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एम ए सेमेस्टर-1 - गृह विज्ञान - द्वितीय प्रश्नपत्र - फैशन डिजाइन एवं परम्परागत वस्त्र

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :172
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2694
आईएसबीएन :0

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एम ए सेमेस्टर-1 - गृह विज्ञान - द्वितीय प्रश्नपत्र - फैशन डिजाइन एवं परम्परागत वस्त्र

प्रश्न- डिजाइन के सिद्धान्तों से क्या तात्पर्य है? गारमेण्ट निर्माण में ये कैसे सहायक हैं? चित्रों सहित समझाइए।

अथवा
डिजाइन से क्या तात्पर्य है? डिजाइन के प्रकार समझाइये।
अथवा
परिधान निर्माण में कौन-कौन से सामान्य सिद्धान्त होते हैं? उनका विस्तृत वर्णन उपयुक्त चित्रों की सहायता से कीजिए।
अथवा
डिजाइन के प्रकार पर एक विस्तृत जानकारी दीजिए।
अथवा
परिधान निर्माण में प्रयोग में आने वाले कला के सिद्धान्तों को चित्रों की सहायता से समझाइये।
सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
परिधानों में अनुपात के महत्व को समझाइये। सन्तुलन के प्रकार समझाइये।

उत्तर -

नमूने (Design) की परिभाषा

गोल्डस्टेन और गोल्डस्टेन के अनुसार- "नमूने को रेखाओं, आकारों, रंग और पोत की व्यवस्था के रूप में परिभाषित कर सकते हैं।"

एक अच्छे नमूने की विशेषता के बारे में गोल्डस्टेन एवं गोल्डस्टेन का कथन है- “एक उत्तम नमूने में उपयोग में लाये गये पदार्थ की क्रमबद्ध व्यवस्था दृष्टिगत होती. है, और साथ ही तैयार वस्तु में सुन्दरता की उत्पत्ति होती है।"

इस प्रकार हम कह सकते हैं कि नमूना पदार्थों का चयन और अवस्था है जिसके दो उद्देश्य होते हैं-

(1) क्रमबद्धता (Order)
(2) सुन्दरता (Beauty)

नमूने दो प्रकार के होते हैं-

(1) संरचनात्मक (Structural)
(2) सजावटी (Decorative)।

संरचनात्मक नमूना वह नमूना होता है जो कि किसी वस्तु के आकार, स्वरूप, रंग और पोत के द्वारा बनाया जाता है चाहे वह स्वयं वस्तु में बनाया जाए, या स्थान में या किसी कागज पर उस वस्तु की आकृति के द्वारा बनाया जाए। सजावटी नमूना संरचनात्मक नमूने की सतह की सुन्दरता होती है।

कोई भी रेखा, रंग या पदार्थ का उपयोग आदि संरचनात्मक नमूने की सुन्दरता में वृद्धि करने के लिए किया जाता है तो वह सजावटी नमूना होता है। संरचनात्मक नमूना सजावटी नमूने की अपेक्षा अधिक महत्वपूर्ण होता है क्योंकि यह हर वस्तु के लिए आवश्यक होता है जबकि सजावट किसी नमूने के लिए 'विलासिता' (Luxury) होती है।

संरचनात्मक नमूने की चार आवश्यकताएँ होती हैं-

(1) सुन्दरता प्राप्त करने हेतु यह उद्देश्य के अनुरूप होनी चाहिये।
(2) सादी (Simple) होनी चाहिये।
(3) उचित अनुपात की होनी चाहिये।
(4) पदार्थ (Material)के उपयुक्त होनी चाहिये और बनाने की विधि भी पदार्थ के उपयुक्त होनी चाहिये।

सजावटी नमूने की निम्नलिखित आवश्यकताएँ होती हैं-

(1) संजावट का उपयोग उपयुक्त (moderation)रूप में करना चाहिये।
(2) सजावट को संरचनात्मक बिन्दु (Structural point) पर बनाना चाहिये और यह वस्तु के आंकार को मजबूती प्रदान करता हो।
(3) पर्याप्त पृष्ठभूमि हो ताकि नमूने के सादेपन (simplicity) और प्रतिष्ठा (dignity) को प्रभाव मिल सके।
(4) सतही नमूना इस प्रकार का हो कि वह सतह को अपने आप आच्छादित कर लें।
(5) पृष्ठभूमि का आकार इतनी सावधानीपूर्वक अध्ययन करना चाहिये और इस प्रकार सुन्दर होना चाहिये कि उस पर बनाये गये नमूने के प्रभाव में वृद्धि हो सके।
(6) नमूने की सजावट पदार्थ के उपयुक्त होनी चाहिये, साथ ही उस वस्तु द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवा के उपयुक्त होनी चाहिये।

कोई भी नमूनेकार (Designer) नमूना बनाते समय पारिवारिक नमूने को उसी रूप में नहीं लेता है, वरन् उसमें अपने भाव (theme) के अनुसार निम्नलिखित बातें ध्यान में रखकर परिवर्तन करता है-

(1) वस्तु का आकार (The shape of the object)
(2) वह उद्देश्य जिसके लिए वस्तु का उपयोग किया जाना है (The purpose for which the object will be used)
(3) उसके पदार्थ की सीमाएँ (The limitations of his material)
(4) उसके द्वारा उपयोग में लाये जाने वाले यन्त्र और प्रक्रियाएँ (The tools and processes he must use)!

उत्तम सजावटी नमूने का परीक्षण
(Judgement of Good Decorative Design)

कोई व्यक्ति यदि किसी वस्तु (object) का बुद्धिमत्तापूर्वक चयन करना चाहता है तो उसे नमूनेकार (Designer) के समान संरचनात्मक और सजावटी नमूने का अध्ययन करना चाहिये।

कुछ वस्तुएँ केवल सुन्दरता के लिए बनाई जाती हैं और नमूनेकार अपने मस्तिष्क में 'उसके व्यावहारिक उपयोग पर ध्यान नहीं देता है। जैसे कोई चित्र (Painting) यदि सुन्दर होता है तो उसे गैलरी (Gallary) में टाँग दिया जाता है, और एक सुन्दरता के गुणों से युक्त वस्तु के रूप में पसन्द किया जाता है, किन्तु इसी चित्र को यदि एक घर के लिए चुनाव किया जाता है तो कमरे के भाव के साथ एकरूपता (Harmony) पर भी विचार किया जाता है।

परिधान में संरचनात्मक और सजावटी नमूने

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राजघराने के समय की यह ड्रेस संरचनात्मक और सजावटी नमूने को दर्शाती है जो कि उस समय की अभिरुचि का सूचक है। यह ड्रेस सादी (simple), आरामदायक  (comfortable) और आकर्षक (attractive) है—जो कि सभी अच्छे नमूने के लिए आवश्यक है।

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चित्र A एक अच्छे संरचनात्मक और सजावटी नमूने analy की सभी आवश्यकताओं को परिपूर्ण कर रहा है।

चित्र B एक खराब नमूना है, क्योंकि इसमें लगाए गए एप्लिक (Appliqued), रूमाल के आकार के अनुरूप नहीं हैं, अत: चित्र A के समान सुन्दरता का प्रभाव प्रस्तुत करने की अपेक्षा इसमें क्रमबद्धता (disorderly) और विखराबपन (Scattered) है।

जब हम प्रत्येक नमूने के सिद्धान्त का अध्ययन करते हैं तो हमेशा यह महत्वपूर्ण बात ध्यान रखना चाहिये कि हमें इसके द्वारा सुन्दरता के लक्ष्य को प्राप्त करने की कोशिश करनी- चाहिये। यह सिद्धान्त हमारे ज्ञान में संग्रहित होते हैं और अनुभव में वृद्धि करते हैं।

डिजाइन (नमूने) के सिद्धान्त निम्नलिखित हैं-

(1) अनुरूपता (Harmony)
(2) अनुपात (Proportion),
(3) सन्तुलन (Balance),
(4) लय (Rhythm), desig
(5) बल (Emphasis) le

1. अनुरूपता)
  (Harmony)

परिभाषा किसी भी कार्य की वस्तु के लिए अनुरूपता आधारभूत आवश्यकता होती है। ऐसी सभी वस्तु के लिए जिनमें आकार होता है और साथ ही उपयोग पर भी ध्यान दिया जाता है। यह सभी सिद्धान्तों में महत्वपूर्ण है।

गोल्डस्टेन और गोल्डस्टेन के अनुसार, "अनुरूपता कला का एक सिद्धान्त है जो कि विचारों और एकरूपता के चयन और व्यवस्था के द्वारा एकता का प्रभाव उत्पन्न करता है।" कितनी अनुरूपता होनी चाहिए और कितनी विभिन्नता या विपरीतता उपयुक्त है या प्रश्न हर स्थिति में विचार करना आवश्यक होता है। अनुरूपता के सिद्धान्त को 5 दृष्टियों (aspect) से देखा जाता है-

(1) रेखा और आकार (Line and Shape),
(2) नाप (Size),
(3) पोत (Texture),
(4) विचार (Idea),
(5) रंग (Colour)।

परिधान की सजावट में आकृति की अनुरूपता (Shape harmony in the decoration of a dress) – परिधान की संरचनात्मक डिजाइन निर्धारित करने के पश्चात् यह निर्धारित किया जाता है कि यदि सजावटी डिजाइन बनानी है तो कहाँ बनाई जाये। चूँकि अच्छी सजावटी डिजाइन हमेशा संरचना के साथ एकरूपता होती है अत: सजावट का चुनाव संरचनात्मक रेखा के अनुसार ही होना चाहिए। चित्र A उसका एक अच्छा उदाहरण है जबकि B बहुत बेकार उदाहरण है। डायमण्ड आकार की डिजाइन ड्रेस की संरचना के साथ अनुरूपता प्रस्तुत नहीं करती हैं और उन्हें उस स्थान पर बनाया गया है जहाँ उसका कोई सम्बन्ध नहीं है। डायमण्ड के आकार की डिजाइन को उपयोग करना बहुत कठिन है क्योंकि यह बहुत थोड़ी संरचना के साथ मेल खाती है। इसको तब सफलतापूर्वक उपयोग में लाया जा सकता है जब इसे रेखाओं के साथ इस प्रकार संयुक्त किया जाये कि दृष्टि इसके साथ संरचना पर भी घूमे अथवा इसे इतने पास-पास उपयोग में लाया जाये कि वह घनापनं प्रस्तुत करे।

पोत की अनुरूपता (Harmony of Textures) – अधिकांश व्यक्ति सजावट को देखकर केवल यह नहीं कहते हैं कि - "यह कैसा दिखाई दे रहा है?" वरन् यह भी कहते हैं कि, "यह कैसा अनुभव (Feel) हो रहा है” पोत का अर्थ होता है कि सतह पर उँगलियों का स्पर्श करने में कैसा अनुभव होता है किन्तु पोत की संवेदना केवल आँखों से देखने पर होती है। एक खराब पोत संयोग का उदाहरण है-बेंत के फर्नीचर पर चमकदार रेयॉन के वस्त्र द्वारा गद्देदार परिसज्जा देना। ईंट के साथ पीतल लोहे या चीनी का संयोग अच्छा होता है किन्तु नाजुक काँच या अन्य बारीक पोत उपयुक्त नहीं होते।

2. अनुपात
(Proportion)

ग्रीक का विषम भुजायुक्त चौकोर आयत (Greek oblong) - प्राचीन ग्रीक व्यक्ति एक ऐसी विषम भुजायुक्त चौकोर आयत का उपयोग करते थे जिसके ऊपर प्रत्येक वस्तु अच्छी दिखाई देती थी। इस विषम भुजा आयत को वे “स्वर्ण विषम भुजा आयत (the golden oblong) कहते थे और यह स्थान संयोजन के लिए एक मान्यता प्राप्त स्तर (recognized standard) है। इस ग्रीक आयत में छोटी साइड पर करीब-करीब 2 इकाई (units) और लम्बी साइड पर 3 इकाई (units) होती हैं। (चित्र)

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चित्र-ग्रीक का विषम भुजायुक्त चौकोर आयत जो कि उत्तम अनुपात का स्तर है। उसकी साइड का सम्बन्ध 2:3 है।

यह आयत (Square) की अपेक्षा अधिक सुन्दर दिखाई देता है क्योंकि आयत की बराबर साइड उसे अरुचिप्रद बना देती है। इसी प्रकार बहुत लम्बे या चौड़े विषम भुजा आयत की अपेक्षा भी ग्रीक विषम भुजा आयत सुन्दर दिखाई देता है क्योंकि इनमें लम्बाई और चौड़ाई में कोई समानता नहीं होती।

स्थान को दो रुचिप्रद भागों में विभाजित करना (Divide a space into two interesting parts)— कई बार यह समस्या होती है कि एक स्थान को दो या अधिक भाग में किस प्रकार विभाजित करें। जैसे नाम को कार्ड पर लिखने के लिए, दीवारों के स्थान को विभाजित करने के लिए या परिधान के विभिन्न भागों को योजनाबद्ध करने के लिए। यदि किसी स्थान को दो भागों में विभाजित करना हो तो यह सबसे सन्तोषप्रद परिणाम होता है कि विभाजित की जाने वाली रेखा या वस्तु को ऐसे बिन्दु से विभाजित किया जाए जिसमें एक भाग से दूसरे भाग में, एक ओर करीब 1/2 से थोड़ा अधिक हो और दूसरी ओर 2/3 से थोड़ा कम हो (देखें चित्र) यह बिन्दु बिल्कुल बराबर होना आवश्यक नहीं है यह केवल अनुमानित होता है।

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इस चित्र में A के समीप सबसे रुचिप्रद बिन्दु है जहाँ कि किसी महत्वपूर्ण वस्तु को रखा जा सकता है या स्थान का विभाजन किया जा सकता है।

स्थान को दो से अधिक रुचिप्रद भागों में विभाजित करना (Dividing a space into more than two interesting parts) - स्थान को दो भागों में विभाजित करते समय तीन सम्भावनाएँ हो सकती हैं-

(1) सभी स्थानों में विभिन्नता रहे। जैसे चित्र A में या चित्र B में तश्तरी में दिखाया गया है। इनमें सभी धारियाँ और धारियों के बीच के स्थान में भिन्नता है। यह बहुत उच्च कोटि की विभिन्नता प्रस्तुत करता है। इस प्रकार का स्थान विभाजन छोटे क्षेत्र के लिए बहुत उपयुक्त होता है किन्तु इसमें भ्रम और एकरूपता के अभाव की भी सम्भावना होती है, तब जब इस प्रकार के कई विभाजन एक साथ देखे जायें और उनकी तुलना की जाए।

(2) सभी स्थानों को एक समान विभाजित करना। चित्र B में और चित्र में सभी धारियाँ समान चौड़ाई की हैं और धारियों के बीच के स्थान की चौड़ाई में धारियों की चौड़ाई के समान है। इस प्रकार के बहुत अधिक दोहराव से नीरसता आती है। यदि इस प्रकार के विभाजन का उपयोग किया जाता है तो इसमें रंग या पोत से विभिन्नता उत्पन्न करनी चाहिए जिससे वह स्थान रुचिप्रद हो सके।

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(3) स्थान के कुछ भाग में भिन्नता उत्पन्न करना और कुछ में दोहराव। चित्र के C और D में धारियों को थोड़े अन्तर से दोहराया गया है। इसमें धारियों की चौड़ाई बराबर है किन्तु उनके बीच के स्थान में अन्तर है।

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उपरोक्त उदाहरणों को परिधान में भी देखा जा सकता है। चित्र में A और C रुचिप्रद विभाजन हैं क्योंकि उनके विभाजन में थोड़ी विभिन्नता है जबकि B में समान विभाजन होने से रुचि का अभाव है।

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यह सत्य है कि यदि पृथक इकाई या समूह में कुछ वस्तुएँ इकाई के रूप में दिखाई जाती हैं तो उन्हें इकाई से अधिक चौड़े स्थान में विभाजित कर पृथक करना चाहिए किन्तु यदि वस्तु को समूह के रूप में दिखाना है तो उनके मध्य का स्थान वस्तु के आकार से छोटा होना चाहिए।

यदि इस समूह को उसके पास वाले समूह से सम्बन्धित करना है तो दो समूह के बीच का स्थान समूह द्वारा उपयोग में लाये गये स्थान से छोटा होना चाहिए। यह योजना चित्र में दिखाई गई है।

इस चित्र में एक योजना दिखाई गई है जिसके अनुसार वस्तुओं को व्यवस्थित करने से उसका अच्छा समूह बनता है। चित्र में दिखाए गए प्रत्येक ब्लॉक या तो चित्र, बटन या वस्त्र का कोई नमूना हो सकते हैं अर्थात् ऐसी कोई भी वस्तु जिन्हें हम समूह में व्यवस्थित करना चाहते हैं। प्रत्येक समूह एक इकाई के रूप में दृष्टिगत होता है क्योंकि इसमें वस्तुओं के बीच के स्थान की दूरी वस्तु चौड़ाई से कम है। दो समूहों को आपस में एक साथ दृष्टिगत किया जा सकता है क्योंकि इन दो समूहों के बीच की दूरी एक समूह के कुल क्षेत्र से कम है। यह ध्यान देने योग्य बात है कि सभी स्थान विभाजन ग्रीक अनुपात. के अनुसार है।

असमान संख्या (Odd numbers) समान संख्या (Even numbers) की अपेक्षा अधिक रुचिप्रद दिखाई देती हैं। तीन वस्तुओं के तीन समूह या दो वस्तुओं के तीन समूहअधिक सन्तोषप्रद व्यवस्थित दिखाई देंगे अपेक्षाकृत दो और दो के या चार से या अन्य किसी समान संख्या के संयोग के।

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चित्र में एक कॉलर में टकस (Tucks) का 2 और 3 का संयोग दिखाया गया है जो कि रुचिप्रद दिखाई देता है।

 

आकार में परिवर्तन उत्पन्न करना
(Producing a Change of Appear- 'ance)

रेखाओं द्वारा अनुपात में सुधार लाना (Lines which apparntly alter proportion) - चित्र में दो आयताकार एक ही आकार के हैं। एक में क्षैतिज रेखा खींची गयी है जबकि दूसरे में लम्बवत् रेखा। जब आँखें आयताकार के बीच से गुजरती हैं तो यह आयताकार संकरा और चौड़ा दिखाई देता है जबकि जब आयताकार के ऊपर और नीचे आँखें गुजरती हैं तो ऊँचाई में वृद्धि और कमी का अभाव होता है।

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चित्र में दो समान आकार के आयताकार को क्षैतिज रेखा से विभाजित करने पर चौड़ा और कम ऊँचा दिखाई देता है जबकि लम्बवत् रेखा में विभाजित करने पर संकरा और लम्बा दिखाई देता है।

रेखाओं का व्यक्ति की आकृति पर प्रभाव
(The effect of lines upon the appearance of the individuals)

चित्र में दो महिलाएँ समान ऊँचाई की हैं। ड्रेस B की लम्बवत् रेखाओं के कारण महिला लम्बी और अधिक दुबली दिख रही है जबकि ड्रेस A में क्षैतिज गतियों के कारण ऊँचाई में कमी आ गयी है और चौड़ाई में वृद्धि हो गई है।

कुछ ऐसे सुझाव हैं जिनमें रेखाओं के विभिन्न उपयोग द्वारा आकृति में सुधार किया जा सकता है। लम्बे पतले व्यक्ति को दबाव रेखा (Dominent line) का चुनाव करना चाहिए जिसमें आँखे व्यक्ति के बीच में घूमें क्योंकि वक्र रेखा और क्षैतिज रेखा चौड़ाई में वृद्धि करती हैं। लम्बे पतले व्यक्ति चौड़े पेड (Pad) वाले कन्धे की ड्रेस का चुनाव करता है, चौड़े कॉलर, ऐसे कोट जिसमें गहरे योक हों और कमर पर चोड़े वेल्ट हों, चौड़े और पूरे शर्ट, हल्के रंग के कोट जिसमें गहरे शर्ट हों-इस प्रकार की ड्रेस का चुनाव करता है। ऐसी महिला जो छोटी दिखना चाहती है उसे विपरीत रंग की जैकेट वाले सूट, ड्रेस, विपरीत ब्लाउज वाली ड्रेस का चुनाव करना चाहिए।

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माप (Scale)—अनुपात के सिद्धान्त का तीसरा पक्ष है- 'माप'। बुद्धिमान आलोचक कहते हैं- "यह भवन बहुत उत्तम है। इसके सभी भाग उपयुक्त माप के हैं।" या "यह टेबल कितने अच्छे माप की है।" इस रूप में माप का अर्थ है कि- (1) सभी तत्वों का आकार, जो कि रचना का निर्माण करते हैं, एक रूप हो, बनावट के साथ उनका आकर्षक सम्बन्ध हो, (2) संरचना का आकार उत्तम अनुपात का हो व दूसरी वस्तुएँ जो कि उसके साथ संयोग 'की गईं हों वह भी उचित अनुपात की हों।

माप को देखने के लिए न केवल सम्पूर्ण वस्तु का आकार देखा जाता है वरन् वस्तु के प्रत्येक भाग का आपस में सम्बन्ध देखा जाता है और प्रत्येक भाग का पूर्ण वस्तु के साथ सम्बन्ध देखा जाता है। दो एक समान आयतन वाली कुर्सी भी माप में भिन्न दिख सकती हैं यदि एक के हत्थे और टाँग बहुत भारी हों और दूसरी कुर्सी के बहुत हल्के।

3. सन्तुलन
(Balance)

परिभाषा - गोल्डस्टेन एवं गोल्डस्टेन के अनुसार, “संक्षेप में सन्तुलन विश्राम या स्थिरता है। यह विश्रामदायक प्रभाव आकार और रंगों को केन्द्र के आस-पास इस प्रकार समूहबद्ध करके प्राप्त किया जा सकता है जिसके केन्द्र के दोनों ओर बराबर आकर्षण रहे।”

वस्तुओं को सन्तुलित करना (How to Balance Objects) - सन्तुलन उसी प्रकार कार्य करता है जिस प्रकार Seesaw। यदि समान भार होगा तो वह केन्द्र के दोनों ओर समान दूरी पर होगा। यदि भार असमान होगा तो भारी वजन केन्द्र के पास आ जाएगा और हल्का भार केन्द्र से दूर होगा।

सन्तुलन के प्रकार - सन्तुलन दो प्रकार का होता है

(1) औपचारिक
(2) अनौपचारिक सन्तुलन (Formal and Informal Balance) 

यह देखा गया है कि स्थान का केन्द्र ऐसा बिन्दु होता है जिस पर सारा आकर्षण केन्द्रित होता है। यदि वस्तुएँ एक समान हों या आकार में एक समान दबाव डालने वाली हों तो यह चेतना को समान मात्रा में प्रभावित करती हैं और इसलिए केन्द्र के दोनों ओर समान भार वाली होती हैं। इस प्रकार का सन्तुलन औपचारिक सन्तुलन कहलाता है।

यदि वस्तुएँ एक समान मात्रा में आकर्षित नहीं करतीं और केन्द्र से भिन्न-भिन्न दूरी पर व्यवस्थित की जाती हैं तो इस प्रकार का सन्तुलन अनौपचारिक सन्तुलन कहलाता है। इसे असमितीय सन्तुलन (Asymmetrical balance) भी कहा जाता है।

अनौपचारिक सन्तुलन औपचारिक सन्तुलन की अपेक्षा अधिक कठिन होता है और भिन्नता प्रदान करने हेतु अनेक अवसर प्रदान करता है। इसकी सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि आँखों को इस प्रकार प्रशिक्षण दिया जाये ताकि वह विश्राम की अनुभूति दे।

4. लय
(Rhythm)

गोल्डस्टेन एवं गोल्डस्टेन के अनुसार - “यद्यपि लय को गति के रूप में परिभाषित किया जाता है, किन्तु यह माना जाता है कि डिजाइन में सभी गतियाँ लयपूर्ण नहीं होती। कभी-कभी गति अविचलित करने वाली होती है। कला में लय का अर्थ है-रेखा, स्वरूप बा रंग द्वारा निर्मित ऐसी व्यवस्था जिस पर आँखें यात्रा करती हैं। लय गति से सम्बन्धित होती हैं।

एक बिल्कुल कोरे कागज पर कोई गति नहीं होगी, यह एक विश्राम का स्थान होगा और आँखें कहीं भी घूमेगी, किन्तु इस स्थान पर यदि कोई रेखा खींच दी जाये या वस्तु रख दी जाये तो आँखें उस वस्तु के आस-पास गति करेंगी।

लय को प्राप्त करना (How to gain Rhythm) - तीन विधियों द्वारा लय प्राप्त की जा सकती है-

(1) आकारों के दोहराव द्वारा (Through the repetition of shapes)
(2) माप की उत्तरोत्तर वृद्धि द्वारा (Through a progression of sizes)
(3) आसान सम्बन्ध द्वारा या लगातार रेखीय गति द्वारा (Through and easily connected, or a continuous line movement)

5. बल
(Emphasis)

यदि कोई व्यवस्था पूर्णतः सन्तुलित है, उसका अनुपात उत्तम है, और उसके प्रत्येक भाग में पूर्णतः एकरूपता है, वह भी यह नीरस और अरुचिप्रद दिखाई दे सकता है। इसमें इतनी विशेषताएँ होने पर भी आँखे उसके ऊपर नहीं ठहरेंगी क्योंकि उसमें ऐसा कोई बिन्दु नहीं है जो आँखों को केन्द्रित कर सके। दूसरे शब्दों में, इस प्रकार की व्यवस्था में बल का अभाव है, और इस अभाव के कारण यह आकर्षित करने में असमर्थ है और किसी भी प्रकार की अप्रसन्नता प्रदान करने में असमर्थ है।

गोल्डस्टेन एवं गोल्डस्टेन के अनुसार, “बल कला का वह सिद्धान्त है जिसमें आँखें सर्वप्रथम किसी व्यवस्था के सर्वाधिक महत्वपूर्ण भाग पर दृष्टिपात करती हैं, और इसके पश्चात् महत्व के क्रमानुसार अन्य वस्तुओं पर दृष्टिपात करती हैं।"

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- डिजाइन के तत्वों से आप क्या समझते हैं? ड्रेस डिजाइनिंग में इसका महत्व बताएँ।
  2. प्रश्न- डिजाइन के सिद्धान्तों से क्या तात्पर्य है? गारमेण्ट निर्माण में ये कैसे सहायक हैं? चित्रों सहित समझाइए।
  3. प्रश्न- परिधान को डिजाइन करते समय डिजाइन के सिद्धान्तों को किस प्रकार प्रयोग में लाना चाहिए? उदाहरण देकर समझाइए।
  4. प्रश्न- "वस्त्र तथा वस्त्र-विज्ञान के अध्ययन का दैनिक जीवन में महत्व" इस विषय पर एक लघु निबन्ध लिखिए।
  5. प्रश्न- वस्त्रों का मानव जीवन में क्या महत्व है? इसके सामाजिक एवं सांस्कृतिक महत्व की विवेचना कीजिए।
  6. प्रश्न- गृहोपयोगी वस्त्र कौन-कौन से हैं? सभी का विवरण दीजिए।
  7. प्रश्न- अच्छे डिजायन की विशेषताएँ क्या हैं ?
  8. प्रश्न- डिजाइन का अर्थ बताते हुए संरचनात्मक, सजावटी और सार डिजाइन का उल्लेख कीजिए।
  9. प्रश्न- डिजाइन के तत्व बताइए।
  10. प्रश्न- डिजाइन के सिद्धान्त बताइए।
  11. प्रश्न- अनुपात से आप क्या समझते हैं?
  12. प्रश्न- आकर्षण का केन्द्र पर टिप्पणी लिखिए।
  13. प्रश्न- अनुरूपता से आप क्या समझते हैं?
  14. प्रश्न- परिधान कला में संतुलन क्या हैं?
  15. प्रश्न- संरचनात्मक और सजावटी डिजाइन में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  16. प्रश्न- फैशन क्या है? इसकी प्रकृति या विशेषताएँ स्पष्ट कीजिए।
  17. प्रश्न- फैशन के प्रेरक एवं बाधक तत्वों पर प्रकाश डालिये।
  18. प्रश्न- फैशन चक्र से आप क्या समझते हैं? फैशन के सिद्धान्त समझाइये।
  19. प्रश्न- परिधान सम्बन्धी निर्णयों को कौन-कौन से कारक प्रभावित करते हैं?
  20. प्रश्न- फैशन के परिप्रेक्ष्य में कला के सिद्धान्तों की चर्चा कीजिए।
  21. प्रश्न- ट्रेंड और स्टाइल को परिभाषित कीजिए।
  22. प्रश्न- फैशन शब्दावली को विस्तृत रूप में वर्णित कीजिए।
  23. प्रश्न- फैशन का अर्थ, विशेषताएँ तथा रीति-रिवाजों के विपरीत आधुनिक समाज में भूमिका बताइए।
  24. प्रश्न- फैशन अपनाने के सिद्धान्त बताइए।
  25. प्रश्न- फैशन को प्रभावित करने वाले कारक कौन-कौन से हैं ?
  26. प्रश्न- वस्त्रों के चयन को प्रभावित करने वाला कारक फैशन भी है। स्पष्ट कीजिए।
  27. प्रश्न- प्रोत / सतही प्रभाव का फैशन डिजाइनिंग में क्या महत्व है ?
  28. प्रश्न- फैशन साइकिल क्या है ?
  29. प्रश्न- फैड और क्लासिक को परिभाषित कीजिए।
  30. प्रश्न- "भारत में सुन्दर वस्त्रों का निर्माण प्राचीनकाल से होता रहा है। " विवेचना कीजिए।
  31. प्रश्न- भारत के परम्परागत वस्त्रों का उनकी कला तथा स्थानों के संदर्भ में वर्णन कीजिए।
  32. प्रश्न- मलमल किस प्रकार का वस्त्र है? इसके इतिहास तथा बुनाई प्रक्रिया को समझाइए।
  33. प्रश्न- चन्देरी साड़ी का इतिहास व इसको बनाने की तकनीक बताइए।
  34. प्रश्न- कश्मीरी शॉल की क्या विशेषताएँ हैं? इसको बनाने की तकनीक का वर्णन कीजिए।.
  35. प्रश्न- कश्मीरी शॉल के विभिन्न प्रकार बताइए। इनका क्या उपयोग है?
  36. प्रश्न- हैदराबाद, बनारस और गुजरात के ब्रोकेड वस्त्रों की विवेचना कीजिए।
  37. प्रश्न- ब्रोकेड के अन्तर्गत 'बनारसी साड़ी' पर प्रकाश डालिए।
  38. प्रश्न- बाँधनी (टाई एण्ड डाई) का इतिहास, महत्व बताइए।
  39. प्रश्न- बाँधनी के प्रमुख प्रकारों को बताइए।
  40. प्रश्न- टाई एण्ड डाई को विस्तार से समझाइए।
  41. प्रश्न- गुजरात के प्रसिद्ध 'पटोला' वस्त्र पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  42. प्रश्न- राजस्थान के परम्परागत वस्त्रों और कढ़ाइयों को विस्तार से समझाइये।
  43. प्रश्न- पोचमपल्ली पर संक्षिप्त प्रकाश डालिये।
  44. प्रश्न- पटोला वस्त्र से आप क्या समझते हैं ?
  45. प्रश्न- औरंगाबाद के ब्रोकेड वस्त्रों पर टिप्पणी लिखिए।
  46. प्रश्न- बांधनी से आप क्या समझते हैं ?
  47. प्रश्न- ढाका की साड़ियों के विषय में आप क्या जानते हैं?
  48. प्रश्न- चंदेरी की साड़ियाँ क्यों प्रसिद्ध हैं?
  49. प्रश्न- उड़ीसा के बंधास वस्त्र के बारे में लिखिए।
  50. प्रश्न- ढाका की मलमल पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  51. प्रश्न- उड़ीसा के इकत वस्त्र पर टिप्पणी लिखें।
  52. प्रश्न- भारत में वस्त्रों की भारतीय पारंपरिक या मुद्रित वस्त्र छपाई का विस्तृत वर्णन कीजिए।
  53. प्रश्न- भारत के पारम्परिक चित्रित वस्त्रों का वर्णन कीजिए।
  54. प्रश्न- गर्म एवं ठण्डे रंग समझाइए।
  55. प्रश्न- प्रांग रंग चक्र को समझाइए।
  56. प्रश्न- परिधानों में बल उत्पन्न करने की विधियाँ लिखिए।
  57. प्रश्न- भारत की परम्परागत कढ़ाई कला के इतिहास पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  58. प्रश्न- कढ़ाई कला के लिए प्रसिद्ध नगरों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  59. प्रश्न- सिंध, कच्छ, काठियावाड़ और उत्तर प्रदेश की चिकन कढ़ाई पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  60. प्रश्न- कर्नाटक की 'कसूती' कढ़ाई पर विस्तार से प्रकाश डालिए।
  61. प्रश्न- पंजाब की फुलकारी कशीदाकारी एवं बाग पर संक्षिप्त लेख लिखिए।
  62. प्रश्न- टिप्पणी लिखिए: (i) बंगाल की कांथा कढ़ाई (ii) कश्मीर की कशीदाकारी।
  63. प्रश्न- कश्मीर की कशीदाकारी के अन्तर्गत शॉल, ढाका की मलमल व साड़ी और चंदेरी की साड़ी पर टिप्पणी लिखिए।
  64. प्रश्न- कच्छ, काठियावाड़ की कढ़ाई की क्या-क्या विशेषताएँ हैं? समझाइए।
  65. प्रश्न- "मणिपुर का कशीदा" पर संक्षिप्त लेख लिखिए।
  66. प्रश्न- हिमाचल प्रदेश की चम्बा कढ़ाई का वर्णन कीजिए।
  67. प्रश्न- भारतवर्ष की प्रसिद्ध परम्परागत कढ़ाइयाँ कौन-सी हैं?
  68. प्रश्न- सुजानी कढ़ाई के इतिहास पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
  69. प्रश्न- बिहार की खटवा कढ़ाई पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
  70. प्रश्न- फुलकारी किसे कहते हैं?
  71. प्रश्न- शीशेदार फुलकारी क्या हैं?
  72. प्रश्न- कांथा कढ़ाई के विषय में आप क्या जानते हैं?
  73. प्रश्न- कढ़ाई में प्रयुक्त होने वाले टाँकों का महत्व लिखिए।
  74. प्रश्न- कढ़ाई हेतु ध्यान रखने योग्य पाँच तथ्य लिखिए।
  75. प्रश्न- उत्तर प्रदेश की चिकन कढ़ाई का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  76. प्रश्न- जरदोजी पर टिप्पणी लिखिये।
  77. प्रश्न- बिहार की सुजानी कढ़ाई पर प्रकाश डालिये।
  78. प्रश्न- सुजानी पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
  79. प्रश्न- खटवा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।

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