर्म में किसी भी धर्म से ईर्ष्या-द्वेष करने की आज्ञा नहीं थी, सभी धर्म को अपने धर्म की तरह सम्मान देना इसका मुख्य उद्देश्य था।

4. नैतिक आदर्शों का प्राधान्य - धर्म के चार अंगों दर्शन, नैतिक आदर्श, कर्मकाण्ड तथा कला में से अशोक ने नैतिक आदर्शों पर ही विशेष जोर दिया।

5. प्रायोगिकता - धर्म में केवल विद्वानों एवं अचार्यों की वस्तु होती है। दर्शन को महत्व न देकर व्यावहारिक कर्त्तव्यों को प्रधानता देने का एक बहुत बड़ा फल यह हुआ कि अशोक ने विडम्बनाओं से लोगों की रक्षा की।

अशोक की उदारता इतनी सार्वभौमिक थी कि उसने कभी भी अपने व्यक्तिगत धार्मिक विचार प्रजा पर लादने का प्रयत्न नहीं किया। यह महत्वपूर्ण बात है कि अपने शिलालेखों में उसने बौद्ध धर्म के तात्विक 'चार आर्य सत्यों' 'अष्टांगिक मार्ग' और निब्बान (निर्वाण) के लक्ष्य का उल्लेख नहीं किया। जिस धम्म का रूप उसने संसार के सामने रखा वह प्रमाणतः सारे धर्मों का सार है। जीवन को अपेक्षाकृत सुखी और पावन बनाने के विचार से उसने कुछ आचरणों के विधान किये हैं।

धर्म प्रचार के उद्योग - अशोक ने धर्म प्रचार की निष्ठा से कार्य किया और प्रथम लघु शिलालेख में उसका कहना है कि उसके सक्रिय उद्योग के कारण वर्ष भर में संभवतः (एक वर्ष से अधिक समय में) सारे जम्बूद्वीप में जो मनुष्य देवताओं में आयुक्त थे, वे उनसे युक्त हो गये थे। यह साधारण सफलता उसे अपनी उचित धर्म योजना से मिली। उसने स्वर्ग में पुण्य आत्माओं द्वारा अनेक भोगे जाने वाले आनन्दों के दृश्य जनता के सामने रखे। इनमें से कुछ थे विमान प्रदर्शन, अग्नि स्कन्धानि और गज प्रदर्शन (हस्थि- दसन)। अशोक की धारणा थी कि इन प्रदर्शनों से उसकी प्रजा धर्माचरण की ओर आकर्षित होगी। उसने स्वयं आखेट और मनोरंजन की बिहार यात्राओं को छोड़कर धर्म यात्रायें करनी आरम्भ कीं जिससे अपने आचरण था दृष्टान्त से वह अपनी प्रजा की धर्म और उदारता में अनुरक्ति उत्पन्न कर सके (अष्टमशिलालेख )। इसी उद्देश्य से, जैसा अशोक सप्तम स्तम्भ लेख में कहता है, उसने " धम्म स्तम्भ खड़े किये और धम्म महामात्रों अथवा धर्म महामात्र नियुक्त किये और धम्म सावन अथवा धर्म श्रवण किये। धम्म महामात्रों की नियुक्ति निःसन्देह एक महत्वपूर्ण बात थी। इनका कर्तव्य प्रजा की भौतिक और आध्यात्मिक आवश्यकताओं की पूर्ति करनी थी।

मानव कल्याण के कार्य - मनुष्य और पशु के दुःख निवारण और कल्याण कार्य के प्रति अशोक अब दत्त चित्त हुआ। प्रथम शिलालेख से यज्ञों के पशुधन के निषेध की बात भी कही जा चुकी है। उसी शिलालेख से प्रमाणित होता है कि अशोक ने धीरे-धीरे अपनी रसोई में शाक वर्जित पाक बंद कर दिये और स्वयं निरामिष हो गया। मांसाहार तथा नृत्य-संगीत प्रधान समाजों को उसने सर्वथा बन्द कर दिया। इसी प्रकार पंच स्तम्भ लेख में पशुओं के अंग विच्छेद तथा वध के विरुद्ध कुछ विधानों का उल्लेख है। वह साधुओं, दरिद्रों और पीड़ितों को दान देता था और अपनी रानियों तथा राजकुमारों के दानों का प्रबन्ध करने के लिए उसने एक प्रकार के उच्च अधिकारियों की नियुक्ति की जिनको 'मुख' कहा जाता था। द्वितीय शिलालेख के अनुसार अशोक ने मनुष्य और पशुओं की चिकित्सा के लिये देश-विदेश में अस्पताल खोले। इस प्रकार चिकित्सा संबंधी प्रबन्ध दक्षिण के पड़ोसी राज्यों में चोलों, पाण्ड्यों, सतिय पुत्रों, केरल पुत्रों और ताम्रपणी सिंहल तथा यवन राज्यों में किये गये।-

इसके अलावा आधे कोस की दूरी पर कूप तथा विश्राम गृह बनवाये। जहाँ औषधियों के पौधे न थे वहां अन्यत्र से लाकर लगवाया। मनुष्यों तथा पशुओं के लिए उसने वट वृक्ष और आम्र वृक्ष लगवाये। इस प्रकार अशोक ने सारे जीवित प्राणी जगत के सुख और कल्याण के लिए अनेक कार्य किये क्योंकि उसके प्रेम, उदारता और सहानुभूति की कोई सीमा अथवा अवरोध न था उसकी कभी यह कामना न थी कि यवन "विदेशी के विधान से" जैसा डॉ. राइज ने अनुमान किया है अपनी देवताओं की पूजा छोड़ दे। परन्तु निःसन्देह अशोक ने अपने दूतों द्वारा शान्ति और स्नेह भेजना अपना कर्त्तव्य समझा। इन दूतों को उसकी ओर से परार्थ के कार्य संपन्न करने की भी हिदायत दी गयी, जिससे सम्राट प्राणियों के प्रति अपने ऋण से मुक्त हो सके। (भूतानां आनण्णं गच्छेयाम्)

तृतीय बौद्ध संगीति - अशोक के राज्याभिषेक के सत्रहवें वर्ष में बौद्ध संगीति का अधिवेशन उसके शासनकाल की दूसरी महत्वपूर्ण घटना थी। यह अधिवेशन बौद्ध धर्म के विविध सम्प्रदायों में सामंजस्य और विभिन्न दृष्टिकोणों में समन्वय स्थापित करने के लिए किया गया। इसकी बैठक मोगाल्लिपुत तिस्स (उत्तरी ग्रन्थों के नुसार उपगुप्त ) की अध्यक्षता में पाटलिपुत्र में हुआ और नौ मास की निरन्तर बैठक के बाद निर्णय स्थाविरों के पक्ष में दिया गया। अधिवेशन के अन्त में अध्यक्ष ने धर्म के प्रचारार्थ दूर दशों में बौद्ध दूत भेजे। काश्मीर और गन्धार मध्य हिमालयवर्ती देश में महादेव महिष मंडल (मैसूर) में, सोम और उत्तर सुवर्ण भूमि (वर्मा) में महाधर्म रक्षित और महारक्षित क्रमशः महाराष्ट्र और यवन देश में तथा अशोक का प्रव्रजित पुत्र महेन्द्र लंका ( सिंहल ) में गया। सभवतः सम्राट की कन्या संघमित्रा बोधिवृक्ष की एक शाखा लंका को ले गयी। अशोक के काल में बौद्ध धर्म का प्रचार और अभिवृद्धि इन्हीं धर्मदूतों के अथक अध्यवसाय का फल था।

महावंशों के पंचवें परिच्छेद में इस धर्म संगीति का विशद रूप से वर्णन किया गया है। पर इसका उल्लेख न दिव्याव दान आदि संस्कृत ग्रन्थों में मिलता है और न ही चीनी यात्रियों के विवरणों में मिलता है। अशोक की धर्मालिपियों में भी कहीं इसका निर्देश नहीं है। इसलिये कुछ विद्वानों के अनुसार इस महासभा में केवल विभजवाद या स्थिविरवाद के भिक्षु ही सम्मिलित हुए थे। अतः अन्य सम्प्रदाय के ग्रन्थों ने इसकी यदि उपेक्षा की हो और इसका उल्लेख न किया हो तो यह स्वाभाविक है। बौद्ध साहित्य के संस्कृत भाषा के ग्रन्थ स्थविरवाद के नहीं हैं। क्योंकि अशोक की धर्म संगीति का सम्बन्ध राज्य संस्था से न होकर बौद्ध धर्म के एक सम्प्रदाय के साथ ही था, अतः यदि उसने अपनी धर्मलिपियों में इसका उल्लेख नहीं किया तो इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं है। पर यह स्वीकार करना होगा कि इस धर्म संगीति द्वारा बौद्ध धर्म में नये उत्साह और नवजीवन का संचार हुआ। स्थविरवाद को साधारण बल मिला, जिसके परिणामस्वरूप उन प्रचारक मंडलों का संगठन बना जिन्होंने भारत के सदूरवर्ती प्रदेशों और अनेक विदेशों में बौद्ध धर्म का प्रचार किया।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास को समझने हेतु उपयोगी स्रोतों का वर्णन कीजिए।
  2. प्रश्न- प्राचीन भारत के इतिहास को जानने में विदेशी यात्रियों / लेखकों के विवरण की क्या भूमिका है? स्पष्ट कीजिए।
  3. प्रश्न- प्राचीन भारत के इतिहास के पुरातात्विक स्रोतों की सुस्पष्ट जानकारी दीजिये।
  4. प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास के विषय में आप क्या जानते हैं?
  5. प्रश्न- भास की कृति "स्वप्नवासवदत्ता" पर एक लेख लिखिए।
  6. प्रश्न- 'फाह्यान' पर एक संक्षिप्त लेख लिखिए।
  7. प्रश्न- दारा प्रथम तथा उसके तीन महत्वपूर्ण अभिलेख के विषय में बताइए।
  8. प्रश्न- आपके विषय का पूरा नाम क्या है? आपके इस प्रश्नपत्र का क्या नाम है?
  9. वस्तुनिष्ठ प्रश्न - प्राचीन इतिहास अध्ययन के स्रोत
  10. उत्तरमाला
  11. प्रश्न- बिम्बिसार के समय से नन्द वंश के काल तक मगध की शक्ति के विकास का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  12. प्रश्न- नन्द कौन थे महापद्मनन्द के जीवन तथा उपलब्धियों का उल्लेख कीजिए।
  13. प्रश्न- छठी सदी ईसा पूर्व में गणराज्यों का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
  14. प्रश्न- छठी शताब्दी ई. पू. में महाजनपदीय एवं गणराज्यों की शासन प्रणाली के अन्तर को स्पष्ट कीजिए।
  15. प्रश्न- बिम्बिसार की राज्यनीति का वर्णन कीजिए तथा परिचय दीजिए।
  16. प्रश्न- उदयिन के जीवन पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  17. प्रश्न- नन्द साम्राज्य की विशालता का वर्णन कीजिए।
  18. प्रश्न- धननंद और कौटिल्य के सम्बन्ध का उल्लेख कीजिए।
  19. प्रश्न- धननंद के विषय में आप क्या जानते हैं?
  20. प्रश्न- मगध की भौगोलिक सीमाओं को स्पष्ट कीजिए।
  21. प्रश्न- गणराज्य किसे कहते हैं?
  22. वस्तुनिष्ठ प्रश्न - महाजनपद एवं गणतन्त्र का विकास
  23. उत्तरमाला
  24. प्रश्न- मौर्य कौन थे? इस वंश के इतिहास जानने के स्रोतों का उल्लेख कीजिए तथा महत्व पर प्रकाश डालिए।
  25. प्रश्न- चन्द्रगुप्त मौर्य के विषय में आप क्या जानते हैं? उसकी उपलब्धियों और शासन व्यवस्था पर निबन्ध लिखिए|
  26. प्रश्न- सम्राट बिन्दुसार का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  27. प्रश्न- कौटिल्य और मेगस्थनीज के विषय में आप क्या जानते हैं?
  28. प्रश्न- मौर्यकाल में सम्राटों के साम्राज्य विस्तार की सीमाओं को स्पष्ट कीजिए।
  29. प्रश्न- सम्राट के धम्म के विशिष्ट तत्वों का निरूपण कीजिए।
  30. प्रश्न- भारतीय इतिहास में अशोक एक महान सम्राट कहलाता है। यह कथन कहाँ तक सत्य है? प्रकाश डालिए।
  31. प्रश्न- मौर्य साम्राज्य के पतन के कारणों को स्पष्ट कीजिए।
  32. प्रश्न- मौर्य वंश के पतन के लिए अशोक कहाँ तक उत्तरदायी था?
  33. प्रश्न- चन्द्रगुप्त मौर्य के बचपन का वर्णन कीजिए।
  34. प्रश्न- अशोक ने धर्म प्रचार के क्या उपाय किये थे? स्पष्ट कीजिए।
  35. वस्तुनिष्ठ प्रश्न - मौर्य साम्राज्य
  36. उत्तरमाला
  37. प्रश्न- शुंग कौन थे? पुष्यमित्र का शासन प्रबन्ध लिखिये।
  38. प्रश्न- कण्व या कण्वायन वंश को स्पष्ट कीजिए।
  39. प्रश्न- पुष्यमित्र शुंग की धार्मिक नीति की विवेचना कीजिए।
  40. प्रश्न- पतंजलि कौन थे?
  41. प्रश्न- शुंग काल की साहित्यिक एवं कलात्मक उपलब्धियों का वर्णन कीजिए।
  42. वस्तुनिष्ठ प्रश्न - शुंग तथा कण्व वंश
  43. उत्तरमाला
  44. प्रश्न- सातवाहन युगीन दक्कन पर प्रकाश डालिए।
  45. प्रश्न- आन्ध्र-सातवाहन कौन थे? गौतमी पुत्र शातकर्णी के राज्य की घटनाओं का उल्लेख कीजिए।
  46. प्रश्न- शक सातवाहन संघर्ष के विषय में बताइए।
  47. प्रश्न- जूनागढ़ अभिलेख के माध्यम से रुद्रदामन के जीवन तथा व्यक्तित्व पर प्रकाश डालिए।
  48. प्रश्न- शकों के विषय में आप क्या जानते हैं?
  49. प्रश्न- नहपान कौन था?
  50. प्रश्न- शक शासक रुद्रदामन के विषय में बताइए।
  51. प्रश्न- मिहिरभोज के विषय में बताइए।
  52. वस्तुनिष्ठ प्रश्न - सातवाहन वंश
  53. उत्तरमाला
  54. प्रश्न- कलिंग नरेश खारवेल के इतिहास पर प्रकाश डालिए।
  55. प्रश्न- कलिंगराज खारवेल की उपलब्धियों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  56. वस्तुनिष्ठ प्रश्न - कलिंग नरेश खारवेल
  57. उत्तरमाला
  58. प्रश्न- हिन्द-यवन शक्ति के उत्थान एवं पतन का निरूपण कीजिए।
  59. प्रश्न- मिनेण्डर कौन था? उसकी विजयों तथा उपलब्धियों पर चर्चा कीजिए।
  60. प्रश्न- एक विजेता के रूप में डेमेट्रियस की प्रमुख उपलब्धियों की विवेचना कीजिए।
  61. प्रश्न- हिन्द पहलवों के बारे में आप क्या जानते है? बताइए।
  62. प्रश्न- कुषाणों के भारत में शासन पर एक निबन्ध लिखिए।
  63. प्रश्न- कनिष्क के उत्तराधिकारियों का परिचय देते हुए यह बताइए कि कुषाण वंश के पतन के क्या कारण थे?
  64. प्रश्न- हिन्द-यवन स्वर्ण सिक्के पर प्रकाश डालिए।
  65. वस्तुनिष्ठ प्रश्न - भारत में विदेशी आक्रमण
  66. उत्तरमाला
  67. प्रश्न- गुप्तों की उत्पत्ति के विषय में आप क्या जानते हैं? विस्तृत विवेचन कीजिए।
  68. प्रश्न- काचगुप्त कौन थे? स्पष्ट कीजिए।
  69. प्रश्न- प्रयाग प्रशस्ति के आधार पर समुद्रगुप्त की विजयों का उल्लेख कीजिए।
  70. प्रश्न- चन्द्रगुप्त (द्वितीय) की उपलब्धियों के बारे में विस्तार से लिखिए।
  71. प्रश्न- गुप्त शासन प्रणाली पर एक विस्तृत लेख लिखिए।
  72. प्रश्न- गुप्तकाल की साहित्यिक एवं कलात्मक उपलब्धियों का वर्णन कीजिए।
  73. प्रश्न- गुप्तों के पतन का विस्तार से वर्णन कीजिए।
  74. प्रश्न- गुप्तों के काल को प्राचीन भारत का 'स्वर्ण युग' क्यों कहते हैं? विवेचना कीजिए।
  75. प्रश्न- रामगुप्त की ऐतिहासिकता पर विचार व्यक्त कीजिए।
  76. प्रश्न- गुप्त सम्राट चन्द्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य के विषय में बताइए।
  77. प्रश्न- आर्यभट्ट कौन था? वर्णन कीजिए।
  78. प्रश्न- स्कन्दगुप्त की उपलब्धियों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  79. प्रश्न- राजा के रूप में स्कन्दगुप्त के महत्व की विवेचना कीजिए।
  80. प्रश्न- कुमारगुप्त पर संक्षेप में टिप्पणी लिखिए।
  81. प्रश्न- कुमारगुप्त प्रथम की उपलब्धियों पर प्रकाश डालिए।
  82. प्रश्न- गुप्तकालीन भारत के सांस्कृतिक पुनरुत्थान पर प्रकाश डालिए।
  83. प्रश्न- कालिदास पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  84. प्रश्न- विशाखदत्त कौन था? वर्णन कीजिए।
  85. प्रश्न- स्कन्दगुप्त कौन था?
  86. प्रश्न- जूनागढ़ अभिलेख से किस राजा के विषय में जानकारी मिलती है? उसके विषय में आप सूक्ष्म में बताइए।
  87. वस्तुनिष्ठ प्रश्न - गुप्त वंश
  88. उत्तरमाला
  89. प्रश्न- दक्षिण के वाकाटकों के उत्कर्ष का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  90. वस्तुनिष्ठ प्रश्न - वाकाटक वंश
  91. उत्तरमाला
  92. प्रश्न- हूण कौन थे? तोरमाण के जीवन तथा उपलब्धियों का उल्लेख कीजिए।
  93. प्रश्न- हूण आक्रमण के भारत पर क्या प्रभाव पड़े? स्पष्ट कीजिए।
  94. प्रश्न- गुप्त साम्राज्य पर हूणों के आक्रमण का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
  95. वस्तुनिष्ठ प्रश्न - हूण आक्रमण
  96. उत्तरमाला
  97. प्रश्न- हर्ष के समकालीन गौड़ नरेश शशांक के विषय में आप क्या जानते हैं? स्पष्ट कीजिए।
  98. प्रश्न- हर्ष का समकालीन शासक शशांक के साथ क्या सम्बन्ध था? मूल्यांकन कीजिए।
  99. प्रश्न- हर्ष की सामरिक उपलब्धियों के परिप्रेक्ष्य में उसका मूल्यांकन कीजिए।
  100. प्रश्न- सम्राट के रूप में हर्ष का मूल्यांकन कीजिए।
  101. प्रश्न- हर्षवर्धन की सांस्कृतिक उपलब्धियों का वर्णन कीजिये?
  102. प्रश्न- हर्ष का मूल्यांकन पर टिप्पणी कीजिये।
  103. प्रश्न- हर्ष का धर्म पर टिप्पणी कीजिये।
  104. प्रश्न- पुलकेशिन द्वितीय पर टिप्पणी कीजिये।
  105. प्रश्न- ह्वेनसांग कौन था?
  106. प्रश्न- प्रभाकर वर्धन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
  107. प्रश्न- गौड़ पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  108. वस्तुनिष्ठ प्रश्न - वर्धन वंश
  109. उत्तरमाला
  110. प्रश्न- मौखरी वंश की उत्पत्ति के विषय में बताते हुए इस वंश के प्रमुख शासकों का उल्लेख कीजिए।
  111. प्रश्न- मौखरी कौन थे? मौखरी राजाओं के जीवन तथा उपलब्धियों पर प्रकाश डालिए।
  112. प्रश्न- मौखरी वंश का इतिहास जानने के साधनों का वर्णन कीजिए।
  113. वस्तुनिष्ठ प्रश्न - मौखरी वंश
  114. उत्तरमाला
  115. प्रष्न- परवर्ती गुप्त शासकों का राजनैतिक इतिहास बताइये।
  116. प्रश्न- परवर्ती गुप्त शासकों के मौखरी शासकों से किस प्रकार के सम्बन्ध थे? स्पष्ट कीजिए।
  117. प्रश्न- परवर्ती गुप्तों के इतिहास पर टिप्पणी लिखिए।
  118. प्रश्न- परवर्ती गुप्त शासक नरसिंहगुप्त 'बालादित्य' के विषय में बताइये।
  119. वस्तुनिष्ठ प्रश्न - परवर्ती गुप्त शासक
  120. उत्तरमाला

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book