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बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-A - समावेशी शिक्षा

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :215
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2700
आईएसबीएन :0

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बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-A - समावेशी शिक्षा

प्रश्न- पिछड़े बालकों का अर्थ स्पष्ट करते हुए उनकी प्रमुख विशेषताएँ लिखिए। पिछड़े बालकों का चुनाव कैसे किया जाता है स्पष्ट कीजिए।

उत्तर -

पिछड़े बालक का अर्थ

जो बालक अपनी कक्षा के औसत कार्य को नहीं कर पाता और बुद्धि-लब्धि में औसत बालक से पिछड़ा होता है, पिछड़ा बालक कहलाता है।

सिरिल बर्ट के शब्दों में- "पिछड़ा बालक वह है जो अध्ययन के मध्यकाल में अपनी कक्षा का कार्य, जो उसकी आयु के अनुसार एक कक्षा नीचे हो, करने में असमर्थ रहता है।"

पिछड़े बालक की कितनी बुद्धि-लब्धि होनी चाहिए? इस सम्बन्ध में मनोवैज्ञानिकों का मत नहीं है। अधिकतर मनोवैज्ञानिक पहले वाले पिछड़े बालक मानते हैं जिसकी बुद्धि-लब्धि 85 से कम होती है।

शौनन ने पिछड़े बालकों की परिभाषा देते हुए कहा है, "पिछड़ा बालक वह है जो अपनी आयु में अन्य बालकों की तुलना में अपेक्षाकृत शैक्षणिक दृष्टि से दुर्बलता का परिचय देता है।"

बर्टन हॉल के अनुसार- "सामान्यतः पिछड़ापन उस बालक के लिये होता है जिसकी शैक्षणिक उपलब्धियाँ उनकी स्वाभाविक योग्यताओं के स्तर से कम हो।"

पिछड़े बालकों की विशेषताएँ

पिछड़े बालकों में सामान्यतः निम्नलिखित विशेषताएँ होती हैं -

  1. बुद्धि-लब्धि कम होने के कारण पिछड़े बालकों की सीखने की गति अत्यन्त धीमी होती है।

  2. पिछड़े बालक सामान्य विद्यालयी पाठ्यक्रम से लाभ उठाने में असमर्थ रहते हैं।

  3. पिछड़े बालक मानसिक रूप से अस्वस्थ होते हैं। वे विद्यालय में सामायोजन नहीं कर पाते और संवेगात्मक दृष्टि से असंतुलित रहते हैं।

  4. पिछड़े बालक अपने जीवन में निराशा का अनुभव करते हैं। उनकी महत्वाकांक्षाएँ समाप्त हो जाती हैं और वे केवल प्रयत्न करने में असमर्थ रहते हैं।

  5. पिछड़े बालकों का सामाजिक सामायोजन में बड़ी कठिनाई होती है। उन्हें सदैव दूसरों की मित्रता और सहानुभूति की आवश्यकता होती है।

पिछड़े बालकों का चुनाव

पिछड़े बालकों को छाँटने के लिए मनोवैज्ञानिकों द्वारा कई परीक्षाएँ तैयार की गई हैं, जो निम्न प्रकार हैं—

  1. नियमित परीक्षा के आधार पर- इस परीक्षा में कई विषयों को देकर बच्चों के ज्ञान की परीक्षा ली जाती है।

  2. व्यक्तिगत बुद्धि परीक्षण- इस परीक्षा के आधार पर कक्षा के सभी बच्चों का व्यक्तिगत परीक्षण करना चाहिए। जो बच्चे सामान्य बच्चों की अपेक्षा कमजोर दिखलाई दें, उन्हें अलग से ध्यान देना चाहिए।

  3. सामूहिक बुद्धि परीक्षण- व्यक्तिगत बुद्धि परीक्षण के पहले सामूहिक बुद्धि परीक्षण करना बहुत जरूरी होता है।

  4. शारीरिक परीक्षण- इस परीक्षा से शरीर की सभी ज्ञानेन्द्रियों का परीक्षण किया जाता है। इसके आधार पर शारीरिक दोषों का पता लगाकर एक प्रकार के दोष से प्रभावित बच्चों की शिक्षा का प्रवृत्त अलग करने में सहायता होती है। शारीरिक परीक्षण के कुछ मुख्य तत्व इस प्रकार हैं-

    • नेत्र सम्बन्धी दोष— जैसे पढ़ने, लिखने, चित्र, गणित, नक्शे देखने आदि में कठिनाई।
    • श्रवण सम्बन्धी दोष— सुनने में कठिनाई के कारण पढ़ने में बाधा।
    • अन्य ज्ञानेन्द्रियों से सम्बन्धित दोष— पैर को घसीटना, स्पर्श की समस्या आदि।
  5. भावना प्रवृत्ति— भावना प्रवृत्तियों के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए भी परीक्षण किया जा सकता है।

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