बी ए - एम ए >> एम ए सेमेस्टर-1 - गृह विज्ञान - तृतीय प्रश्नपत्र - सामुदायिक विकास एवं प्रसार प्रबन्धन एम ए सेमेस्टर-1 - गृह विज्ञान - तृतीय प्रश्नपत्र - सामुदायिक विकास एवं प्रसार प्रबन्धनसरल प्रश्नोत्तर समूह
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एम ए सेमेस्टर-1 - गृह विज्ञान - तृतीय प्रश्नपत्र - सामुदायिक विकास एवं प्रसार प्रबन्धन
प्रश्न- गृह विज्ञान प्रसार शिक्षा के उद्देश्यों का विस्तार से वर्णन कीजिये।
उत्तर -
(Objectives of Home Science Extension Education)
सामान्यतः प्रत्येक योजना किसी भी निर्धारित लक्ष्य की ओर प्रगतिशील होती है व उसी के अनुरूप क्रियान्वित की जाती है। यह निर्धारित लक्ष्य जिसकी ओर प्रयासों को एकाग्र किया जाता है, उस योजना का उद्देश्य कहलाता है। अतः हम यह कह सकते हैं कि उद्देश्य वह कार्य होता है जिसकी प्राप्ति के लिए हम प्रयत्नशील होते हैं। यह उद्देश्य कार्य सम्पदा सम्बन्धी निर्देश भी होते हैं। जैसे यदि हम एक वर्ष में चार हजार रुपये की बचत करते हैं और हम पाँच हजार की करना चाहते हैं तो इसमें एक हजार रुपये की वार्षिक बचत की वृद्धि करना हमारा लक्ष्य होगा और बचत बढ़ाने के लिए हम जो विभिन्न उपाय करते हैं, वे हमारे उद्देश्य होंगे।
गृह विज्ञान प्रसार के अनेक उद्देश्य हैं इनमें से कुछ की पूर्ति तो तत्काल हो जाती है और कुछ की पूर्ति के लिए अधिक समय की आवश्यकता होती है। परिस्थितियों में परिवर्तन होने पर समस्याओं के साथ-साथ उद्देश्य में भी परिवर्तन आता है। यह आधारभूत तथ्य है कि सभी व्यक्तियों पर समस्याओं तथा निर्देशों का अलग प्रभाव पड़ता है। अतः उद्देश्य ऐसे स्थापित किये जाने चाहिए जिसमें व्यक्तियों को अपनी सीमाओं के अन्तर्गत लक्ष्यों की पूर्ति के लिए अवसर मिल सकें। लींगसे के अनुसार उत्तम प्रसार उद्देश्य वही है जो अधिक-से-अधिक व्यक्तियों को कुछ दूर चलने के लिए निर्देश देते हैं। यदि किसी कार्यक्रम में लोगों का निर्देशन नहीं होता है तो वे निश्चित नहीं कर पाते हैं कि कार्य सिद्धि के लिए किस मार्ग पर चलना चाहिए। ऐसे कार्यक्रमों के उद्देश्य को दोषपूर्ण समझना चाहिए। प्रसार का सार यही है कि उसके उद्देश्य ऐसे होने चाहिए कि लोगों के कार्यों को स्पष्ट निर्देशन मिल सकें और उनकी सिद्धियों की प्राप्ति में सहयोग मिलता रहे।
व्यापक अर्थ में प्रसार शिक्षा का उद्देश्य प्रत्येक सम्बन्धित व्यक्ति को परिवार तथा समुदाय के एकीकृत एवं बहुमुखी विकास की योजना बनाने तथा उसे क्रियान्वित करने में सहायता प्रदान करना है। गृह विज्ञान विषय के सन्दर्भ में प्रसार शिक्षा का उद्देश्य महिलाओं को इस योग्य बनाना है कि वे गृह तथा परिवार की दशाओं में सुधार कर सकें जिससे वे उत्तम प्रकार का जीवन व्यतीत कर सकें।
इस प्रकार किसी भी व्यक्ति की इच्छाओं की प्राप्ति का लक्ष्य बिन्दु ही उसका उद्देश्य कहलाता है। वास्तव में उद्देश्य द्वारा किसी भी व्यक्ति के क्रियाकलापों, प्रयत्नों को सही दिशा प्राप्त होती है। उद्देश्य ही उसका मार्गदर्शन करता है। गृह विज्ञान प्रसार कार्यकर्त्री अपने कार्य में तभी सफलता प्राप्त कर सकती है जब उद्देश्य को सामने रखकर योजना बनाई जाती है। बिना उद्देश्य को सामने रखे योजना उचित रूप से न तो क्रियान्वित हो सकती है और न ही उसकी सही मूल्यांकन होता है। इस प्रकार योजना सफल नहीं हो सकती है। गृह विज्ञान प्रसार शिक्षा के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं-
(1) गृहिणियों के सर्वोन्मुखी विकास में सहायता देना - प्रसार कार्यकत्रियों का प्रमुख उद्देश्य गृहिणियों के सर्वोन्मुखी विकास में सहायता प्रदान करना होना चाहिए। इसके लिए उसे गृहिणियों की योग्यताओं तथा क्षमताओं को पहचान कर उनके व्यक्तिगत, पारिवारिक एवं सामाजिक लक्ष्य की प्राप्ति में सहायता प्रदान करनी चाहिए। इसके लिए प्रसार कार्यकर्त्री को गृहिणियों में नई क्षमताएँ विकसित करनी चाहिए और उन्हें शिक्षा द्वारा इस योग्य बनाना चाहिए. जिससे यह सतत् योजनाबद्ध विधि द्वारा कार्य कर सकें और वैज्ञानिक विधि अपनाकर अपना लक्ष्य प्राप्त कर सके। गृहिणी का एकपक्षीय विकास न करके सर्वांगीण विकास किया जाना उचित है। उदाहरणार्थ, उसे केवल सन्तुलित आहार तथा उचित पोषण मात्रा के सम्बन्ध में बताना ही पर्याप्त नहीं वरन् उसके साथ-साथ पाक विधियों का प्रयोग, रसोई वाटिका का निर्माण, व्यक्तिगत और पर्यावरण सम्बन्धी स्वच्छता आदि पक्षों के सम्बन्ध में ज्ञान प्रदान करना भी आवश्यक है। उत्तम आहार के लिए मुर्गीपालन तथा रसोई वाटिका द्वारा न केवल गृहिणी एवं परिवार को पौष्टिक आहार उपलब्ध हो सकेगा बल्कि अण्डे और सब्जियों को बेचने से आर्थिक लाभ भी प्राप्त किया जा सकता है जिससे रहन-सहन के स्तर को ऊँचा उठाने में सहायता प्राप्त होगी। इस प्रकार गृहिणी तथा उसका परिवार स्वास्थ्य तथा आर्थिक सुदृढ़ता भी प्राप्त करता है।
(2) उपलब्ध संसाधनों के उपयोग द्वारा गृहिणियों की सहायता करना - गृहिणियों का उनके उपलब्ध संसाधनों को प्रभावपूर्ण ढंग से उपयोग में लाना सिखाया जाता है। सर्वप्रथम उन्हें इस योग्य बनाया जाता है कि वे अपने आस-पास उपलब्ध संसाधनों को पहचानें, उनके प्रति सजग हों और तत्पश्चात् उनका अधिकतम उपभोग करना सीखें जिससे उन्हें पूर्ण सन्तुष्टि प्राप्त हो सके।
प्रायः देखा जाता है कि ग्रामीण महिलाएँ अपने पुराने पारम्परिक ढंग से गृहस्थी चलाती हैं। वे अपने आस-पास की नयी खोजें, उपकरणों तथा उनके उपयोग से सर्वथा अनभिज्ञ रहती हैं। नई विकसित पद्धतियों का प्रयोग वे नहीं करती हैं।
गृह विज्ञान प्रसार द्वारा उन्हें नये संसाधनों और पद्धतियों का उपयोग सिखाया जाता है; उदाहरणार्थ- गोबर का उपले के रूप में प्रयोग न करके गड्ढा खोदकर उससे गोबर के अतिरिक्त सब्जी के छिलके, बीज आदि डालकर उससे कम्पोस्ट खाद बनाई जाये। इसी प्रकार, नालियों में व्यर्थ पानी न बहाकर घर में पड़ी फालतू जमीन में प्रवाहित करके रसोई उद्यान लगाया जाये और इसी में खाद का भी प्रयोग करना चाहिए। इससे व्यर्थ पानी, जमीन और कचरे का सदुपयोग होता है और घर बैठे ताजी सब्जियाँ भी उपलब्ध होंगी और उन पर होने वाले खर्च में भी बचत होगी। साथ ही ताजी सब्जी के प्रयोग से उनके पोषक- -मूल्य में वृद्धि होगी तथा गृहिणी के खाली समय का भी सदुपयोग हो सकेगा।
इसी प्रकार, ग्रामीण गृहिणियाँ व्यर्थ के दिखावे, रीति-रिवाजों में धन का अपव्यय न करके छोटी-छोटी बचत करके एक छोटा प्रेशर कुकर ही खरीद लें तो अपने समय, श्रम तथा ईंधन की बचत कर सकती हैं वरना उन्हें पतीली में दाल बनानी पड़ती है जिसमें समय और ईंधन का अपव्यय होता है और इसी प्रकार अन्य भोज्य सामग्री पकाने में भी इतना ही समय लगता है जिससे पूरे दिन का लगभग सारा समय रसोई में ही गुजर जाता है। गृह विज्ञान प्रसार द्वारा उन्हें धुएँ-रहित चूल्हे, 'हे बाक्स' (Hay Box) व गोबर गैस का उपयोग भी समझाया जा सकता है जिसके उपयोग द्वारा कम समय में कुशलता, सरलता से कार्य करके अवकाश के समय का कुछ और सदुपयोग किया जा सकता है।
(3) सरकारी कार्यक्रमों, गृहिणियों के सार्वभौमिक विकास को बढ़ावा देने वाली स्वैच्छिक संस्थाओं के कार्यों को सुदृढ़ करना - सरकारी संस्थाओं, गैर-सरकारी स्वैच्छिक संस्थाओं तथा गृह विज्ञान प्रसार कार्यकर्त्री सभी के लिए ग्रामीण गृहिणीयों के सर्वांगीण विकास को बढ़ावा देने का लक्ष्य समान रूप से महत्वपूर्ण है। अतः गृह विज्ञान प्रसार कार्यकर्त्रियों को इनसे मिलकर कार्य करना चाहिए। कई बार ऐसा होता है कि सरकार अथवा स्वैच्छिक संस्थाओं के पास ग्रामीण क्षेत्रों हेतु कई उपयोगी योजनाएँ अथवा कार्यक्रमों की रूपरेखा होती है, धन भी पर्याप्त होता है, किन्तु उन्हें ग्रामीण लोगों के मध्य जाकर उनके बीच रहकर कार्य करने वाले कुशल, प्रभावी कार्यकर्त्ताओं का अभाव रहता है। परिणामत: उनकी योजनाएँ कागज पर ही रह जाती हैं। इस परिस्थिति में आकर प्रसार कार्यकर्त्ताओं का यह उद्देश्य होना चाहिए कि वे स्वयं आगे बढ़कर योजनाओं-कार्यक्रमों में सक्रिय रूप से भाग लें। किसी सरकारी कार्यक्रम- परियोजना (Project) को स्वयं आगे बढ़कर अपना लें तथा सरकारी सहायता द्वारा उसे ग्रामीण क्षेत्रों में चलाकर सफल बनायें। इससे दोनों पक्षों को लाभ होगा। गृह विज्ञान प्रसार कार्यकर्त्ता सरकारी अनुदानों, सहायता का सदुपयोग कर सकेंगे और सरकार को भी विश्वसनीय प्रभावकारी कार्यकर्त्ता उपलब्ध हो सकेंगे।
गृह विज्ञान प्रसार कार्यकर्त्ताओं का उद्देश्य भी यही होता है कि ग्रामीण महिलाओं के उत्थान हेतु कार्य करें। चूँकि गृहिणी के हाथों ही परिवार के गृह-प्रबन्ध की बागडोर रहती है। अतः उसके ही उत्थान द्वारा सम्पूर्ण परिवार का, समुदाय का तथा ग्राम का विकास हो सकेगा। ग्रामीण महिलाओं के विकास की कोई भी योजना अथवा कार्यक्रम बनाने से पहले गृह विज्ञान को ग्रामीण महिलाओं की क्षमताएँ, रूचियाँ, योग्यताएँ, ज्ञान का स्तर तथा कमियों का पूर्ण ज्ञान प्राप्त कर लेना चाहिए और उसी के आधार पर योजना तैयार करनी चाहिए।
गृह विज्ञान प्रसार शिक्षा के उद्देश्यों को निम्नलिखित प्रकार भी वर्गीकृत किया जा सकता है-
(Fundamental Objectives)
गृह विज्ञानं प्रसार का आधारभूत उद्देश्य आर्थिक एवं सामाजिक क्षेत्रों में मनुष्य के व्यवहारों में परिवर्तन लाना है जिससे व्यक्ति उनकी समस्याओं को समझ कर उनके निराकरण हेतु प्रयत्न करें। प्रमुख आधारभूत उद्देश्य इस प्रकार हैं-
(1) भौतिक उद्देश्य - इसका अर्थ है कि गृह से सम्बन्धित क्रियाओं को पूर्ण किया जाये। इस हेतु गृहिणी को सम्बन्धित ज्ञान दिया जाता है जिससे वह अपने कार्यों को नये व वैज्ञानिक तरीकों से पूर्ण कर सकें।
(2) शैक्षिक उद्देश्य - प्रसार द्वारा न केवल ज्ञान दिया जाता है वरन् इस प्रकार की शिक्षा दी जाती है जिससे मनुष्य का पूर्ण विकास हो। इसमें बुद्धि, मन तथा हस्तकौशल की शिक्षा को भी सम्मिलित किया जाता है। शिक्षा इस प्रकार दी जाती है जिससे व्यक्ति की मनोवृत्तियों में परिवर्तन हों।
(3) सामाजिक व सांस्कृतिक उद्देश्य - साधारणतः यह मान्यता प्रचलित है कि जब समाज की आर्थिक स्थिति ठीक होती है तो उसमें सामाजिक व सांस्कृतिक उन्नति स्वयं होती है। साथ ही राजनैतिक विकास भी प्रारम्भ हो जाता है। गृह विज्ञान प्रसार का भी यह एक उद्देश्य है कि व्यक्तियों में प्रेम, सहानुभूति, आत्म-विश्वास तथा नेतृत्व की भावना का पुनर्जागरण किया जाये, साथ ही पुरानी मान्यताओं में परिवर्तन लाकर नयी संस्कृति का विकास किया जाये।
(B) सामान्य उद्देश्य
(General Objectives)
इसके अन्तर्गत उन उद्देश्यों को सम्मिलित किया जाता है जो पारिवारिक जीवन को सुखी बनाने व उनका जीवर स्तर-ऊँचा उठाने से सम्बन्धित होते हैं। इस सन्दर्भ में उद्देश्य निम्नलिखित हैं-
(1) महिलाओं के दृष्टिकोण में परिवर्तन लाना। जब तक व्यक्तियों में उच्च-स्तर का जीवन व्यतीत करने की आकांक्षाएँ विकसित नहीं की जायेगी तब तक लोगों में वांछित नेतृत्व करने की प्रेरणा नहीं मिलेगी तथा विकास का कार्यक्रम जन कार्यक्रम नहीं बन सकेगा।
(2) महिलाओं में उत्तरदायित्व की भावनाओं का विकास करना ताकि वे पारिवारिक उत्तरदायित्वों का निर्वाह सफलतापूर्वक कर सकें।
(3) गृह के विभिन्न क्रिया-कलापों की विधियों एवं प्रविधियों को सुधारने हेतु व उन्हें आधुनिकीकृत करने पर निरन्तर विशेष रूप से बल देना तथा उन्हें गृह सम्बन्धी नये ज्ञान से परिचित कराना जिससे उनका पारिवारिक जीवन सुखी व सम्पन्न बन सके।
(4) पारिवारिक सदस्यों में मनोवैज्ञानिक परिवर्तन लाना ताकि वे विकास का महत्व समझ सकें।
(5) महिलाओं में आत्म-निर्भरता के गुणों का विकास करना ताकि वे राष्ट्र निर्माण के कार्यों में प्रभावपूर्ण ढंग से तथा समझदारी से भाग ले सकें।
(6) उनके सामाजिक, सांस्कृतिक तथा राजनैतिक जीवन में उन्नति के साथ आर्थिक विकास करना भी अत्यधिक महत्वपूर्ण है।
(7) गृह सम्बन्धी नेतृत्व का विकास करना तथा उनमें राष्ट्रीय चेतना का विकास करना भी आवश्यक है।
(8) जीवन को सुखी बनाने हेतु विभिन्न क्षेत्रों में सम्बन्धित सुझाव देना तथा उनके जीवन में स्वच्छता सम्बन्धी ज्ञान में वृद्धि करना जिससे वे सभी स्वस्थ जीवन व्यतीत कर सकें तथा उन्हें स्वास्थ्य सम्बन्धी शिक्षा देना।
(9) भोजन, वस्त्र, मकान, मनोरंजन, स्वास्थ्य सम्बन्धी आवश्यकताओं की समुचित रूप में पूर्ति हेतु प्रेरणा एवं क्षमता का विकास करना।
(10) महिलाओं में उपलब्ध आर्थिक स्रोतों का उपयोग मितव्ययितापूर्वक करने की समझदारी एवं आदत का निर्माण करने में सहयोग देना ताकि वे उन साधनों से अधिकतम लाभ उठा सकें।
व्यावहारिक उद्देश्यों को दो निम्नलिखित भागों में बाँटा जा सकता है-
(1) प्रसारकर्त्ता के दृष्टिकोण से-
(a) कार्यक्रम को परिवार के सदस्यों द्वारा ही सफल कराना चाहिए।
(b) को सवादी विचार में परिवर्तन लाना चाहिए।
(c) परिवार के सदस्यों के ज्ञान में परिवर्तन लाना चाहिए।
(d) उनके कार्यों में वैज्ञानिक तत्वों को सम्मिलित करना आवश्यक है।
(e) सदस्यों की सही समस्याओं का ज्ञान तथा उनका निराकरण करना।
(f) परिवार के सदस्यों के कौशल तथा नेतृत्व का विकास करना।
(2) व्यक्तियों के दृष्टिकोण से -
(a) कार्यक्रम में विश्वास रखना आवश्यक है।
(b) कार्यों का दायित्व स्वेच्छापूर्वक वहन करना।
(c) वैज्ञानिक दृष्टिकोण भी आवश्यक है।
(d) पारिवारिक उपलब्ध साधनों के आधार पर ही कार्यक्रम की रूपरेखा बनानी चाहिए।
(e) प्रचार कार्य में सहयोगी सभी प्राथमिक संस्थाओं को मजबूत बनाना।
इस प्रकार गृह विज्ञान प्रसार की एक महत्वपूर्ण शाखा है जिसका उद्देश्य, पारिवारिक जीवन को उन्नत बनाने के लिए महिलाओं में कार्य-कौशलों का विकास करना, उनके दैनिक जीवन से सम्बन्धित आवश्यक बातों को उन्हें दिखाना तथा उनके दृष्टिकोण में परिवर्तन लाना है। जिससे वे अपने कर्तव्यों का पालन सुचारू रूप से कर सकें और अपने पारिवारिक जीवन को सुखी बना सकें।
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