बी एड - एम एड >> बी.एड. सेमेस्टर-1 द्वितीय प्रश्नपत्र - शिक्षा के सामाजिक परिप्रेक्ष्य बी.एड. सेमेस्टर-1 द्वितीय प्रश्नपत्र - शिक्षा के सामाजिक परिप्रेक्ष्यसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बी.एड. सेमेस्टर-1 द्वितीय प्रश्नपत्र - शिक्षा के सामाजिक परिप्रेक्ष्य
प्रश्न- शिक्षा का लोकतन्त्रीकरण क्या है? स्पष्ट कीजिये।
उत्तर -
शिक्षा का लोकतन्त्रीकरण
लोकतन्त्र व्यक्ति एवं समाज दोनों को सम्मान की दृष्टि से देखता है। उसका विश्वास है कि व्यक्ति के द्वारा समाज का और समाज के द्वारा व्यक्ति का हित होता है। लोकतन्त्रीय दृष्टिकोण से शिक्षा एक ऐसी सामाजिक प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति, समाज एवं राष्ट्र सभी का विकास किया जाता है।
लोकतन्त्र की सफलता का मूल आधार शिक्षा होती है इसलिये लोकतन्त्र जन शिक्षा पर सबसे अधि कंबल देता है। इसके लिये वह सर्वप्रथम एक निश्चित आयु तक के बालकों के लिये अनिवार्य एवं निःशुल्क शिक्षा की व्यवस्था करता है। वह पुरुष एवं महिलाओं में भेद नहीं करता इसलिये यह दोनों के लिये समान शिक्षा की व्यवस्था करता है।
आज हमारे देश के सामने सबसे बड़ा सवाल यह है कि व्यक्तियों को लोकतन्त्र की शिक्षा किस प्रकार प्रदान की जाय। उनको लोकतन्त्रीय जीवन में प्रशिक्षित कैसे किया जाय। इसके लिये हमको दो कार्य करने होंगे प्रथम यह कि स्कूली छात्रों को भारतीय लोकतन्त्र के मूल सिद्धान्तों - स्वतन्त्रता, समानता, समाजवाद, न्याय एवं धर्मनिरपेक्षता का स्पष्ट ज्ञान करायें एवं दूसरा यह है उन्हें इन सिद्धान्तों पर आधारित लोकतन्त्रीय जीवन शैली में प्रशिक्षित करें। इन दोनों कार्यों के सम्पादन के लिये पहली आवश्यकता यह है कि देश में एक निश्चित स्तर तक अनिवार्य तथा निःशुल्क शिक्षा की व्यवस्था की जाय।
लोकतन्त्र की सफलता उसके नागरिकों पर निर्भर करती है। लोकतन्त्र व्यक्ति के वैयक्तिक एवं सामाजिक दोनों प्रकार के विकास पर बल देता है। इस आशा के साथ कि इसके द्वारा व्यक्ति, राष्ट्र एवं समाज का हित होगा। उसके अनुसार शिक्षा के निम्न उद्देश्य होने चाहिये
(1) लोकतन्त्र एवं लोकतन्त्रीय नागरिकता की शिक्षा - आज विश्व के लगभग सभी देशों में शिक्षा की व्यवस्था करना राज्य का दायित्व है ! तब राज्य का व्यक्तियों की शिक्षा द्वारा शासनतन्त्र की शिक्षा देना स्वाभाविक है। लोकतन्त्रीय राज्य लोकतन्त्र की शिक्षा एवं तद्नुकूल नागरिकता की शिक्षा प्रदान करने पर जोर देते हैं।
(2) नैतिक एवं चारित्रिक विकास - लोकतन्त्र शासन की एक प्रणाली ही नहीं है, यह जीवन की एक शैली भी, इसके अपने कुछ सिद्धान्त हैं. नियम हैं एवं लोकतन्त्रीय समाज के सभी व्यक्तियों को इसका पालन करना होता है। नियमों के प्रति विश्वास एवं उनके पालन को नैतिकता कहते हैं एवं इन नियमों के पालन की आन्तरिक शक्ति को चरित्र कहते हैं। नैतिकता एवं चरित्र मनुष्य का वह गुण हैं जो उसे अपने हित के साथ-साथ दूसरों के हित की ओर अग्रसर करता है।
(3) स्वास्थ्य रक्षा एवं स्वास्थ्य संवर्द्धन - लोकतन्त्र व्यक्ति के व्यक्तित्व का आदर करता है एवं व्यक्ति के लिये स्वस्थ रहना उसकी प्रथम आवश्यकता है। इसलिये लोकतन्त्र मनुष्य को अपने स्वास्थ्य की रक्षा एवं उसका संवर्द्धन एवं प्रशिक्षित करने को बल देता है एवं इसे शिक्षा का उद्देश्य मानता है।
(4) राष्ट्रीय लक्ष्यों की प्राप्ति - लोकतन्त्र एक प्रगतिशील राजनीतिक विचारधारा है। समाज निरन्तर विकास करता रहता है तथा उनकी आवश्यकतायें एवं आकांक्षायें सदैव बदलती रहती हैं। इस दृष्टि से शिक्षा का उद्देश्य समाज की बदलती हुयी आवश्यकताओं को पूरा करना होना चाहिये।
(5) वैयक्तिक और सामाजिक विकास एवं नेतृत्व की शिक्षा - लोकतन्त्र व्यक्ति एवं समाज दोनों को समान आदर की दृष्टि से देखता है एवं दोनों के समुचित विकास पर बल देता है। लोकतन्त्र का मानना है कि जब तक कोई समाज व्यक्ति की वैयक्तिक योग्यताओं का उच्चतम विकास करके उनका अधि क से अधिक उपयोग नहीं करता तब तक उनका विकास नहीं हो सकता एव जब तक समाज का विकास नहीं होगा तब तक व्यक्ति को अपने विकास के अवसर नहीं उपलब्ध करा सकता
लोकतन्त्र एवं शिक्षा की पाठ्यचर्या
पाठ्यचर्या उद्देश्यों को प्राप्त करने का साधन होती है। यह लोकतन्त्र एवं समाज दोनों को समाज दृष्टि से देखता है, दोनों के समान हित की बात सोचता है तथा दोनों के विकास पर जोर देता है। अतः लोकतन्त्रीय समाज की पाठ्यचर्या निम्न सिद्धान्तों पर आधारित होती है
(1) विशिष्ट और विस्तृत पाठ्यचर्या का सिद्धान्त - लोकतन्त्र व्यक्ति के व्यक्तित्व का आदर करता है, वह प्रत्येक को योग्यता, रुचि, रुझान, योग्यता एवं क्षमता एवं आवश्यकताओं के अनुसार विकास के समान अवसर प्रदान करने के पक्ष में है।
(2) आधारभूत समान पाठ्यचर्या का सिद्धान्त - लोकतन्त्र शिक्षा को मनुष्य का जन्मसिद्ध अधिकार मानता है इसलिये वह सर्वप्रथम प्रत्येक बच्चे के लिये एक निश्चित आयु तक की, निश्चित स्तर की शिक्षा की व्यवस्था अनिवार्य तथा निःशुल्क रूप से करने पर बल देता है। इस शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य बालकों को सामान्य जीवन जीने की योग्यता एवं क्षमता प्रदान करना होता है।
(3) क्रियाशीलता का सिद्धान्त - लोकतन्त्र मनुष्य को वास्तविक जीवन के लिये तैयार करने में विश्वास करता है एवं इसीलिये शिक्षा की पाठ्यचर्या में उसके अपने जीवन से सम्बन्धित क्रियाओं को स्थान देता है।
(4) लोकतन्त्र एवं शिक्षण विधियाँ - लोकतन्त्र स्वतन्त्रता, क्रियाशीलता एवं प्रगतिशीलता का पोषक है। शिक्षा के क्षेत्र में वह पाठ्यचर्या के निर्माण में भी इन्हें स्थान देता है एवं शिक्षण विधियों का चयन भी इसी दृष्टि से करता है। लोकतन्त्र में अन्धविश्वास का कोई स्थान नहीं होता है। लोकतन्त्र अपने समाज के लोगों से यह आशा करता है कि वह अपने समाज की सांस्कृतिक धरोहर को अपने समाज से ग्रहण तो करे पर उसे अपने अनुभवों की कसौटी पर कसकर ही स्वीकार करे।
(5) लोकतन्त्र एवं अनुशासन - लोकतन्त्र में अनुशासन बाहरी भय द्वारा कायम की गयी व्यवस्था नहीं होती, अपितु प्रेम, सहानुभूति एवं सहयोगपूर्ण जीवन के आधार पर विकसित की गयी एक अन्त:प्रेरणा होती है जिसके कारण मनुष्य सामाजिक व्यवहार करता है।
(6) लोकतन्त्र एवं शिक्षक - लोकतन्त्र का विश्वास है कि यदि समाज को योग्य नेता मिल जाये एवं उसके नागरिक प्रेम व सहयोग से कार्य करें तो वह समाज तेजी से प्रगति करता है। यही कारण है कि लोकतन्त्र में अध्यापक को बालकों का नेता अथवा सहयोगी माना जाता है।
लोकतन्त्र की सफलता का मूल आधार शिक्षा होती है अतः लोकतन्त्र जन शिक्षा पर सबसे अधिक बल देता है। इसके लिये सबसे पहले एक निश्चित आयु के बालकों के लिये अनिवार्य एवं निःशुल्क शिक्षा की व्यवस्था करता है।
लेकिन यह देखा गया है कि अनेक प्रयास करने के पश्चात् कुछ बालक इस अनिवार्य एवं निःशुल्क शिक्षा को प्राप्त नहीं करते एवं बड़े होकर वह निरक्षर प्रौढ़ कहलाते हैं। बगैर शिक्षा के प्रौढ़ अपने जीवन में वह सफलता प्राप्त नहीं करते जो वह शिक्षा प्राप्त करते हैं।
देश के प्रत्येक नागरिक को तभी साक्षर एवं शिक्षित किया जा सकता है जब उन्हें शिक्षा प्राप्त करने का एक समान अवसर उपलब्ध कराये जाये।
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- प्रश्न- समाजशास्त्र का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- समाजशास्त्र को जन्म देने वाली प्रवृत्तियाँ कौन-कौन-सी हैं?
- प्रश्न- शाब्दिक दृष्टि से समाजशास्त्र का अर्थ बताइये।
- प्रश्न- पारिभाषिक दृष्टि से समाजशास्त्र का अर्थ समझाइये |
- प्रश्न- समाजशास्त्र की वास्तविक प्रकृति स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय समाज के आधुनिक स्वरूप की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- बालक पर भारतीय समाज के विभिन्न प्रभावों का संक्षिप्त उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- वर्तमान सामाजिक व्यवस्था को देखते हुए पाठ्यक्रम में किस प्रकार के बदलाव किये जाने चाहिये?
- प्रश्न- शिक्षा की समाजशास्त्रीय प्रवृत्ति ने शिक्षा में कौन-सी नयी विचारधाराओं को उत्पन्न किया?
- प्रश्न- शान्तिपूर्ण व सामूहिक जीवन हेतु विभिन्नता में एकता की स्थापना करने वाले घटकों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- शान्तिपूर्ण एवं सामूहिक रहने के लिये विभिन्नता में एकता स्थापित करने में शैक्षिक संस्थाओं की भूमिका की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- धर्मनिरपेक्षता का अर्थ स्पष्ट करते हुए धर्मनिरपेक्षता की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय सन्दर्भ में धर्मनिरपेक्ष राज्य की प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं? भारतीय संविधान में धर्मनिरपेक्षता सम्बन्धी प्रावधानों को भी स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- धर्मनिरपेक्षता को प्रोत्साहित करने वाले कारक कौन-से हैं? धर्मनिरपेक्षता के परिणामस्वरूप भारतीय समाज में होने वाले सामाजिक परिवर्तनों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- धर्मनिरपेक्षता के कारण भारतीय समाज में क्या परिवर्तन हुए?
- प्रश्न- धर्मनिरपेक्ष शिक्षा की विशेषताओं एवं इसके विकास में विद्यालय की भूमिका का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- धर्मनिरपेक्षता के विकास में विद्यालय की क्या भूमिका है?
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन से आप क्या समझते हैं? इसकी प्रक्रिया, रूप एवं प्रमुख कारकों पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन की प्रक्रिया का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के रूप बताइये।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के प्रमुख कारक कौन-कौन से हैं?
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन और शिक्षा के पारस्परिक सम्बन्धों को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- आर्थिक विकास का क्या अर्थ है? आर्थिक विकास के साधन के रूप में शिक्षा के योगदान को स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- संस्कृति से आप क्या समझते हैं? संस्कृति की आवश्यकता एवं महत्त्व पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तनों तथा शिक्षा के पारस्परिक सम्बन्धों को समझाइए।
- प्रश्न- "शिक्षा एक सामाजिक एवं गत्यात्मक प्रक्रिया है। " इस कथन की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा का समाजशास्त्रीय सम्प्रत्यय स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा प्रक्रिया की प्रकृति का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सांस्कृतिक परिवर्तन से क्या तात्पर्य है? सांस्कृतिक परिवर्तन लाने में शिक्षा की भूमिका की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- समाजशास्त्र और शिक्षाशास्त्र में सम्बन्ध स्थापित कीजिए।
- प्रश्न- समाजशास्त्रीय परिप्रेक्ष्य से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- समाजशास्त्र और शिक्षाशास्त्र में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- व्यक्ति और समाज के मध्य सम्बन्धों पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- वर्तमान समाज में परिवार का स्वरूप बदल गया है। स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय सामाजिक व्यवस्था में असमानताओं को दूर करने के लिए क्या कदम उठाए जाने चाहिए।
- प्रश्न- सामाजीकरण में परिवार का क्या महत्त्व है?
- प्रश्न- सामाजिक व्यवस्था की मुख्य विशेषतायें बताइये।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में बाधा उत्पन्न करने वाले प्रमुख कारक कौन-कौन से हैं?
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में शिक्षा की भूमिका पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- भारतीय सांस्कृतिक धरोहर की प्रमुख विशेषताओं का संक्षिप्त उल्लेख कीजिए।
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- प्रश्न- सांस्कृतिक विकास की कुछ समस्याएँ बताइये।
- प्रश्न- सांस्कृतिक विलम्बना से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- भारत में सामाजिक परिवर्तन के आर्थिक कारकों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारत में सामाजिक परिवर्तन के सांस्कृतिक कारक का उल्लेख कीजिए।
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- प्रश्न- शिक्षा के सामाजिक आधार से क्या तात्पर्य है?
- प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए। (समाजशास्त्र और शिक्षा का सम्बन्ध)
- प्रश्न- संविधान की परिभाषा दीजिये। संविधान की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिये।
- प्रश्न- भारतीय संविधान की अवधारणा बताइए। भारतीय संविधान के अन्तर्गत मौलिक अधिकारों एवं कर्त्तव्यों का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- मौलिक अधिकारों का महत्व तथा अर्थ बताइये। मौलिक अधिकार व्यवस्था की प्रमुख विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- भारतीय नागरिकों को प्राप्त मूल अधिकारों का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय संविधान के अन्तर्गत वर्णित शिक्षा से सम्बन्धित विभिन्न धाराओं का उल्लेख कीजिये।
- प्रश्न- भारतीय संविधान में शिक्षा से सम्बन्धित विभिन्न प्रावधान क्या-क्या हैं?
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- प्रश्न- समानता, बन्धुता, न्याय व स्वतंत्रता की संवैधानिक वादे के संदर्भ में शिक्षा के लक्ष्यों से सम्बन्धित संवैधानिक मूल्यों की विवेचना कीजिए।
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- प्रश्न- भारतीय संविधान में मौलिक अधिकारों के उल्लेख की आवश्यकता पर टिप्पणी लिखिए।
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- प्रश्न- राज्य के नीति निदेशक तत्वों की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
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- प्रश्न- लोकतंत्रीय समाज में शिक्षा के क्या उद्देश्य होने चाहिए? उनमें से किसी एक की सविस्तार विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- "आधुनिक शिक्षा में लोकतांत्रिक प्रवृष्टि दृष्टिगोचर होती है।' स्पष्ट कीजिए तथा लोकतांत्रिक समाज में विद्यालयों की भूमिका पर भी प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- जनतंत्र केवल प्रशासन की एक विधि ही नहीं है वरन् यह एक सामाजिक प्रणाली भी है। व्याख्या कीजिए |
- प्रश्न- भारत जैसे लोकतन्त्रीय राष्ट्र में शिक्षा के उद्देश्य किस प्रकार के होने चाहिए?
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- प्रश्न- विद्यालय में प्रजातन्त्र से आप क्या समझते हैं? विद्यालय में प्रजातान्त्रिक वातावरण बनाए रखने के लिए आप क्या प्रयास करेंगे?
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- प्रश्न- लोकतंत्र में विद्यालयों की क्या भूमिका होती है?
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- प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए। (शिक्षा एवं प्रजातंत्र )
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