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बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-C - लिंग, विद्यालय एवं समाज

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :215
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2702
आईएसबीएन :0

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बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-C - लिंग, विद्यालय एवं समाज

प्रश्न- लिंगीय विभेदों को समाप्त के क्या उपाय हैं?

लघु उत्तरीय प्रश्न

    1. जागरूकता किस प्रकार लिंगीय भेदभाव को समाप्त करने में सक्षम है?
  1. क्या बालिकाओं की शिक्षा द्वारा लिंगीय भेदभाव को समाप्त किया जा सकता है?

उत्तर-

लिंगीय विभेदों को कम करने तथा यथेष्ट-यथेष्ट उनकी समाप्ति करने हेतु निम्नलिखित उपायों को सुझारूप प्रस्तुत किया जा सकता है—

1. जन-शिक्षा का प्रसार

स्त्री पुरुष में तब तक भेदभाव की स्थिति बनी रहेगी जब तक जनसाधारण के मध्य शिक्षा का प्रचार-प्रसार नहीं हो जाता है। वास्तविक अर्थों में भारतीय विशाल जनसमुदाय के मानस को शिक्षित करना होगा, जिससे लड़के-लड़कियों के लिंग को लेकर जो पूर्वाग्रह उसमें वे मुक्त होकर ईश्वर की दोनों कृतियों को समान कर सकें। पहले लड़कियों को साइकिल चलाना गाड़ी चलाने को नहीं दी जाती थी माना जाता था कि वह यह कार्य कर ही नहीं सकतीं, ये कार्य पुरुष ही कर सकते हैं, परन्तु शिक्षा के द्वारा लोगों में जागरूकता आयेगी तथा और भी योजनाएं लानी चाहिए, जिससे लोग यह समझ सके कि स्त्री या पुरुष होना मायने नहीं रखता व्यक्ति के कार्य महत्व रखते हैं। इस प्रकार जनशिक्षा का प्रचार-प्रसार करके लिंगीय भेदभाव को कम किया जा सकता है।

2. जागरूकता लाना

भारतीय समाज में अभी भी जागरूकता की कमी तथा भेदभाव की परम्परा चली आ रही है। इसी कारण स्त्री-पुरुषों में वर्षों से चली आ रही भेदभाव की भावना अभी तक जीवित है, जिसको जागरूकता लाकर समाप्त किया जा सकता है। जागरूकता लाने के वर्तमान में तमाम साधन हैं, जैसे— टेलीविजन, रेडियो, मोबाइल, इंटरनेट, नुक्कड़ नाटक, चलचित्र, डॉक्यूमेंट्री फिल्म, दीवाल लेखन, पत्र-पत्रिकाएँ, अखबार इत्यादि हैं, जिससे लोगों को लड़का-लड़की के घटते अनुपात तथा उसके दुष्परिणामों से अवगत कराया जाना चाहिए। लिंगीय विभेद के कारण लड़का-लड़की अनुपात में जो कमी आ रही है उसके दुष्परिणामों को रेखांकित करना यहाँ कतई अप्रासंगिक नहीं होगा—

  1. बालक-बालिका अनुपात में कमी।
  2. सामाजिक व्यवस्था में गड़बड़ी।
  3. विवाह हेतु कन्या का न मिलना।
  4. बालिकाओं के न होने से प्रेम, दया, त्याग तथा सहानुभूति के गुणों का अभाव हो जाएगा।
  5. परिवार की अपूर्णता।
  6. छेड़छाड़ की घटनाओं में वृद्धि।
  7. व्यभिचार का बढ़ना।
  8. मानव तस्करी (बालिकाओं) में वृद्धि।
  9. वेश्यावृत्ति का बढ़ाना।
  10. स्त्रियों की संख्या धीरे-धीरे यदि समाप्त हो गयी तो सृष्टि का चलना भी संभव नहीं होगा।
  11. स्त्री नहीं तो बेटी, बहू, पत्नी, माता, बहन की परिकल्पना भी नहीं की जा सकती है।

इस प्रकार उपयुक्त दुष्परिणामों से अवगत कराया जाना चाहिए जिससे ग्रामीण तथा शहरी सभी क्षेत्रों के निवासी जागरूक हो सके तथा लिंग के आधार पर किसी भी भेदभाव को पनपने न दें। जागरूकता आएगी तो समाज में स्त्रियों की सहभागिता में वृद्धि होगी जिससे सामाजिक गतिशीलता में वृद्धि होगी।

3. बालिका शिक्षा का प्रसार

बालिका शिक्षा का व्यापक स्तर पर प्रसार करके भी लिंगीय विभेदों को कम किया जा सकता है। आंकड़ों को देखने से ही ज्ञात होता है कि जहाँ पर बालिकाओं की साक्षरता दर अधिक है वहाँ बालिका लिंगानुपात भी अधिक है। इससे स्पष्ट होता है कि लिंगानुपात में शिक्षा की विशेष भूमिका है। पढ़ी-लिखी लड़की घर-परिवार को बोझ नहीं समझी जाती अपितु वर्तमान में तो लड़कियाँ शिक्षित होकर पारिवारिक उत्तरदायित्वों का निर्वहन भी करती हैं जिससे लैंगिक भेदभाव में कमी आती है।

4. शिक्षा प्रणाली में सुधार

भारतीय शिक्षा प्रणाली ब्रिटिशकालीन शिक्षा प्रणाली का अभी भी अनुसरण कर रही है जिसके कारण भारतीय शिक्षा भारतीय समाज के उद्देश्यों की पूर्ति में अपूर्णता ही रही है। बालिका शिक्षा भी उनके उद्देश्यों की पूर्ति में सक्षम नहीं है। इसी कारण अधिकांश माता-पिता यही सोचते हैं कि किताबी ज्ञान से अच्छा है कि लड़कियाँ घर के कामों में दक्ष बने और इसके लिये औपचारिक शिक्षा की आवश्यकता नहीं समझी जाती है। शिक्षा व्यवस्था में अनेक दोष व्याप्त हैं जैसे—अपूर्ण शिक्षा उद्देश्य, गतिहीन तथा उबाऊ शिक्षा विधियाँ, विद्यालयों में बालिकाओं के साथ भेदभावपूर्ण व्यवहार, बालिकाओं की आवश्यकताओं तथा अभिरुचि के अनुरूप पाठ्यक्रम न होना, महिला शिक्षिकाओं की न्यून संख्या, विद्यालयों का दूर होना तथा प्रथक बालिका विद्यालयों का अभाव होना, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की कमी, अप्रयोज्य तथा अव्यवहारिक तरीके प्रचलन में होना, बालिकाओं को व्यावसायिक शिक्षा की समुचित व्यवस्था न होना, पाठ्यक्रम में रूढ़िवादिता में सम्बन्ध न होना इत्यादि। इस समस्याओं का समाधान इस प्रकार किया जाना चाहिए—

  1. शिक्षा को भारतीय आवश्यकताओं के अनुरूप बनाया जाना चाहिए।
  2. शिक्षा को बालिकाओं के वास्तविक जीवन की आवश्यकताओं से जोड़ा जाना चाहिए।
  3. गतिशील शिक्षण विधियों तथा नवाचारों का प्रयोग करना चाहिए।
  4. बालिकाओं की आवश्यकताओं तथा अभिरुचियों को ध्यान में रखते हुए विविधतापूर्ण पाठ्यक्रम होना चाहिए।
  5. महिला शिक्षिकाओं तथा विद्यालय निरीक्षकाओं की नियुक्ति की जानी चाहिए।
  6. शिक्षा को गुणवत्तापूर्ण बनाया जाना चाहिए।
  7. महिला शिक्षा को व्यवसायमुखी तथा रोजगारपरक बनाया जाना चाहिए, जिससे शिक्षा ग्रहण उनके लिये एक सुरक्षित निवेश समझा लगे।
  8. विद्यालयों में लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए।
  9. बालिकाओं में अप्रयोज्य तथा अव्यवहारिक के कारणों की पहचान कर उसके रोकने के निरन्तर प्रयास किया जाना चाहिए।
  10. सरकारी स्तर पर बालिकाओं की शिक्षा को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए तथा बालिकाओं हेतु छात्रवृत्ति की समुचित व्यवस्था।
  11. बालिका शिक्षा की प्रगति हेतु कार्य करने वालों को प्रोत्साहन तथा मानकों में कुछ छूट प्रदान की जानी चाहिए।

5. सामाजिक कुप्रथाओं पर रोक

समाज में अनेक कुप्रथाएँ व्याप्त हैं, जिसका प्रमुख तथा अमर्याद दोनों ही प्रभावित महिलाओं पर पड़ता है। समाज में सती प्रथा, पर्दा प्रथा, बाल विवाह, विधवा विवाह निषेध, कन्या भ्रूणहत्या इत्यादि प्रचलित है, जिसके कारण स्त्रियों को शारीरिक तथा मानसिक रूप से तोड़ दिया जाता है। अतः इन कुप्रथाओं पर रोक लगानी चाहिए। इस दिशा में तमाम प्रयास किये गये हैं तथा किये भी जा रहे हैं, जैसे शारदा एक्ट द्वारा बाल-विवाह पर रोक, राजा राममोहन राय के प्रयासों के परिणामस्वरूप सती प्रथा का समापन, संविधान के द्वारा बालिका विवाह के न्यूनतम आयु 18 वर्ष का निर्धारण आदि के द्वारा स्त्रियों को लेकर फैली विभिन्न पाखण्ड की भ्रान्तियों का निराकरण कर उन्हें पुरुषों के समकक्ष स्थान समाज में दिलाकर लिंगीय भेद समाप्त किया जा सकता है।

6. प्रशासनिक प्रयास

लिंगीय विभेदों को समाप्त करने में प्रशासनिक प्रयासों की भूमिका भी अत्यधिक महत्वपूर्ण है। जो भी नियम सरकार द्वारा बनाए गए हैं उनका सख्ती से पालन किया जाना चाहिए। प्रशासन को ऐसे चिकित्सालयों, व्यक्तियों तथा क्लीनिकों पर सख्त से सख्त कार्यवाही करनी चाहिए तथा इनकी मान्यता तक समाप्त कर देनी चाहिए। प्रशासन को लिंगीय विभेदों को कम करने हेतु साहसी और प्रतिभावान महिलाओं तथा बालिकाओं को प्रोत्साहित करना चाहिए, जिससे जनसामान्य को बालिकाओं के विषय में धारण परिवर्तन हो सके।

7. संवैधानिक उपाय

भारतीय संविधान में स्त्रियों के विकास के प्रति अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त की है तथा उनकी समता हेतु अनेक धाराएँ तथा उपधाराएँ का निर्धारण किया गया है। कहा संविधान में स्त्री-पुरुष में कोई भेदभाव नहीं किया गया है। मौलिक अधिकार पुरुषों के लिए जितना है उतना ही बालिकाओं को भी प्राप्त है और महिलाओं की पिछड़ी स्थिति को देखते हुए उनकी उन्नति के लिए विशेष प्रयास किए जाने के उपबंध भी किए गए हैं। महिलाओं की सुरक्षा हेतु विशेष प्रावधान बनाए गए हैं तथा उन्हें समाज में विशेष स्थान प्रदान किया गया है। भारतीय संविधान अपने सभी नागरिकों के गरिमामयी जीवन की प्रतिबद्धता जताता है, जिसमें महिलाओं सम्मिलित हैं। इस प्रकार संवैधानिक उपाय तो बहुत किए गए हैं, परंतु इन उपायों के विषय में जनता जागरूक होनी चाहिए वह नहीं हो रहा है। अतः इन प्रावधानों के विषय में जागरूकता फैलाकर लिंगीय भेदभाव में कमी किया जा सकता है।

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