बी एड - एम एड >> बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-A - समावेशी शिक्षा बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-A - समावेशी शिक्षासरल प्रश्नोत्तर समूह
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बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-A - समावेशी शिक्षा
प्रश्न- अधिगम असमर्थता के प्रकार का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
अधिगम असमर्थता मुख्य रूप से निम्न प्रकार की होती हैं-
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डिसलेक्सिया
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डिसग्राफिया
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डिसकैल्कुलिया
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ध्यान अभाव अतिरिक्त क्रियाशीलता विकृति (Dysteria)
1. डिसलेक्सिया- डिसलेक्सिया से पीड़ित बालक चावन से घबराते हैं। इनकी लिखी हुई सामग्रियाँ धुंधली दिखाई देती हैं तथा इसके लक्षण इस प्रकार हैं-
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वाणी सम्बन्धी समस्या होती हैं। ये हकलाते व तुतलाते हैं।
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शब्दों के स्थानों को प्रस्तुत करते हैं, जैसे saw को was आदि।
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दृष्टि संबंधी स्थिति समान्य नहीं होती है।
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लेखन में कठिनाई होती है।
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एक एक कर व धीमी गति से पढ़ना।
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अस्थिरता स्मृति सम्बन्धी दोष।
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लिखित शब्द व वाक्यों को समझने में कठिनाई।
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क्रिया से पहले चिंतन की कमी।
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विषयालय में सामायोजन नहीं हो पाता है।
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अमूर्त भाषा का प्रयोग व आक्रामक भी हो सकते हैं।
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डिसग्राफिया के कारण-यह रोग तंत्रिका तंत्र सम्बन्धी विकृति के कारण होता है। यह वंशानुगत भी हो सकता है तथा वातावरण सम्बन्धी कारक जैसे कुपोषण, निर्धनता, अभाव आदि कारणों से इन बच्चों की आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं हो पाती, जिससे यह रोग बढ़ जाता है।
निवारण-
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पारिवारिक इतिहास का अध्ययन किया जाए तथा भाषा, वर्तनी, उच्चारण, बौद्धिक योग्यता, स्मृति सम्बन्धी परीक्षा एवं व्यवहार का सूक्ष्म निरीक्षण किया जाए।
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डिसग्राफिया से अधिगम असमर्थता का कारण है इसका सम्बन्ध लिखने की बाध्यता से है। इससे प्रभावित बच्चों द्वारा लिखे गए शब्दों में कठिनाई होती है। लेखन धीमा, भद्दा व दुष्टिपूर्ण होता है। बालक शीघ्र थक जाता है तथा उंगलियों में दर्द होता है।
लक्षण-
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लेखन सम्बन्धी कार्यों में कठिनाई।
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वर्तनी तथा विचारों को लिखने की समस्या।
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गलत पढ़ने का ढंग ठीक नहीं होता।
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अक्षरों का आकार समझने में कठिनाई होती है।
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शब्द, वाक्यों के बीच अत्यन्त अनियमित होता है।
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वाक्य छोड़कर या पुनरावृत्ति करते हैं।
शैक्षिक उपचार- इन बच्चों को लिखने का अभ्यास करवाया जाए। खेल विधि का प्रयोग किया जाए।
3. डिसकैल्कुलिया- इस रोग से प्रभावित बच्चे संख्याएँ नहीं पहचान पाते। इन बच्चों में गणितीय योग्यता कम होती है। ये बच्चे जोड़, घटाना, गुणा, भाग करने में अत्यधिक देर करते हैं। माता-पिता इन्हें सुस्त, आलसी, कहते हैं। गणित के अतिरिक्त अन्य विषयों में इनका कार्य ठीक होता है।
लक्षण-
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गणितीय कार्य करने में कठिनाई।
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संख्याओं को पहचानने में समस्याएँ।
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आकृति विशेष की समस्या।
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बड़ा-छोटा, परिधि, क्षेत्रफल आदि को समझने में कठिनाई।
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श्रवण व दृश्य इन्द्रियों में सामंजस्य की कमी।
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समय, दूरी, गहराई से जुड़ी समस्याएँ।
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नई समस्याओं को समझकर उन्हें धारण करने व पुनः स्मरण करने की कठिनाई।
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रुपये पैसे ले लेने तक समस्याएँ कठिनाई।
उपचार- इन बच्चों के लिए गणित का अभ्यास व बहु-इन्द्रिय प्रयोग किया जाए। खेल विधि, प्रोत्साहन विधि, वास्तविक जीवन अनुभव के माध्यम से सिखाया जाए।
4. ध्यान अभाव, अति क्रियाशीलता विकृति- इसे सामान्य भाषा में ADHD कहते हैं। इन बच्चों में आवेगों के नियंत्रण की समस्या होती है। इनका ध्यान केंद्रित नहीं हो पाता। इस कारण कक्षा व घर में अनुशासनहीनता करते हैं तथा शिक्षण में बाधा उत्पन्न करते हैं।यह स्नायुतंत्र सम्बन्धी विकृति है जिसमें असामान्य स्तर का ध्यान, आवेग तथा अति क्रियाशीलता सम्मिलित है। ये बच्चे संवेगात्मक रूप से अश्थिर होते हैं।
ADHD के लक्षण:
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कही गई बात को पूरा न सुनना।
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निर्देशों का ठीक से पालन न करना।
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कार्य व खेल आदि में ध्यान की कमी।
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रखने वाली सामग्री (कलम, पुस्तक आदि) को खो देना।
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विद्यालय का शिथिल प्रभाव।
अतिक्रियाशीलता-
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सदा बेचैनी बनी रहती है।
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हाथ-पैर को उंगलियों को चलाते रहते हैं।
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कक्षा में अलग-अलग सीटों को बदलना।
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चंचलता व्यवहार करना।
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अत्यधिक तीव्र वार्तालाप करना।
आवेगात्मकता-
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प्रश्न समाप्त होने से पूर्व ही उत्तर देना।
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अपनी बारी का इंतजार न कर पाना।
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दूसरों की बात को सुने बिना बीच में काट देना।
शिक्षक- इन बच्चों का उपचार के लिए निम्न क्रियाएँ करायी जा सकती हैं:
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शिक्षण के निकट एक स्थिर बैठने की व्यवस्था की जाए।
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खिड़की द्वार से दूर बैठाया जाए।
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कार्य करने के लिए अधिक समय दिया जाए।
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कठिन शब्द प्रश्न पूछे जाएं।
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अनुशुक व्यवहार पर ध्यान दिया जाए।
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पुनरुक्ति हो।
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