बी एड - एम एड >> बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-C - लिंग, विद्यालय एवं समाज बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-C - लिंग, विद्यालय एवं समाजसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-C - लिंग, विद्यालय एवं समाज
अध्याय 4 -पुरुषत्व एवं नारीवादिता के शक्ति सम्बन्धों को समझने की अवधारणा
[Gender bias, Gender Stereotyping and Empowerment]
प्रश्न- सामाजिक संरचना में पुरुषत्व तथा स्त्रीत्व की धारण तथा प्रक्रिया की व्याख्या कीजिए।
लघु उत्तरीय प्रश्न
- स्त्री आन्दोलन या स्त्री चर्चा जैसे विषय के प्रारम्भ होने के पीछे क्या कारण है?
- जेंडर से आप क्या समझते हैं?
- समाज में पुरुष की स्थिति कैसी रही है?
उत्तर-
सामाजिक संरचना में पुरुषत्व तथा स्त्रीत्व की अवधारणा – जब स्त्रियों ने अपनी मानसिक भूमिका को लेकर सोचना-विचारना आरम्भ किया तभी से स्त्री आन्दोलन प्रारम्भ हो गया। स्त्री विमर्श आन्दोलन में जहाँ एक ओर स्त्रियों की भूमिका को सामने लाने का प्रयास किया गया तथा उनकी सामाजिक, राजनीतिक हिस्सेदारी को स्वीकार किया गया तो वहीं स्त्री विमर्श ने स्त्री की स्थिति को बहस के केन्द्र में लाने का प्रयास किया जिसमें एक ओर समाज ने उन्हें निम्न स्थिति में बताया गया था। दूसरी तरफ स्त्री से जुड़े मुद्दों को बहस के माध्यम से समाज के बहस केन्द्र में स्वतंत्रता, समानता तथा अस्मिता जैसे प्रश्नों को उठाया गया। स्त्री की स्थिति को स्त्री दृष्टिकोण के भीतर से देखने के प्रश्न उठा हैं। स्त्री को स्त्री नजरिये से देखने का प्रश्न उठता है। स्त्री तथा पुरुष की सामाजिक संरचना पर सवाल खड़ा कर समाज में बहस की माँग करता है। जेंडर का सम्बन्ध एक ओर पहचान से होता है, तो दूसरी ओर सामाजिक विकास की प्रक्रिया से होता है जहाँ मानव तथा मानव के बीच अन्तर किया गया और एक को पुरुष तथा एक को स्त्री की संज्ञा दी गयी। जेंडर के बारे में विस्तारित जानने से पूर्व कुछ बिन्दुओं को जाना जाए। सरल शब्दों में कहें तो यह एक जानकारी से सम्बन्धित संचार है जिससे हमें नये सम्बन्धों का नजरिया प्रदान होता है। जेंडर से विमर्श शब्द की उत्पत्ति अंग्रेजी भाषा के “डिस्कोर्स” नामक शब्द से हुई है तथा डिस्कोर्स शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के डिस्कर्स शब्द से हुई है। जिसका अर्थ बहस, संवाद, वार्तालाप तथा विचारों का आदान-प्रदान। विमर्श को थोड़ा और जानने का प्रयास किया जाए तो विचारों को सीधे एवं सरल रूप में भाषा के माध्यम से अधिव्यक्त करना विमर्श कहलाता है। ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी में लिखा गया मौखिक तथा लिखित रूप में विचारों को अधिव्यक्त तथा व्यक्त करने का बृहत प्रमाणिक शब्द कोश के रूप में आदि है। अध्ययन के लिए इसे लोग बौद्धिक सम्पदा के रूप में पाते हैं। पुरुषों के माध्यम से 'विमर्श' शब्दों तथा विचारों की प्रणाली है। जो प्राकृतिक रूप से विचार, व्यवहार तथा अभ्यास के द्वारा व्यवस्थित ढंग से निर्मित होता है जिसे बातचीत के दौरान हम इस्तेमाल करते हैं।
हेनरी तथा कैरोल टाटर "विमर्श एक ऐसी भाषा है जो सामाजिक आधार पर विषय के ऐतिहासिक अर्थ को खोलती है। यह सामाजिक चेतना की भाषा है, जो कभी न्यूट्रल नहीं होती है। क्योंकि यह व्यक्ति तथा सामाजिक रूप से जुड़ी होती है।"
इस प्रकार विमर्श सामाजिक, ऐतिहासिक तथा आज के संदर्भ में सोचने, बहस करने, तथा मौखिक संवाद का तरीका है, जो भाषा के माध्यम से अभिव्यक्त होता है। जेंडर का प्रश्न भी विमर्श की इसी तकनीक को अपनाता है तथा जेंडर पर खुली बहस की मांग करता है।
सामाजिक संरचना में पुरुषत्व तथा स्त्रीत्व की प्रक्रिया - जेंडर शब्द का सम्बन्ध प्रात में भाषा में मिले अर्थां स्त्रीलिंग तथा पुल्लिंग से रहा ही। अन्य भाषाओं में जेंडर भिन्नाज के इस प्रक्रिया में रूप स्त्रीलिंग-पुल्लिंग का प्रयोग किया जाता है वहीं वैदिक संस्कृति में जेंडर भिन्नाज तथा सम्प्रदायवाद पुरुषत्व का समाज में निर्धारित गुणों से अलग स्वतंत्र पहचान का होना था, वहीं संस्कृति में तीसरा लिंग से अभिप्राय स्त्रीत्व व पुरुषत्व गुणों के साथ होना था। स्त्रीत्व तथा पुरुषत्व शब्द के प्रयोग के सन्दर्भ में अरस्तू ने कहा कि ग्रीक विचारक "प्रोटोसेरर्स" ने भाषा में स्त्रीत्व-पुल्लिंग तथा न्यूट्रल शब्दों का प्रयोग भाषा के व्याकरण के सन्दर्भ में किया। भाषा में यह जेंडर भिन्नाज की प्रक्रिया व्यवहार मूलक थी चाल्से हॉकतेस के अनुसार "शब्दों के व्यवहार के आधार पर संज्ञा का व्याकरण भिन्नाज जेंडर कहलाता है।"
सामाजिक परिवेश से पूर्व जेंडर का सम्बन्ध भाषा से था, जो आज भी है। अब यदि सामाजिक सन्दर्भ में इसे देखने का प्रयास करते तो जेंडर का सम्बन्ध लिंग से होता है। कहा जा सकता है कि आज भी जेंडर को लिंग ही माना जाता है। जिस प्रकार भाषा में शब्दों के व्याकरण के लिए उसके सामाजिक व्यवहार को आधार बनाया गया तथा उन्हें स्त्रीलिंग पुल्लिंग तथा न्यूट्रल लिंग में विभाजित किया गया। उसी प्रकार सामाजिक संरचना में "सेक्स" की सामाजिक अवधारणा के तहत स्त्री व पुरुष की निर्धारित भूमिकाओं का निर्धारण किया गया। स्त्री तथा पुरुष की जैविक अवस्थाओं में भिन्नता रही है इसे सामाजिक सन्दर्भ में नकारा नहीं किया जा सकता लेकिन इसकी पारिवारिक, सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक भूमिकाओं का निर्धारण किया जाता है तो इनके अपने स्वतन्त्र अस्तित्व पर प्रश्न अंकित हो जाता है। जेंडर अस्तित्व को पहचान का मूल घटक है। जो हमें स्त्री-पुरुष की निर्धारित सीमा को परिवक्षित करने में तथा दुनिया को देखने के नजरिये को गतिशील भूमिका को बताता है। यह मात्र जैविक अन्तर नहीं बताता बल्कि सामाजिक, राजनीतिक तथा आर्थिक स्तर की सत्ता से इसके सम्बन्ध को भी परिभाषित करता है। संज्ञा से लिंग व जेंडर का सम्बन्ध केवल भाषा के सन्दर्भ में ही नहीं बतलाया बल्कि इतिहास में भी स्त्री की भूमिका को उससे जोड़कर देखा है। सामाजिक सन्दर्भ में जब हम जेंडर को समझने के लिए सबसे पहला प्रश्न लिंग तथा भूमिका के अन्तर को स्पष्ट करने के दौरान प्रश्न अंकित आता है। जहाँ स्त्री तथा पुरुष की दैनिक आधार पर विभाजन न होकर समाज द्वारा मानदण्डों पर विभाजन है, जिसमें स्त्री की भूमिका सीमित की रही है तथा पुरुष की भूमिका शोषक की रही है।
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