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बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-C - लिंग, विद्यालय एवं समाज

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :215
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2702
आईएसबीएन :0

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बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-C - लिंग, विद्यालय एवं समाज

अध्याय 5 - लैंगिक पक्षपात, रूढ़िवादिता एवं सशक्तीकरण

[Gender Bias, Stereotyping and Empowerment]

प्रश्न- लिंगीय विभेद के कारणों की व्याख्या कीजिए।

लघु उत्तरीय प्रश्न

    1. लोगों की किस संकीर्ण विचारधारा के अन्तर्गत बालक एवं बालिकाओं में भेद किया जाता है?
  1. बालक एवं बालिका में भेदभाव को आर्थिक कारक किस प्रकार प्रभावित करता है?

उत्तर-

लिंगीय विभेद के कारणों को निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत स्पष्ट रूप से समझा जा सकता है—

1. मान्यताएँ तथा परम्पराएँ

लिंगीय विभेद का एक प्रमुख कारण भारतीय मान्यताओं तथा परम्पराओं का है। यहाँ जीवित पुत्र का मुख देखने से नरक से मुक्ति का वर्णन तथा श्राद्ध और पिण्डदान कार्य पुत्र के हाथ से सम्पन्न कराने की मान्यता रही है। स्त्रियों को चिता को अग्नि देने का अधिकार भी नहीं दिया गया है, जिसके कारण भी पुत्र को महत्व दिया जाता है और बेटे को चलाने भी पुरुष प्रधान समाज बनाया गया है। इस कारणवश लड़कों की पढ़ाई में हजारों की जनमानस चाहे वह शिक्षित हो या अशिक्षित, पूरी तरह से आबद्ध है, जिसके परिणामस्वरूप लड़कों को महत्व दिया जाता है और कहीं-कहीं तो लड़कियों को गर्भ में ही हत्या कर दी जाती है। अधिकांश बालिकाओं को भार समझते हैं उनका पालन-पोषण कठिन हो जाता है तथा सदैव इन्हें पुरुषों के छत्रछाया में जीवन व्यतीत करना पड़ता है। अथर्ववेद में वर्णन आया है कि स्त्री को बाल्यकाल में पिता के अधीन, युवावस्था में पति के अधीन तथा वृद्धावस्था में पुत्र के अधीन रहना चाहिए। इस प्रकार स्त्रियों के अस्तित्व, मान्यताओं, परम्पराओं और सुरक्षा की बलि चढ़ा दिया जाता है। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में स्त्री-पुरुषों की ओर तालेबंदी से तो निर्धारित है कि पुरुष का प्रशासन रहता। अतः यह स्पष्ट है कि जब एक स्त्री स्वयं स्त्री होने की अनुभूति बालिकाओं में करे स्त्रियों की यह मान्यताएँ तथा परम्पराएँ लिंगीय विभेद में वृद्धि करने का प्रमुख कारण है।

2. संकीर्ण विचारधारा

बालक-बालिका में भेद का एक कारण लोगों की संकीर्ण विचारधारा है। लड़के माता-पिता के बुढ़ापे का सहारा बनेंगे, वंश चलायेंगे, उन्हें पढ़ा-लिखाकर घर की उन्नति होगी, वहीं लड़की के पैदा होने पर शोक का माहौल होता है, क्योंकि उसके लिए दहेज देना होगा, विवाह के लिये वर ढूँढ़ना होगा और तब तक सुरक्षा प्रदान करनी होगी तथा पढ़ाने-लिखाने में पैसा खर्च करना लोग बर्बादी समझते हैं। वर्तमान में बालिकाओं ने उस संकीर्ण सोच और पिछड़ेपन को तोड़ने का कार्य किया है फिर भी बालिकाओं का कार्यक्षेत्र दायरे-चौहद तक ही सीमित माना जाता है और उनकी भागीदारी को स्वीकार नहीं किया जाने के कारण बालकों की अपेक्षा बालिकाओं का महत्व कम आंका जाता है जिससे लिंगीय भेदभाव में वृद्धि होती है।

3. जागरूकता का अभाव

जागरूकता के अभाव के कारण लैंगिक भेदभाव उत्पन्न होता है। समाज में अभी भी लैंगिक मुद्दों पर जागरूकता की कमी है, जिसके कारण बालक-बालिकाओं की देखरेख, शिक्षा तथा पोषण आदि पर भेदभाव किया जाता है। धार्मिक ग्रन्थों में "बेटा-बेटा" एक मंत्र के रूप में प्रचलित करते हुए बेटियों को आशीर्वाद और शिक्षा-दीक्षा का केवल शांति प्रदान की जाती है। जागरूकता के अभाव में माना जाता है कि स्त्रियों का कार्यक्षेत्र घर की चारदीवारी के भीतर तक ही सीमित है। अतः उनकी शिक्षा तथा पालन-पोषण पर व्यय नहीं किया जाना चाहिए और शारीरिक रूप से भी लड़कों की अपेक्षा कमजोर होती हैं। लिंगीय भेदभाव के कारण बालिकाओं के विकास का उचित प्रबन्ध नहीं किया जाता है। परिणामतः आर्थिक क्षेत्र में उनका भूमिगत भविष्य नहीं होने से उनके प्रति लोगों के नजरिए में भी परिवर्तन नहीं होता और वे सदैव स्वयं को लड़कों से हीन मान बैठती हैं। अतः बालकों को बालिकाओं की अपेक्षा अधिक महत्व प्रदान किया जाता है।

4. अशिक्षा

लिंगीय विभेद में अशिक्षा की भूमिका भी महत्वपूर्ण है। अशिक्षित व्यक्ति, परिवारों तथा समाजों में चले आ रहे मिथकों और अन्धविश्वासों पर ही कायम रहते हैं तथा बिना सोचे-समझे उनका पालन करते रहते हैं। परिणामतः लड़के को महत्व लड़कों की अपेक्षा सर्वाधिक मानते हैं। सभी वस्तुओं तथा सुविधाओं पर प्रथम अधिकार बालकों को प्रदान किया जाता है। शिक्षा के द्वारा व्यक्ति यह विचार-विमर्श करने लगता है कि लड़कों की ही भांति लड़कियां प्रत्येक क्षेत्र में अग्रणी भूमिका निभा रही हैं तथा लड़का-लड़की एक समान होते हैं। यदि लड़कियों को समुचित प्रोत्साहन और अवसर प्रदान किये जाएं तो वे प्रत्येक क्षेत्र में अग्रणी भूमिका का निर्वहन कर सकती हैं। शिक्षित व्यक्ति यह चिन्तन करता है कि यदि स्त्रियां नहीं होंगी, तो मां, बहन, बेटी और पत्नी का अस्तित्व ही नहीं रहेगा और शिक्षित व्यक्ति यह भी भली भांति देखता है कि पुरुष मुखाकृत कर रहे हैं कि स्त्रियां किसी भी क्षेत्र में पुरुषों से पीछे नहीं हैं उनसे कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं। इस प्रकार लिंगीय विभेद अशिक्षा और अज्ञानता के परिणामस्वरूप भी होते हैं।

5. आर्थिक तंगी

भारतवर्ष में आर्थिक तंगी से जुड़़े रहे परिवारों की संख्या अत्यधिक है। ऐसे में वे बालिकाओं की अपेक्षा बालकों को सम्मान के रूप में प्राथमिकता देते हैं जिससे वे उनके श्रम में हाथ बटाएं और आर्थिक जिम्मेदारियों का बोझ बांटने का कार्य करें, परन्तु लड़कियां तो श्रम में अपनी भागीदारी सुनिश्चित कर पाती हैं और न ही आर्थिक जिम्मेदारियों का वहन कर पाती हैं अशिक्षित होने के कारण लड़कियों को पराया धन समझकर माता-पिता रखते हैं तथा जीवन की कमाई का एक बड़ा भाग वे लड़की के विवाह में दहेज के रूप में व्यय करते हैं तथा लड़के के साथ ऐसा नहीं करना पड़ता है। इस प्रकार आर्थिक तंगी से जुड़़े रहे परिवारों में लड़कियों की अपेक्षा लड़कों को कामना की जाती है, जिससे लिंगीय विभेद पनपता है।

6. सरकारी उदासीनता

लिंगीय विभेद बढ़ने में सरकारी उदासीनता भी एक कारक है। सरकार लिंग में भेदभाव करने वालों के साथ सख्त कार्यवाही नहीं करती है और चोरी-छुपे चिकित्सालयों और निजी क्लीनिकों पर भ्रूण की जाँच तथा कन्या भ्रूणहत्या का कार्य अव्यक्त रूप से चल रहा है। सार्वजनिक स्थलों तथा सरकारी ऑफिसों में भी महिलाओं को पुरुषों की अपेक्षा हेय दृष्टि से देखा जाता है और उनमें असुरक्षा के भाव को समाप्त करने की अपेक्षा उसमें वृद्धि करने को कार्य किया जाता है जिससे लिंगीय भेदभाव में वृद्धि होती है।

7. सांस्कृतिक कुरुतियाँ

भारतीय संस्कृति प्राचीन काल से ही पुरुष-प्रधान रही है। यद्यपि अपवाद स्वरूप कुछ सशक्त स्त्रियों, विदूषियों के उदाहरण अवश्य प्राप्त होते हैं, परन्तु इतिहास साक्षी है कि सीता और द्रौपदी जैसी स्त्रियों को भी स्त्री होने का परिणाम भुगतना पड़ा। भारतीय संस्कृति में धार्मिक तथा याज्ञिक कार्यों में भी पुरुष को प्राथमिक अपेक्षित है और कुछ कार्यों को तो स्त्रियों को करने का निषेध है। ऐसी स्थिति में पुरुष प्रधान हो जाता है और स्त्री का स्थान गौण। यह स्थिति किसी एक वर्ग या समुदाय तक स्त्री-पुरुष का न होकर समस्त स्त्रियों को बनाकर लिंगीय समस्या का रूप धारण कर लेती है।

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