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एम ए सेमेस्टर-1 - गृह विज्ञान - द्वितीय प्रश्नपत्र - फैशन डिजाइन एवं परम्परागत वस्त्र

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :172
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2694
आईएसबीएन :0

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एम ए सेमेस्टर-1 - गृह विज्ञान - द्वितीय प्रश्नपत्र - फैशन डिजाइन एवं परम्परागत वस्त्र

प्रश्न- परिधान सम्बन्धी निर्णयों को कौन-कौन से कारक प्रभावित करते हैं?

उत्तर -

परिधान सम्बन्धी निर्णयों को कई तत्व प्रभावित करते हैं। चूँकि निर्णय अर्थात् चुनाव करना एक मानसिक क्रिया है। मनुष्य के मानसिक विचार कभी स्थिर नहीं रहते, वह समय व परिस्थिति से प्रभावित होते रहते हैं। वर्तमान समय में परिवार की परिधान सम्बन्धी आवश्यकता, इच्छाओं और माँग को कई तत्व प्रभावित करते हैं। प्राचीन समय में वस्त्र कई प्रकार के होते हैं, जैसे- औपचारिक, आंशिक औपचारिक, अनौपचारिक, खेलकूद, विशिष्ट और कार्य के वस्त्र। इन प्रत्येक प्रकार के वस्त्र में कई नमूने और शैलियाँ होती हैं और यह अनगिनत रंग, पोत और तन्तुओं में प्राप्त होते हैं। अतः परिधान को प्रभावित करने वाले तत्व इस प्रकार हैं-

(1) जनसंख्या परिवर्तन (Population Changes ) - तीव्र जनसंख्या वृद्धि के कारण परिधान उद्योगों की वृद्धि भी प्रभावित हुई है। यह तथ्य है कि जनसंख्या बढ़ने से परिधान की आवश्यकता में वृद्धि होगी जिससे वस्त्र तन्तु की माँग में वृद्धि होगी।

परिवार के आकार में कमी और कीमत में वृद्धि के कारण भी परिधान के सम्बन्ध में सचेतता बढ़ गई है। जनंसख्या के संगठन में परिवर्तन भी परिधान की माँग में प्रभाव डालने वाला एक तत्व है। मनुष्य की जीने की आयु बढ़ने के कारण अधिक उम्र के व्यक्तियों की संख्या में वृद्धि हो रही है। अधिक उम्र के व्यक्ति कम उम्र के व्यक्तियों की अपेक्षा परिधान पर कम व्यय करते हैं।

(2) आय में वृद्धि ( Increased Income ) — व्यक्तिगत और पारिवारिक आय में वृद्धि और धन के उपयोग के सम्बन्ध में परिवर्तित विचारधारा परिवार के परिधान के चयन में सर्वाधिक प्रभाव डालती हैं। विभिन्न शोध दर्शाते हैं कि आय और परिधान की संख्या में महत्वपूर्ण सम्बन्ध होता हैं। जैसे-जैसे आय में वृद्धि होती है वैसे-वैसे वस्त्रों की संख्या में वृद्धि होती है, साथ ही प्रत्येक वस्त्र को खरीदने की कीमत में भी वृद्धि होती है। बच्चों के वस्त्र पर आय का प्रभाव वयस्कों के वस्त्र की अपेक्षा कम पड़ता है।

(3) स्त्रियों की बदलती स्थिति (Changing Status of Women ) – पारिवारिक बजट में परिधान का महत्व स्त्रियों के रोजगार से प्रभावित होता है। स्तर में वृद्धि करने हेतु अधिक से अधिक स्त्रियाँ रोजगार करने लगी हैं। अच्छी शिक्षित महिला परिधान को खरीदते समय उसकी किस्म की ओर विशेष ध्यान देती है। अच्छी शिक्षा से न केवल व्यक्तिगत रूपरेखा पर प्रभाव पड़ता है वरन् परिधान से सन्तुष्टि भी कम प्राप्त होती है।

(4) परिवार की गतिशीलता (Family Mobility) — वर्तमान समय में परिवार अधिक गतिशील होते जा रहे हैं। गतिशीलता बढ़ने के कारण परिवार के परिधान के प्रकार पर भी प्रभाव पड़ता है। अलग-अलग देशों के परिधान का प्रभाव व्यक्ति पर पड़ता है।

(5) आवास में परिवर्तन (Housing Changes) – आजकल अधिकांश परिवारों द्वारा बहुउद्देश्यी और अ - मौसमी (Non-seasonal)परिधान खरीदे जाते हैं। इसका यह कारण है कि आजकल अधिकतर घरों, यातायात सुविधाओं और कार्यालयों में एयर कन्डीशन का उपयोग किया जाता है। पिछले दस वर्ष में परिवार अधिक घने (Compact ) घर बनाने लगे हैं जिसमें पहले की अपेक्षा संग्रह स्थान पर अधिक बल दिया जाने लगा है। यह माना जाता हैं कि परिधान हेतु अधिक उपयुक्त संग्रह स्थान परिवार के परिधान व्यय पर प्रभाव डालता है।

(6) परिवार की स्थिति और व्यवसाय (Family Location and Occupation)— खरीदे जाने वाले परिधान और उस पर किया जाने वाला व्यय आंशिक रूप से इस बात पर निर्भर करता है कि परिवार कहाँ निवास करता है। शहरी परिवार ग्रामीण परिवारों की अपेक्षा अधिक मात्रा में और महँगे परिधान खरीदते हैं। सामान्यतः यह माना जाता है कि किसान परिवार शहरी परिवारों की अपेक्षा कम फैशनेबल परिधान का चयन करते हैं। जैसे-जैसे

किसानों की आय में वृद्धि होती जा रही हैं और ग्रामीण और नगरों के बीच टेलीविजन, रेडियो और अखबार, पत्रिका आदि के कारण दूरी कम होती जा रही है, किसानों के परिधान भी नगरों के परिवार के सदस्यों के समान होते जा रहे हैं।

किसानों के परिवार द्वारा उनकी आय का अधिक अनुपात परिधान पर और व्यक्तिगत देख-रेख पर व्यय किया जाता है। इसके दो कारण हैं - (1) किसानों के परिवार, नागरिक परिवार की अपेक्षा एक या डेढ़ गुना अधिक बड़े होते हैं, (2) किसानों की आय कम होती है।

जिस स्थान पर परिवार निवास करते हैं उस स्थान की अपेक्षा भौगोलिक स्थिति भी पहने जाने वाले वस्त्र के प्रकार को प्रभावित करते हैं। जलवायु, परिधान में भिन्नता उत्पन्न करने का एक महत्वपूर्ण तत्व है। ठण्डे मौसम वाले देशों में गर्म ऊनी परिधानों पर काफी धन व्यय करना पड़ता हैं, जबकि गर्म मौसम वाले देश में कम महँगे परिधानों का उपयोग किया जाता है व शुष्क धुलाई पर भी व्यय नहीं करना होता।

परिधान की संख्या और प्रकार परिवार के व्यवसाय के प्रकार पर भी निर्भर करती है। यदि घर का मुखिया ऑफिस का अधिकारी है तो वह एक मिल मजदूर की अपेक्षा परिधान पर अधिक ध्यान देता है। उसी प्रकार एक व्यवसायी की पत्नी भी परिधान पर अधिक व्यय करती है, अपेक्षाकृत अकुशल मजदूर की पत्नी के।

(7) उपभोक्ता साख (Consumer Credit ) — पिछले कई दशकों से उपभोक्ता साख का उपयोग जीवन का नए तरीके से जीने के लिए अवसर प्रदान कर रहा है। कई वस्तुएँ नगद पैसा न होने पर भी खरीदी जा सकती हैं। जीवन का यह नया तरीका अर्थात् " आज खरीदो और कल पैसा दो" (Buying today and paying tomorrow) के कारण धन के उपयोग की पुरानी अभिवृत्तियों में संशोधन करना आवश्यक हो गया है। इसके कारण आज उपभोक्ता के लिए कई वस्त्रों का चुनाव सम्भव हो गया है।

(8) पारिवारिक चक्र ( Family Cycle ) — मिरेटल बी० ग्रोथ (Myrtle B. Growth) के अनुसार - " जिस प्रकार एक व्यक्ति का जीवन एक चक्र है जिसमें वृद्धि, विकास, परिपक्वता और ह्रास सम्मिलित हैं, उसी प्रकार परिवार के जीवन का भी यही चक्र है।”

परिधान पर होने वाला व्यय इसी चक्र पर निर्भर करता है। प्रत्येक चक्र की अपनी परिधान सम्बन्धी आवश्यकता और विशेषता होती है। इस पारिवारिक अवस्था या चक्र को चार भागों में विभक्त किया जा सकता है— (i) प्रारम्भिक परिवार, (ii) विस्तृत परिवार, (iii) संकुचित परिवार, (iv) अन्तिम वर्षों का परिवार (The Family of Later Years)।

(i) प्रारम्भिक परिवार (Beginning Family) — टाटे और गिसन (M.T. Tate & Oris Gission) के अनुसार यह अवस्था तक प्रारम्भ होती है जब नवदम्पत्ति विवाह करते हैं। इसमें शिशुपालन अवस्था भी सम्मिलित होती है—गर्भावस्था शिशु और बालक की देखभाल और पूर्वस्कूल अवस्था। यह अवस्था सामान्यतः 7 से 10 वर्ष तक की होती है। सामान्यतः इस अवस्था के अन्त तक औसत दम्पत्ति जवान (Young) रहते है। आजकल एक सामान्यत महिला अपने अन्तिम बच्चे के जन्म के समय 27 वर्ष की उम्र की होती है।

प्रारम्भिक परिवार का प्रथम वर्ष या द्वितीय वर्ष सामान्यतः बच्चों रहित होते हैं,अतः पारिवारिक व्यय न्यूनतम होता है। नवदम्पत्ति छोटे अपार्टमेन्ट में रहते हैं, उनके पास विवाह के समय के पर्याप्त वस्त्र उपलब्ध रहते हैं। इस समय केवल परिधान की उचित देखभाल की आवश्यकता होती है। अधिकांश व्यक्ति इस समय धन की बचत करते हैं ताकि बाद की अवस्था में व्यय किया जा सके या मजबूत वस्तुएँ खरीदी जा सकें या मकान पर व्यय किया जा सके।

प्रारम्भिक परिवार में एक या दो वर्ष बाद जब गृहिणी गर्भावस्था में होती है तब पुरुष के वस्त्रों पर सामान्यतः कम व्यय होता है जबकि गृहिणी के वस्त्र बहुत महत्वपूर्ण होते हैं। गर्भावस्था में विशेष वस्त्रों की आवश्यकता होती है। गर्भावस्था के बाद यह वस्त्र उपयोगी नहीं होते हैं, और दूसरे वस्त्रों की आवश्यकता होती है। कई वस्त्र जो गर्भावस्था के पहले के होते हैं, वह अब या तो फैशन के अनुरूप नहीं होते या गर्भावस्था के बाद उचित नाप के नहीं रहते हैं। इसी प्रकार बच्चों के वस्त्रों की संख्या भी बहुत अधिक होती है। साथ ही भिन्न-भिन्न ऋतुओं के अनुसार व अवसर के अनुसार भी वस्त्रों की आवश्यकता में वृद्धि होती है। न केवल वस्त्रों की संख्या वरन् वस्त्रों की देखभाल में भी धन की आवश्यकता होती है। वस्त्रों की धुलाई व निस्संक्रमण में भी धन की आवश्यकता होती है। इस समय बच्चों की शारीरिक वृद्धि तीव्र होने के कारण भी वस्त्र जल्दी छोटे हो जाते हैं और नए वस्त्रों की आवश्यकता होती है। इस समय वस्त्र स्वयं सहायता वाले और वृद्धि के अनुरूप बनाए जाते हैं।

(ii)विस्तृत परिवार (Expanding Family) — टाटे और गिसन (M.T. Tate & Oris Gission) के अनुसार - " परिवार तब विस्तृत परिवार में प्रवेश करता है जब बच्चे प्राथमिक विद्यालय में प्रवेश करते हैं। यह बच्चों की वृद्धि का काल होता है।"

इस समय पारिवारिक व्यय में प्रति वर्ष वृद्धि होती है और इस वृद्धि की दर पहले से अधिक होती है। परिधान के व्यय में भी वृद्धि होती है क्योंकि अब पहनने वालों की संख्या में भी वृद्धि होती है। बच्चा जैसे-जैसे बड़ा होता है उसके परिधान की कीमत में भी वृद्धि होती है। बच्चों की स्कूल की आवश्यकतानुसार भी परिधान में वृद्धि होती है। इस समय माता और पिता को नए वस्त्र की आवश्यकता होती है।

(iii) संकुचित परिवार (Contracting Family ) - टाटे और गिसन (M.T. Tate & Oris Gission) के अनुसार - "जब बच्चे बड़े हो जाते हैं तब औसत परिवारों में माता-पिता बच्चों की देखभाल व व्यय से मुक्त होकर प्रफुल्लित रहते हैं और उनके पास अपनी सेवा निवृत्ति हेतु व्यवस्था करने का अवसर रहता है। पारिवारिक जीवन की इस अवस्था को "पुर्नव्यवस्था का काल" कहा जा सकता है।"

इस अवस्था में यदि लड़की होती है तो उसका विवाह करना एक बड़ा व्यय होता है। संकुचित अवस्था में माता-पिता अपने ऊपर परिधान का अधिक व्यय करते हैं। इस परिवर्तन के अनेक कारण हैं। एक तो विस्तृत परिवार की अवस्था में बच्चों की शिक्षा पर अधिक व्यय होने के कारण वे स्वयं पर अधिक व्यय नहीं कर पाते अतः इस अवस्था में स्वयं के परिधान अधिक खरीदते हैं। दूसरा, जब बच्चे घर छोड़कर चले जाते हैं तब माता-पिता को घूमने फिरने व यात्रा करने की अधिक स्वतन्त्रता होती है, जो कि नए परिधान की आवश्यकता में वृद्धि का एक कारण है। साथ ही इस समय वे यह सोचते हैं कि वह स्वयं के व्यक्तित्व को किस प्रकार आकर्षक रख सकते हैं।

(iv) अन्तिम वर्षों का परिवार (There Family of Later Years) बाद के समय में परिधान का एक स्तर निश्चित हो जाता है और अधिकांशतः परिधान की शैली में फैशन के अनुरूप परिवर्तन नहीं किया जाता है। परिधान या तो फटने पर परिवर्तित किया जाता है या यदि पहनने वाला व्यक्ति उसे पहन कर ऊब (Tired) का अनुभव करने लगता है तब उन्हें परिवर्तित किया जाता है। इस समय चूँकि उनकी सेवा निवृत्ति का काल होता है अतः व्यय में भी कमी की जाती है।

(9) सामाजिक औरं मनोवैज्ञानिक मूल्य (Social & Psychological Values)— यह लम्बे समय से माना जाता रहा है कि अधिकांश संस्कृतियों में अच्छे वस्त्र पहनना (Well-dressed), गर्मी और सुरक्षा हेतु वस्त्र पहनने से अधिक महत्वपूर्ण है। ऐसे परिधान अधिक महत्वपूर्ण माने जाते हैं जो कि समूह द्वारा स्वीकारे जाते हैं। परिधान और सामाजिक स्थिति के बीच आपसी सम्बन्ध होता है, उसी प्रकार जिस प्रकार परिधान और नौकरी में प्रतिष्ठा और अच्छी आय में। इन्टरव्यू और अन्य प्रत्यक्ष सम्पर्क में, परिधान एक तत्व होता है. जो अनुकूल या प्रतिकूल प्रभाव डालता है। कई बार उपयुक्त वस्त्र व्यक्तियों को नौकरी दिलवाने में और बनाए रखने में सहायक होते हैं जबकि इसके विपरीत अनुपयुक्त वस्त्र नौकरी के अवसर खो देते हैं या नौकरी छूट जाने के कारण होते हैं।

उपयुक्त वस्त्र समुदाय में उपयुक्त स्थान पाने हेतु भी सहायक होते हैं। माता अपने क्लब, धार्मिक व सामाजिक समारोह व घर में, बच्चे स्कूल पार्टी और खेलकूद में, पिता खेलकूद, ऑफिस व व्यवसाय में यदि उचित वस्त्र पहनते हैं तो समुदाय में परिवार की अच्छी स्थिति होती है। अच्छे वस्त्रों को पहनने की आदत समुदाय में परिवार का प्रभाव उत्पन्न करने में सहायक होती है। अतः वस्त्र का उत्तम चुनाव प्रत्येक परिवार का लक्ष्य होना चाहिए।

वस्त्र अन्य व्यक्तियों पर प्रभाव उत्पन्न करने के साथ-साथ सुरक्षा की भावना (Feeling of Security) भी प्रदान करते हैं। व्यक्ति के परिधान और व्यक्तिगत सुरक्षा में सम्बन्ध कई बार देखा गया है।

अच्छे वस्त्र पहनने वाले व्यक्ति सामाजिक कार्यों में अधिक योगदान (Social Contribution) देते हैं। अतः वस्त्र इच्छित सामाजिक लक्ष्य प्राप्त करने हेतु महत्वपूर्ण होते हैं।

उचित वस्त्र आत्म-विश्वास विकसित करने में (Develop Self-Confidence) सहायक होते हैं।

अच्छी तरह चयन किए गए व अच्छी तरह पहने गए वस्त्र वास्तविक सुन्दरता प्रदान करते हैं या खराब वस्त्र सुन्दरता को खो देते हैं। सम्भवतः हर व्यक्ति सुन्दर नहीं होता किन्तु हर व्यक्ति अच्छा दिखाई दे सकता है (Perhaps not everyone can be beautiful, but certainly everyone can be good looking).

परिधान व्यवहार से भी जुड़े (Associated with behaviour) होते हैं। व्यक्ति जिस प्रकार के परिधान पहनता है उसका व्यवहार भी उसी के अनुरूप होता है। यह देखा गया है कि उसके परिधान उपयुक्त माप के व स्वच्छ होते हैं वह मानसिक रूप से स्थिर होता है।

(10) परिधान के सम्बन्ध में दार्शनिकता (Philosophy of Clothing) परिवार की दार्शनिकता भी परिधान पर प्रभाव डालती है। कुछ परिवार के लिए परिधान का मुख्य उद्देश्य शरीर की सुरक्षा होता है और संस्कृति की न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति होता है जबकि अन्य व्यक्तियों के लिए परिधान एक कला है और व्यक्तित्व को अभिव्यक्त करने का एक माध्यम है और ऐसे व्यक्ति परिधान के सम्बन्ध में अध्ययन करके प्रभावशाली व्यक्तित्व बनाते हैं। व्यक्ति सभी स्थानों पर व्यवहार की उन अभिवृत्तियों एवं पैटर्न के अनुरूप व्यवहार करता है जो कि उसने उसके वृद्धि होने के समय में सीखा था। यही उसका जीवन दर्शन होता है। व्यक्ति के मूल्य भी इस पर प्रभाव डालते हैं।

(11) शारीरिक आवश्यकता (Physiological Needs) – परिधान की शारीरिक आवश्यकता के महत्व को स्थापित करना व मूल्यांकन करना भोजन और मकान की आवश्यकता से अधिक महत्वपूर्ण है। परिधान के कुछ उद्देश्य हैं जो शारीरिक आवश्यकताओं को सन्तुष्टि प्रदान करते हैं। परिधान, शरीर को गर्मी में ठण्डा और ठण्ड में गर्म रखने के लिए उपयोग में लाया जाता है। यह गर्म दिनों में धूप की गर्मी की जलन से सुरक्षा प्रदान करता है और वर्षा के दिनों में आर्द्रता और गीलेपन से सुरक्षा प्रदान करता है। उपयुक्त नाप के बने हुए आरामदायक वस्त्र अधिक आकर्षक व्यक्तित्व बनाते हैं और कार्य करने में सहायक होते हैं। यदि व्यक्ति के जूते काटते हैं, कमर के पट्टे से साँस लेने में तकलीफ होती हो या स्कर्ट इतना संकरा हो कि चलने में तकलीफ होती हो तो ऐसी सभी स्थितियों में व्यक्ति खुश नहीं रहता। वृद्धि करने वाले कई बच्चों की शारीरिक स्थिति कई बार अनुपयुक्त वस्त्रों के कारण खराब हो जाती है। कुछ विशेष प्रकार के व्यवसाय में विशेष प्रकार के परिधान की आवश्यकता होती है जो कि उन्हें कार्य करने में सहायक हो।

(12) परिधान से सम्बन्धित अभिवृत्तियाँ (Attitudes towards Clothing)- परिधान के सम्बन्ध में कई आधारभूत अभिवृत्तियाँ होती हैं जो कि शैक्षिक पृष्ठभूमि (Education of background), आर्थिक स्थिति (Economic status), तकनीकी फैशन का ज्ञान (Technical fashion knowledge) और फैशन में व्यावसायिक रुचि (Professional interest in fashion) आदि से प्रभावित होती हैं। यह अभिवृत्तियाँ हैं—

(1) निश्चितता की इच्छा (The desire to confirm ),
(2) आराम की इच्छा (The desire for comfort ),
(3) मितव्ययिता की इच्छा (The desire for economy),
(4) कलात्मक अभिरुचि की सन्तुष्टि की इच्छा (The desire to status by the artistic impulse), (
5) आत्म-अभिव्यक्ति की इच्छा (The desire for self expression),
(6) प्रतिष्ठा की इच्छा (The desire for prestige) और
(7) सामाजिक कार्यों में भाग लेने की इच्छा (The desire for social participation)।

इन सभी आधार अभिवृत्तियों में सम्बन्धित कम या अधिक महत्व एक परिवार से दूसरे परिवार में, परिवार के एक सदस्य से दूसरे सदस्य में और पारिवारिक जीवन चक्र की एक अवस्था से दूसरी अवस्था में भिन्न-भिन्न होता है। उदाहरणार्थ- आराम की इच्छा सम्भवतः सबसे छोटे और सबसे वृद्ध पारिवारिक सदस्य हेतु अधिकतम महत्व रखती है, पर कुछ क्रियाओं में यह सभी परिवार के सदस्यों हेतु महत्व रखती है। निश्चितता की इच्छा बड़े बच्चों और किशोर समूह में अधिक होती है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- डिजाइन के तत्वों से आप क्या समझते हैं? ड्रेस डिजाइनिंग में इसका महत्व बताएँ।
  2. प्रश्न- डिजाइन के सिद्धान्तों से क्या तात्पर्य है? गारमेण्ट निर्माण में ये कैसे सहायक हैं? चित्रों सहित समझाइए।
  3. प्रश्न- परिधान को डिजाइन करते समय डिजाइन के सिद्धान्तों को किस प्रकार प्रयोग में लाना चाहिए? उदाहरण देकर समझाइए।
  4. प्रश्न- "वस्त्र तथा वस्त्र-विज्ञान के अध्ययन का दैनिक जीवन में महत्व" इस विषय पर एक लघु निबन्ध लिखिए।
  5. प्रश्न- वस्त्रों का मानव जीवन में क्या महत्व है? इसके सामाजिक एवं सांस्कृतिक महत्व की विवेचना कीजिए।
  6. प्रश्न- गृहोपयोगी वस्त्र कौन-कौन से हैं? सभी का विवरण दीजिए।
  7. प्रश्न- अच्छे डिजायन की विशेषताएँ क्या हैं ?
  8. प्रश्न- डिजाइन का अर्थ बताते हुए संरचनात्मक, सजावटी और सार डिजाइन का उल्लेख कीजिए।
  9. प्रश्न- डिजाइन के तत्व बताइए।
  10. प्रश्न- डिजाइन के सिद्धान्त बताइए।
  11. प्रश्न- अनुपात से आप क्या समझते हैं?
  12. प्रश्न- आकर्षण का केन्द्र पर टिप्पणी लिखिए।
  13. प्रश्न- अनुरूपता से आप क्या समझते हैं?
  14. प्रश्न- परिधान कला में संतुलन क्या हैं?
  15. प्रश्न- संरचनात्मक और सजावटी डिजाइन में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  16. प्रश्न- फैशन क्या है? इसकी प्रकृति या विशेषताएँ स्पष्ट कीजिए।
  17. प्रश्न- फैशन के प्रेरक एवं बाधक तत्वों पर प्रकाश डालिये।
  18. प्रश्न- फैशन चक्र से आप क्या समझते हैं? फैशन के सिद्धान्त समझाइये।
  19. प्रश्न- परिधान सम्बन्धी निर्णयों को कौन-कौन से कारक प्रभावित करते हैं?
  20. प्रश्न- फैशन के परिप्रेक्ष्य में कला के सिद्धान्तों की चर्चा कीजिए।
  21. प्रश्न- ट्रेंड और स्टाइल को परिभाषित कीजिए।
  22. प्रश्न- फैशन शब्दावली को विस्तृत रूप में वर्णित कीजिए।
  23. प्रश्न- फैशन का अर्थ, विशेषताएँ तथा रीति-रिवाजों के विपरीत आधुनिक समाज में भूमिका बताइए।
  24. प्रश्न- फैशन अपनाने के सिद्धान्त बताइए।
  25. प्रश्न- फैशन को प्रभावित करने वाले कारक कौन-कौन से हैं ?
  26. प्रश्न- वस्त्रों के चयन को प्रभावित करने वाला कारक फैशन भी है। स्पष्ट कीजिए।
  27. प्रश्न- प्रोत / सतही प्रभाव का फैशन डिजाइनिंग में क्या महत्व है ?
  28. प्रश्न- फैशन साइकिल क्या है ?
  29. प्रश्न- फैड और क्लासिक को परिभाषित कीजिए।
  30. प्रश्न- "भारत में सुन्दर वस्त्रों का निर्माण प्राचीनकाल से होता रहा है। " विवेचना कीजिए।
  31. प्रश्न- भारत के परम्परागत वस्त्रों का उनकी कला तथा स्थानों के संदर्भ में वर्णन कीजिए।
  32. प्रश्न- मलमल किस प्रकार का वस्त्र है? इसके इतिहास तथा बुनाई प्रक्रिया को समझाइए।
  33. प्रश्न- चन्देरी साड़ी का इतिहास व इसको बनाने की तकनीक बताइए।
  34. प्रश्न- कश्मीरी शॉल की क्या विशेषताएँ हैं? इसको बनाने की तकनीक का वर्णन कीजिए।.
  35. प्रश्न- कश्मीरी शॉल के विभिन्न प्रकार बताइए। इनका क्या उपयोग है?
  36. प्रश्न- हैदराबाद, बनारस और गुजरात के ब्रोकेड वस्त्रों की विवेचना कीजिए।
  37. प्रश्न- ब्रोकेड के अन्तर्गत 'बनारसी साड़ी' पर प्रकाश डालिए।
  38. प्रश्न- बाँधनी (टाई एण्ड डाई) का इतिहास, महत्व बताइए।
  39. प्रश्न- बाँधनी के प्रमुख प्रकारों को बताइए।
  40. प्रश्न- टाई एण्ड डाई को विस्तार से समझाइए।
  41. प्रश्न- गुजरात के प्रसिद्ध 'पटोला' वस्त्र पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  42. प्रश्न- राजस्थान के परम्परागत वस्त्रों और कढ़ाइयों को विस्तार से समझाइये।
  43. प्रश्न- पोचमपल्ली पर संक्षिप्त प्रकाश डालिये।
  44. प्रश्न- पटोला वस्त्र से आप क्या समझते हैं ?
  45. प्रश्न- औरंगाबाद के ब्रोकेड वस्त्रों पर टिप्पणी लिखिए।
  46. प्रश्न- बांधनी से आप क्या समझते हैं ?
  47. प्रश्न- ढाका की साड़ियों के विषय में आप क्या जानते हैं?
  48. प्रश्न- चंदेरी की साड़ियाँ क्यों प्रसिद्ध हैं?
  49. प्रश्न- उड़ीसा के बंधास वस्त्र के बारे में लिखिए।
  50. प्रश्न- ढाका की मलमल पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  51. प्रश्न- उड़ीसा के इकत वस्त्र पर टिप्पणी लिखें।
  52. प्रश्न- भारत में वस्त्रों की भारतीय पारंपरिक या मुद्रित वस्त्र छपाई का विस्तृत वर्णन कीजिए।
  53. प्रश्न- भारत के पारम्परिक चित्रित वस्त्रों का वर्णन कीजिए।
  54. प्रश्न- गर्म एवं ठण्डे रंग समझाइए।
  55. प्रश्न- प्रांग रंग चक्र को समझाइए।
  56. प्रश्न- परिधानों में बल उत्पन्न करने की विधियाँ लिखिए।
  57. प्रश्न- भारत की परम्परागत कढ़ाई कला के इतिहास पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  58. प्रश्न- कढ़ाई कला के लिए प्रसिद्ध नगरों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  59. प्रश्न- सिंध, कच्छ, काठियावाड़ और उत्तर प्रदेश की चिकन कढ़ाई पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  60. प्रश्न- कर्नाटक की 'कसूती' कढ़ाई पर विस्तार से प्रकाश डालिए।
  61. प्रश्न- पंजाब की फुलकारी कशीदाकारी एवं बाग पर संक्षिप्त लेख लिखिए।
  62. प्रश्न- टिप्पणी लिखिए: (i) बंगाल की कांथा कढ़ाई (ii) कश्मीर की कशीदाकारी।
  63. प्रश्न- कश्मीर की कशीदाकारी के अन्तर्गत शॉल, ढाका की मलमल व साड़ी और चंदेरी की साड़ी पर टिप्पणी लिखिए।
  64. प्रश्न- कच्छ, काठियावाड़ की कढ़ाई की क्या-क्या विशेषताएँ हैं? समझाइए।
  65. प्रश्न- "मणिपुर का कशीदा" पर संक्षिप्त लेख लिखिए।
  66. प्रश्न- हिमाचल प्रदेश की चम्बा कढ़ाई का वर्णन कीजिए।
  67. प्रश्न- भारतवर्ष की प्रसिद्ध परम्परागत कढ़ाइयाँ कौन-सी हैं?
  68. प्रश्न- सुजानी कढ़ाई के इतिहास पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
  69. प्रश्न- बिहार की खटवा कढ़ाई पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
  70. प्रश्न- फुलकारी किसे कहते हैं?
  71. प्रश्न- शीशेदार फुलकारी क्या हैं?
  72. प्रश्न- कांथा कढ़ाई के विषय में आप क्या जानते हैं?
  73. प्रश्न- कढ़ाई में प्रयुक्त होने वाले टाँकों का महत्व लिखिए।
  74. प्रश्न- कढ़ाई हेतु ध्यान रखने योग्य पाँच तथ्य लिखिए।
  75. प्रश्न- उत्तर प्रदेश की चिकन कढ़ाई का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  76. प्रश्न- जरदोजी पर टिप्पणी लिखिये।
  77. प्रश्न- बिहार की सुजानी कढ़ाई पर प्रकाश डालिये।
  78. प्रश्न- सुजानी पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
  79. प्रश्न- खटवा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।

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