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बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-A - समावेशी शिक्षा

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :215
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2700
आईएसबीएन :0

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बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-A - समावेशी शिक्षा


 

अध्याय 1 - समावेशी शिक्षा

(Inclusive Education)

प्रश्न- समावेशी शिक्षा का अर्थ स्पष्ट करते हुए इसे परिभाषित कीजिए।

उत्तर -

समावेशी शिक्षा वह शिक्षा होती है, जिसके द्वारा विशिष्ट क्षमता वाले बालकों जैसे–मंदबुद्धि, अन्धे बालक, बधिर बालक तथा प्रतिभाशाली बालकों को ज्ञान प्रदान किया जाता है। समावेशी शिक्षा के द्वारा प्रत्येक छात्र के बौद्धिक शिक्षण स्तर की जाँच की जाती है, तत्पश्चात उन्हें दी जाने वाली शिक्षा का स्तर निर्धारित किया जाता है। अतः यह एक ऐसी शिक्षा प्रणाली है, जो कि विशिष्ट क्षमता वाले बालकों हेतु ही निर्धारित की जाती है। इसे समेकित अथवा समावेशी शिक्षा का नाम दिया गया है।

मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने समावेशी शिक्षा के सम्बन्ध में कहा कि "समावेशी शिक्षा का अर्थ है कि सभी विभिन्न प्रकार के बालक या युवा चाहे अक्षम हो अथवा नहीं, सामान्य विद्यालय पूर्ववर्ती विद्यालयों एवं सामुदायिक शिक्षण कक्षों में उपयुक्त सहायक सेवाओं के साथ अध्ययन में सम्मिलित रह सकते हैं।" उन्होंने आगे स्पष्ट किया कि समावेशी का अर्थ है- मुख्य धारा के विद्यालयों में विशिष्ट आवश्यकताओं के बच्चों का अपने अन्य सहपाठियों के साथ शिक्षा ग्रहण करना।

यह एक ऐसी शिक्षा प्रक्रिया है जो सरल है पर असमाप्त नहीं है।

उमालीजी के अनुसार "समावेश एक प्रक्रिया है जिसमें विद्यालय बालकों की दैनिक, संवैधानिक तथा सीखने की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए अपने संसाधनों का विस्तार करता है।"

यूनेस्को के अन्तर्राष्ट्रीय शिक्षण सम्मेलन जेनेवा 2008 में "समावेशी शिक्षा पर दस प्रश्न: अत्यंतवंचितशील एवं सीमांत समूह" सम्बन्धी वार्ता में अपने विचार इस प्रकार दिए:

"समावेशी शिक्षा अधिनियमतः गुणवत्तायुक्त शिक्षा को मौलिक अधिकार पर आधारित है जो आधारभूत शिक्षण आवश्यकताओं की पूर्ति करके जीवन को समृद्ध बनाती है।"

अत्यंतवंचितशील एवं सीमांत समूह की दृष्टि रखते हुए, यह प्रत्येक व्यक्ति की क्षमता का पूर्ण विकास करती है। समावेशी गुणवत्तायुक्त शिक्षा का मुख्य उद्देश्य सभी प्रकार के विविधीकरण को अपनाकर एक सामाजिक रूप से पोषक वातावरण बनाना है।

माइकल एवं जिग्मा ग्रेको के अनुसार - "समावेशी शिक्षा से अधिगम एवं मूल्यों, सिद्धांतों और प्रयोगों के समुच्चय का निर्माण होता है जो सभी विद्यार्थियों को, चाहे वे विशिष्ट हो अथवा नहीं, प्रभावकारी और सार्थक शिक्षा देने पर बल देते हैं।"

यूएनईएससीओ 1989 के अनुसार - "सामान्य बच्चों और विशिष्ट बालकों की शैक्षिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए समान शिक्षण संस्थानों को अनुकूलित किया जाता है ताकि सभी बालकों को वहीं समान विद्यालयों में शिक्षा देने हेतु पुनः पाठ्यक्रम को पुनः विकसित किया जाए।"

यह एक सतत चलने वाला व्यक्तिगत रूप से विशिष्ट बच्चों और नवविकसित शिक्षण आवश्यकताओं को पूर्णत: लागू करने वाली सहायता प्रणाली है। यह समय शिक्षण प्रणाली का एक अभिन्न घटक है जो सामान्य स्कूलों में सबके लिए उपयुक्त शिक्षा के रूप में प्रदान की जाती है।

ए. मैनिबान के अनुसार - "समावेशी शिक्षा उस नीति तथा प्रक्रिया का पालन है जो अब बच्चों को सभी कार्यक्रमों में भाग लेने के लिए अनुमति देती है, नीति से तात्पर्य है कि सभी बालकों को शिक्षा के लिए अवसर देने के साथ-साथ समान्य बालकों के सभी कार्यक्रमों में भाग लेने के लिए स्वीकृति प्रदान करें। समावेशी प्रक्रिया से अधिगम इकाई के उन संसाधनों से, जो इस प्रक्रिया का सहज ही निर्माण करते हैं, समावेशी शिक्षा शारीरिक रूप से सक्षम बालकों के लिए सामान्य शिक्षा का अभिन्न अंग के अतिरिक्त कुछ नहीं है। यह सामान्य शिक्षा के भीतर अलग से कोई प्रणाली नहीं है।"

समावेशी शिक्षा अलगाव से बिल्कुल भिन्न है। पृथक्करण का अर्थ है—अलग करना। कुछ समय पहले विशिष्ट बालकों हेतु पृथक विद्यालय खोले गए थे। अलगाव मानव मूल्यों का विरोधी है। इसका मूल उद्देश्य मानवकल्याण एवं विकास होना चाहिए था। ये विद्यालय अब भी समाज से अलग होकर संचालित नहीं हो रहे हैं, जितना होना चाहिए था। सामाजिक, संप्रेषणीय, सुविज्ञता तथा सामाजिक विकास और स्वीकृति के दृष्टिकोण से ये बालक पीछे ही रह गए। इसी हेतु समावेशी शिक्षा सबको साथ लेकर चलने का एक पृथक प्रयास है।

जनसंख्या विस्फोट होने से विद्यालयों में छात्रों की विविधताएं भी बढ़ी हुई हैं। ये विविधताएं शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक, संवेगात्मक, सामाजिक आदि दिखाई देती हैं। इन विविधताओं को स्वीकार कर, प्रत्येक छात्र को उसकी आवश्यकताओं के अनुसार शिक्षा के अवसर प्रदान करना ही समावेशी शिक्षा का नाम है।

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