बी ए - एम ए >> एम ए सेमेस्टर-1 - गृह विज्ञान - तृतीय प्रश्नपत्र - सामुदायिक विकास एवं प्रसार प्रबन्धन एम ए सेमेस्टर-1 - गृह विज्ञान - तृतीय प्रश्नपत्र - सामुदायिक विकास एवं प्रसार प्रबन्धनसरल प्रश्नोत्तर समूह
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एम ए सेमेस्टर-1 - गृह विज्ञान - तृतीय प्रश्नपत्र - सामुदायिक विकास एवं प्रसार प्रबन्धन
अध्याय - 4
प्रसार प्रबन्धन
(Extension Management )
प्रश्न- प्रसार प्रबन्धन की परिभाषा, प्रकृति, सिद्धान्त, कार्य क्षेत्र और आवश्यकता बताइए।
उत्तर -
प्रसार प्रबन्धन - प्रसार प्रबन्धन एक ऐसा अध्ययन का विषय है जो निर्णय लेने की प्रक्रिया और निष्पादन के विषय में कार्य करता है। प्रसार प्रबन्धन प्रसार शिक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है क्योंकि यह सामाजिक विकास के कार्यक्रमों के सम्बन्ध में योजना, मार्गदर्शन निष्पादन, नियंत्रण, बजट आदि के लिए उपकरण और तकनीकी प्रदान करता है।
विस्तार या प्रसार प्रबन्धन की परिभाषा
"एक संगठन में कार्यरत व्यक्तियों के प्रयासों के निश्चित उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए नियोजन, निर्देशन एवं समन्वयन को प्रबन्धन कहते हैं।
हरोल्ड कीजन - "औपचारिक रूप से संगठित समूह में व्यक्तियों से मिलकर कार्य करने की कला ही प्रबन्धन है। "
"प्रबन्धन मानवीय भौतिक साधनों को उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए समन्वय करना है।"
"प्रबन्धन वह है जो एक प्रबन्धक सम्पादन करता है। "
लारेन्स ए एप्ले - "प्रबन्धन पर्यावरण को बनाए रखने तथा उसे बचाने का कार्य है, जिसमें व्यक्ति अपने लक्ष्यों को कुशलता एवं प्रभावशाली ढंग से प्राप्त कर सके।"
पीटर एण्ड ड्रकर - "प्रबन्धन ज्ञान की एक शाखा है तथा अनुशासन किया जाने वाला कार्य है प्रबंधक इस ज्ञान को कार्यों के सम्पादन में प्रयोग करते हैं और विशेष कार्यों को पूरा करते है। "
एफ. डब्ल्यू. टेलर -"प्रबन्धन यह जानाने की कला है कि आप व्यक्तियों से वास्तव में क्या काम लेना चाहते हैं और फिर यह देखना कि वह उसको सबसे मितव्ययी तथा उत्तम ढंग से पूरा करते हैं। "
प्रबन्धन की प्रकृति
प्रसार प्रबन्धन की प्रकृति को निम्न बिन्दुओं द्वारा समझा जा सकता है:
(1) प्रबन्धन विज्ञान और कला दोनों है - व्यवहारिक रूप से कार्य करने के लिए व्यवहारिक कौशल का उपयोग करने के लिए प्रबन्धन एक विज्ञान है और कला भी है।
(2) प्रबन्धन एक सार्वभौम क्रिया है - प्रबन्धन के उद्देश्य समुच्चय को इस तरह विकसित किया जा सकता है कि सभी व्यवस्थाओं को सुधार सके। इस प्रकार यह एक क्रिया है।
(3) प्रबन्धन एक सामाजिक उत्तरदायित्व है - प्रसार कार्य के लिए, समाज और राष्ट्र की प्रगति के लिए, लक्ष्य को पूरा करने का कार्य, आर्थिक अर्थव्यवस्था को सुचारु रूप से चलाने के लिए प्रबन्धन एक सामाजिक उत्तरदायित्व है।
(4) प्रबन्धन एक जन्मजात गुण है - प्रबन्धन कला एक जन्मजात गुण भी होता है। ये गणितज्ञ भी हो सकते हैं, प्रबन्धक भी हो सकते हैं अतः जिनमें प्रबन्धन करने की क्षमता जन्मजात होती है।
(5) प्रबन्धन एक अदृश्य शक्ति है- प्रबन्धन करने या प्रबन्धक बनने की कला सबमें नहीं होती है। विशेषकर प्रसार कार्य का प्रबन्धन किस प्रकार किया जाए, जिससे उसका अनुचित प्रयोग न हो अतः यह एक मनुष्य या प्रबन्धक में व्याप्त अदृश्य शक्ति है। प्रबन्धन को देखा नहीं जा सकता यह कार्य परिणाम के रूप में हमारे सामने आता है।
(6) प्रबन्धन विश्वव्यापी है - प्रबंध को हम किसी देश संस्था, सामान्य व्यक्ति तक सीमित नहीं रख सकते बल्कि यह विश्वव्यापी होने के कारण सभी देशों, कार्य संस्थाओं में फैला हुआ है।
प्रबन्धन के कार्य
प्रबन्धन के कार्यों को तीन भागों में विभाजित करते हैं-
(1) उच्च स्तरीय प्रबन्ध के कार्य
(2) मध्यस्तरीय प्रबन्धन के कार्य
(3) निम्न स्तरीय प्रबन्ध के कार्य।
(1) उच्च स्तरीय प्रबन्धन के कार्य - उच्च स्तरीय प्रबन्धन के कार्य निम्न हैं
(1) उपक्रम के उद्देश्य को निर्धारित करना।
(2) संस्था के ट्रस्टी के रूप में उनकी रक्षा करना।
(3) मुख्य अधिशासी का चयन करना।
(4) संस्था की उपलब्धियों व परिणामों की रचना।
(5) बजट को पारित करना।
(6) आज का उचित विस्तार करना।
(7) महत्वपूर्ण विषयों में विचार-विमर्श करना।
(8) व्यवसाय के दीर्घकालीन स्थायित्व के लिए प्रयास करना।
(2) मध्य स्तरीय प्रबन्धन के कार्य - मध्य स्तरीय प्रबन्धन के कार्य निम्न हैं
(1) मुख्य अधिशासी की क्रियाओं में सहायता प्रदान करना।
(2) संचालनात्मक निर्णय से सहयोग करना।
(3) प्रतिदिन के परिणामों से सम्पर्क बनाए रखना।
(4) प्रसार की उपलब्धियों की समीक्षा करना।
(5) उच्च स्तीरय प्रबंध द्वारा तय की गयी सीमाओं के मध्य निर्धारित नीतियों का क्रियान्वयन करना।
(6) अधीनस्थों के कार्यों का मूल्यांकन।
(7) उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु योजना तैयार करना।
(8) उच्च और निम्न स्तर के मध्य समन्वय एवं संप्रेषण का कार्य करना।
(3) निम्न स्तरीय प्रबन्धन के कार्य - निम्न स्तरीय प्रबन्धन के कार्य निम्न है
(1) प्रसार के उद्देश्यों एवं लक्ष्य पूर्ति हेतु योजनाएँ बनाना।
(2) प्रसार कर्मचारियों को कार्य सौंपना।
(3) प्रसार कार्य एवं परिणामों की निगरानी रखना।
(4) जहाँ पर प्रसार कार्य में त्रुटियाँ हो रही हों, वहाँ पर त्वरित निर्णय लेना।
(5) प्रसार कर्मचारियों से व्यक्तिगत सम्बन्ध बनाए रखना।
(6) प्रसार कर्मियों के कार्यों का मूल्यांकन करना।
(7) प्रसारकर्ताओं के हितों और सुविधाओं का ध्यान रखना और माध्यम प्रबंधकों को उचित सूचना देना।
प्रबन्धन का महत्व
प्रसार कार्य में प्रबन्धन के महत्व को निम्न बिन्दुओं द्वारा समझ सकते हैं -
(1) पूर्व निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करना - प्रसार कार्य में प्रत्येक संस्था की स्थापना कुछ उद्देश्यों की पूर्ति के लिए की जाती है। प्रबन्ध एक माध्यम है जो इन उद्देश्यों को प्राप्त करने में सहायता करता है। प्रबन्ध अपने ज्ञान के आधार पर भावी घटनाओं का अनुमान लगाता है, संगठन का निर्माण करता है और कार्यभार सौंपता है। कर्मचारियों का निर्देशन करता है, उन पर नियंत्रण रखता है, प्रसार कार्यकर्ताओं को प्रेरित करके प्राप्त परिणामों का मूल्यांकन करके विचलनों का पता लगाता है।
(2) प्रसार के साधनों का अधिकतम उपयोग - प्रबंधन एक ऐसी शक्ति है जो प्रसार के विभिन्न साधनों में प्रभावपूर्ण समन्वय स्थापित करके उसका अनुकूल उपयोग करती है। अतः प्रसार कार्य में आने वाले उपलब्ध साधनों को सोने के समान माना गया है परन्तु उसे प्राप्त करने के लिए साधनों से लाभ कमाना, उनका उचित उपयोग करना आवश्यक अतः स्पष्ट है कि सीमित प्रसार साधनों का कुशलतापूर्वक उपयोग प्रसार की सफलता की कुँजी है।
(3) प्रतिस्पर्धा पर विजय प्राप्त करना - वर्तमान समय में प्रसार कार्य स्थानीय न होकर राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय रूप धारण कर चुका है। जैसे-जैसे प्रसार कार्य बढ़ता है वैसे-वैसे स्पर्धा बढ़ती जाती है कि अमुक व्यक्ति में अपने प्रोडेक्ट का प्रसार किया है तो मेरे प्रोडेक्ट का प्रसार उससे अच्छा होना चाहिए। अमुक्त व्यक्ति के प्रोडेक्ट से मेरे प्रोडेक्ट को ज्यादा लोग जान सकें। अतः निर्माता के स्थानीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय पर प्रतियोगता का सामना करना पड़ता है। इस स्थिति में वही प्रसार कार्यकर्ता अपनी जीत हासिल कर सकता है जोकि कम लागत में अच्छा प्रसार-प्रचार कर सके।
(4) बदलते वातावरण के साथ समन्वय - प्रबन्धन का महत्व केवल स्थानीय प्रसार के लिये नहीं होता है बल्कि बाहरी वातावरण के साथ भी समझौता करके चलना पड़ता है। एक ओर प्रसार विशेषज्ञ नयी-नयी उत्पादन विधियों का प्रसार कर रहे हैं तो दूसरी ओर अन्य प्रगतिशील प्रसार संस्थाएँ आधुनिक पद्धति को लागू करने में व्यस्त हैं। वर्तमान समय में ग्राहक उत्पादित वस्तुओं को सहज स्वीकार नहीं करता क्योंकि उनके जीवन स्तर में बढ़ोत्तरी के साथ ही उनमें जागृति आ गयी है और उनकी रुचि में भी परितर्वन हो रहा है। इसलिए दिन-प्रतिदिन बदलते वातावरण के साथ समन्वय का कार्य एक कुशल प्रसार प्रबन्धन के द्वारा ही हो सकता है।
प्रबन्धन के सिद्धान्त
प्रसार के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए प्रबन्धकीय क्रिया को सफलतापूर्वक सम्पन्न करने के लिये जिन आधारभूत नियमों का उपयोग किया जाता है उसे प्रबंधन का सिद्धान्त कहते है। अतः प्रबन्धन के सिद्धान्त निम्न हैं -
(1) केन्द्रीयकरण - पदों के माध्यम से प्रतिनिधि मंडल का स्तर।
(2) आदेश- संसाधन और लोगों का सही समय पर सही स्थान पर होना।
(3) समानता - सभी प्रसारकर्ताओं के साथ समान व्यवहार।
(4) अनुशासन - अधीनस्थों का आज्ञा पालन।
(5) कार्यकाल स्थिर प्रसार की सम्भावनाएँ।
(6) पहल - प्रसाकार्मियों को अपनी पहल करने की अनुमति।
(7) दलभावना - सभी प्रसारकर्ताओं में एकता और सदभाव के साथ कार्य करने की भावना।
(8) कार्य विभाजन - सभी प्रसारकर्ताओं के कार्य का विभाजन करना। सभी कार्य विशेषीकृत होते है।
(9) प्राधिकार - अधीनस्थों को आदेश देने और स्वीकृति देने का अधिकार।
(10) निर्देशन की एकता - पदानुक्रम में प्रत्येक प्रसार क्षेत्र का एक उद्देश्य होना चाहिए।
(11) हितों की अधीनता - प्रसारकर्ताओं का व्यक्तिगत हित समग्र रूप से संगठन के लिए गौण होता है।
(12) पारिश्रमिक - सभी प्रकारकर्ताओं को उचित पारिश्रमिक देना।
प्रसार प्रबन्धन के क्षेत्र
प्रसार प्रबन्धन उन सभी गतिविधियों, स्थितियों, कार्यक्रमों और नीतियों को सम्मिलित करता है जो ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाले लोगों के विकास के लिये महत्वपूर्ण हैं। जब भी और जहाँ भी लोगों के बीच जागरूकता पैदा करने की और उनके व्यवहार में वांछनीय बदलाव लाने की जरूरत महसूस की जाती है वहाँ प्रसार का प्रयोग होता है। आज प्रसार लोगों के विकास वृद्धि हेतु हमारे देश और दुनिया भर में एक स्थायी क्षेत्र के रूप में विकसित हो गया है। इससे यह ज्ञात होता है कि प्रसार के प्रबन्धन का कार्य क्षेत्र हमारे देश में ही नहीं बल्कि सभी विकासशील देशों में फैला है।
प्रसार प्रबन्धन की आवश्यकता
निम्न उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु प्रसार प्रबन्धन आवश्यक है
(1) समूह प्रयासों का निर्देशन, समन्वय एवं नियंत्रण - प्रसार प्रबन्धन समूह के प्रयासों के निर्देशन, समन्वय एवं नियंत्रण के लिये आवश्यक है। प्रसार कार्य अनेक व्यक्ति एक साथ करते है उन्हें अपनी दक्षता बढ़ाने के लिए उचित दिशा-निर्देश और मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है। मार्गदर्शन के अभाव में प्रसार कार्य का व्यवस्थित संचालन संभव नहीं होगा। प्रसार गतिविधियों की योजना बनाने, प्रचार के लिए सही दिशा में मार्गदर्शन करने और अंत में सर्वोत्तम / सबसे अनुकूल परिणाम प्राप्त करने के लिये उनके प्रयासों के समन्वय के लिए प्रसार प्रबंधन की आवश्यकता होती है।
(2) प्रसार के उद्देश्यों की क्रमबद्ध उपलब्धि - प्रसार गतिविधियों के उद्देश्यों को व्यवस्थित और त्वरित तरीके से प्राप्त करने के लिये कुशल प्रसार प्रबन्धन की आवश्यकता होती है।
(3) बुनियादी प्रसार कार्यों का प्रदर्शन - नियोजन, आयोजन, समन्वय और नियंत्रण प्रबंधन के बुनियादी कार्य हैं। इसमें प्रबन्धन की आवश्यकता है, क्योंकि ये कार्य प्रबंधन प्रक्रिया के माध्यम से किए जाते हैं।
(4) समस्त स्तरों पर प्रभावी संचार - संगठन के भीतर और बाहर प्रभावी संचार के लिए प्रबंधन की आवश्यकता होती है।
(5) प्रसार कार्यकर्ताओं को प्रेरणा - प्रसार कार्यकर्ताओं को प्रेरित करने और उनके प्रयासों के समन्वय के लिये भी प्रबंधन की आवश्यकता होती है, जिससे कि प्रसार के उद्देश्यों को शीघ्रता से प्राप्त किया जा सके।
(6) प्रसार की सफलता - प्रसार की सफलता के लिए कुशल प्रसार प्रबंधन की आवश्यकता होती है। चूंकि अधिकांश प्रबंधक एक से अधिक कार्य के लिये जिम्मेदार होते हैं जो सामान्य रूप से एक व्यक्ति कर सकता है। एक अच्छा प्रबंधक अपने कार्य को सौंप कर एकीकृत करता है।
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