बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-2 - भूगोल - मानव भूगोल बीए सेमेस्टर-2 - भूगोल - मानव भूगोलसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-2 - भूगोल - मानव भूगोल
अध्याय - 7
नगरीय अधिवास
(Urban Settlement)
मानव अधिवासों को सामान्यतयां दो प्रधान वर्गों में विभक्त किया जाता है -
(1) ग्रामीण अधिवास और
(2) नगरीय अधिवास।
सामाजिक, आर्थिक तथा सांस्कृतिक सभी दृष्टिकोणों से ग्रामीण और नगरीय अधिवास एक-दूसरे से भिन्न माने जाते हैं। ग्रामीण अधिवास प्रायः कम क्षेत्रों में विस्तृत होते हैं जहाँ गृहों की संख्या, जनसंख्या तथा जनसंख्या घनत्व सभी नगर की तुलना में कम पाये जाते हैं। ग्रामों में प्राथमिक कार्यों की प्रधानता होती है और ये सभ्यता एवं संस्कृति के दृष्टिकोण से भी नगरों की तुलना में पिछड़े होते हैं। ग्रामों के विपरीत नगरीय केन्द्र घने बसे होते हैं। जहाँ गृहों की संख्या, जनसंख्या तथा जनसंख्या का घनत्व अपेक्षाकृत अधिक पाये जाते हैं। नगरों में द्वितीयक, तृतीयक तथा चतुर्थक कार्यप्रमुख तथा प्राथमिक कार्य गौण होते हैं। नगर प्राचीन काल से ही सभ्यता एवं संस्कृति के केन्द्र रहते हैं। इस प्रकार ग्रामीण और नगरीय अधिवासों से सामान्य अन्तर स्पष्ट है किन्तु ग्रामीण और नगरीय अधिवासों को एक दूसरे से बिल्कुल अलग करना इतना सुगम और स्पष्ट नहीं है जितना कि उपर्युक्त कथित रूप में दिखाई पड़ता है।
ग्राम और नगर जिन्हें प्रायः दो भिन्न इकाइयों के रूप में देखा जा सकता है, एक दूसरे से संयुक्त होते हैं। विशुद्ध ग्रामीण और विशुद्ध नगरीय अधिवासों को अलग-अलग समझा जा सकता है। किन्तु उन बस्तियों को जहाँ ग्रामीण एवं नगरीय दोनों विशेषतायें संयुक्त रूप में पायी जाती है, किसी एक श्रेणी (ग्रामीण अथवा नगरीय) में रखना कठिन कार्य है। अतः ग्रामीण तथा नगरीय अधिवासों को किसी सर्वमान्य एवं प्रामाणिक सीमा द्वारा स्पष्ट रूप से पृथक नहीं किया जा सकता। वास्तव में ग्राम और नगर एक सांतत्य के रूप में है न कि द्वैत के रूप में। ग्राम और नगर एक ही मापक के दो छोर है जिनका स्पष्ट विभाजन मापक के किसी एक बिन्दु से नहीं किया जा सकता। ग्रामीण पुरवा से लेकर ग्राम, कस्बा, शहर, महानगर सभी अधिवास कहलाते हैं। विकास के साथ-साथ ग्रामीण अधिवासों में धीरे- धीरे- नगरीय विशेषताएं प्रबल हो जाती हैं और वे नगरीय अधिवासों की श्रेणी में पहुंच जाते हैं। नगरों की उत्पत्ति मुख्यतः दो रूपों में होती हैं—
(i) ग्रामीण अधिवासों में नगरीय विशेषताओं के प्रबल हो जाने पर और
(ii) नगर के रूप में स्थापित अधिवास।
प्रथम प्रकार से उद्भुत अधिवासों के पहले ग्रामीण और बाद में नगरीय बन जाने की प्रक्रिया में सामान्यतया ग्रामीण और नगरीय दोनों विशेषताएं मिलती है। समय के अनुसार धीरे-धीरे ग्रामीण विशेषताएं कम होने लगती है और नगरीय विशेषताएं उनका स्थान लेने लगती है। इस प्रकार उभय विशेषताओं वाली बस्तियों को ग्रामीण अथवा नगरीय किस श्रेणी में रखा जाये यह एक व्यवहारिक कठिनाई है। नगर को ग्रामीण अधिवास से अलग करने में अर्थात् नगर की मौलिक सीमा के निर्धारण में अनेक व्यवहारिक कठिनाइयां आती है। नगर की अवधारण देश - काल व्यक्तियों संस्थाओं तथा सभ्यताओं एवं परिस्थितियों के अनुसार बदली रहती हैं। अतः ग्राम और नगर को बिल्कुल पृथक इकाई नहीं बल्कि अधिवास के विकास में विभिन्न चरण या अवस्थाओं के रूप में माना जा सकता है। ग्रामीण अधिवासों में जनसंख्या घनत्व कम और नगरीय अधिवासों में सामान्यतः अधिक पाया जाता है। ग्रामीण क्षेत्रों में पर्याप्त भूमि की उपलब्धता, जनसंख्या कम होने तथा एकल मंजिल वाले गृहों की अधिकता पायी जाती है।
महत्वपूर्ण तथ्य
भूगोलविदों ने विश्व के विभिन्न देशों के नगरों का कार्यात्मक वर्गीकरण प्रस्तुत किया है।
अनेक विद्वानों ने रोजगार सम्बन्धी आंकड़ों को आधार मानते हुए केवल सांख्यिकीय विधियों का भी उपयोग किया है।
नगर सामान्यतः विविधतापूर्ण होते हैं।
नगरों को सामान्यतः उनके प्रमुख कार्य या कार्यों के आधार पर ही वर्गीकृत किया जाता है।
किसी नगर को उस कार्यात्मक वर्ग में रखा जाता है जो उस नगर के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण होता है।
नगरों का यह वर्गीकरण मुख्यतः गुणात्मक (आनुभविक ) विधि द्वारा किया गया है।
प्रत्येक कार्यात्मक वर्ग से सम्बन्धित नगरों के उदाहरण विश्व और भारत के संदर्भ में पृथक- पृथक दिये गये हैं।
व्यापारिक नगरों में व्यापार और वाणिज्य से सम्बन्धित कार्यों की प्रधानता पायी जाती है।
व्यापारिक नगरों में विभिन्न स्तरीय वित्त, बीमा, बैंक आदि वित्तीय कम्पनियों की बहुलता पायी जाती है।
नगरों के वर्गीकरण के लिए उनकी विविध विशेषताओं को आधार बनाया जाता है और तदनुकूल नगरों को विभिन्न वर्गों के अन्तर्गत वर्गीकृत किया जाता है।
नगरीय विकास की कई क्रमिक विकास अवस्थाएं पायी जाती है। नगरीय विकास प्रायः चक्रीय रूप में होता है।
नगरों के विकास में तकनीकी (प्रौद्योगिकीय) विकास का महत्वपूर्ण योगदान रहा है।
ग्रामीण क्षेत्रों से नगरीय केन्द्रों की ओर जनसंख्या प्रवास वर्तमान नगरीकरण की प्रमुख प्रवृत्ति है। उत्पत्ति से लेकर अवसान तक नगर विभिन्न अवस्थाओं से गुजरता हुआ अपनी जीवन यात्रा को पूरा करता है।
नगर अपने चारों ओर स्थित ग्रामीण क्षेत्रों की सेवा करते हैं और बदले में उनके कच्चे माल, खाद्यान्न श्रमिक आदि प्राप्त करते हैं।
सांस्कृतिक दृष्टिकोण से ग्रामीण क्षेत्र पिछड़े होते हैं और उन्हें विकास की किरणें नगरों से ही प्राप्त होती है।
ग्रामीण और नगरीय अधिवासों के आर्थिक विकास में भी अन्तर पाया जाता है।
ग्रामीण अधिवासों में जनसंख्या घनत्व कम और नगरीय अधिवासों में सामान्यतः अधिक पाया जाता है।
सामाजिक आर्थिक तथा सांस्कृतिक सभी दृष्टि से ग्रामीण एवं नगरीय अधिवास एक-दूसरे से भिन्न माने जाते हैं।
नगर प्राचीन काल से ही सभ्यता एवं संस्कृति के केन्द्र रहे हैं।
सामान्यतः नगर का आकार ग्राम की तुलना में बड़ा होता है।
नगरीय अधिवास ग्रामीण अधिवासों से प्रायः बड़े होते हैं।
नगर को ग्राम से अलग करने के लिए जनसंख्या को आधार बनाया जाता है।
भारत तथा आस्ट्रिया में 5000 या अधिक जनसंख्या वाली बस्ती नगर कहलाती है।
नगर के लिए जनसंख्या की न्यूनतम सीमा यू. एस. ए. में 2500, कनाडा तथा मलेशिया में 1000 निर्धारित की गयी है।
स्पेन तथा स्विटजरलैण्ड में नगर के लिए जनसंख्या 1000 निर्धारित की गयी है। डेनमार्क तथा आयरलैण्ड में क्रमशः 250 तथा 300 जनसंख्या वाली बस्ती को नगर की कोटि में रखा जाता है।
नगरीय अधिवासों में जनसंख्या घनत्व अधिक पाया जाता है।
भारत में किसी अधिवास को नगर श्रेणी में रखने के लिए न्यूनतम 5000 जनसंख्या के साथ वहाँ जनसंख्या घनत्व 400 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी होना चाहिए।
नगरीय अधिवासों के निवासी प्रायः द्वितीयक, तृतीयक एवं चतुर्थक कार्यों में संलग्न रहते हैं। सामान्यतः प्रत्येक नगर में एक स्वायत्त प्रशासनिक संस्था होती है।
नगर निगम, नगरपालिका, टाउन एरिया आदि नगरीय प्रशासनिक संस्था के उदाहरण है। नगरीय अधिवास सामान्यतः अधिक साधन सम्पन्न होते हैं।
नगरीय कार्यों से प्रायः प्रति व्यक्ति आय भी अधिक होती है।
नगर के लिए आंग्ल भाषा में 'टाउन' तथा 'सिटी' शब्दों का प्रयोग होगा। प्रसिद्ध जर्मन भूगोलवेत्ता के अनुसार नगर एक संगठित समूह होता है।
आज नगरीकरण को किसी देश की आर्थिक एवं सामाजिक विकास का उत्तम मानदण्ड माना जाता है।
नगरों में पारस्परिक सहयोग, सहकारिता तथा संबंधों का अभाव पाया जाता है।
प्रायः देश की सरकार द्वारा घोषित नगरीय इकाई को ही नगर माना जाता है।
अनेक देशों में नगर निर्धारण के लिए सरकारी निर्णय एक प्रमुख मापदण्ड होता है।
नगर वासियों की जीवन पद्धति ग्रामीण वासियों से उच्च तथा सुसंस्कृत होती है।
कस्बा या टाउन वास्तविक नगरीय अधिवास की सबसे लघु इकाई होता है। कस्बा से बड़ी नगरीय इकाई शहर कहलाती हैं
शहर से काफी बड़े नगरीय केन्द्र को महानगर कहते हैं।
महानगर सामान्यतः राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय महत्व रखते हैं।
दस लाख या इससे अधिक जनसंख्या रखने वाले नगर को महानगर कहते हैं। महानगरों को दसलाखी नगर या मिलियन सिटी के नाम से भी जाना जाता है।
न्यूयार्क, दिल्ली, टोकियो, शंघाई, मुम्बई, कोलकाता आदि मिलियन सिटीज के विशिष्ट उदाहरण है।
एक सतत नगरीय क्षेत्र जिसकी उत्पत्ति वाह्य विस्तार के परिणामस्वरूप गई नगरों में परस्पर मिल जाने से होती है।
वृहत्तर लन्दन, वृहत्तर कोलकाता, वृहत्तर मुम्बई, टोकियो- याकोहामा आदि विशाल सन्नगरों के उदाहरण हैं।
मेगालोपोलिस को एक विशाल सन्नगर कहा जाता है।
नगर के विकास के अंतर्गत उसके उद्भव से लेकर उसके जीवन की सम्पूर्ण अवधि में होने वाले क्रमिक परिवर्तनों को समाहित किया जाता है।
नगर के उद्भव तथा विकास पर उसके स्थल एवं स्थिति का विशेष प्रभाव पड़ता है।
सामान्यतः नगर विकास के लिए उसके स्थल पर विद्यमान दशायें उत्तरदायी होती हैं।
उपयुक्त जलवायु वाले प्रदेशों में नगरीय विकास को प्रोत्साहन मिलता है।
नगर से बड़ी मात्रा में गंदे व अपशिष्ट जल को बाहर निकालना अनिवार्य होता है।
नगर अपने चारों तरफ स्थित ग्रामीण क्षेत्रों की सेवा करते हैं तथा बदले में उनके कच्चे माल, खाद्यान्न, श्रमिक आदि प्राप्त करते हैं।
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- अध्याय - 1 मानव भूगोल : अर्थ, प्रकृति एवं क्षेत्र
- ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
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- अध्याय - 2 पुराणों के विशेष सन्दर्भ में भौगोलिक समझ का विकास
- ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
- उत्तरमाला
- अध्याय - 3 मानव वातावरण सम्बन्ध
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- उत्तरमाला
- अध्याय - 4 जनसंख्या
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- उत्तरमाला
- अध्याय - 5 मानव अधिवास
- ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
- उत्तरमाला
- अध्याय - 6 ग्रामीण अधिवास
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- उत्तरमाला
- अध्याय - 7 नगरीय अधिवास
- ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
- उत्तरमाला
- अध्याय - 8 गृहों के प्रकार
- ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
- उत्तरमाला
- अध्याय - 9 आदिम गतिविधियाँ
- ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
- उत्तरमाला
- अध्याय - 10 सांस्कृतिक प्रदेश एवं प्रसार
- ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
- उत्तरमाला
- अध्याय - 11 प्रजाति
- ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
- उत्तरमाला
- अध्याय - 12 धर्म एवं भाषा
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- अध्याय - 13 विश्व की जनजातियाँ
- ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
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- अध्याय - 14 भारत की जनजातियाँ
- ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
- उत्तरमाला