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बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-B - मूल्य एवं शान्ति शिक्षा

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :232
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2701
आईएसबीएन :0

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बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-B - मूल्य एवं शान्ति शिक्षा

अध्याय 1- मूल्य शिक्षा

(Value Education)

प्रश्न- मूल्य का क्या अर्थ है? इसकी परिभाषा के साथ जीवन मूल्यों की आवश्यकता का विश्लेषण कीजिए।

अथवा
भारतीय जीवन मूल्यों की शिक्षा की क्या आवश्यकता है? स्पष्ट कीजिए।
अथवा
मानव जीवन में मूल्यों की शिक्षा का क्या महत्व है? विवेचन कीजिए।
अथवा
मूल्य शिक्षा क्या है? वर्तमान परिप्रेक्ष्य में इसकी आवश्यकता तथा महत्व का स्पष्ट कीजिए।

उत्तर-

‘मूल्य’ शब्द अंग्रेजी भाषा के ‘Value’ शब्द का रूपांतर है। यह लैटिन भाषा के ‘Valere’ (वेलियर) से निर्मित है। जिसका तात्पर्य किसी वस्तु की उपयोगिता अथवा कीमत से है। शैक्षिक परिप्रेक्ष्य में मूल्य से तात्पर्य विद्यार्थियों में मान्यता, देश-प्रेम व दूसरों के लिए कल्याण जैसी अनेक अच्छी भावनाओं का संचार करना है। ऐसे गुण व्यक्ति में आत्मिक एवं बाह्य दोनों प्रकार के होते हैं।

मूल्य की परिभाषा- मूल्य शिक्षा की हम विभिन्न विद्वानों की परिभाषाओं के द्वारा परिभाषित कर सकते हैं।

‘बर्टन’ महोदय के शब्दों में - “नैतिक विकास एक संयुक्त घटना है, न कि पुरुष-पुरुष प्रक्रिया।”

‘पार्सी’ के शब्दों में- “किसी व्यक्ति के लिए वे रोचक वस्तुएं मूल्य कही जा सकती हैं, जिनके आधार पर व्यक्ति की रुचि एवं वस्तु में एक संबंध स्थापित हो जाता है।”

'जॉन जे. कॉन' के शब्दों में- "मूल्य के आदर्श, विश्वास या मानक हैं, जिन्हें समाज के सामाजीकरण किया जाता है।"

‘प्रो. सायर सिंह’ के शब्दों में - “मूल्य वह साधन है, जिससे बालक एवं मनुष्य का सामाजिकरण किया जाता है।”

मूल्यों की आवश्यकता

वर्तमान समय में विश्व में हो रही अस्थिरता के पीछे मूल्यों का निरंतर गिरता है। बालकों में मूल्यों के विकास हेतु नैतिक, आध्यात्मिक, राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं मानव प्रेम जैसे ज्ञान को आधारभूत किया जाना आवश्यक है।

आधुनिक मानव स्वार्थ प्रधान होता जा रहा है। अतः वह अपने बालकों में अच्छे संस्कार नहीं दे पाता। इसी कारण विद्यालयों द्वारा इस शिक्षा की बढ़ती अधिक हो जाती है। जब समाज में आध्यात्मिक, नैतिक व सामाजिक मूल्यों में आये ह्रास की वजह से व्यक्तियों की धारणाएं दूषित हो गई हैं, तब यह राजनीति हो अथवा उच्चस्तरीय अधिकारी या फिर निम्न स्तरीय कर्मचारी, सभी अपने स्वार्थ की पूर्ति में लगे हुए हैं।

आज व्यक्ति समाज में अपनी पहचान बनाने के लिए प्रतिष्ठा व अधिकार प्राप्त करने हेतु अनैतिक साधनों का प्रयोग करने में जरा भी संकोच नहीं करता। आज ऐसे मूल्यों की शिक्षा की आवश्यकता है, जो व्यक्ति को नैतिकता की ओर ले जाए, ऐसे मूल्य जो व्यक्तित्व का निर्माण कर सकें। इसी कारण समय-समय पर जीवन मूल्यों की शिक्षा प्रदान किए जाने की आवश्यकता बढ़ती रही है।

जहां तक समाज के आदर्शों, सिद्धांतों, विश्वासों एवं व्यावहारिक मानदंडों की बात परिवारों के साथ ही समुदायों में भी होती रहती है। बच्चे भी इनसे परिचित हो जाते हैं, परंतु दुर्भाग्य से तो यह है कि सब केवल सिद्धांतों तक ही सीमित रहते हैं, उनके व्यवहार को प्रभावित नहीं करते हैं। और वास्तव में आवश्यकता इसी बात की है, कि भारतीय जीवन मूल्यों से उसका व्यवहार भी प्रभावित हो।

इस विषय में राष्ट्रीय शिक्षा नीति में उल्लेख किया गया है कि- "हमारे बहुधर्मी समाज में शिक्षा से सर्वोच्चता एवं शाश्वत मूल्यों को प्रोत्साहित करना चाहिए, जिससे भारतीय जन में राष्ट्रीय एकता की भावना और अंतर्निहित समरसतावाद, भातृभाव, जातीयता, हिंसा, अंधविश्वास में भयवाद का उन्मूलन हो। अतः शिक्षा में हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि मनुष्य अकेला शून्य में निवास करने वाला प्राणी नहीं है। समाज रूपी परिक्षेत्र में उसकी विशेष सामाजिक तथा सांस्कृतिक संस्थाएं जुड़ी रहती हैं, इसीलिए वह मूल्य जो शाश्वत मूल्यों से अभिप्रेरित हैं, उन्हें आत्मसात किया जाना चाहिए। वैज्ञानिक दृष्टिकोण, सहानुभूति, परोपकार, सत्यवाद, जातीयता, राष्ट्रवाद तथा निष्पक्षता आदि मूल्यों की शिक्षा सभी विद्यार्थियों को दी जानी चाहिए।

मूल्यों का महत्व- मूल्यों के अभाव में मानव जीवन व्यर्थ है। मूल्यों के विकास द्वारा ही बालकों एवं मनुष्यों को एक आदर्श नागरिक बनाया जा सकता है। मूल्यों के महत्व अविस्मरणीय हैं-

(1) व्यक्तित्व विकास में मूल्यों का अहम किरदार होता है, इसके माध्यम से सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक तथा मानवीय मूल्यों का विकास होता है।

(2) मानवीयता के विकास में मूल्य महत्वपूर्ण योगदान देते हैं, इससे राष्ट्र के अंतर्गत ही नहीं, बल्कि समस्त विश्व में शांति कायम करने एवं विश्व बंधुत्व की भावना के विकास में महत्वपूर्ण होता है।

(3) शिक्षा सुधार में मूल्यों का महत्व अत्यंत व्यापक है। इसके द्वारा बालकों में स्वअनुशासन का बोध कराया जाना आसान होता है।

(4) मूल्यों के द्वारा ही जीवन स्तर को ऊंचा जा सकता है, जब व्यक्ति की सोच एवं विचारधारा बड़ी होगी तभी उसे सफलता प्राप्त हो सकेगी, जिसमें मूल्य अहम किरदार निभाते हैं।

(5) मूल्यों की शिक्षा के माध्यम से व्यक्ति को व्यवस्थित, संगठित एवं सक्षम बनाते हैं।

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