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एम ए सेमेस्टर-1 शिक्षाशास्त्र प्रथम प्रश्नपत्र - शैक्षिक चिन्तन : भारतीय दार्शनिक परम्परायें

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2685
आईएसबीएन :0

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एम ए सेमेस्टर-1 शिक्षाशास्त्र प्रथम प्रश्नपत्र - शैक्षिक चिन्तन : भारतीय दार्शनिक परम्परायें

दयानन्द सरस्वती
(J. Krishnamurti)

प्रश्न- महर्षि दयानन्द के जीवन एवं उनके योगदान को समझाइए।

उत्तर -

दयानन्द की जीवनी और कार्य
(Biography and Works of Dayanand)

महर्षि दयानन्द का जन्म 1824 में वर्तमान गुजरात प्रदेश के तत्कालीन मौरवी राज्य में, एक उच्च और सम्पन्न ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इनका वास्तविक नाम मूलशंकर था। इनके पिता श्रीकृष्ण लाल त्रिवेदी शिव के भक्त थे और राजय के जमेदार (तहसीलदार) पद पर रहते हुए भी इनका अधिकतर समय शिव की पूजा और उपासना में ही व्यतीत होता था। मूल जी के पिता श्रीकृष्ण लाल स्वभाव के कुछ कठोर थे पर इनकी माता बड़ी दयालु प्रवृत्ति की थीं। ऐसे परिवार मे श्री मूल जी का लालन-पालन हुआ।

मूल जी की शिक्षा का आरम्भ उनके घर से ही हुआ। जब ये पाँच वर्ष के थे तभी इनके पिता ने इन्हें संस्कृत, व्याकरण, संस्कृत के श्लोक और वेद मंत्र कण्ठस्थ कराना शुरू कर दिया था। आठ वर्ष की आयु में इनका यज्ञोपवीत संस्कार हुआ और इनके पिता ने इन्हें संख्या, उपासना और उपवास आदि के नियमों का कठोरता से पालन करने का आदेश दिया। नियम और संयम से पूर्ण जीवन व्यतीत करते हुए कुशाग्र बुद्धि मूल जी ने चौदह वर्ष की आयु तक वेदों का अध्ययन कर डाला और उनके कुछ अंशों को कण्ठस्थ भी कर लिया। इनका अध्ययन क्रम जारी रहा और कुछ ही समय में इन्होंने अपने घर तथा गाँव के विद्वान पंडितों के सहयोग से निघण्टु और निरुक्त आदि अनेक संस्कृत ग्रन्थों का अध्ययन भी कर डाला।

इसी बीच 1838 में शिवरात्रि के दिन शिवलिंग पर चूहे दौड़ते देखकर इनमें प्रतिमा की शक्ति में अविश्वास उत्पन्न हुआ। इसके बाद 1840 में अपनी बहिन की और 1841 में अपने चाचा की मृत्यु देखकर इनके मन में विरक्ति के भाव जागृत हुए। अब एक ओर तो इनके पिता इन्हें गृहस्थ जीवन में बाँधने का प्रयत्न करते थे और दूसरी ओर इनमें विरक्ति बढ़ रही थी। मूल जी निरन्तर अध्ययन करते रहे और साथ-साथ चिन्तन और मनन में भी लीन रहने लगे। इसी क्रम में योगाभ्यास द्वारा मृत्यु पर विजय प्राप्त करने की सोचने लगे। 1846 में मूल जी ने गृह त्याग दिया और सन्यासी वेश धारण कर अपना नाम 'शुद्ध 'चैतन्य' रखा परन्तु कुछ ही दिन बाद इनके पिता इन्हें घर लौटा लाए और इनका साधु वेश उतार फेंका। शुद्ध चैतन्य कुछ दिन ही घर पर पिजड़े में बन्द रहे और एक रात्रि को पुनः घर से निकल भागे। इसके बाद पिता जी से इनकी कभी भेंट नहीं हुई।

1846 से 1861 तक का समय शुद्ध चैतन्य ने अध्ययन, चिन्तर, मनन, योगाभ्यास और साधु संगत में लगाया। इस बीच में ये अनेक साधु-सन्तों से मिले लेकिन इन्हें किसी से भी सन्तोष नहीं मिला। स्वामी पूर्णानन्द के पास रहकर इन्होंने योगाभ्यास किया। स्वामी पूर्णानन्द ने शुद्ध चैतन्य को 'दयानन्द सरस्वती' नाम दिया परन्तु स्वामी जी की मूल समस्या का समाधान यहाँ भी नहीं हुआ। इसके बाद ये व्यास आश्रम पहुँचे और वहाँ योगानन्द जी से योग विद्या पढ़ी व सीखी। यहाँ से ये ये चित्तौड़ गए और कृष्ण शास्त्री से व्याकरण पढ़ी व सीखी। चित्तौड़ से ये आबू पर्वत पहुँचे और यहाँ के राजयोगियों के साथ रहकार योगाभ्यास किया। 1861 में ये मथुरा पहुँचे। यहाँ इनकी भेंट स्वामी विरजानन्द से हुई। विरजानन्द जी को बचपन में चेचक निकली थी और उसमें वे अन्धे हो गए थे। पर नेत्रहीन होने के बावजूद इन्होंने ज्ञान प्राप्त किया था और योग साधना की थी। वे ज्ञानी भी थे और योगी भी। इनके शिष्यतव में स्वामी जी ने 3 वर्ष तक गहन अध्ययन किया। विरजानन्द के चरणों में स्वामी जी की जिज्ञासा शान्त हुई। विरजानन्द ने इन्हें अपना उत्तराधिकारी बनाया और जीवन भर आर्य ग्रन्थों के प्रचार और अनार्थ ग्रन्थों के खण्डन करने का इन्हें आदेश दिया।

स्वामी जी ने यह कार्य 1863 से आरम्भ किया। इस समय देश की धार्मिक एवं सांस्कृतिक स्थिति बड़ी सोचनीय थी। वैदिक धर्म अपने वास्तविक स्वरूप को खो चुका था और लोग धार्मिक अन्धविश्वासों के शिकार हो रहे थे। नगरों में प्राचीन संस्कृति के दर्शन दुर्लभ थे। धन्य है भारत की ग्रामीण जनता जिसने इस संस्कृति को किसी न किसी रूप में सुरक्षित रखा था। राजनीतिक दृष्टि से देश अंग्रेजों का गुलाम था और आर्थिक क्षेत्र में लोग निर्धनता के शिकार हो रहे थे। स्वामी जी ने इस सबको दूर करने के लिये अपना प्रचार कार्य आगरा से शुरू किया। 1863 से 1865 तक ये यही रहे। यहाँ रहते हुए इन्होंने आर्य ग्रन्थों की महिमा स्पष्ट की और मूर्ति पूजा का खण्डन किया। इसी समय इन्होंने अपनी प्रथम पुस्तक 'संध्या विधि' लिखी। इसके बाद ये एक स्थान से दूसरे स्थान पर गए और लोगों से शास्त्रार्थ किया। लोग अनके ज्ञान और विद्वता से प्रभावित हुए। काशी शास्त्रार्थ में इनका झण्डा और भी ऊँचा हो गया। 1870 में ये कुम्भ मेले में प्रयाग पहुँचे। यहाँ इनकी भेंट देवेन्द्रनाथ ठाकुर से हुई। इनकी प्रेरणा और सहयोग से इन्होंने यहाँ वैदिक पाठशाला की स्थापना की। यहाँ रहते हुए इन्होंने अपनी पुस्तक 'अद्वैत मत खण्डन' प्रकाशित की। यहाँ से ये अनूपशहर पहुँचे। यहाँ एक सनातनी ब्राह्मण ने इन्हें पान में विष दे दिया परन्तु स्वामी जी ने यौगिक क्रिया द्वारा पूरे विष को शरीर से बाहर निकाल दिया और मृत्यु से बच गए। धन्य हैं स्वामी जी जिन्होंने विष देने वाले को भी क्षमा कर दिया।

1871 में इनका प्रचार कार्य और तेजी से बढ़ा। अब इनका क्षेत्र केवल वैदिक धर्म के प्रचार तक ही सीमित न रहा, अपितु ये समाज सुधार, राष्ट्रभाषा हिन्दी के प्रचार और राष्ट्रीय जागरण के कार्यों में भी लगे। इन्होंने बाल विवाह का विरोध किया और विधवा विवाह के लिये आवाज उठाई। राष्ट्रभाषा हिन्दी के प्रचार एवं प्रसार के लिये इन्होंने विद्यालयों की स्थापना करना शुरू किया। 1873 में इन्होंने एक पाठशाला काशी में स्थापित की और उसके बाद जहाँ भी गए वैदिक पाठशालाओं के खोलने के लिये धन एकत्र करने लगे। 1874 में काशी में और 1875 में बम्बई में आर्य समाज का संगठन किया। 1875 में इनकी सुप्रसिद्ध पुस्तक 'सत्यार्थ प्रकाश' प्रकाशित हुई। इसी वर्ष इन्होंने राजकोट में आर्य समाज की स्थापना की। फिर क्या था, नगरनगर में आर्य समाज के संगठन का सिलसिला चल पड़ा। 1877 में ये लाहौर पहुँचे और बड़े जोर-शोर से आर्य समाज का प्रचार कार्य शुरू किया। लाहौर के बाद ये लुधियाना, अमृतसर, फिरोजपुर और रावलपिंडी गए और यहाँ आर्य समाज का प्रचार एवं प्रसार किया। एक तरफ कुछ लोग इनकी ओर आकर्षित हो रहे थे तो दूसरी तरफ सनातनी लोग इनसे बड़े खफा थे। नौबत यहाँ तक पहुँच गई कि आर्य समाजियों और सनातनियों में मारपीट होने लगी। परिणामस्वरूप तत्कालीन बिट्रिश सरकार ने इनके व्याख्यानों पर प्रतिबन्ध लगा दिया। प्रतिबन्ध हटते ही 1881 से ये पुन: इसी कार्य में जुट गए। 1882 में इन्होंने पुन: राजस्थान का दौरा किया। अब इनके सामने चार मुख्य कार्य थेआर्य समाज का प्रचार, राष्ट्रभाषा हिन्दी का प्रचार, समाज सुधार और वैदिक पाठशालाओं की स्थापना।

इस बीच इनके कई ग्रन्थों का प्रकाशन हुआ जिनमें ऋग्वेद भाष्य, यजुर्वेद भाष्य, संस्कार विधि, वेदांग प्रकाश, पंच महायज्ञ विधि, व्यवहार भानु और संस्कृत वाक्य प्रबोध मुख्य हैं। इनके बढ़ते हुए प्रभाव से लोगों को ईर्ष्या होने लगी। सितम्बर 1883 में धैल मिश्र नाम के एक व्यक्ति ने इन्हें जहर दे दिया जिससे कुप्रभाव ये अस्वस्थ रहने लगे। ठीक एक माह बाद 30 अक्टूबर 1883 को दीपावली के दिन इस महापुरुष ने महाप्रस्थान किया।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- दर्शन का क्या अर्थ है? इसकी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  2. प्रश्न- दर्शन की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  3. प्रश्न- दर्शन के सम्बन्ध में शिक्षा के उद्देश्य बताइये।
  4. प्रश्न- शिक्षा दर्शन का क्या अर्थ है तथा परिभाषा भी निर्धारित कीजिए। शिक्षा दर्शन के क्षेत्र को स्पष्ट कीजिए।
  5. प्रश्न- शिक्षा दर्शन की परिभाषाएँ स्पष्ट कीजिए।
  6. प्रश्न- शिक्षा दर्शन के क्षेत्र को स्पष्ट कीजिए।
  7. प्रश्न- दर्शन के अध्ययन क्षेत्र एवं विषय-वस्तु का वर्णन कीजिए। दर्शन और शिक्षा में क्या सम्बन्ध है?
  8. प्रश्न- भारतीय दर्शन के आधारभूत तत्व कौन कौन से हैं? विवेचना कीजिए।
  9. प्रश्न- भारतीय दर्शन जगत में षडदर्शन का क्या महत्त्व है?
  10. प्रश्न- सांख्य और योग दर्शन के शिक्षण विधि संबंधी विचारों की तुलना कीजिए।
  11. प्रश्न- भारतीय दर्शन में जैन व चार्वाक का उल्लेख कीजिए।
  12. प्रश्न- बौद्ध दर्शन के मुख्य तत्वों पर प्रकाश डालिए।
  13. प्रश्न- धर्म तथा विज्ञान की दृष्टि से शिक्षा तथा दर्शन के महत्त्व को स्पष्ट कीजिए।उप
  14. प्रश्न- विज्ञान की शिक्षा तथा दर्शन से सम्बद्धता स्पष्ट कीजिए।
  15. प्रश्न- शिक्षा दर्शन से क्या अभिप्राय है? इसके स्वरूप का उल्लेख कीजिए।
  16. प्रश्न- शिक्षा दर्शन के स्वरूप की व्याख्या कीजिए।
  17. प्रश्न- "शिक्षा सम्बन्धी समस्त प्रश्न अन्ततः दर्शन से सम्बन्धित हैं।" विवेचना कीजिए।
  18. प्रश्न- दर्शन तथा शिक्षण पद्धति के सम्बन्ध की विवेचना कीजिए।
  19. प्रश्न- आधुनिक भारत में शिक्षा के उद्देश्य क्या होने चाहिए?
  20. प्रश्न- सामाजिक विज्ञान के रूप में शिक्षा की विवेचना कीजिए।
  21. प्रश्न- दर्शनशास्त्र में अनुशासन का क्या महत्त्व है?
  22. प्रश्न- दर्शन शिक्षा पर किस प्रकार आश्रित है?
  23. प्रश्न- शिक्षा दर्शन पर किस प्रकार निर्भर करती है?
  24. प्रश्न- शिक्षा दर्शन के प्रमुख कार्यों का वर्णन कीजिए।‌
  25. प्रश्न- शिक्षा-दर्शन के अध्ययन की आवश्यकता एवं महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
  26. प्रश्न- शिक्षा मनोविज्ञान के अर्थ एवं परिभाषा की विवेचना कीजिए। शिक्षा मनोविज्ञान के क्षेत्र की भी विवेचना कीजिए।
  27. प्रश्न- शिक्षा एवं मनोविज्ञान में क्या सम्बन्ध है?
  28. प्रश्न- शिक्षा मनोविज्ञान के क्षेत्र की विवेचना कीजिए।
  29. प्रश्न- "शिक्षा मनोविज्ञान शिक्षक के लिए कुंजी है, जिससे वह प्रत्येक जिज्ञासा एवं समस्या का उचित समाधान प्रस्तुत करता है।' विवेचना कीजिए।
  30. प्रश्न- वर्तमान शिक्षा की मनोवैज्ञानिक विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  31. प्रश्न- शिक्षा के व्यापक एवं संकुचित अर्थ बताइये।
  32. प्रश्न- शिक्षा मनोविज्ञान का महत्व बताइये।
  33. प्रश्न- शिक्षक प्रशिक्षण में शिक्षा मनोविज्ञान की सम्बद्धता एवं उपयोगिता का वर्णन कीजिए।
  34. प्रश्न- मनोविज्ञान शिक्षा को विभिन्न समस्याओं का समाधान करने में किस प्रकार सहायता देता है?
  35. प्रश्न- सांख्य दर्शन के शैक्षिक अर्थ क्या हैं? सविस्तार वर्णन कीजिए।
  36. प्रश्न- सांख्य दर्शन में पाठ्यक्रम की अवधारणा को शैक्षिक परिप्रेक्ष्य में समझाइये।
  37. प्रश्न- सांख्य दर्शन के शैक्षिक परिप्रेक्ष्य में शिक्षण विधियों का वर्णन करो।
  38. प्रश्न- सांख्य दर्शन के शैक्षिक परिप्रेक्ष्य में अनुशासन, शिक्षण, छात्र व स्कूल का उल्लेख कीजिए।
  39. प्रश्न- सांख्य दर्शन के मूल सिद्धान्तों का क्या प्रभाव शिक्षा पद्धति पर हुआ है? व्याख्या कीजिए।
  40. प्रश्न- वेदान्त काल की शिक्षा के स्वरूप को उल्लेखित करते हुए विवेचना कीजिए।
  41. प्रश्न- वेदान्त दर्शन के शैक्षिक स्वरूप की व्याख्या कीजिए।
  42. प्रश्न- उपनिषद् काल की शिक्षा की वर्तमान समय में प्रासंगिकता की विवेचना कीजिए।
  43. प्रश्न- वेदान्त दर्शन की तत्व मीमांसा, ज्ञान मीमांसा तथा मूल्य एवं आचार मीमांसा का वर्णन कीजिए।
  44. प्रश्न- वेदान्त दर्शन की मुख्य विशेषताओं की विवेचना कीजिए। वेदान्त दर्शन के अनुसार शिक्षा के उद्देश्यों व पाठ्यक्रम की व्याख्या कीजिए।
  45. प्रश्न- न्याय दर्शन में ईश्वर विचार तथा ईश्वर के अस्तित्व के लिए प्रमाण बताइये।
  46. प्रश्न- न्याय दर्शन में ईश्वर के अस्तित्व के प्रमाण लिखिए।
  47. प्रश्न- न्याय दर्शन की भूमिका प्रस्तुत कीजिए तथा न्यायशास्त्र का महत्त्व बताइये। न्यायशास्त्र के अन्तर्गत प्रमाण शास्त्र का वर्णन कीजिए।
  48. प्रश्न- वैशेषिक दर्शन में पदार्थों की व्याख्या कीजिये।
  49. प्रश्न- वैशेषिक द्रव्यों की व्याख्या कीजिए।
  50. प्रश्न- वैशेषिक दर्शन में कितने गुण होते हैं?
  51. प्रश्न- कर्म किसे कहते हैं? व्याख्या कीजिए।
  52. प्रश्न- सामान्य की व्याख्या कीजिए।
  53. प्रश्न- विशेष किसे कहते हैं? लिखिए।
  54. प्रश्न- समवाय किसे कहते हैं?
  55. प्रश्न- वैशेषिक दर्शन में अभाव क्या है?
  56. प्रश्न- सांख्य दर्शन के मूल सिद्धान्तों का उल्लेख कीजिए।
  57. प्रश्न- सांख्य दर्शन के गुण-दोष लिखिए।
  58. प्रश्न- सांख्य दर्शन के बारे में आप क्या जानते हैं?
  59. प्रश्न- सांख्य दर्शन के प्रमुख बिन्दु क्या हैं?
  60. प्रश्न- न्याय दर्शन से आप क्या समझते हैं?
  61. प्रश्न- योग दर्शन के बारे में अपने विचार प्रकट कीजिए।
  62. प्रश्न- वेदान्त दर्शन में ईश्वर अर्थात् ब्रह्म के स्वरूप का वर्णन कीजिए।
  63. प्रश्न- अद्वैत वेदान्त के तीन प्रमुख सिद्धान्तों को बताइये।
  64. प्रश्न- उपनिषदों के बारे में बताइये।
  65. प्रश्न- उपनिषदों अर्थात् वेदान्त के अनुसार विद्या, अविद्या तथा परमतत्व का उल्लेख कीजिए।
  66. प्रश्न- शिक्षा में वेदान्त का महत्व बताइए।
  67. प्रश्न- बौद्ध धर्म के प्रमुख दार्शनिक सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
  68. प्रश्न- बौद्ध धर्म के क्षणिकवाद तथा अनात्मवाद दार्शनिक सिद्धान्त से आप क्या समझते हैं?
  69. प्रश्न- बौद्ध दर्शन में पंच स्कन्ध तथा कर्मवाद सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।
  70. प्रश्न- बौद्ध दर्शन के परिप्रेक्ष्य में बोधिसत्व से आप क्या समझते हैं?
  71. प्रश्न- बौद्ध दर्शन माध्यमिक शून्यवाद के सिद्धान्त से आप क्या समझते हैं?
  72. प्रश्न- बौद्ध दर्शन में निहित मूल शैक्षिक विचारों का वर्णन कीजिए।
  73. प्रश्न- बौद्ध दर्शन में प्रतीत्य समुत्पाद, कर्मवाद तथा बोधिसत्व के सिद्धान्तों के शैक्षिक विचारों का वर्णन कीजिए।
  74. प्रश्न- बौद्ध दर्शन के शैक्षिक स्वरूप को स्पष्ट कीजिए।
  75. प्रश्न- शिक्षा के उद्देश्य, पाठ्यक्रम एवं अनुशासन पर महात्मा बुद्ध के विचारों की विवेचना कीजिए।
  76. प्रश्न- बौद्ध दर्शन के अष्टांगिक मार्ग के शैक्षिक निहितार्थ का उल्लेख कीजिए।
  77. प्रश्न- बौद्ध धर्म के हीनयान तथा महायान सम्प्रदाय के मूलभूत भेद क्या हैं? उल्लेख कीजिए।
  78. प्रश्न- बौद्ध दर्शन में चार आर्य सत्यों का उल्लेख करते हुए उनके शैक्षिक निहितार्थ का विश्लेषण कीजिए?
  79. प्रश्न- जैन दर्शन से क्या तात्पर्य है? जैन दर्शन के मूल सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
  80. प्रश्न- जैन दर्शन के अनुसार 'द्रव्य' संप्रत्यय की विस्तृत विवेचना कीजिए।
  81. प्रश्न- जैन दर्शन द्वारा प्रतिपादित शिक्षा के उद्देश्यों, पाठ्यक्रम और शिक्षण विधियों का उल्लेख कीजिए।
  82. प्रश्न- इस्लाम दर्शन का परिचय दीजिए। इस्लाम दर्शन के शिक्षा के अर्थ को स्पष्ट करते हुए इसमें निहित शिक्षा के उद्देश्यों, पाठ्यक्रम तथा शिक्षण विधियों का उल्लेख कीजिए।
  83. प्रश्न- इस्लाम धर्म एवं दर्शन की प्रमुख विशेषताएँ क्या है? स्पष्ट कीजिए।
  84. प्रश्न- जैन दर्शन का मूल्यांकन कीजिए।
  85. प्रश्न- मूल्य निर्माण में जैन दर्शन का क्या योगदान है?
  86. प्रश्न- अनेकान्तवाद (स्याद्वाद) को समझाइए।
  87. प्रश्न- जैन दर्शन और छात्र पर टिप्पणी लिखिए।
  88. प्रश्न- इस्लाम दर्शन के अनुसार शिक्षा व शिक्षार्थी के विषय में बताइए।
  89. प्रश्न- संसार को इस्लाम धर्म की देन का उल्लेख कीजिए।
  90. प्रश्न- गीता में नीतिशास्त्र की विस्तृत व्याख्या कीजिए।
  91. प्रश्न- गीता में भक्ति मार्ग की महत्ता क्या है?
  92. प्रश्न- श्रीमद्भगवत गीता के विषय विस्तार को संक्षेप में समझाइये।
  93. प्रश्न- गीता के अनुसार कर्म मार्ग क्या है?
  94. प्रश्न- गीता दर्शन में शिक्षा का क्या अर्थ है?
  95. प्रश्न- गीता दर्शन के अन्तर्गत शिक्षा के सिद्धान्तों को बताइए।
  96. प्रश्न- गीता दर्शन में शिक्षालयों का स्वरूप क्या था?
  97. प्रश्न- गीता दर्शन तथा मूल्य मीमांसा को संक्षेप में बताइए।
  98. प्रश्न- गीता में गुरू-शिष्य के सम्बन्ध कैसे थे?
  99. प्रश्न- वैदिक परम्परा व उपनिषदों के अनुसार शिक्षा के उद्देश्य लिखिए।
  100. प्रश्न- नास्तिक सम्प्रदायों का शैक्षिक अभ्यास में योगदान बताइए।
  101. प्रश्न- आस्तिक एवं नास्तिक पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  102. प्रश्न- रूढ़िवाद किसे कहते हैं? रूढ़िवाद की परिभाषा बताइए।
  103. प्रश्न- भारतीय वेद के सामान्य सिद्धान्त बताइए।
  104. प्रश्न- भारतीय दर्शन के नास्तिक स्कूलों का परिचय दीजिए।
  105. प्रश्न- आस्तिक दर्शन के प्रमुख स्कूलों का परिचय दीजिए।
  106. प्रश्न- भारतीय दर्शन के आस्तिक तथा नास्तिक सम्प्रदायों की व्याख्या कीजिये।
  107. प्रश्न- शिक्षा के उद्देश्य, पाठ्यक्रम और शिक्षण विधि पर श्री अरविन्द घोष के विचारों की विवेचना कीजिए।
  108. प्रश्न- श्री अरविन्द अन्तर्राष्ट्रीय शिक्षा केन्द्र का वर्णन कीजिए।
  109. प्रश्न- शिक्षा के क्षेत्र में अरविन्द घोष के योगदान का वर्णन कीजिए।
  110. प्रश्न- श्री अरविन्द के किन शैक्षिक विचारों ने आपको अपेक्षाकृत अधिक प्रभावित किया और क्यों?
  111. प्रश्न- श्री अरविन्द के शैक्षिक विचारों का वर्णन कीजिए।
  112. प्रश्न- टैगोर के शिक्षा दर्शन का मूल्यांकन कीजिए तथा शिक्षा के उद्देश्य, शिक्षण पद्धति, पाठ्यक्रम एवं शिक्षक के स्थान के सम्बन्ध में उनके विचारों को स्पष्ट कीजिए।
  113. प्रश्न- टैगोर का शिक्षा में योगदान बताइए।
  114. प्रश्न- विश्व भारती का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  115. प्रश्न- शान्ति निकेतन की प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं? आप कैसे कह सकते हैं कि यह शिक्षा में एक प्रयोग है?
  116. प्रश्न- टैगोर का मानवतावादी प्रकृतिवाद पर टिप्पणी लिखिए।
  117. प्रश्न- डॉ. राधाकृष्णन के बारे में प्रकाश डालिए।
  118. प्रश्न- शिक्षा के अर्थ, उद्देश्य तथा शिक्षण विधि सम्बन्धी विचारों पर प्रकाश डालते हुए गाँधी जी के शिक्षा दर्शन का मूल्यांकन कीजिए।
  119. प्रश्न- गाँधी जी के शिक्षा दर्शन तथा शिक्षा की अवधारणा के विचारों को स्पष्ट कीजिए। उनके शैक्षिक सिद्धान्त वर्तमान भारत की प्रमुख समस्याओं का समाधान कहाँ तक कर सकते हैं?
  120. प्रश्न- बुनियादी शिक्षा क्या है?
  121. प्रश्न- बुनियादी शिक्षा का वर्तमान सन्दर्भ में महत्व बताइए।
  122. प्रश्न- "बुनियादी शिक्षा महात्मा गाँधी की महानतम् देन है"। समीक्षा कीजिए।
  123. प्रश्न- गाँधी जी की शिक्षा की परिभाषा की विवेचना कीजिए।
  124. प्रश्न- शारीरिक श्रम का क्या महत्त्व है?
  125. प्रश्न- गाँधी जी की शिल्प आधारित शिक्षा क्या है? शिल्प शिक्षा की आवश्यकता बताते हुए.इसकी वर्तमान प्रासंगिकता बताइए।
  126. प्रश्न- वर्धा शिक्षा योजना पर टिप्पणी लिखिए।
  127. प्रश्न- महर्षि दयानन्द के जीवन एवं उनके योगदान को समझाइए।
  128. प्रश्न- दयानन्द के शिक्षा दर्शन के विषय में सविस्तार लिखिए।
  129. प्रश्न- स्वामी दयानन्द का शिक्षा में योगदान बताइए।
  130. प्रश्न- शिक्षा का अर्थ एवं उद्देश्यों, पाठ्यक्रम, शिक्षण-विधि, शिक्षक का स्थान, शिक्षार्थी को स्पष्ट करते हुए जे. कृष्णामूर्ति के शैक्षिक विचारों की व्याख्या कीजिए।
  131. प्रश्न- जे. कृष्णमूर्ति के जीवन दर्शन पर टिप्पणी लिखिए।
  132. प्रश्न- जे. कृष्णामूर्ति के विद्यालय की संकल्पना पर प्रकाश डालिए।
  133. प्रश्न- मानवाधिकार आयोग के सार्वभौमिक घोषणा पत्र में मानव मूल्यों के सन्दर्भ में क्या घोषणाएँ की गई।
  134. प्रश्न- मूल्यों के संवैधानिक स्रोतों का उल्लेख कीजिए।
  135. प्रश्न- राष्ट्रीय मूल्य की अवधारणा क्या है?
  136. प्रश्न- जनतंत्र का अर्थ स्पष्ट कीजिए जनतन्त्रीय शिक्षा का वर्णन कीजिए?
  137. प्रश्न- लोकतन्त्र में शिक्षा के उद्देश्य क्या हैं?
  138. प्रश्न- आधुनिकीकरण के गुण-दोषों की व्याख्या करते हुए इसमें शिक्षा की भूमिका का भी वर्णन कीजिए।
  139. प्रश्न- आधुनिकीकरण का अर्थ एवं परिभाषएँ बताइए।
  140. प्रश्न- आधुनिकीकरण की विशेषताएँ बताइये।
  141. प्रश्न- आधुनिकीकरण के लक्षण बताइये।
  142. प्रश्न- आधुनिकीकरण में शिक्षा की भूमिका बताइये।
  143. प्रश्न- राष्ट्रीय एकता में शिक्षा की भूमिका क्या है? विवेचना कीजिए।
  144. प्रश्न- शैक्षिक अवसरों में समानता से आप क्या समझते हैं?
  145. प्रश्न- लोकतन्त्रीय शिक्षा के पाठ्यक्रम और शिक्षण विधियों की विवेचना कीजिए।
  146. प्रश्न- जनतन्त्रीय शिक्षा के उद्देश्यों का वर्णन कीजिए।
  147. प्रश्न- शिक्षा में लोकतंत्रीय धारणा से आप क्या समझते हैं?
  148. प्रश्न- राष्ट्रीय एकता की समस्या पर प्रकाश डालिए?
  149. प्रश्न- भारत में शैक्षिक अवसरों की असमानता के विभिन्न स्वरूपों पर प्रकाश डालिए।
  150. प्रश्न- प्रजातन्त्र में शिक्षा की भूमिका बताइये।
  151. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में शिक्षा की भूमिका का मूल्यांकन कीजिए।
  152. प्रश्न- लोकतन्त्र में शिक्षा के उद्देश्य बताइये।
  153. प्रश्न- जनतंत्र के मूल सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
  154. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन से आप क्या समझते हैं? शिक्षा सामाजिक परिवर्तन किस प्रकार लाती है?

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