बी ए - एम ए >> एम ए सेमेस्टर-1 - गृह विज्ञान - द्वितीय प्रश्नपत्र - फैशन डिजाइन एवं परम्परागत वस्त्र एम ए सेमेस्टर-1 - गृह विज्ञान - द्वितीय प्रश्नपत्र - फैशन डिजाइन एवं परम्परागत वस्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
|
0 5 पाठक हैं |
एम ए सेमेस्टर-1 - गृह विज्ञान - द्वितीय प्रश्नपत्र - फैशन डिजाइन एवं परम्परागत वस्त्र
प्रश्न- ब्रोकेड के अन्तर्गत 'बनारसी साड़ी' पर प्रकाश डालिए।
अथवा
"बनारस अपने विशेष वस्त्रों के लिये प्रसिद्ध है।" चर्चा कीजिए।
सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
बूटी
कोनिया
झालर
उत्तर -
(Banarasi Saree)
बनारसी साड़ी एक विशेष प्रकार की साड़ी है, जिसे विवाह शुभ अवसरों पर हिन्दू स्त्रियाँ धारण करती हैं। उत्तर प्रदेश के चंदौली, बनारस, जौनपुर, आजमगढ़, मिर्जापुर और संत रविदासनगर जिले में बनारसी साड़ियाँ बनाई जाती हैं। इसका कच्चा माल बनारस से आता है। पहले बनारस की अर्थव्यवस्था का मुख्य स्तम्भ बनारसी साड़ी का काम था पर अब यह शोचनीय स्थिति में है।
रेशम की साड़ियों पर बनारस में बनाई के संग जरी के डिजाइन मिलाकर बुनने से तैयार होने वाली सुंदर रेशमी साड़ी को बनारसी रेशमी साड़ी कहते हैं। ये पारम्परिक कार्य सदियों से चला आ रहा है और विश्वप्रसिद्ध है। कभी इसमें शुद्ध सोने की जरी का प्रयोग होता था, किंतु बढ़ती कीमतों को देखते हुए नकली चमकदार जरी का काम भी जोरों पर चालू है। इनमें अनेक प्रकार के नमूने बनाये जाते हैं। इन्हें 'मोटिफ कहते हैं। बहुत तरह के मोटिफों का प्रचलन चल पड़ा है, परन्तु कुछ प्रमुख परम्परागत मोटिफ जो आज भी अपनी बनारसी पहचान बनाए हुए हैं, वे हैं-बूटी, बूटा, कोनिया, बेल, जाल और जंगला, झालर आदि।
(History of Banarasi Saree)
बनारसी साड़ी का मुख्य केन्द्र बनारस है। बनारसी साड़ी मुबारकपुर, मऊ तथा खैराबाद में भी बनाई जाती हैं। यह माना जा सकता है कि यह वस्त्र कला भारत में मुगल बादशाहों के आगमन के साथ ही आई। पटका, शेरवानी, पगड़ी साफा, दुपट्टे, बैड शीट, मसन्द आदि के बनाने के लिए इस कला का प्रयोग किया जाता था। चूंकि भारत में साड़ियों का प्रचलन अधिक था। अतः ईरान, इराक, बुखारा शरीफ आदि से आए हथरकरघा के कारीगरों द्वारा विभिन्न प्रकार के डिजाइनों को साड़ियों में डाला जाता था यथा बेल, बूटी, आंचल एवं कोनिया आदि। उस समय में रेशम एवं जरी के धागों का प्रयोग किया जाता था। ताने में कप्तान और बाने में पाट बाना प्रयोग किए जाते थे जिसके परिणामस्वरूप वस्त्र अति मुलायम व गफदार बनते थे। पूर्व में नक्शा, जाला से साड़ियाँ बनाई जाती थीं। उसके बाद डाबी तथा जेकार्ड का प्रयोग होने लगा जो कि परम्परा से हटकर माना जा सकता है और अब यह पावरलूम के रूप में विकसित हुई मानी जा सकती है। बनारसी साड़ी बनाने वाले अधिकतर कारीगर मुस्लिम अंसारी होते हैं। कवि कबीर भी बुनकर थे। इस साड़ी के खरीददार गुजराती, मारवाड़ी, राजपूत और प्रतिष्ठित घरानों के सम्पन्न व्यक्ति होते हैं। प्राचीन समय से ही बनारसी साड़ियों का प्रयोग विशेषतौर से विवाह समारोहों में दुल्हन व नवविवाहिता स्त्रियों द्वारा प्रयोग किया जाता था और आज तक यह परम्परा निरन्तर चलती आ रही है।
विभिन्न प्रकार के नमूने या मोटिफ
(i) बूटी-बूटी छोटे-छोटे तस्वीरों की आकृति लिए हुए होता है। इसके अलग-अलग पैटर्न दो या तीन रंगों के धागे की सहायता से बनाये जाते हैं और यदि पाँच रंग के धागों का प्रयोग किया जाता है तो इसे पचरंगा (जामेवार ) कहा जाता है। यह बनारसी साड़ी के लिए प्रमुख आवश्यक तथा महत्वपूर्ण डिज़ाइनों में एक है। इससे साड़ी के आधार या मुख्य भाग को सुसज्जित किया जाता है। पहले रंग को 'हुनर का रंग' कहा जाता है। सामान्यतया गोल्ड या सिल्वर धागे को एक एकस्ट्रा भरनी से बनाया जाता है जिसके लिए सिरकी (बौबिन) का प्रयोग किया जाता है। हालांकि आजकल इसके लिए रेशमी धागों का भी प्रयोग किया जाता है जिसे मीना कहा जाता है जो रेशमी धागे से ही बनता है। सामान्यतया मीने का रंग हुनर के रंग का होना चाहिए।
(ii) बूटा- जब बूटी की आकृति को बड़ा कर दिया जाता है तो इस बढ़ी हुई आकृति को बूटा कहा जाता है। छोटे बड़े पेड़-पौधे जिसके साथ छोटी-छोटी पत्तियाँ तथा फूल लगे हों इसी आकृति को बूटे से उभारा जाता है। यह पेड़ पौधे भी हो सकते हैं और कुछ फूल भी हो सकते हैं। गोल्ड, सिल्वर या रेशमी धागे या इनके मिश्रण से बूटा काढ़ा जाता है। रंगों का चयन डिजाइन तथा आवश्यकता के अनुसार किया जाता है। बूटा साड़ी के बार्डर, पल्लू तथा आंचल में काढ़ा जाता है जबकि ब्रोकेड के आंगन (पोत) में इसे काढ़ा जाता है। कभी-कभी साड़ी के किनारे में एक विशेष प्रकार के बूटे को काढ़ा जाता है, जिसे यहाँ के लोग अपनी भाषा में कोनिया कहते हैं।
(iii) कोनिया – जब एक विशेष प्रकार (आकृति) के बूटे को बनारसी वस्त्रों के कोने में काढ़ा जाता है तो उसे कोनिया कहते हैं। डिजाइन आकृति को इस तरह से बनाया जाता है जिससे वे कोने के आकार में आसानी से आ सकें तथा बूटे से वस्त्र और अच्छी तरह से अलंकृत हो सके। जिन वस्त्रों में स्वर्ण तथा चांदी धागों का प्रयोग किया जाता है उन्हीं में कोनिया को बनाया काढ़ा) जाता है। सामान्यतया कोनिया काढ़ने के लिए रेशमी धागों का प्रयोग नहीं किया जाना है, क्योंकि रेशमी धागों से शुद्ध फूल पत्तियों का डिजाइन सही ढंग से नहीं उभर पाता। पल्लू डिजाइन के बाद, कोने से कोनिया बनाया जाता है जो कि प्रायः आम के आकार का रहता है जिसे बनाना बहुत कठिन होता है क्योंकि एक साथ इसमें तीन जालों से बुनाई की जाती है। यह एक पारम्परिक कला है।
(iv) बेल - यह एक आरी या धारीदार फूल पत्तियों या ज्यामितीय ढंग से सजाए गए डिजाइन होते हैं। इन्हें क्षैतिज आरे या टेड़े मेड़े तरीके से बनाया जाता है, जिससे एक भाग को दूसरे भाग से अलग किया जा सके। कभी-कभी बूटियों को इस तरह से सजाया जाता है कि वे पट्टी का रूप ले लें। भिन्न-भिन्न जगहों पर अलग-अलग तरीके के बेल बनाए जाते हैं। बेल साड़ी के किनारे पर लगती है और चार अंगुल में नापी जाती है। इससे घुंघट का नाप तय होता है। बेल में फूल-पत्तियों के अतिरिक्त विभिन्न पशु-पक्षियों व मानव आकृतियों के मोटिफ भी बनाए जाते हैं।
(v) जाल और जंगला - जाल, जैसा कि नाम से ही स्पष्ट होता है जाल की आकृति लिए हुए होते हैं। जाल एक प्रकार का पैटर्न/ बंदिश है, जिसके भीतर बूटी बनाई जाती है तथा इसे जाल - जंगला कहते हैं। जंगला डिजाइन प्राकृतिक तत्वों से काफी प्रभावित है। जंगला कप्तान और ताना का प्लेन वस्त्र है। ताना-बाना कप्तान का रहता है और डिजाइन के लिए सुनहरी या चाँदी की जरी का प्रयोग होता है जिसमें समस्त फूल, पत्ते, जानवर, पक्षी इत्यादि बने होते हैं। जंगला, जाल से काफी मिलता जुलता होता है। यदि जंगले में मीनाकारी करनी हो तो अलग-अलग रंगों के रेशम के धागों का प्रयोग किया जाता है। इसी प्रकार बेल जंगला भी बनाया जाता है।
(vi) झालर - बॉर्डर के तुरंत बाद जहाँ कपड़े के मुख्य भाग जिसे अंगना कहा जाता है की शुरुआत होती है वहाँ एक विशेष डिजाइन वस्त्र को अधिक अलंकृत करने के लिए दिया जाता है जिसे झालर कहा जाता है। सामान्यतया यह बॉर्डर के डिजाइन से रंग तथा मटेरियल में मिलता होता है। झालर में तोता, मोर, पान, कैरी, तीन पत्तियाँ, पाँच पंत्तियाँ मोटिव डिजाइन बनाए जाते हैं। झालर बेल के अन्त में साड़ियों के अलावा जरदोजी का काम भी यहाँ चालू हो चुका है। ये बनारस की अपनी अलग परम्परा नहीं है परन्तु अब लोगों ने बनारसी साड़ी में भी जरदोजी का काम करना प्रारम्भ कर दिया है। बनारस में बनारसी साड़ी तथा वस्त्र के अलावा अन्य साड़ी, सूट के कपड़े, ड्रेस मैटीरियल्स, पर्दा, कुशन कवर आदि में भी अधिकाशत: मुस्लिम सम्प्रदाय के कारीगर लगे हुए हैं। जरदोजी बहुत ही कलात्मक तथा धैर्य का काम है। इसकी बारीकी को समझने के लिए यह जरूरी है कि इसे कम उम्र से ही सीखा जाए। फलतः जरदोजी के पेशे में बच्चे तथा महिलायें भी लगी हुई हैं।
|
- प्रश्न- डिजाइन के तत्वों से आप क्या समझते हैं? ड्रेस डिजाइनिंग में इसका महत्व बताएँ।
- प्रश्न- डिजाइन के सिद्धान्तों से क्या तात्पर्य है? गारमेण्ट निर्माण में ये कैसे सहायक हैं? चित्रों सहित समझाइए।
- प्रश्न- परिधान को डिजाइन करते समय डिजाइन के सिद्धान्तों को किस प्रकार प्रयोग में लाना चाहिए? उदाहरण देकर समझाइए।
- प्रश्न- "वस्त्र तथा वस्त्र-विज्ञान के अध्ययन का दैनिक जीवन में महत्व" इस विषय पर एक लघु निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- वस्त्रों का मानव जीवन में क्या महत्व है? इसके सामाजिक एवं सांस्कृतिक महत्व की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- गृहोपयोगी वस्त्र कौन-कौन से हैं? सभी का विवरण दीजिए।
- प्रश्न- अच्छे डिजायन की विशेषताएँ क्या हैं ?
- प्रश्न- डिजाइन का अर्थ बताते हुए संरचनात्मक, सजावटी और सार डिजाइन का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- डिजाइन के तत्व बताइए।
- प्रश्न- डिजाइन के सिद्धान्त बताइए।
- प्रश्न- अनुपात से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- आकर्षण का केन्द्र पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- अनुरूपता से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- परिधान कला में संतुलन क्या हैं?
- प्रश्न- संरचनात्मक और सजावटी डिजाइन में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- फैशन क्या है? इसकी प्रकृति या विशेषताएँ स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- फैशन के प्रेरक एवं बाधक तत्वों पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- फैशन चक्र से आप क्या समझते हैं? फैशन के सिद्धान्त समझाइये।
- प्रश्न- परिधान सम्बन्धी निर्णयों को कौन-कौन से कारक प्रभावित करते हैं?
- प्रश्न- फैशन के परिप्रेक्ष्य में कला के सिद्धान्तों की चर्चा कीजिए।
- प्रश्न- ट्रेंड और स्टाइल को परिभाषित कीजिए।
- प्रश्न- फैशन शब्दावली को विस्तृत रूप में वर्णित कीजिए।
- प्रश्न- फैशन का अर्थ, विशेषताएँ तथा रीति-रिवाजों के विपरीत आधुनिक समाज में भूमिका बताइए।
- प्रश्न- फैशन अपनाने के सिद्धान्त बताइए।
- प्रश्न- फैशन को प्रभावित करने वाले कारक कौन-कौन से हैं ?
- प्रश्न- वस्त्रों के चयन को प्रभावित करने वाला कारक फैशन भी है। स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- प्रोत / सतही प्रभाव का फैशन डिजाइनिंग में क्या महत्व है ?
- प्रश्न- फैशन साइकिल क्या है ?
- प्रश्न- फैड और क्लासिक को परिभाषित कीजिए।
- प्रश्न- "भारत में सुन्दर वस्त्रों का निर्माण प्राचीनकाल से होता रहा है। " विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- भारत के परम्परागत वस्त्रों का उनकी कला तथा स्थानों के संदर्भ में वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- मलमल किस प्रकार का वस्त्र है? इसके इतिहास तथा बुनाई प्रक्रिया को समझाइए।
- प्रश्न- चन्देरी साड़ी का इतिहास व इसको बनाने की तकनीक बताइए।
- प्रश्न- कश्मीरी शॉल की क्या विशेषताएँ हैं? इसको बनाने की तकनीक का वर्णन कीजिए।.
- प्रश्न- कश्मीरी शॉल के विभिन्न प्रकार बताइए। इनका क्या उपयोग है?
- प्रश्न- हैदराबाद, बनारस और गुजरात के ब्रोकेड वस्त्रों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- ब्रोकेड के अन्तर्गत 'बनारसी साड़ी' पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- बाँधनी (टाई एण्ड डाई) का इतिहास, महत्व बताइए।
- प्रश्न- बाँधनी के प्रमुख प्रकारों को बताइए।
- प्रश्न- टाई एण्ड डाई को विस्तार से समझाइए।
- प्रश्न- गुजरात के प्रसिद्ध 'पटोला' वस्त्र पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- राजस्थान के परम्परागत वस्त्रों और कढ़ाइयों को विस्तार से समझाइये।
- प्रश्न- पोचमपल्ली पर संक्षिप्त प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- पटोला वस्त्र से आप क्या समझते हैं ?
- प्रश्न- औरंगाबाद के ब्रोकेड वस्त्रों पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- बांधनी से आप क्या समझते हैं ?
- प्रश्न- ढाका की साड़ियों के विषय में आप क्या जानते हैं?
- प्रश्न- चंदेरी की साड़ियाँ क्यों प्रसिद्ध हैं?
- प्रश्न- उड़ीसा के बंधास वस्त्र के बारे में लिखिए।
- प्रश्न- ढाका की मलमल पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- उड़ीसा के इकत वस्त्र पर टिप्पणी लिखें।
- प्रश्न- भारत में वस्त्रों की भारतीय पारंपरिक या मुद्रित वस्त्र छपाई का विस्तृत वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारत के पारम्परिक चित्रित वस्त्रों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- गर्म एवं ठण्डे रंग समझाइए।
- प्रश्न- प्रांग रंग चक्र को समझाइए।
- प्रश्न- परिधानों में बल उत्पन्न करने की विधियाँ लिखिए।
- प्रश्न- भारत की परम्परागत कढ़ाई कला के इतिहास पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- कढ़ाई कला के लिए प्रसिद्ध नगरों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सिंध, कच्छ, काठियावाड़ और उत्तर प्रदेश की चिकन कढ़ाई पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- कर्नाटक की 'कसूती' कढ़ाई पर विस्तार से प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- पंजाब की फुलकारी कशीदाकारी एवं बाग पर संक्षिप्त लेख लिखिए।
- प्रश्न- टिप्पणी लिखिए: (i) बंगाल की कांथा कढ़ाई (ii) कश्मीर की कशीदाकारी।
- प्रश्न- कश्मीर की कशीदाकारी के अन्तर्गत शॉल, ढाका की मलमल व साड़ी और चंदेरी की साड़ी पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- कच्छ, काठियावाड़ की कढ़ाई की क्या-क्या विशेषताएँ हैं? समझाइए।
- प्रश्न- "मणिपुर का कशीदा" पर संक्षिप्त लेख लिखिए।
- प्रश्न- हिमाचल प्रदेश की चम्बा कढ़ाई का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारतवर्ष की प्रसिद्ध परम्परागत कढ़ाइयाँ कौन-सी हैं?
- प्रश्न- सुजानी कढ़ाई के इतिहास पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- बिहार की खटवा कढ़ाई पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- फुलकारी किसे कहते हैं?
- प्रश्न- शीशेदार फुलकारी क्या हैं?
- प्रश्न- कांथा कढ़ाई के विषय में आप क्या जानते हैं?
- प्रश्न- कढ़ाई में प्रयुक्त होने वाले टाँकों का महत्व लिखिए।
- प्रश्न- कढ़ाई हेतु ध्यान रखने योग्य पाँच तथ्य लिखिए।
- प्रश्न- उत्तर प्रदेश की चिकन कढ़ाई का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- जरदोजी पर टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- बिहार की सुजानी कढ़ाई पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- सुजानी पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- खटवा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।