बी एड - एम एड >> बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-C - लिंग, विद्यालय एवं समाज बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-C - लिंग, विद्यालय एवं समाजसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-C - लिंग, विद्यालय एवं समाज
प्रश्न-आर्थिक क्षेत्रों में महिलाओं के प्रति व्याप्त रूढ़िवादी दृष्टिकोण की विवेचना कीजिए।
लघु उत्तरीय प्रश्न
- औद्योगीकरण के कारण किसे तथा कैसे अधिक लाभ मिला?
- संविधान के 73वें व 74वें संविधान संशोधनों में क्या बात कही गयी है?
उत्तर-
प्रारंभ में जब मनुष्य स्थायी जीवन व्यतीत करने लगा तब आदमी और औरत के श्रम विभाजन में अन्तर आ गया अब भूमि पर हल चलाने का काम आदमी का हो गया और स्त्रियों ने घर के काम को अपने सिर पर ले लिया। बच्चों का पालन-पोषण उनका काम हो गया। काल की इस अवधि में काम ही दो भागों में बंट गया। एक काम वह जो पुरुषों का था और दूसरा काम वह जो स्त्रियों का। अब स्त्री को घर बनाने वाली या गृहस्वामिनी कहा जाने लगा। अन्य शब्दों में, आदमी को रोटी कमाने वाला, उत्पादन करने वाला कहा जाता है। जब दुनिया औद्योगीकरण की गिरफ़्त में आ गई तब स्त्रियों की तुलना में पुरुषों को एक और लाभ मिल गया और यह लाभ यह था कि उन्हें शिक्षा और कुशलता प्राप्त करने के नये अवसर मिल गये। अधिकांश स्त्रियाँ घर में ही रहती थी और वे घर से बाहर की दुनिया के बारे में ज्यादा अनुभव नहीं रखती थीं। जब स्त्रियाँ ने घर से बाहर उद्योग में प्रवेश किया तो उसे ज्यादा से ज्यादा निम्न स्तर के ही कार्य मिले। आज भारत में अर्थव्यवस्था दो श्रेणियों में बंटी हुई है—संगठित (औपचारिक) और असंगठित (अनौपचारिक)। जहाँ संगठित क्षेत्र में उन्हें नियमित वेतन मिलता है, श्रम के कानून होते हैं और श्रम से जुड़े हुए लाभ निश्चित होते हैं। लेकिन असंगठित क्षेत्र वे हैं, जहाँ न तो ये काम पक्के होते हैं और न इनमें नियमित वेतन मिलता है। अधिकांश स्त्रियाँ जो घर से बाहर काम करती हैं वे असंगठित क्षेत्र में हैं और इनमें कई प्रकार के शोषण होते हैं। यद्यपि यह प्रयत्न किया जा रहा है कि समान काम के लिये समान वेतन मिलना चाहिए पर अधिकांश स्त्रियाँ अनौपचारिक रूप से काम करती हैं और निर्माण कार्य में जिनमें प्रायः स्त्रियाँ काम करती हैं पुरुषों की तुलना में उन्हें कम वेतन मिलता है।
स्त्रियाँ चाहे घर में काम करती हों या बाहर, घर के काम को हमेशा एक स्त्री के उत्तरदायित्व माना जाता है। यहाँ यह स्पष्ट नहीं है कि हम आंकड़ों के माध्यम से यह कह सकते कि, ऐसे कितने आदमी हैं जो घर के काम को अपना उत्तरदायित्व मानते हैं। लेकिन यह निश्चित रूप से सही है कि स्त्रियाँ घर के काम को अपना उत्तरदायित्व मानती हैं। वे स्त्रियाँ जो घर और बाहर के काम को करती हैं अधिक बोझ से पीड़ित होती हैं। इस स्थिति को हम कैसे भी विश्लेषण करें पर निश्चित रूप से स्त्रियाँ पुरुषों से अधिक काम करती हैं और उसकी तुलना में उनके लाभ बहुत कम हैं।
जब समाज अधिक जटिल और औपचारिक हुआ तब शासन करने का काम राज्य ने ले लिया और ऐसी संस्थाएँ बन गईं जैसे कि संसद और विधानसभाएँ। इन्होने अनौपचारिक संस्थाओं का स्थान ले लिया इन संस्थाओं में स्त्रियों की भूमिका नाममात्र की थी। प्रजातंत्र तो आ गया लेकिन यहाँ स्पष्ट स्त्रियाँ को केवल इस अर्थ में भागीदारी रही कि उन्होंने अपना वोट दिया या फिर चुनाव लड़ा। आज भी स्त्रियों के लिये राजनीतिक उपयुक्त नहीं समझी जाती। वे इसमें भाग नहीं लेतीं क्योंकि सत्ता का उपयोग कैसे होता है इसका उन्हें अभ्यास और अनुभव नहीं है।
यह आश्चर्यजनक है कि भारतीय समाज में कुछ स्त्रियाँ बहादुर थीं शासन करने तथा राज्य चलाने के लिये आज भी स्त्रियों को अनुपयुक्त समझा जाता है। आदमी के पास भी सत्ता थी लेकिन वे स्त्रियों को सत्ता में भागीदारी देना नहीं चाहते। केवल भारतीय समाज में ही ऐसी विशेष स्थिति नहीं है, अपितु सारी दुनिया में ऐसा ही होता है।
संविधान के 73वें और 74वें संशोधन में ग्रामीण और शहरी स्वायत्त शासन में—पंचायत, नगरपालिका और निगमों में स्त्रियों को एक तिहाई का प्रतिनिधित्व प्राप्त है। यह संशोधन महत्वपूर्ण इसलिए है कि इसके माध्यम से क़रीब 10 लाख स्त्रियाँ को राजनीतिक निर्णय लेने में भागीदार बना दिया गया है। यह सब ठीक है लेकिन महिला आरक्षण बिल जो एक तिहाई संसद के सदस्यों को आरक्षण देता है आज भी संसद और राज्य विधान सभाओं में पास नहीं हो पाया है। यद्यपि स्त्रियों ने राजनीति में अपनी योग्यता को सिद्ध किया है फिर भी यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि यह अब तक पास होने की प्रतीक्षा में है।
लैंगिक भेदभाव प्रमुखता सामाजिक संस्थाओं में मिलता है। परंपरागत रूप से समाज में स्त्रियों की राजनीतिक भूमिकाओं में जो उपयुक्त स्थिति होनी चाहिए वह नहीं मिली है। नारी आंदोलन के प्रवक्ता लोग भी इस बात को स्वीकार नहीं करते कि उनकी जैविकीय विशेषता, उनकी योग्यता को निर्धारित करती है।
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