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बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-C - लिंग, विद्यालय एवं समाज

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :215
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2702
आईएसबीएन :0

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बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-C - लिंग, विद्यालय एवं समाज

प्रश्न- सशक्तीकरण से क्या आशय है? इसका अर्थ बताते हुए परिभाषाओं का भी उल्लेख कीजिए।

लघु उत्तरीय प्रश्न

    1. सशक्तीकरण की कोई दो परिभाषा दीजिए।
  1. सशक्तीकरण किस प्रकार का माध्यम है?

उत्तर-

इस शब्द का सम्बन्ध शक्ति अथवा अधिकार से है जिसे कोई एक व्यक्ति अथवा समाज अथवा सरकार किसी दूसरे व्यक्ति अथवा व्यक्ति समूह (जैसे समूह, जाति समूह, धार्मिक समूह अथवा लिंग आधारित समूह) को प्रदान कर सकता है। सामान्यतः यह मान्यता निहित है कि एक समूह (पुरुष, कुलीन, धनी अथवा संपत्तिवान वर्ग) को एक अन्य समूह (भूमिहीन, श्रमिक वर्ग, जातीय असंवेदनशील अथवा महिलाओं) पर अधिकार प्राप्त होता है। ये अधिकतम प्रभाव अथवा शक्ति सम्पन्न लोग दूसरे वर्ग के लोगों के कार्यों अथवा विकल्पों पर किसी-न-किसी प्रकार नियंत्रण बना लेते हैं। इस प्रकार का नियंत्रण दबाव, आर्थिक परिस्थितियों के भौतिक नियंत्रण और बल प्रयोग के माध्यम से प्रत्यक्ष भी हो सकता है और मनोवैज्ञानिक प्रक्रियाओं के माध्यम से अप्रत्यक्ष और सूक्ष्म भी हो सकता है। ये मनोवैज्ञानिक प्रक्रियाएँ इतनी प्रभावशाली होती हैं कि इनके बिना विकल्प सीमित हो जाते हैं। शक्ति के क्षेत्र में अधिकांश लेखक शक्ति प्रदान करने (सशक्तीकरण) को मात्र शक्ति का त्याग करने से कहीं अधिक समझते हैं "क्योंकि इसके साथ दो मान्यताएँ आती हैं— अर्थात यदि कोई शक्ति दी जा सकती है तो उसे उतनी ही आसानी से वापस भी लिया जा सकता है। यदि केवल 'शक्ति का हस्तांतरण' इस प्रकार एक छलावा बन जाता है और वंचित समूहों के लिए वृद्धि और विकास का मात्र एक साधन दृष्टिकोण हो सकता था वह एक साधन या साधन बन जाता है" (रॉलेस, 1988)। उदाहरण के लिए जब हम महिला सशक्तीकरण की बात करते हैं तो जो केवल महिलाओं को शक्ति देने पर नहीं होता अपितु उन्हें मुख्यधारा में भी लाना होता है। कि वे आर्थिक गतिविधियों में और विकास में भाग लें। "यहाँ सशक्तीकरण के क्षेत्र में चिंतकों ने एक न कि किसी पर शक्ति का आना जानकर किसी को 'शक्ति' के साथ शक्ति' और 'भीतर से शक्ति' को शामिल करके सशक्तीकरण की प्रक्रिया पर ध्यान केंद्रित करना पसन्द करता है।" हाईस्मिथ जिसे शक्ति की ऊर्जा प्रत्यक्ष कहते हैं वह शक्ति की आकांक्षाओं परिभाषा के विपरीत होती है और यह नेतृत्व के माध्यम से जनमानस प्रवृत्ति की होती है जो यह देखना चाहती है कि कोई वह समूह जिसके योग्य है उसे वह बिना हितों में गतिवधियों को अभिव्यक्ति करने की और उनका कार्यक्रम (agenda) स्वयं कर रहे दूसरों में गतिवधियों को अभिव्यक्ति करने की और उनका मनोबल ऊँचा करने की वह शक्ति नहीं हो। कुछ लोगों ने हाईस्मिथ (1985) इस शक्ति का एक पहलू है कि समूह जिसे योग्य है उसे प्राप्त करने के लिये अपने भीतर से एक नया नेतृत्व पैदा करे और अपना कार्यक्रम भी स्वयं तय करे।

सशक्तीकरण के क्षेत्र में एक बीजभूत रचना फॉकल्ट (1982) की थी जिसके लिये शक्ति एक असमीम प्रवाह नहीं थी जिसका पता लगाया जा सके; शक्ति का सम्बन्धन और कोई पर्दा नहीं है और इसका गठन उन लोगों के बीच सामाजिक सम्बन्धों के जाल में होता है जो न कि एक अनुप्रस्थ अंश तक क्रिया या स्वतन्त होता है। वह शक्ति को क्रिया के ऊपर क्रिया के तौर तरीके से देखने के तरीके से शक्ति के एक छोर के तौर पर प्रतिक्रिया का एक तत्व भी होती है। इसलिए शक्ति होती है प्रतिक्रिया होती है। यह उन संबंधों की विशिष्टता वृहद 'नीतियों' और शक्ति के स्थानांत प्रयोग के 'सन्दर्भ' में सही था, जिससे जुड़े सामाजिक संघात की व्यवस्थाओं में थी। इससे हम उन विश्लेषकों पर आते हैं जो शक्ति को किसी 'पर शक्ति' और किसी 'को शक्ति' के अतिरिक्त मानते हैं— जिसमें सम्पूर्णता का भाव सम्मिलित है जो व्यक्तियों के योग से बड़ा; उदाहरण के लिये, समस्याओं को साथ-साथ ले जाने वाले समूह (विलियम्स और अन्य, 1995) एक अकेले क्षमतावान व्यक्ति की अपेक्षा साथ-साथ काम करने वाले जनसमूह के लिये बदलाव लाने की अधिक सम्मानता रहती है। अन्य में भीतर से भी शक्ति होती है यह आध्यात्मिक शक्ति होती है जो मनुष्य में जन्म लेती है। यह आत्म स्वीकृति और आत्म सम्मान पर आधारित होती है जिसकी परिणति दूसरों को अपने समान मानने में होती है, और एक बार जब इस प्रकार की शक्ति आ जाती है तो उसका अन्य सशक्तीकरण में हो जाता है। इस प्रकार सशक्तीकरण किसके को, किसके के साथ और भीतर से शक्ति के विकास की परस्पर क्रिया का प्रभाव देता है और यह 'शक्ति' के किसी को शक्ति वाले रूप को ही प्रभाव में सीमित नहीं है।

शक्ति की परस्पर क्रिया हमें शारीरिक, सामाजिक और आर्थिक सशक्तीकरण की ओर ले जाती है। इस प्रकार यह सशक्तीकरण शब्द मात्र एक आलोचनात्मक युक्ति नहीं अपितु न्याय के साथ बदलाव लाने का एक सक्रिय माध्यम भी है। इस प्रकार सशक्तीकरण का सम्बन्ध केवल निर्णय करने की प्रक्रिया में शामिल होने तक ही रहा। खोले नहीं है, अपितु इसमें उन प्रक्रियाओं का समावेश होना चाहिए जिनमें प्रभावित लोग स्वयं को निर्णय करने की प्रक्रिया में शामिल होने के योग्य और उसके अधिकारी के रूप में देखते हैं (रॉलेस, 1995)। जहाँ कुछ लोग व्यक्ति के सशक्तीकरण को उसे निर्णय करने की प्रक्रिया में अधिकार देने और आत्म-निर्भरता प्राप्त करने के रूप में देखते हैं, वहीं इससे भी सीमित समूहों का सामाजिक सशक्तीकरण भी है।

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