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एम ए सेमेस्टर-1 - गृह विज्ञान - द्वितीय प्रश्नपत्र - फैशन डिजाइन एवं परम्परागत वस्त्र

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :172
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2694
आईएसबीएन :0

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एम ए सेमेस्टर-1 - गृह विज्ञान - द्वितीय प्रश्नपत्र - फैशन डिजाइन एवं परम्परागत वस्त्र

प्रश्न- कश्मीरी शॉल की क्या विशेषताएँ हैं? इसको बनाने की तकनीक का वर्णन कीजिए।.

उत्तर -

कश्मीर का नाम आते ही जहन में एक ऐसी खूबसूरत धरती का दृश्य सामने आता है जिसके लिए बादशाह जहाँगीर ने एक शेर लिखा है-

अगर फिरदौस बर-रूए जमीं अस्त।
हमीं अस्तो, हमीं अस्तो, हमीं अस्त ॥

महर्षि कश्यप के नाम पर इस भू-खण्ड को 'कश्यपमर' तथा बाद में कश्मीर कहा जाने लगा। पण्डित आनन्द कौल 'बानजाई' के अनुसार 'कश्मीर' शब्द मूलतः संस्कृत का है। इसका अर्थ का (पानी) + श्मीर (निकलना) अर्थात् वह भूखण्ड जो पानी निकलने पर लोगों के रहने- योग्य बन गया, कश्मीर कहलाया।

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जम्मू-कश्मीर राज्य के अन्तर्गत कश्मीर घाटी और लद्दाख का भी कुछ भाग आता है। कश्मीर लद्दाख की घाटी श्रृंखला से घिरा हुआ क्षेत्र है। जम्मू के पूर्व में रावी और पश्चिम में झेलम नदी बहती है। यह खूबसूरत कश्मीर वैभवशाली वादियों से घिरा हुआ जितना अपनी खूबसूरती का रंग बिखेर रहा है उतना ही कला के क्षेत्र में सुप्रसिद्ध है। कश्मीरी शॉल, बुनाई के लिए दुनिया भर में अपना अलग ही स्थान रखता है। ये इतनी कोमल एवं महीन तैयार की जाती हैं कि इन्हें.अंगूठी में से आसानी से निकाला जा सकता है। इसी कारण ये शॉल पूरे संसार में रिंग शॉल के नाम से प्रसिद्ध हुए। इन शॉलों पर बुनाई के अलावा खूबसूरत कढ़ाई भी की जाती है।

इतिहास – ऊनी वस्त्रों का इतिहास सिन्धु घाटी सभ्यता के काल का माना जा सकता है। इसकी तकनीक में विशिष्टता हड़प्पा काल में आयी। 'शाल' (Shal) पर्शियन शब्द से उद्भव हुआ है। शॉल का अर्थ है- बारीक ऊन से बुना हुआ एक कपड़ा। पोशाक के रूप में उद्भव हुआ है। शॉल क यह मध्य एशिया से आया। भारत ऊनी वस्त्रों को उत्पादित करने में इतना महत्वपूर्ण स्थान नहीं रखता था क्योंकि जानवरों के बालों से बने वस्त्रों को भारतीय परम्पराओं में शुद्ध नहीं माना गया। इसके प्रमाण अथर्ववेद, शिवि जातकस, जैन आदि प्राचीन सन्दर्भ ग्रन्थों में मिलते हैं।

पश्म शॉल का लोकप्रिय होना इस उल्लेख से भी साबित होता है कि सासानी बादशाह हुरभुज द्वितीय (302-310 ई०) ने काबुल के राजा की कन्या से जब विवाह किया तब उसके दहेज में कश्मीर के अच्छे से अच्छे पश्मीने के बने शॉल-दुशाले आये, जिनकी कारीगरी देखकर सब लोक चकित हो गये।

कश्मीरी शॉल उद्योग का श्रेय जैन-उल-अबिदिन (Zain UI Abidin) (1420-70) शासक को जाता है जिसे कश्मीर का अकबर भी कहा जाता है। इसके द्वारा बुनकरों को पर्शिया और समरकन्द से लाकर बसाया गया। जिससे इस तकनीक में पर्शिया और मध्य एशिया का प्रभाव दिखाई देता है।

शॉल जिस ऊन के बनाये जाते हैं, उसे पशमीना ऊन कहते हैं। यह ऊन हिमालय क्षेत्र में रहने वाली बकरी के रोएँ से प्राप्त की जाती है एवं मध्य एशिया में तिब्बत, चाइना, तुर्किस्तान से भी आयात होती है। पश्मीना दो प्रकार की होती है। एक तो बहुत महीन जिसे असली तूस कहते हैं। यह जंगली बकरी से प्राप्त होती है एवं दूसरे प्रकार की ऊन पालतू बकरी से प्राप्त की जाती है किन्तु जम्मू-कश्मीर क्षेत्र में इस प्रजाति की बकरी नहीं पाई जाती है।

भारतीय बुनकरों को हालांकि इसका मेहनताना कम मिलता था परन्तु वे इसे आनन्ददायक काम समझकर बड़ी मेहनत व लगन से करते थे। ये कश्मीरी शॉल यूरोप में बहुत महँगे बिकते थे। 18वीं शताब्दी तक इस तरह की शॉल की माँग बहुतायत में थी। इस कारण श्रीनगर में विश्व के अनेक भागों, जैसे-चाइना, तुर्किस्तान, उज्बेकिस्तान, यूरोप, काबुल, ईरान एवं भारत के अन्य क्षेत्रों से शॉलों के व्यापारी आने लगे। व्यापारियों की माँग के अनुसार डिजाइन व बुनाई करवाई जाने लगी जिसके कारण यहाँ के कश्मीरी शॉल में मौलिकता समाप्त होने लगी। व्यापारी यहाँ से बहुमूल्य खूबसूरत कालीन और शॉल खरीद कर ले जाने लगे।

जॉन इर्विन ने उल्लेख किया है कि सन् 1803 में आर्मेनियन (Armenian) ख्वाजा युसुफ (Khwaja-Usuf) को एजेंट के रूप में शॉल खरीदने हेतु कश्मीर भेजा गया तो उसने पाया कि कश्मीर में बने शॉल काफी महँगे थे तथा करघों एवं शॉलों के विक्रय मूल्य पर भारी टैक्स था इसलिए उसने रफूगर की सहायता से शॉलें बनवाने की सोची। इन रफूगरों से लूम के स्थान पर निडिल वर्क शॉल बनवाए। पहला शॉल जिस रफूगर ने बनाया था उसका नाम अलीबाबा था। इस प्रकार के शॉलों का नाम बाद में 'अमलीशॉल' पड़ा। ये शॉल बहुत ही लोकप्रिय हुए क्योंकि इनके उत्पादन में खर्चा भी कम आता था एवं इन पर टैक्स भी नहीं लगता था।

सेबस्ट्रीन सेन्टिक के अनुसार मुगलकाल में 1630 में सोने-चाँदी व सिल्क के तारों से बॉर्डर को सजाकर सुन्दर शॉल बनाये जाते थे। ऐडिनबर्ग (Edinburgh Scotland) में 1808 में कश्मीरी शॉल में 'पेजली' का नमूना आया और 1818 में फ्रांस के जैकार्ड लूम पर जटिल डिजाइन को सरलता से बुना जाने लगा।

कश्मीरी शॉल की तकनीक—कश्मीरी शॉल के लिए एशियन पर्वतीय जंगली बकरी से ऊन प्राप्त की जाती है जिसे कप्रा हिरकस (Capra Hircus) कहते हैं। लद्दाख की ऊँची पवर्तमाला वाले क्षेत्रों से बकरी के रोएँ को इकठ्ठा कर श्रीनगर लाया जाता है जहाँ महिलाएँ कताई कर बारीक धागा तैयार करती हैं, जो हल्का, गर्म और क्रीमी, भूरी सी आभा लिए होता है।

कश्मीरी शॉल को कानि शॉल भी कहते हैं। इसे जामावार के नाम से जानते हैं। इसकी बुनाई ट्वील टेपस्ट्री तकनीक से की जाती है। बाने के डिजाइन बुनते हैं। शटल का धागा पूरी चौड़ाई में नहीं जाता है अपितु डिजाइन के अनुसार चलता है। प्रत्येक रंग की अलग शटल होती है। शॉल की बुनाई बहुत धीमी गति से एवं लम्बाई में की जाती है।

शॉल की बुनाई प्रक्रिया को 6 विशेषज्ञों द्वारा पूर्ण किया जाता है। ये हैं-

(1) वार्ष मेकर (Warp Maker ) – यह आवश्यकतानुसार धागों को ऐंठन देकर ताना तैयार करते हैं।
(2) वार्प ड्रेसर (Warp Dresser ) - यह ताने को कसने का काम करता है।
(3) वार्प थ्रेडर (Warp Threader )– यह ताने के धागों को हिल्ड से निकालता है।
(4) पैटर्न ड्राइवर (Pattern Drawar ) - यह डिजाइन बनाने का महत्वपूर्ण कार्य करता है।
(5) कलर कॉलर (Colour, Caller ) - यह विभिन्न रंगों के ताने के धागों को गिनते हुए बोलता है, जैसे- तीन उठाओं, पीला काम लो, छः उठाओ, हरा काम लो आदि। बुनकर कलर कालर के निर्देशों को मानते हुए रंगों को डिजाइन के अनुसार बुनाई में बाने के धागों का प्रयोग करते हैं।
(6) पैटर्न मास्टर (Pattern Master ) – सम्पूर्ण शॉल की डिजाइन का संयोजन पैटर्न मास्टर की देख-रेख में पूर्ण होता है।

कभी-कभी एक शॉल को बुनने के लिए दो या दो से अधिक लूम का भी प्रयोग किया जाता है। बुने पीस को काटकर रफूगर के द्वारा बहुत ही करीने से रफू की जाती थी कि दोनों पीस का जोड़ दिखाई न दे। शॉल की सतह को चिकना करने के लिए सुलेमानी नग से रगड़ा जाता है। इसके बाद शॉल की सफाई की जाती है एवं धागों की गाँठ लगा दी जाती है। अन्त में ठण्डे पानी से धुलाई की जाती है। रंगीन शॉलों को छाया में सुखाया जाता है जिससे उनका रंग फीका न पड़े तथा रंगों को पक्का करने के लिए सल्फर की भाप दी जाती है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- डिजाइन के तत्वों से आप क्या समझते हैं? ड्रेस डिजाइनिंग में इसका महत्व बताएँ।
  2. प्रश्न- डिजाइन के सिद्धान्तों से क्या तात्पर्य है? गारमेण्ट निर्माण में ये कैसे सहायक हैं? चित्रों सहित समझाइए।
  3. प्रश्न- परिधान को डिजाइन करते समय डिजाइन के सिद्धान्तों को किस प्रकार प्रयोग में लाना चाहिए? उदाहरण देकर समझाइए।
  4. प्रश्न- "वस्त्र तथा वस्त्र-विज्ञान के अध्ययन का दैनिक जीवन में महत्व" इस विषय पर एक लघु निबन्ध लिखिए।
  5. प्रश्न- वस्त्रों का मानव जीवन में क्या महत्व है? इसके सामाजिक एवं सांस्कृतिक महत्व की विवेचना कीजिए।
  6. प्रश्न- गृहोपयोगी वस्त्र कौन-कौन से हैं? सभी का विवरण दीजिए।
  7. प्रश्न- अच्छे डिजायन की विशेषताएँ क्या हैं ?
  8. प्रश्न- डिजाइन का अर्थ बताते हुए संरचनात्मक, सजावटी और सार डिजाइन का उल्लेख कीजिए।
  9. प्रश्न- डिजाइन के तत्व बताइए।
  10. प्रश्न- डिजाइन के सिद्धान्त बताइए।
  11. प्रश्न- अनुपात से आप क्या समझते हैं?
  12. प्रश्न- आकर्षण का केन्द्र पर टिप्पणी लिखिए।
  13. प्रश्न- अनुरूपता से आप क्या समझते हैं?
  14. प्रश्न- परिधान कला में संतुलन क्या हैं?
  15. प्रश्न- संरचनात्मक और सजावटी डिजाइन में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  16. प्रश्न- फैशन क्या है? इसकी प्रकृति या विशेषताएँ स्पष्ट कीजिए।
  17. प्रश्न- फैशन के प्रेरक एवं बाधक तत्वों पर प्रकाश डालिये।
  18. प्रश्न- फैशन चक्र से आप क्या समझते हैं? फैशन के सिद्धान्त समझाइये।
  19. प्रश्न- परिधान सम्बन्धी निर्णयों को कौन-कौन से कारक प्रभावित करते हैं?
  20. प्रश्न- फैशन के परिप्रेक्ष्य में कला के सिद्धान्तों की चर्चा कीजिए।
  21. प्रश्न- ट्रेंड और स्टाइल को परिभाषित कीजिए।
  22. प्रश्न- फैशन शब्दावली को विस्तृत रूप में वर्णित कीजिए।
  23. प्रश्न- फैशन का अर्थ, विशेषताएँ तथा रीति-रिवाजों के विपरीत आधुनिक समाज में भूमिका बताइए।
  24. प्रश्न- फैशन अपनाने के सिद्धान्त बताइए।
  25. प्रश्न- फैशन को प्रभावित करने वाले कारक कौन-कौन से हैं ?
  26. प्रश्न- वस्त्रों के चयन को प्रभावित करने वाला कारक फैशन भी है। स्पष्ट कीजिए।
  27. प्रश्न- प्रोत / सतही प्रभाव का फैशन डिजाइनिंग में क्या महत्व है ?
  28. प्रश्न- फैशन साइकिल क्या है ?
  29. प्रश्न- फैड और क्लासिक को परिभाषित कीजिए।
  30. प्रश्न- "भारत में सुन्दर वस्त्रों का निर्माण प्राचीनकाल से होता रहा है। " विवेचना कीजिए।
  31. प्रश्न- भारत के परम्परागत वस्त्रों का उनकी कला तथा स्थानों के संदर्भ में वर्णन कीजिए।
  32. प्रश्न- मलमल किस प्रकार का वस्त्र है? इसके इतिहास तथा बुनाई प्रक्रिया को समझाइए।
  33. प्रश्न- चन्देरी साड़ी का इतिहास व इसको बनाने की तकनीक बताइए।
  34. प्रश्न- कश्मीरी शॉल की क्या विशेषताएँ हैं? इसको बनाने की तकनीक का वर्णन कीजिए।.
  35. प्रश्न- कश्मीरी शॉल के विभिन्न प्रकार बताइए। इनका क्या उपयोग है?
  36. प्रश्न- हैदराबाद, बनारस और गुजरात के ब्रोकेड वस्त्रों की विवेचना कीजिए।
  37. प्रश्न- ब्रोकेड के अन्तर्गत 'बनारसी साड़ी' पर प्रकाश डालिए।
  38. प्रश्न- बाँधनी (टाई एण्ड डाई) का इतिहास, महत्व बताइए।
  39. प्रश्न- बाँधनी के प्रमुख प्रकारों को बताइए।
  40. प्रश्न- टाई एण्ड डाई को विस्तार से समझाइए।
  41. प्रश्न- गुजरात के प्रसिद्ध 'पटोला' वस्त्र पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  42. प्रश्न- राजस्थान के परम्परागत वस्त्रों और कढ़ाइयों को विस्तार से समझाइये।
  43. प्रश्न- पोचमपल्ली पर संक्षिप्त प्रकाश डालिये।
  44. प्रश्न- पटोला वस्त्र से आप क्या समझते हैं ?
  45. प्रश्न- औरंगाबाद के ब्रोकेड वस्त्रों पर टिप्पणी लिखिए।
  46. प्रश्न- बांधनी से आप क्या समझते हैं ?
  47. प्रश्न- ढाका की साड़ियों के विषय में आप क्या जानते हैं?
  48. प्रश्न- चंदेरी की साड़ियाँ क्यों प्रसिद्ध हैं?
  49. प्रश्न- उड़ीसा के बंधास वस्त्र के बारे में लिखिए।
  50. प्रश्न- ढाका की मलमल पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  51. प्रश्न- उड़ीसा के इकत वस्त्र पर टिप्पणी लिखें।
  52. प्रश्न- भारत में वस्त्रों की भारतीय पारंपरिक या मुद्रित वस्त्र छपाई का विस्तृत वर्णन कीजिए।
  53. प्रश्न- भारत के पारम्परिक चित्रित वस्त्रों का वर्णन कीजिए।
  54. प्रश्न- गर्म एवं ठण्डे रंग समझाइए।
  55. प्रश्न- प्रांग रंग चक्र को समझाइए।
  56. प्रश्न- परिधानों में बल उत्पन्न करने की विधियाँ लिखिए।
  57. प्रश्न- भारत की परम्परागत कढ़ाई कला के इतिहास पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  58. प्रश्न- कढ़ाई कला के लिए प्रसिद्ध नगरों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  59. प्रश्न- सिंध, कच्छ, काठियावाड़ और उत्तर प्रदेश की चिकन कढ़ाई पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  60. प्रश्न- कर्नाटक की 'कसूती' कढ़ाई पर विस्तार से प्रकाश डालिए।
  61. प्रश्न- पंजाब की फुलकारी कशीदाकारी एवं बाग पर संक्षिप्त लेख लिखिए।
  62. प्रश्न- टिप्पणी लिखिए: (i) बंगाल की कांथा कढ़ाई (ii) कश्मीर की कशीदाकारी।
  63. प्रश्न- कश्मीर की कशीदाकारी के अन्तर्गत शॉल, ढाका की मलमल व साड़ी और चंदेरी की साड़ी पर टिप्पणी लिखिए।
  64. प्रश्न- कच्छ, काठियावाड़ की कढ़ाई की क्या-क्या विशेषताएँ हैं? समझाइए।
  65. प्रश्न- "मणिपुर का कशीदा" पर संक्षिप्त लेख लिखिए।
  66. प्रश्न- हिमाचल प्रदेश की चम्बा कढ़ाई का वर्णन कीजिए।
  67. प्रश्न- भारतवर्ष की प्रसिद्ध परम्परागत कढ़ाइयाँ कौन-सी हैं?
  68. प्रश्न- सुजानी कढ़ाई के इतिहास पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
  69. प्रश्न- बिहार की खटवा कढ़ाई पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
  70. प्रश्न- फुलकारी किसे कहते हैं?
  71. प्रश्न- शीशेदार फुलकारी क्या हैं?
  72. प्रश्न- कांथा कढ़ाई के विषय में आप क्या जानते हैं?
  73. प्रश्न- कढ़ाई में प्रयुक्त होने वाले टाँकों का महत्व लिखिए।
  74. प्रश्न- कढ़ाई हेतु ध्यान रखने योग्य पाँच तथ्य लिखिए।
  75. प्रश्न- उत्तर प्रदेश की चिकन कढ़ाई का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  76. प्रश्न- जरदोजी पर टिप्पणी लिखिये।
  77. प्रश्न- बिहार की सुजानी कढ़ाई पर प्रकाश डालिये।
  78. प्रश्न- सुजानी पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
  79. प्रश्न- खटवा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।

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