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बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-B - मूल्य एवं शान्ति शिक्षा

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :232
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2701
आईएसबीएन :0

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बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-B - मूल्य एवं शान्ति शिक्षा

प्रश्न- अरविंद घोष के जीवन दर्शन एवं शैक्षिक सिद्धांत पर टिप्पणी लिखिए।

उत्तर-

अरविंद घोष का जीवन दर्शन- श्री अरविंद का दर्शन अज्ञेयवाद (Agnostic) है। वे विकास में विश्वास करते हैं। उनके अनुसार विकास का लक्ष्य है - "जगत में व्यापक दिव्यशक्ति का प्रगतिशील बोध।" उनके विचार से इस विश्व के सब विकासशील प्राणियों का एक ही प्रयोजन एवं लक्ष्य है। "पूर्ण एवं अखंड चेतना की प्राप्ति।" चेतना के विकासक्रम की दो विशेषताएँ हैं, पहली- पदार्थ, प्राण, मन एवं अतीन्द्रिय आत्मा-अलग-अलग नहीं हैं, बल्कि प्रत्येक अनुवर्ती स्तर अपने पूर्ववर्ती स्तर से जुड़ा है। दूसरी- उच्चतर स्तर पर पहुँचनें विकसित चेतना अपने पूर्ववर्ती एवं अनुवर्ती स्तरों को अपने अनुसार हां एवं अपने नियमों के अनुसार प्रभावित करती है।

प्राणी पदार्थों के कार्य करता है, क्योंकि पदार्थ के समान वह कठोर यांत्रिक नियमों से शासित नहीं होता है। चेतना का प्रथम कार्य जीवनी शक्ति एवं अनुवर्तन प्रवृत्तियों के संचालन से होता है। यही से विकासक्रम में प्रेरणा देने वाली स्थिति उत्पन्न होती है, जिससे वे मानसिक रूप धारण करते हैं। उच्च स्तर पर पहुँच कर मनुष्य एक नवीन चेतना, एक नवीन ज्ञान का उद्घाटन करेगा।

उनका कहना है कि घटनाओं एवं क्रियाओं में नवन्यस्त बोध, वनस्पति से पशु की उत्पत्ति हुई। इसी प्रकार से पशु से मानव का विकास हुआ एवं मानव से अतीन्द्रिय का विकास होना आवश्यकत्मक है। यदि मनुष्य किसी प्रकार की इस अतीन्द्रिय एवं मानसिक स्तर की चेतना को ग्रहण या प्राप्त कर लेता है तो अज्ञान का नाश हो जाता है एवं फिर केवल ज्ञान का प्रकाश हो उठ जाता है।

अरविंद घोष के शैक्षिक सिद्धांत- अरविंद घोष एक महान शिक्षाविद् के रूप में अधिक प्रसिद्ध हैं, मृत्युपरांत अपने दार्शनिक सिद्धांतों को मनुष्य जीवन में उतारने के लिए उन्होंने एक विशेष प्रकार की शिक्षा की आवश्यकता अनुभव की। उस पर सबसे ध्यान के लिए भी तात्कालिक शिक्षा उपयुक्त नहीं थी। अतः उन्होंने शिक्षा को एक राष्ट्रीय योजना प्रस्तुत की। इनके शिक्ष संबंधी विचार मुख्य रूप से इनकी दो पुस्तकों - 'The National System of Education' एवं 'Bases of Education' में मिलते हैं।

श्री अरविंद के शब्दों में - "शिक्षा मानव के मस्तिष्क एवं आत्मा की शक्तियों का निर्माण करती है तथा उसका ज्ञान, चरित्र और संस्कृति को जागृत करती है।"

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