बी ए - एम ए >> एम ए सेमेस्टर-1 - गृह विज्ञान प्रथम प्रश्नपत्र - उच्चतर पोषण एवं संस्थागत प्रबन्धन एम ए सेमेस्टर-1 - गृह विज्ञान प्रथम प्रश्नपत्र - उच्चतर पोषण एवं संस्थागत प्रबन्धनसरल प्रश्नोत्तर समूह
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एम ए सेमेस्टर-1 - गृह विज्ञान प्रथम प्रश्नपत्र - उच्चतर पोषण एवं संस्थागत प्रबन्धन
प्रश्न- केटरिंग सेवाओं की अवधारणा और सिद्धान्त समझाइये।
उत्तर -
केटरिंग सेवाओं की अवधारणा
संस्थागत कैटरिंग की प्रारम्भिक अवस्था भारत में सम्भवतः गुरुकुल पद्धति से प्रारम्भ हुई जब छात्र शिक्षा के लिए शिक्षक के आश्रम में रहते थे। 12वीं शताब्दी के पश्चात् नालन्दा विश्वविद्यालय में संस्थागत केटरिंग को अपनाया गया जहाँ पर चीन, जापान, शिलोन आदि देशों के छात्र अध्ययन के लिए आते थे।
आधुनिक संसार में संस्थागत कैटरिंग युवा पीढ़ी के स्वास्थ्य व हित के लिए जिम्मेदार है क्योंकि इसमें स्कूल, कॉलेज तथा विश्वविद्यालय की केटरिंग व्यवस्था शामिल है। इसमें 5-25 आयु वर्ग के युवा शामिल हैं यह एक सामाजिक दायित्व है कि राष्ट्र के बच्चों में अच्छे खानपान की आदत डाली जाए ताकि एक स्वस्थ जनमानस का निर्माण हो सके। कैटरिंग सेवा के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित है-
(1) अच्छी गुणवत्ता वाला खाना पकाना व तैयार करना (2) त्वरित सेवा
(3) संतुलित मेन्यू
(4) उपलब्ध कराई गई सेवा के अनुरूप कीमतें
(5) पर्याप्त सुविधाएँ
(6) उच्च मानक वाली साफ-सफाई
केटरिंग के सिद्धांत
प्रत्येक कार्य के कुशल संचालन के लिये कुछ नियम तथा सिद्धांत निर्धारित किये जाते हैं ताकि कार्य को सर्वश्रेष्ठ रूप से संचालित किया जा सके। केटरिंग अर्थात भोजन व्यवस्था के प्रबंधन के लिये कुछ सिद्धांत निर्धारित किये गए हंठ जो कि निम्न प्रकार हैं -
(1) कार्य विभाजन - कार्य विभाजन का सिद्धांत विशेषज्ञता की अवधारणा पर आधारित है। खाद्य उत्पादन की विभिन्न गतिविधियों को भिन्न कौशल की आवश्यकता होती है। आमतौर पर कर्मचारियों की क्षमताओं के अनुसार नौकरियों को विभाजित किया जाता है। इसके पीछे विचार यह है कि प्रत्येक कार्य को बार-बार निष्पादित करके क्षमताओं को और अधिक कुशल बनाया जाए जब तक कि उत्पादन की गति तेज न हो जाए और कर्मचारी आत्मविश्वास न हासिल कर लें। जैसे-जैसे स्थापित संस्था का आकार बढ़ता है, काम के विभाजन का सिद्धांत अधिक लागू हो जाता है। यथा-कॉफी की एक छोटी दुकान में एक रसोइया और उसका सहायक अधिकांश रसोई का काम करते हैं और उत्पादन समाप्त होने पर कांउटर का कार्य सँभाल लेते हैं। इसी तरह एक छोटी कैंटीन का मालिक शायद कैशियर, अकाउंट्स क्लर्क, परचेजिंग मैनेजर, रिक्रूटिंग स्टॉफ और कैटरिंग सुवाइजर वगैरह के काम स्वयं ही करता है। लेकिन जैसे-जैसे स्थापित संस्था आकार में बढ़ती जाती है और काम की मात्रा बढ़ती जाती है, विभिन्न लोगों को उनकी क्षमता के अनुसार काम सौंप दिये जाएँगे। हालाँकि काम के विभाजन के सिद्धांत को खाद्य सेवाओं में सावधानी के साथ लागू किया जाना चाहिये। क्योंकि इसके सख्त अनुप्रयोग से कर्मचारी किसी दूसरे कार्य को करने के लिये असमर्थ हो सकते हैं उदाहरणार्थ - यदि प्रधान रसोइया कार्य छोड़ता है तो सहायक ग्राहक के लिये भोजन का उत्पादन करने में सक्षम नहीं होता है। यह स्थापित संस्था के लिये भोजन का उत्पादन करने में समक्षम नहीं होता है। यह स्थापित संस्था के लिये हानिकारक है। सिद्धांत को केवल उस सीमा तक लागू किया जाना चाहिये जिससे यह लक्ष्यों को समयबद्ध उपलब्धि में मदद करे। चूँकि भोजन को एक विशेष समय पर तैयार करना और परोसना है इसलिये इस सिद्धांत का उपयोग गति सुनिश्चित करने के लिये किया जा सकता है।
(2) अधिकार और जिम्मेदारी - यह सिद्धान्त दो प्रकार से काम करता है। एक तो व्यक्ति को किसी भी भाग की जिम्मेदारी देना, दूसरा किसी भी भाग का अधिकार देना, फिर उसमें कोई भी हस्तक्षेप नहीं करना है जिससे कार्य सरलता से हो सके।
(3) अनुशासन - अनुशासन का सिद्धान्त समय की पाबंदी, शिष्टाचार, नियमों और आज्ञाकारिता आदि का पालन करता है। ये सभी नियम उन प्रतिष्ठानों के संचालन के लिये आवश्यक है जो समूह में गतिविधि करते हैं और सामान्य लक्ष्यों की पूर्ति की ओर अग्रसर हैं।
(4) एकात्मक निर्देश - एकात्मक निर्देश का सिद्धांत भ्रम की संभावना को दूर करता है। जहाँ एक से अधिक व्यक्ति अलग-अलग निर्देश दे रहे हों वहाँ भ्रम उत्पन्न होता है, निष्ठाएँ विभाजित हो जाती है, अधीनस्थ काम से बचने का प्रयत्न करते हैं तथा परस्पर विरोधी लाभ उठाते हैं। इसका नतीजा यह होता है कि समय बरबाद होता है, काम अव्यवस्थित हो जाता है और प्रदर्शन गिर जाता है।
(5) एकात्मक दिशा - यह सिद्धान्त किसी एक लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये गतिविधियों के समन्वय से सम्बंधित है। बिना दिशा तय किये कोई आज्ञा या निर्देश नहीं दिया जा सकता है। अप्रत्यक्ष या बहुआयामी लक्ष्य केवल भ्रम और अप्राप्त लक्ष्यों को जन्म देते हैं।
(6) व्यक्तिगत लक्ष्य - संगठन के लक्ष्य के अधीन होते हैं यह सिद्धांत किसी भी संगठन की सफलता के लिये जरूरी होता है क्योंकि यदि प्रत्येक व्यक्ति पहले अपने व्यक्तिगत लक्ष्यों की पूर्ति करने के लिये कार्य करना प्रारम्भ कर देगा और फिर वह संगठन के लक्ष्यों के अनुरूप कार्य करेगा तो संगठन असफल हो जाएगा। इसका कारण यह है कि व्यक्तिगत आवश्यकताओं का कोई अंत नहीं होता है। इसके अतिरिक्त जब एक व्यक्ति संतुष्ट होगा तब कोई और व्यक्ति इसी कार्य को प्रारम्भ कर देगा और हमारी खाद्य सेवाएँ प्रभावित होती हैं।
(7) वेतन या पारिश्रमिक - वेतन तथा पारिश्रमिक के भुगतान के तरीके से कर्मचारियों तथा संगठन दोनों को ही सैद्धांतिक रूप से सहमत होना चाहिये। दोनों को संतुष्टि मिलनी चाहिये। जहाँ तक हो सके यह कार्य निष्पक्ष रूप से होना चाहिये।
(8) पदानुक्रम - पदानुक्रम का सिद्धांत एक संगठन की संरचना में विभिन्न स्तरों पर पदस्थापित वरिष्ठों की श्रृंखला को संदर्भित करता है।
(9) आदेश - यह सिद्धांत उन केटरिंग संगठनों के लिये अत्यधिक उपयुक्त है जो कि लगातार विभिन्न परिस्थितियों में कार्य करते हैं। सामग्री से सम्बंधित निर्देश अत्यधिक आवश्यक है क्योंकि नष्ट होने वाली सामग्री को विभिन्न समयावधियों के लिये कच्चा, आंशिक तैयार और पूर्ण रूप से तैयार रूपों में रखना होता है। आदेश सामान को खराब होने से बचाने, सामग्री की देखभाल में लगने वाले समय की बचत करने तथा आवश्यक उपकरणों की तलाश में लगने वाले समय की बचत करता है। यह सभी सम्बंधितों की सुरक्षा सुनिश्चित करता है।
जन शक्ति के संबंध में आदेश लोगों को इस प्रकार पदों पर रखने में सहायक है ताकि "सही व्यक्ति, सही समय पर तथा सही जगह पर हो।" यह एक अच्छे संगठन का परिचायक है।
(10) ईमानदारी और निष्ठा - इस सिद्धान्तानुसार संस्था में कार्य करने वाले सभी कर्मचारियों को निष्ठावान व ईमानदार होना चाहिये तथा कार्य करते समय संगठन के हितों को सर्वोपरि समझना चाहिये तभी संस्था आगे बढ़ सकती है तथा अपने लक्ष्यों को प्राप्त कर सकती है।
(11) कार्य स्थायित्व - कर्मचारियों में अपने कार्य एवं पद के स्थाई रहने का विश्वास होना चाहिये जिससे कि वें निष्ठापूर्वक तथा निश्चितता के साथ कार्य कर सकें।
(12) पहली करना - यदि कर्मचारियों को उन योजनाओं के बारे में सुझाव देने की अनुमति दी जाती है, जिनका आंशिक रूप से पालन किया जा सकता है तो यह उनके लिये अत्यधिक प्रेरक होता है। उदाहरणार्थ - यदि एक सहायक रसोइये द्वारा प्रस्तुत विचार को मुख्य रसोइये द्वारा स्वीकार करके तैयार किया जाता है तो इससे कर्मचारियों में पहल करने की प्रवृत्ति का विकास होता है। इस सिद्धांत के आधार पर कर्मचारियों को अक्सर निर्णय लेने में भाग लेने के लिये प्रोत्साहित किया जाता है जो उन्हें प्रभावित करते हैं। इससे मनोबल बढ़ाने, नए विचारों को विकसित करने और दक्षता बढ़ाने में मदद मिलती है।
(13) एकता - यह सिद्धांत लोगों के बीच सामूहिक रूप से कार्य करने की भावना और सहज संचार की स्थापना पर जोर देता है। इस प्रकार स्वस्थ टीम भावना का विकास होता है।
(14) नियंत्रण - सुपरवाइजर द्वारा कार्य करने के क्षेत्र को अपने अनुसार अनुशासित रखना चाहिये। एक समय पर केवल सम्बंधित नौकरी वाले पाँच या छः लोगों के काम की देखभाल करना अधिक दक्षता लाता है। इससे काम में निपुणता आती है।
इस प्रकार अच्छे निर्णय के साथ उपयोग किये जाने वाले सिद्धांत निर्धारित लक्ष्यों तक पहुँचने की संभावना को बढ़ाते हैं, अन्य लोगों और स्वयं की समझ को बढ़ाते हैं, निर्णय लेने में मदद करते है, संसाधनों का बेहतर उपयोग करने को प्रोत्साहित करते हैं। चूँकि सभी कार्य-योजनाएँ प्रबंधकों के मूल्य संरचनाओं के अनुसार लिये गए निर्णयों पर आधारित होती हैं, इसलिये सिद्धांत लक्ष्य प्राप्ति की ओर बढ़ने के लिये आधार प्रदान करते हैं।
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- प्रश्न- दैनिक आहारीय मात्राओं से आप क्या समझते हैं? आर.डी.ए. का महत्व एवं कार्य बताइए।
- प्रश्न- आहार मात्राएँ क्या हैं? विभिन्न आयु वर्ग के लिये प्रस्तावित आहार मात्राओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- संदर्भित महिला व पुरुष को परिभाषित कीजिए एवं पोषण सम्बन्धी दैनिक आवश्यकताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- दैनिक प्रस्तावित मात्राओं से आप क्या समझते हैं? दैनिक प्रस्तावित मात्राओं को बनाते समय ध्यान रखने योग्य आहारीय निर्देशों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- गर्भावस्था में कौन-कौन से पौष्टिक तत्व आवश्यक होते हैं? समझाइए।
- प्रश्न- स्तनपान कराने वाली महिला के आहार में कौन से पौष्टिक तत्वों को विशेष रूप से सम्मिलित करना चाहिए।
- प्रश्न- एक गर्भवती स्त्री के लिये एक दिन का आहार आयोजन करते समय आप किन-किन बातों का ध्यान रखेंगी?
- प्रश्न- एक धात्री स्त्री का आहार आयोजन करते समय ध्यान रखने योग्य बातें बताइये।
- प्रश्न- दैनिक प्रस्तावित आवश्यकता की विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- प्रस्तावित दैनिक आवश्यकता के निर्धारण का आधार क्या है?
- प्रश्न- शरीर के लिए आवश्यक पोषक तत्व कौन-कौन से हैं? इन तत्वों को स्थूल पोषक तत्व तथा सूक्ष्म पोषक तत्वों में वर्गीकृत कीजिए।
- प्रश्न- भोजन क्या है?
- प्रश्न- उत्तम पोषण एवं कुपोषण के लक्षणों में क्या अन्तर है?
- प्रश्न- हमारे लिए भोजन क्यों आवश्यक है?
- प्रश्न- शरीर में जल की क्या उपयोगिता है
- प्रश्न- क्या जल एक स्थूल पोषक तत्व है?
- प्रश्न- स्थूल पोषक तत्व तथा सूक्ष्म पोषक तत्वों में अंतर बताइये।
- प्रश्न- कार्बोहाइड्रेट किसे कहते हैं? इसकी प्राप्ति के स्रोत तथा उपयोगिता बताइये।
- प्रश्न- मानव शरीर में कार्बोहाइड्रेट की कमी व अधिकता से क्या हानियाँ होती हैं?
- प्रश्न- आण्विक संरचना के आधार पर कार्बोहाइड्रेट का वर्गीकरण किस प्रकार किया जा सकता है? विस्तारपूर्वक लिखिए।
- प्रश्न- कार्बोहाइड्रेट का मानव शरीर में किस प्रकार पाचन व अवशोषण होता है?
- प्रश्न- कार्बोहाइड्रेट की उपयोगिता बताइये।
- प्रश्न- कार्बोहाइड्रेट क्या है? इसके प्राप्ति के स्रोत बताओ।
- प्रश्न- प्रोटीन से क्या तात्पर्य है? मानव शरीर में प्रोटीन की उपयोगिता बताइए।
- प्रश्न- प्रोटीन को वर्गीकृत कीजिए तथा प्रोटीन के स्रोत तथा कार्य बताइए। प्रोटीन की कमी से होने वाले रोगों के बारे में भी बताइए।
- प्रश्न- प्रोटीन के पाचन, अवशोषण व चयापचय पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- प्रोटीन का जैविक मूल्य क्या है? प्रोटीन का जैविक मूल्य ज्ञात करने की विधियाँ बताइये।
- प्रश्न- प्रोटीन की दैनिक जीवन में कितनी मात्रा की आवश्यकता होती है?
- प्रश्न- प्रोटीन की अधिकता से क्या हानियाँ हैं?
- प्रश्न- प्रोटीन की शरीर में क्या उपयोगिता है?
- प्रश्न- प्रोटीन की कमी से होने वाले प्रभाव लिखिए।
- प्रश्न- वसा से आप क्या समझते हैं? वसा प्राप्ति के प्रमुख स्रोत एवं उपयोगिता का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये - वसा का पाचन एवं अवशोषण।
- प्रश्न- वसा या तेल का रासायनिक संगठन बताते हुए वर्गीकरण कीजिए।
- प्रश्न- वसा की उपयोगिता बताओ।
- प्रश्न- वसा के प्रकार एवं स्रोत बताओ।
- प्रश्न- वसा की विशेषताएँ लिखिए।
- प्रश्न- पोषक तत्व की परिभाषा दीजिए। सामान्य मानव संवृद्धि में इनकी भूमिका का वर्णन कीजिए।
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- प्रश्न- विटामिन
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- प्रश्न- खमीरीकरण की प्रक्रिया से बनाये जाने वाले पदार्थों का वर्णन कीजिए तथा खमीरीकरण प्रक्रिया के प्रभावों का वर्णन कीजिए।
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- प्रश्न- भोजन की पौष्टिकता को बढ़ाने वाले विभिन्न तरीके क्या होते हैं? विवरण दीजिए।
- प्रश्न- अंकुरीकरण तथा खमीरीकरण किस प्रकार से भोजन के पौष्टिक मूल्य को बढ़ाते हैं? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- खमीरीकरण की प्रक्रिया किन बातों पर निर्भर करती हैं।
- प्रश्न- खमीरीकरण पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- आहार आयोजन से आप क्या समझती हैं? आहार आयोजन का महत्व बताइए।
- प्रश्न- 'आहार आयोजन' करते समय ध्यान रखने योग्य बातें बताइये।
- प्रश्न- आहार आयोजन को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारकों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- विभिन्न आयु वर्गों एवं अवस्थाओं के लिए निर्धारित आहार की मात्रा की सूचियाँ बनाइए।
- प्रश्न- एक खिलाड़ी के लिए एक दिन के पौष्टिक तत्वों की माँग बताइए व आहार आयोजन कीजिए।
- प्रश्न- एक दस वर्षीय बालक के पौष्टिक तत्वों की मांग बताइए व उसके स्कूल के लिए उपयुक्त टिफिन का आहार आयोजन कीजिए।
- प्रश्न- 'आहार आयोजन करते हुए आहार में विभिन्नता का भी ध्यान रखना चाहिए।' इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- एक किशोर लड़की के लिए पोषक तत्वों की माँग बताइए।
- प्रश्न- एक किशोरी का एक दिन का आहार आयोजन कीजिए तथा आहार तालिका बनाइये। किशोरी का आहार आयोजन करते समय आप किन पौष्टिक तत्वों का ध्यान रखेंगे?
- प्रश्न- आहार आयोजन से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- आहार आयोजन के सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- दैनिक प्रस्तावित मात्राओं के अनुसार एक किशोरी को कितनी ऊर्जा की आवश्यकता होती है।
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