बी ए - एम ए >> एम ए सेमेस्टर-1 - गृह विज्ञान - द्वितीय प्रश्नपत्र - फैशन डिजाइन एवं परम्परागत वस्त्र एम ए सेमेस्टर-1 - गृह विज्ञान - द्वितीय प्रश्नपत्र - फैशन डिजाइन एवं परम्परागत वस्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
|
0 5 पाठक हैं |
एम ए सेमेस्टर-1 - गृह विज्ञान - द्वितीय प्रश्नपत्र - फैशन डिजाइन एवं परम्परागत वस्त्र
प्रश्न- परिधान को डिजाइन करते समय डिजाइन के सिद्धान्तों को किस प्रकार प्रयोग में लाना चाहिए? उदाहरण देकर समझाइए।
उत्तर -
सर्वप्रथम परिधान में देखने वाले की दृष्टि रंग पर जाती है। उसके बाद दूसरी वस्तु जो देखने वाले का ध्यान आकृष्ट करती है, वह बाह्य आकृति (Silhouette or Outline) है। रंग के बाद आकृति पर ध्यान जाता है तथा सबसे अंत में नमूने अथवा डिजायन दिखाई देते हैं।
रंग से परिधान में जीवन्तता आ जाती है। वस्त्र की बाह्य रेखा फैशन के अनुकूल निरंतर परिवर्तित होती रहती है। परिधान की काट-छाँट, से वस्त्र का आकार निश्चित होता है। अलंकृत करने वाली काट-छाँट, झालर, गोटा, पाइपिंग, बटन आदि से वस्त्र की रेखाओं `पर बल पड़ता है। कटाई एवं सिलाई से परिधान सुन्दर एवं सुविधाजनक बनते हैं। परिधान की रचना में कुछ आधारभूत रेखाएँ होती हैं, जो पहनने वाले के आकार एवं आकृति को प्रभावित करती हैं। ये रेखाएँ यदि सुन्दर नहीं होती हैं, तो कितने भी सुन्दर रंगों के बहुमूल्य वस्त्रों के प्रयोग क्यों न किए जाएँ, परिधान सुन्दर नहीं लगते। सफल परिधान-संयोजन 'संयम' पर आधारित है। परिधान संयोजन में रचना संबंधी नमूनों में भिन्नता, अनोखापन तथा व्यक्तित्व की छाप पर पर्याप्त बल देते हुए 'सादगी' का विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए।
परिधान की आधारभूत रेखाएँ सीधी, आड़ी-खड़ी, घुमावदार, तिरछी तथा वक्राकार होती हैं, अर्थात् विभिन्न आकार की तथा विभिन्न दिशाओं की ओर जाने वाली हो सकती हैं। लम्बी रेखाएँ लम्बाई में बनती हैं तथा लम्बाई को बढ़ाती प्रतीत होती हैं। आड़ी रेखाएँ शरीर. के Cross wise रुख में बनती है तथा उसके विभिन्न भागों को बाँटती सी लगती हैं। तिरछी रेखाएँ सौन्दर्य की वृद्धि करती हैं तथा गति, ताजगी एवं जीवंतता की सूचक होती हैं। परिधान में इन आधारभूत अलंकरण-संबंधी रेखाओं का बड़ा महत्व है। कटाई, सिलाई, झालर, गोट, पाइपिंग, बटन-पंक्ति आदि से बनने वाली तथा इसके सह-उपकरणों जैसे माला, ब्रोच, बो, टाई,. फूल, हैट आदि से उपलब्ध होने वाली आधारभूत अंलकरण-रेखाओं के प्रयोग से पहनने वाले का सम्पूर्ण व्यक्तित्व अत्यधिक प्रभावित होता है। रचना, रेखा और अलंकरण से एक ही लम्बाई की तथा समान आकृति की शरीर-रचना को कितने ही परिवर्तित रूपों में दिखाने का भ्रम उत्पन्न किया जा सकता है।
ऐसे परिधान जो प्राकृतिक समानुपात को सुन्दरता से दिखाने में सहायक होते हैं, सदैव पसंद किए जाते हैं और सदैव सुन्दर भी माने जाते हैं। परिधान-रचना की रेखाएँ ऐसी होनी चाहिए, जिनसे बना आकार सुन्दर भी हों और आकृति के अनुरूप भी हो।
(To Give Line Emphasis)
शरीर-रेखा के सौन्दर्य को उभारने के लिए परिधान में रंग, रचना, अलंकरण तथा बनाने की विधि का प्रयोग होता है। विपरीत रंग अथवा विपरीत संरचना की बेल्ट कटिरेखा की शोभा को बढ़ाने वाली होती है। इसी प्रकार अन्य अलंकरणों का भी शरीर-रेखाओं एवं उसके विभागों के सौन्दर्य को परिलक्षित करने वाली वस्तुओं के रूप में प्रयोग होना चाहिए। कवित्वमय एवं कल्पनापूर्ण परिधान संयोजन के लिए व्यक्ति में रचना-संबंधी कलात्मक परिपक्वता का होना बहुत आवश्यक है।
(Silhouette)
परिधान का यह पहलू फैशन के अनुरूप होना चाहिये। शरीर की बाह्य रेखा परिधान की रचना - रेखा, पृष्ठभूमि, अलंकरण तथा समस्त सज्जा के सह-उपकरणों आदि से प्रभावित होती है।
शरीर की बाह्य रेखा को सुन्दर दिखाने के लिए परिधान में हैट, जूते, फर, स्कर्ट, टाई आदि का प्रयोग किया जाता है, जो सम्पूर्ण परिधान में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाने की क्षमता रखते हैं।
बनावट-विधि, गले का आकार, कटिरेखा, हेम, मुड्ढे का आकार, आस्तीन की नाप तथा आस्तीन जोड़ने की विधि-सभी फैशन के साथ-साथ परिवर्तित होते रहते हैं। जो भी विधि अपनाई जाए तथा जिसका भी परिधान में प्रयोग हो, वह सूझ-बूझ के साथ प्रयोग की जानी चाहिए। इसके साथ ही सम्पूर्ण प्रभाव को संतोषजनक बनाने वाली तथा नयनों को सुखद लगने वाली भी होनी चाहिये।
अनुपात, संतुलन, लय, अनुरूपता, दबाव, संबल तथा आकर्षण केन्द्र आदि ऐसी विशेषतायें हैं, जिनसे कोई भी व्यक्ति अपनी पोशाक या पहनावे के औचित्य का मूल्यांकन कर सकता है, क्योंकि इनमें से किसी एक की भी उपेक्षा परिधान को नष्ट कर देने के लिए पर्याप्त है।
आपकी पोशाक तभी सफलतापूर्वक व्यवस्थित और आयोजित की हुई मानी जाएगी, जब उसमें उचित अनुपात हो, संतुलन विश्रामदायक हो, लय रोचक हो तथा वह आपके शरीर की विशेषताओं एवं गुणों को उभारने वाली हो। परिधान के आकर्षण केन्द्र बिन्दु की स्थिति ऐसी हो तथा अन्य सभी सह-उपकरण उसके चारों ओर ऐसे लयबद्ध घूमते से प्रतीत हों कि आपके सम्पूर्ण व्यक्तित्व के सौंदर्य को बढ़ा दे।
परिधान अथवा पहनावे में ऋतु के साथ रीति-रिवाजों के अनुरूप तथा त्योहारों और सामाजिक उत्सव एवं समारोहों आदि की अनुकूलता के अनुसार परिवर्तन आते रहते हैं। वस्त्रों का महत्व सभी के लिए सभी स्थानों पर और समयानुसार होता है, इस बात को सर्वसम्मति से स्वीकार किया गया है। विभिन्न प्रकार के पदों के लिए चाहे वे पत्रवाहक के हों या सेनाध्यक्ष, सभी की निश्चित पोशाक बना दी जाती है। शासन में परिवर्तन, पश्चिमी सभ्यता या किसी अन्य प्रकार की सभ्यता का प्रभाव वस्त्र-संरचना तथा परिधान-संयोजन पर परिलक्षित हो जाता है। वस्त्र-संबंधी नवीन खोजों से परिधान के प्रति धारणा बदलती जा रही है। कपास, लिनन अब पुराने माने जाने लगे हैं तो जेफरॉन, आरलॉन, डेकरॉन आदि नवीन।
शीशे और स्टेनलेस के वस्त्र तो और भी नए हैं तथा इनका अनोखा आकर्षण सभी को अपनी ओर आकर्षित करता है।
वस्त्र-रचना की शैली भी अपने देश एवं संस्कृति की सीमाओं में नहीं बँधना चाहती हैं। भारतीय परिधानों पर भी विदेशी परिधानों का प्रभाव 'मेक्सी' (Maxi), मिडी आदि के रूप में दिखाई दे रहा है। यह पश्चिम का ही प्रभाव है कि शरीर को ऊपर से नीचे तक ढीले कपड़ों से ढकने की अपेक्षा शरीर की बाह्य रेखाओं के सौन्दर्य को दिखाने वाले परिधानों के प्रति जनरुचि का झुकाव बढ़ता जा रहा है। भारतीय महिलाएँ साड़ी का ही अधिकतर प्रयोग करती हैं परन्तु प्रान्तीय परिधानों में कई ऐसे परिधान प्रयोग किए जाते हैं जिनका निर्माण काट-छाँट से होता है। बालिकाओं और युवतियों के परिधान प्रायः काट-छाँट एवं रचना-संबंधी अलंकरणों से बने होते हैं। आधुनिक युग के भारतीय परिधानों के आयोजन पर पश्चिमी परिधानों की स्पष्ट छाया सर्वत्र दिखाई पड़ती है, विशेषकर उन पर जो कटे-सिले होते हैं। पश्चिमी शैली के परिधानों में नमूनों, रेखाओं तथा रचना-संबंधी अलंकरणों का सुन्दर सम्मिश्रण रहता है। उनकी सह-सज्जा भी अनोखी रहती है। भारतीय और पश्चिमी परिधानों का मूलभूत अंतर यह है कि परिधान-शैली अभ्याकृष्टितापूर्ण (Gravitational) होती है जो कपड़े के स्वाभाविक फॉल (Natural fall) पर आधारित है जबकि पश्चिमी परिधान शरीराकारिक (Anatomic) होते हैं और शरीर की बाह्य रेखाओं के अनुरूप काट-छाँटकर सिलकर तैयार किए जाते हैं। परिधान संबंधी विचारा धाराएँ बदल रही हैं और अब भारतीय युवक और युवतियाँ साड़ी और धोती-कुरता की अपेक्षा जीन्स, शर्टवेस्टर, टाप, मेक्सी, कार्डीगन, ट्राउजर, शर्ट, जरकिन, सूट, शाटर्स, टाइट, स्कर्ट, स्लेक्स, फ्लेयर्स आदि को अपना रहे हैं। भारतीय परिधानों में पहले रचना संबंधी समस्याएँ नहीं थीं परन्तु वर्तमान में यहाँ की समस्याएँ भी ठीक वैसी ही हैं जैसी पश्चिमी परिधानों की हैं।
|
- प्रश्न- डिजाइन के तत्वों से आप क्या समझते हैं? ड्रेस डिजाइनिंग में इसका महत्व बताएँ।
- प्रश्न- डिजाइन के सिद्धान्तों से क्या तात्पर्य है? गारमेण्ट निर्माण में ये कैसे सहायक हैं? चित्रों सहित समझाइए।
- प्रश्न- परिधान को डिजाइन करते समय डिजाइन के सिद्धान्तों को किस प्रकार प्रयोग में लाना चाहिए? उदाहरण देकर समझाइए।
- प्रश्न- "वस्त्र तथा वस्त्र-विज्ञान के अध्ययन का दैनिक जीवन में महत्व" इस विषय पर एक लघु निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- वस्त्रों का मानव जीवन में क्या महत्व है? इसके सामाजिक एवं सांस्कृतिक महत्व की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- गृहोपयोगी वस्त्र कौन-कौन से हैं? सभी का विवरण दीजिए।
- प्रश्न- अच्छे डिजायन की विशेषताएँ क्या हैं ?
- प्रश्न- डिजाइन का अर्थ बताते हुए संरचनात्मक, सजावटी और सार डिजाइन का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- डिजाइन के तत्व बताइए।
- प्रश्न- डिजाइन के सिद्धान्त बताइए।
- प्रश्न- अनुपात से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- आकर्षण का केन्द्र पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- अनुरूपता से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- परिधान कला में संतुलन क्या हैं?
- प्रश्न- संरचनात्मक और सजावटी डिजाइन में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- फैशन क्या है? इसकी प्रकृति या विशेषताएँ स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- फैशन के प्रेरक एवं बाधक तत्वों पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- फैशन चक्र से आप क्या समझते हैं? फैशन के सिद्धान्त समझाइये।
- प्रश्न- परिधान सम्बन्धी निर्णयों को कौन-कौन से कारक प्रभावित करते हैं?
- प्रश्न- फैशन के परिप्रेक्ष्य में कला के सिद्धान्तों की चर्चा कीजिए।
- प्रश्न- ट्रेंड और स्टाइल को परिभाषित कीजिए।
- प्रश्न- फैशन शब्दावली को विस्तृत रूप में वर्णित कीजिए।
- प्रश्न- फैशन का अर्थ, विशेषताएँ तथा रीति-रिवाजों के विपरीत आधुनिक समाज में भूमिका बताइए।
- प्रश्न- फैशन अपनाने के सिद्धान्त बताइए।
- प्रश्न- फैशन को प्रभावित करने वाले कारक कौन-कौन से हैं ?
- प्रश्न- वस्त्रों के चयन को प्रभावित करने वाला कारक फैशन भी है। स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- प्रोत / सतही प्रभाव का फैशन डिजाइनिंग में क्या महत्व है ?
- प्रश्न- फैशन साइकिल क्या है ?
- प्रश्न- फैड और क्लासिक को परिभाषित कीजिए।
- प्रश्न- "भारत में सुन्दर वस्त्रों का निर्माण प्राचीनकाल से होता रहा है। " विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- भारत के परम्परागत वस्त्रों का उनकी कला तथा स्थानों के संदर्भ में वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- मलमल किस प्रकार का वस्त्र है? इसके इतिहास तथा बुनाई प्रक्रिया को समझाइए।
- प्रश्न- चन्देरी साड़ी का इतिहास व इसको बनाने की तकनीक बताइए।
- प्रश्न- कश्मीरी शॉल की क्या विशेषताएँ हैं? इसको बनाने की तकनीक का वर्णन कीजिए।.
- प्रश्न- कश्मीरी शॉल के विभिन्न प्रकार बताइए। इनका क्या उपयोग है?
- प्रश्न- हैदराबाद, बनारस और गुजरात के ब्रोकेड वस्त्रों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- ब्रोकेड के अन्तर्गत 'बनारसी साड़ी' पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- बाँधनी (टाई एण्ड डाई) का इतिहास, महत्व बताइए।
- प्रश्न- बाँधनी के प्रमुख प्रकारों को बताइए।
- प्रश्न- टाई एण्ड डाई को विस्तार से समझाइए।
- प्रश्न- गुजरात के प्रसिद्ध 'पटोला' वस्त्र पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- राजस्थान के परम्परागत वस्त्रों और कढ़ाइयों को विस्तार से समझाइये।
- प्रश्न- पोचमपल्ली पर संक्षिप्त प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- पटोला वस्त्र से आप क्या समझते हैं ?
- प्रश्न- औरंगाबाद के ब्रोकेड वस्त्रों पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- बांधनी से आप क्या समझते हैं ?
- प्रश्न- ढाका की साड़ियों के विषय में आप क्या जानते हैं?
- प्रश्न- चंदेरी की साड़ियाँ क्यों प्रसिद्ध हैं?
- प्रश्न- उड़ीसा के बंधास वस्त्र के बारे में लिखिए।
- प्रश्न- ढाका की मलमल पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- उड़ीसा के इकत वस्त्र पर टिप्पणी लिखें।
- प्रश्न- भारत में वस्त्रों की भारतीय पारंपरिक या मुद्रित वस्त्र छपाई का विस्तृत वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारत के पारम्परिक चित्रित वस्त्रों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- गर्म एवं ठण्डे रंग समझाइए।
- प्रश्न- प्रांग रंग चक्र को समझाइए।
- प्रश्न- परिधानों में बल उत्पन्न करने की विधियाँ लिखिए।
- प्रश्न- भारत की परम्परागत कढ़ाई कला के इतिहास पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- कढ़ाई कला के लिए प्रसिद्ध नगरों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सिंध, कच्छ, काठियावाड़ और उत्तर प्रदेश की चिकन कढ़ाई पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- कर्नाटक की 'कसूती' कढ़ाई पर विस्तार से प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- पंजाब की फुलकारी कशीदाकारी एवं बाग पर संक्षिप्त लेख लिखिए।
- प्रश्न- टिप्पणी लिखिए: (i) बंगाल की कांथा कढ़ाई (ii) कश्मीर की कशीदाकारी।
- प्रश्न- कश्मीर की कशीदाकारी के अन्तर्गत शॉल, ढाका की मलमल व साड़ी और चंदेरी की साड़ी पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- कच्छ, काठियावाड़ की कढ़ाई की क्या-क्या विशेषताएँ हैं? समझाइए।
- प्रश्न- "मणिपुर का कशीदा" पर संक्षिप्त लेख लिखिए।
- प्रश्न- हिमाचल प्रदेश की चम्बा कढ़ाई का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारतवर्ष की प्रसिद्ध परम्परागत कढ़ाइयाँ कौन-सी हैं?
- प्रश्न- सुजानी कढ़ाई के इतिहास पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- बिहार की खटवा कढ़ाई पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- फुलकारी किसे कहते हैं?
- प्रश्न- शीशेदार फुलकारी क्या हैं?
- प्रश्न- कांथा कढ़ाई के विषय में आप क्या जानते हैं?
- प्रश्न- कढ़ाई में प्रयुक्त होने वाले टाँकों का महत्व लिखिए।
- प्रश्न- कढ़ाई हेतु ध्यान रखने योग्य पाँच तथ्य लिखिए।
- प्रश्न- उत्तर प्रदेश की चिकन कढ़ाई का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- जरदोजी पर टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- बिहार की सुजानी कढ़ाई पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- सुजानी पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- खटवा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।