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बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-B - मूल्य एवं शान्ति शिक्षा

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :232
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2701
आईएसबीएन :0

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बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-B - मूल्य एवं शान्ति शिक्षा

प्रश्न- संस्कृति का क्या अर्थ है? इसकी परिभाषा दीजिए तथा मूल्य एवं संस्कृति के संबंध को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर -

संस्कृति शब्द अंग्रेजी भाषा के ‘कल्चर’ शब्द का पर्याय है। यह लैटिन भाषा के ‘कल्ट’ या ‘कल्टुरा’ शब्द से बना है, जिसका अर्थ होता है खेती जोतना, विकसन करना या परिष्कृत करना एवं पूजा करना। इस शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग एडवर्ड टेलर ने सन् 1871 में अपनी पुस्तक 'प्रिमिटिव कल्चर' में किया था। संस्कृति का अर्थ अत्यंत व्यापक होता है। विभिन्न विद्वानों ने संस्कृति को विभिन्न रूपों में परिभाषित किया है, जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं -

ह्वाइट के अनुसार- "संस्कृति एक प्रतीकात्मक, निरन्तर, संचयी एवं प्रतिशील प्रक्रिया है।"

रामधारी सिंह दिनकर के अनुसार - "संस्कृति मानव जीवन में उसी तरह व्याप्त है, जिस प्रकार फूलों में सुगंध एवं दूध में माखन। इसका निर्माण एक या दो दिन में नहीं होता, युग-युगांतर में संस्कृति निर्मित होती है।"

टी.एड. इलियट के अनुसार - "शिष्ट व्यवहार, ज्ञानानुभव, कलाओं के आचरणदान इत्यादि के अतिरिक्त किसी जाति की अवधारणा से समस्त राष्ट्रीय क्रियाएं एवं कार्य-कला, जो उसे विशेषता प्रदान करते हैं, संस्कृति के अंग हैं।"

बाल्डन के अनुसार - "संस्कृति वह जटिल पूंजी है, जिसमें ज्ञान, विश्वास, कला, नैतिकता, नीति-विधान, नियम एवं समाज के स्वरूप के रूप में मनुष्य द्वारा अर्जित की जानी वाली अन्य योग्यताएं तथा आदतें सम्मिलित रहती हैं।"

संस्कृति सदैव आधार विचार होती है। संस्कृति का मूल आधार मानव मन होता है, न कि बाह्य अभ्यावेदन में। शिक्षाविदों ने संस्कृति को दो रूप बताए हैं -
(1) भौतिक रूप
(2) अमूर्त रूप

भौतिक संस्कृति में वे सभी वस्तुएं आती हैं, जिनका स्वरूप अमूर्त है एवं बालकों के विकास जाति के सामूहिक रूप से होती है जैसे - धर्म, भाषा, संगीत, कला, साहित्य, स्थापत्य, रीति-रिवाज, जनश्रुतियां, आचार-विचार, प्रथाएं, संस्कार एवं परंपराएं आदि अमूर्त संस्कृति के परिचायक हैं।

मूल्य एवं संस्कृति से संबंध - मूल्य एवं संस्कृति का अत्यंत घनिष्ठ संबंध है। एक के अभाव में दूसरे का अस्तित्व नहीं होता। यदि संस्कृति को समाज की आत्मा कहा जाता है तो मूल्यों को उसकी अभिव्यक्ति। जब समाज की संस्कृति में कोई विशेषता का निर्माण हो जाता है तो उसका एक मात्र कारण उस समाज की संस्कृति है। प्रत्येक समाज अपनी अस्मिता को बनाए रखने के लिए विभिन्न प्रकार से संस्कृति की सेवा एवं सहायता करती है। साथ ही अन्य कार्यों को समझ कराने के लिए संस्कृति का सहयोग प्राप्त करती है। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि शिक्षा संस्कृति की सहयोगिनी है। मूल्य व संस्कृति के घनिष्ठ संबंध के विषय में कुछ तथ्य इस प्रकार हैं -

(1) संस्कृति की निरंतरता में सहायता करता।
(2) संस्कृति के हस्तांतरण में सहायता करता।
(3) संस्कृति के परिवर्तन में सहायता करता।
(4) व्यक्ति के सांस्कृतिक विकास में सहायता करता।
(5) व्यक्ति के विकास में सहायता करता।
(6) शिक्षा में संस्कृति का समावेश करता।

प्रायः संस्कृति किसी भी जाति या वर्ण के इतिहास का शुद्ध निर्माण मात्र होती है। यह उन नीतियों और परम्पराओं के सहारे से बनती हैं, जिनमें उस जाति के विशेष मनुष्य के अनुकूलता की निर्वाचित होता है। अतः व्यक्ति हर बात को मूल्य रूप में सीखता। शिक्षा मूल्यों शिक्षा व संस्कृति का कार्य ही दिखाई देता है। कि व्यक्ति समाज के सदस्य के रूप में संस्कृति को ग्रहण करता हो इतना ही नहीं।

 

बल्कि प्राप्त संस्कृति को दूसरी पीढ़ी तक हस्तांतरित करता है। हस्तांतरण के इस कार्य में शिक्षा अपना अनुपम योगदान देती है। यह सत्य है कि व्यक्ति अज्ञान रूप में संस्कृति को अन्य व्यक्ति से सीखता है, यह भी सत्य है कि इस सीखने का माध्यम शिक्षा ही होती है। आर्टर के कथन है कि- "शिक्षा का एक कार्य समाज के सांस्कृतिक मूल्यों और व्यवहार के प्रतिमानों को अपने तरुण एवं समर्पण सदस्यों को हस्तांतरित करना है।"

सामान्यतः बालक के व्यक्तित्व का विकास, संस्कृति के सहयोग के बिना संभव नहीं हो सकता। यही कारण है कि मूल्य शिक्षा बालकों को संस्कृति के अनेक रूपों से अवगत कराता है। बालकों के बौद्धिक, चारित्रिक, संवेदनात्मक एवं आध्यात्मिक विकास के लिए आर्चेले ने लिखा है- "जिस संस्कृति में व्यक्तित्व का विकास होता है, उसके द्वारा उससे आर्थिक निर्माण को बढ़ावा जाता है।"

मूल्य शिक्षा व्यक्ति के सांस्कृतिक विकास में सहायता प्रदान करता है। संस्कृति से संबंधित ज्ञान सामाजिक एवं आर्थिक से संबंधित होता है। सामाजिक एवं आर्थिक स्तर से संबंधित यह अनुभवों के लाल गुणों तथा भावों की महानता को एक प्रेरणा भी हमारी संस्कृति के विकास के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। शिक्षा के माध्यम से इतिहास का अध्ययन सांस्कृतिक इलाकों के प्रकाशन करता रहता है।

मूल्य शिक्षा परिवर्तन संस्कृति के परिवर्तन में सहायता प्रदान करता है। शिशु जैसे बड़ा होता जाता है वह वैसे-वैसे अपनी संस्कृति को अपनाता जाता है। वह समाज, परिवार को, रीति-रिवाजों, आदतों, नियमों आदि से शिक्षित होता है। सामान्यतः इन बातों को अपने माता-पिता, परिवार, समाज के लोगों तथा विद्यालय में गुरुओं के सीखता है। शिक्षण में सिद्धांत रूप उसके व्यवहार में निरंतर परिवर्तन होता जाता है। परिवर्तन यह कार्य चेतन और अवचेतन दोनों प्रकार होता रहता है।

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