बी ए - एम ए >> एम ए सेमेस्टर-1 - गृह विज्ञान - द्वितीय प्रश्नपत्र - फैशन डिजाइन एवं परम्परागत वस्त्र एम ए सेमेस्टर-1 - गृह विज्ञान - द्वितीय प्रश्नपत्र - फैशन डिजाइन एवं परम्परागत वस्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
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एम ए सेमेस्टर-1 - गृह विज्ञान - द्वितीय प्रश्नपत्र - फैशन डिजाइन एवं परम्परागत वस्त्र
अध्याय - 3
भारत के परम्परागत वस्त्रों का परिचय
(Introduction to Traditional Indian Textiles)
प्रश्न- "भारत में सुन्दर वस्त्रों का निर्माण प्राचीनकाल से होता रहा है। " विवेचना कीजिए।
उत्तर -
आज का भारत वैभवूपर्ण विरासत का उत्तराधिकारी है। यहाँ सभी कलाएँ जैसे- संगीत, चित्रकला, हस्तकला, भवन-निर्माणकला, आदि सदैव से पनपती, फूलती और फलती रही हैं। देश तथा देशवासियों के जीवन में अनेक उतार-चढ़ाव आए, विभिन्न साम्राज्यों के उत्थान और पतन हुए, परन्तु कला समयानुसार रूप बदलती हुई बराबर उन्नति की ओर ही अग्रसर होती रही है। विभिन्न जातियों तथा विभिन्न संस्कृतियों एवं सभ्यताओं के सम्मिलन के साथ-साथ परस्पर आदान-प्रदान से हमारी संस्कृति में कई धाराएँ तथा उपधाराएँ जुड़ती गईं इससे हमारी संस्कृति और सभ्यता भी अधिक समृद्ध, ऐश्वर्यशाली और वैभवपूर्ण होती गई। इतिहास इसका साक्षी है कि भारत की कला एवं संस्कृति की प्रसिद्धि सुदूर देशों में फैली हुई थी। यहाँ की बनी हुई वस्तुओं को प्राप्त करने की आकांक्षा एवं उत्सुकता पश्चिमी देशों में रहती थी। भारत के बने वस्त्रों और कलात्मक वस्तुओं के मध्यपूर्वी तथा पश्चिमी देशवासी ही सबसे बड़े खरीदार थे। अपने प्रसिद्ध वस्त्रों और उनके उत्कृष्ट सौंदर्य तथा सूक्ष्मता के लिए भारत का स्थान उस समय के अन्तर्राष्ट्रीय वस्त्र-व्यापार में अद्वितीय एवं सर्वापरि था।
वस्त्र-निर्माण-कला भारत में अति प्राचीनकाल से ही उन्नति की ओर अग्रसर थी। इसका उल्लेख पुराणों में मिलता है। पुराणों के अनुसार, वस्त्र-निर्माण एक महत्वपूर्ण हस्तकला थी तथा वैदिक युग से ही भारतवासी रंग-बिरंगे सुन्दर वस्त्रों के प्रति रुचि रखते थे। उस समय के राज-परिवार तथा सामंतों के वस्त्र सोने-चाँदी के तारों को मिलाकर बुने जाते थे तथा उन पर सुनहली - रुपहली कढ़ाई के नमूने रहते थे। वैदिक क्षेत्र में उषा की वन्दना में कहा गया है कि वह सुनहले वस्त्रों में सुसज्जित थी। प्राचीन साहित्य में रात्रि एवं दिवस की तुलना, करघे पर वस्त्र बुनती दो कन्याओं से की गई है। अर्थशास्त्र में भी इसका उल्लेख मिलता है कि वस्त्र निर्माण के लिए ऊन, कपास, तूल (Hemp) तथा क्षोम (Flax ) का प्रयोग होता था। मोहनजोदड़ो की खुदाई में भी रुई के टुकड़े मिले हैं। इन तथ्यों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि सुन्दर वस्त्रों का निर्माण अति प्राचीन काल से ही भारत में होने लगा था।
प्राचीन काल से ही भारत में अन्य कलाएँ भी उन्नत थीं। शिल्प, संगीत तथा चित्रकला. आदि के समान ही भारत में सुंदर नमूनेदार, अनुरूपता से भरपूर, कलात्मक रंग-संयोजन तथा सूक्ष्म रचना वाले वस्त्रों का निर्माण ईसा से 327 वर्ष पूर्व ही चरमोत्कर्ष पर था और उसी समय पूर्णता को प्राप्त कर चुका था। भारत में जितने भी आक्रमणकारी आते थे, सभी अपने-अपने साथ यहाँ के सुन्दर सिल्क, ब्रोकेड, मलमल आदि वस्त्रों की सौगात अपने देशवासियों के लिए ले जाते थे। सिकंदर के साथ आये सैनिकों ने अपने देश जाकर भारतीयों के वस्त्रों की भूरि-भूरि सराहना की। पेड़ में फूली हुई कपास तथा उससे बने सुन्दर वस्त्रों को देखकर वे आश्चर्यचकित रह गये थे।
वस्त्र-निर्माण कला में भी भारत में अन्य कलाओं के समान ही अपनी मौलिकता रहती थी। वस्त्र-निर्माण- उद्योग केवल एक कुटीर उद्योग के रूप में ही था, परन्तु उत्पादन उत्कृष्ट होता था। यहाँ के बने वस्त्र कला के सुन्दर नमूने होते थे। उनकी यह भी विशेषता होती थी कि उनमें बनाने वाले के व्यक्तित्व की छाप स्पष्ट रूप से परिलक्षित होती थी। अतः उनमें अपने ढंग की मानव भावनाएँ तथा अभिरुचियाँ निहित रहती थीं। वे भारत की ऐश्वर्यवाली संस्कृति के प्रतीक होते थे तथा उनमें भारतीयों की भावनाओं और आदर्शों का कलात्मक मूर्तरूप झलकता था। भारत के सुंदर वस्त्रों को पश्चिमी देशों तक पहुँचाने का काम अरब व्यापारी करते थे, जो उन्हें बेचकर मालामाल हो रहे थे। धर्म प्रचारकों ने भी भारतीय कला एवं संस्कृति के प्रसारण में सहयोग दिया। वास्तव में, यही व्यक्ति हमारी संस्कृति के दूत और इन्होंने भारत के यश का विस्तार दूर-दूर तक किया।
मध्यकालीन युग में अन्य सभी कलाओं के समान वस्त्र कला को भी मुगल बादशाहों का प्रश्रय (Patronage) मिला। राज परिवारों के लिए विशेष रूप से उत्कृष्ट वस्त्र तैयार करने वाले मनचाहे पुरस्कार प्राप्त कर लेते थे।
वस्त्रों के एक-एक भाग को बनाने में महीनों का समय और बहुत से व्यक्तियों का श्रम लगता था। परन्तु, फिर भी इन्हें बनाने का उत्साह निर्माणकों में था और राजाओं को प्रसन्न करने के लिए वे इनमें अपने व्यक्तित्व के साथ-साथ समस्त भावनाओं तथा अभिरुचियों को अभिव्यक्त करते थे। मुगलकाल में वस्त्र-निर्माण कला को फलने-फूलने के लिए अनुकूल परिस्थिति मिली। फलतः इस कला में दिन दूनी रात चौगुनी उन्नति होती गई। अन्य सभी कलाओं के समान वस्त्र-निर्माण पर भी मुगल प्रभाव दिखाई देने लगा। इसी युग में फारसी एवं ईरानी शैली का भारत की कला में सम्मिश्रण हुआ। वस्त्रों पर भी उसी शैली के नमूने प्रदर्शित होने लगे।
प्राचीन तथा मध्यकालीन युग में भारत के प्रसिद्ध वस्त्र अपने अनोखे सौंदर्य एवं सूक्ष्मता के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध थे। वर्डवुड के अनुसार, “भारत में बुनाई की कला चरमोत्कर्ष पर थी और यहाँ के जरी के ब्रोकेड वस्त्र तथा सूक्ष्म मलमल के वस्त्र अद्वितीय होते थे।" ये सब बातें हजारों वर्ष पूर्व की हैं और इनसे सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि हमारे देश में कितने प्राचीन काल से ही सभी कलाएँ विशेषकर वस्त्र-निर्माण की कला विकसित हो चुकी थी। अन्य देशों में भारत-निर्मित वस्त्रों का उपभोग इतना बढ़ गया था कि ईर्ष्यावश वे लोग भारतीय वस्त्रों के आयात को अपने देश में कानूनी रूप से समाप्त करने लगे और इस प्रकार वस्त्र-निर्माण के क्षेत्र में भारत के प्रभुत्व को कम करने की भरसक कोशिश की जाने लगी।
इतिहास एवं साहित्य दोनों के अवलोकन से ज्ञात होता है कि भारत में निर्मित वस्त्र सूक्ष्मता, बारीकी तथा कोमलता में बढ़-चढ़कर होते थे। भारत में वस्त्र-निर्माण का काम जुलाहे करते थे और वे भी उसे केवल अपने हाथों से ही बनाते थे। इन जुलाहों की प्रवीण उंगलियों से बने, इन बारीक वस्त्रों के संबंध में अनेक पौराणिक दंतकथाएँ प्रसिद्ध थीं। ऐसी ही एक किंवदन्ती है कि एक बार औरंगजेब ने अपनी पुत्री जेबुन्निसा को अच्छी तरह से वस्त्र धारण करने के लिए कहा, क्योंकि उसका शरीर भली-भाँति ढका प्रतीत नहीं होता था। जेबुन्निसा ने प्रत्युत्तर में बताया कि वह एक के ऊपर एक करके, आठ तह कपड़े से शरीर ढके हुए है। इस कथा से सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि वह वस्त्र कितना बारीक होगा जो आठ तह लगाने के बाद भी पारदर्शी प्रतीत होता था।
वस्त्र-निर्माण का काम प्रायः परिवार तक ही सीमित था। कला, पिता से पुत्र को प्राप्त होती थी। वस्त्रों को बनाने वाले समाज का एक अलग ही वर्ग होता था। एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक जाने में कला में प्रवीणता बढ़ती ही जाती थी तथा उत्पादन सुंदर से सुन्दरतम होता जाता था।
वस्त्रों के गुणों के आधार पर वस्त्रों के नाम रखे जाते थे। बहते हुए पानी में, पानी के समान ही पारदर्शी होकर उसी में मिलकर एकाकार हो जाने वाले वस्त्र को आब-ए-रवाँ (Ab-e-rawan) अर्थात् 'बहता पानी' नाम दिया गया। ओस की बूंदों के समान शीतल, सूक्ष्म तथा अलौकिक सौंदर्यवाले वस्त्र को 'शबनम' अर्थात् 'ओस के कण' नाम से विभूषित किया गया। हवा के समान अदृश्य वस्त्र को 'वफ्तेहवा' नाम से पुकारा गया।
वस्त्रों के नामकरण, उनके निर्माण के स्थान के आधार पर भी किए जाते थे, जैसे - सिन्ध का 'सन्दालिन तथा कालीकट का 'केलिको'। बनारस तथा सूरत की ब्रोकेड, ढाका की मलमल, कश्मीर का पश्मीना, गुजरात का पटोला एवं 'बांधनी वस्त्र' आदि रंग, नमूने, सौंदर्य एवं सूक्ष्मता के उत्कृष्ट उदाहरण थे। आजकल ये वस्त्र राष्ट्रीय संग्रहालय में सुरक्षित हैं तथा इन्हें देखकर दर्शक उन उंगलियों के कमाल और कौशल पर आश्चर्यचकित हुए बिना नहीं रहते हैं, जिन्होंने इन्हें बिना किसी मशीन की सहायता के इतना सुन्दर बनाया है। इन्हें देखकर जब हम अपने देश 'भारत' की ऐश्वर्यशाली और वैभवपूर्ण संस्कृति एंव सभ्यता के विषय में सोचते हैं तो गर्व का अनुभव करते हैं।
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- प्रश्न- डिजाइन के तत्वों से आप क्या समझते हैं? ड्रेस डिजाइनिंग में इसका महत्व बताएँ।
- प्रश्न- डिजाइन के सिद्धान्तों से क्या तात्पर्य है? गारमेण्ट निर्माण में ये कैसे सहायक हैं? चित्रों सहित समझाइए।
- प्रश्न- परिधान को डिजाइन करते समय डिजाइन के सिद्धान्तों को किस प्रकार प्रयोग में लाना चाहिए? उदाहरण देकर समझाइए।
- प्रश्न- "वस्त्र तथा वस्त्र-विज्ञान के अध्ययन का दैनिक जीवन में महत्व" इस विषय पर एक लघु निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- वस्त्रों का मानव जीवन में क्या महत्व है? इसके सामाजिक एवं सांस्कृतिक महत्व की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- गृहोपयोगी वस्त्र कौन-कौन से हैं? सभी का विवरण दीजिए।
- प्रश्न- अच्छे डिजायन की विशेषताएँ क्या हैं ?
- प्रश्न- डिजाइन का अर्थ बताते हुए संरचनात्मक, सजावटी और सार डिजाइन का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- डिजाइन के तत्व बताइए।
- प्रश्न- डिजाइन के सिद्धान्त बताइए।
- प्रश्न- अनुपात से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- आकर्षण का केन्द्र पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- अनुरूपता से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- परिधान कला में संतुलन क्या हैं?
- प्रश्न- संरचनात्मक और सजावटी डिजाइन में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- फैशन क्या है? इसकी प्रकृति या विशेषताएँ स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- फैशन के प्रेरक एवं बाधक तत्वों पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- फैशन चक्र से आप क्या समझते हैं? फैशन के सिद्धान्त समझाइये।
- प्रश्न- परिधान सम्बन्धी निर्णयों को कौन-कौन से कारक प्रभावित करते हैं?
- प्रश्न- फैशन के परिप्रेक्ष्य में कला के सिद्धान्तों की चर्चा कीजिए।
- प्रश्न- ट्रेंड और स्टाइल को परिभाषित कीजिए।
- प्रश्न- फैशन शब्दावली को विस्तृत रूप में वर्णित कीजिए।
- प्रश्न- फैशन का अर्थ, विशेषताएँ तथा रीति-रिवाजों के विपरीत आधुनिक समाज में भूमिका बताइए।
- प्रश्न- फैशन अपनाने के सिद्धान्त बताइए।
- प्रश्न- फैशन को प्रभावित करने वाले कारक कौन-कौन से हैं ?
- प्रश्न- वस्त्रों के चयन को प्रभावित करने वाला कारक फैशन भी है। स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- प्रोत / सतही प्रभाव का फैशन डिजाइनिंग में क्या महत्व है ?
- प्रश्न- फैशन साइकिल क्या है ?
- प्रश्न- फैड और क्लासिक को परिभाषित कीजिए।
- प्रश्न- "भारत में सुन्दर वस्त्रों का निर्माण प्राचीनकाल से होता रहा है। " विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- भारत के परम्परागत वस्त्रों का उनकी कला तथा स्थानों के संदर्भ में वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- मलमल किस प्रकार का वस्त्र है? इसके इतिहास तथा बुनाई प्रक्रिया को समझाइए।
- प्रश्न- चन्देरी साड़ी का इतिहास व इसको बनाने की तकनीक बताइए।
- प्रश्न- कश्मीरी शॉल की क्या विशेषताएँ हैं? इसको बनाने की तकनीक का वर्णन कीजिए।.
- प्रश्न- कश्मीरी शॉल के विभिन्न प्रकार बताइए। इनका क्या उपयोग है?
- प्रश्न- हैदराबाद, बनारस और गुजरात के ब्रोकेड वस्त्रों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- ब्रोकेड के अन्तर्गत 'बनारसी साड़ी' पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- बाँधनी (टाई एण्ड डाई) का इतिहास, महत्व बताइए।
- प्रश्न- बाँधनी के प्रमुख प्रकारों को बताइए।
- प्रश्न- टाई एण्ड डाई को विस्तार से समझाइए।
- प्रश्न- गुजरात के प्रसिद्ध 'पटोला' वस्त्र पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- राजस्थान के परम्परागत वस्त्रों और कढ़ाइयों को विस्तार से समझाइये।
- प्रश्न- पोचमपल्ली पर संक्षिप्त प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- पटोला वस्त्र से आप क्या समझते हैं ?
- प्रश्न- औरंगाबाद के ब्रोकेड वस्त्रों पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- बांधनी से आप क्या समझते हैं ?
- प्रश्न- ढाका की साड़ियों के विषय में आप क्या जानते हैं?
- प्रश्न- चंदेरी की साड़ियाँ क्यों प्रसिद्ध हैं?
- प्रश्न- उड़ीसा के बंधास वस्त्र के बारे में लिखिए।
- प्रश्न- ढाका की मलमल पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- उड़ीसा के इकत वस्त्र पर टिप्पणी लिखें।
- प्रश्न- भारत में वस्त्रों की भारतीय पारंपरिक या मुद्रित वस्त्र छपाई का विस्तृत वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारत के पारम्परिक चित्रित वस्त्रों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- गर्म एवं ठण्डे रंग समझाइए।
- प्रश्न- प्रांग रंग चक्र को समझाइए।
- प्रश्न- परिधानों में बल उत्पन्न करने की विधियाँ लिखिए।
- प्रश्न- भारत की परम्परागत कढ़ाई कला के इतिहास पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- कढ़ाई कला के लिए प्रसिद्ध नगरों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सिंध, कच्छ, काठियावाड़ और उत्तर प्रदेश की चिकन कढ़ाई पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- कर्नाटक की 'कसूती' कढ़ाई पर विस्तार से प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- पंजाब की फुलकारी कशीदाकारी एवं बाग पर संक्षिप्त लेख लिखिए।
- प्रश्न- टिप्पणी लिखिए: (i) बंगाल की कांथा कढ़ाई (ii) कश्मीर की कशीदाकारी।
- प्रश्न- कश्मीर की कशीदाकारी के अन्तर्गत शॉल, ढाका की मलमल व साड़ी और चंदेरी की साड़ी पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- कच्छ, काठियावाड़ की कढ़ाई की क्या-क्या विशेषताएँ हैं? समझाइए।
- प्रश्न- "मणिपुर का कशीदा" पर संक्षिप्त लेख लिखिए।
- प्रश्न- हिमाचल प्रदेश की चम्बा कढ़ाई का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारतवर्ष की प्रसिद्ध परम्परागत कढ़ाइयाँ कौन-सी हैं?
- प्रश्न- सुजानी कढ़ाई के इतिहास पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- बिहार की खटवा कढ़ाई पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- फुलकारी किसे कहते हैं?
- प्रश्न- शीशेदार फुलकारी क्या हैं?
- प्रश्न- कांथा कढ़ाई के विषय में आप क्या जानते हैं?
- प्रश्न- कढ़ाई में प्रयुक्त होने वाले टाँकों का महत्व लिखिए।
- प्रश्न- कढ़ाई हेतु ध्यान रखने योग्य पाँच तथ्य लिखिए।
- प्रश्न- उत्तर प्रदेश की चिकन कढ़ाई का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- जरदोजी पर टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- बिहार की सुजानी कढ़ाई पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- सुजानी पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- खटवा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।