बी ए - एम ए >> एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र तृतीय प्रश्नपत्र - सामाजिक स्तरीकरण एवं गतिशीलता एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र तृतीय प्रश्नपत्र - सामाजिक स्तरीकरण एवं गतिशीलतासरल प्रश्नोत्तर समूह
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एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र तृतीय प्रश्नपत्र - सामाजिक स्तरीकरण एवं गतिशीलता
प्रश्न- असमानता से क्या आशय है? मनुष्यों में असमानता क्यों पाई जाती है? इसके क्या कारण हैं?
उत्तर -
असमानता
(Inequality)
रूसो ने 'मनुष्यों में असमानता की उत्पत्ति क्या है और क्या यह प्राकृतिक नियम द्वारा अधिकृत है?' नामक एक निबंध लिखा था। एक व्यथित विद्रोही रूसो की सोच में असमानता एक आधारभूत प्रश्न था। उसने मनुष्य की 'मौलिक प्रकृति' और 'सामाजिक उत्पत्ति' की जुड़वाँ समस्याओं पर गम्भीरता से विचार किया। सभ्यता के भ्रष्टाकारी प्रभाव को रूसो एक कारण मानते थे। रूसो ने कहा है कि "सामाजिक संरचना ने मानव प्रकृति (स्वभाव), हमारी है
जीवन पद्धति, हमारी प्रसन्नता की खोज को पथभ्रष्ट किया है।" "यह प्रश्न कि असमानता कैसे आयी, उसके लिये यह जानना होगा कि समाज कैसे आया, क्योंकि असमानता एक सामाजिक सम्बन्ध हैं।" रूसो के अनुसार, समाज का होना मानव इच्छा का एक कृत्य और यह सम्भव है कि 'प्राकृतिक मनुष्य', एकान्त में निवास ( कम-से-कम सैद्धान्तिक दृष्टि से) कर सकता है। लेकिन रूसो की कृति - डिसकोर्स ऑन इनइक्वालिटी में कहा गया है - " ऐतिहासिक या सामाजिक मनुष्य, सामाजिक जीवन की अवस्थाओं के कारण, अवश्य ही बुराई है - अर्थात् वह स्वार्थी - कार्यों में जुटने पर बाध्य होता है, जिससे दूसरों को चोट पहुँचती है। समाज के अधिक सभ्य बनने पर, मनुष्य अधिक बुरा बनेगा।" रूसो यह भी कहते हैं कि 'प्राकृतिक मनुष्य' प्रसन्न व स्थिर है। "प्राकृतिक मनुष्य पर समाज को थोपने के कारण, संघर्ष, असमानता, भ्रमित मूल्य और दरिद्रता की स्थिति उत्पन्न हुई है। "
ऐसी उत्पत्ति तार्किक दृष्टि से दृढ़ और दार्शनिक दृष्टि से भरोसमंद दिखाई देती है, परन्तु वास्तविक सामाजिक जीवन में अवास्तविक प्रतीत होती है। वर्तमान में प्राय: सामाजिक असमानता को वितरणीय न्याय और लोगों के बीच उच्च और निम्न स्तरणों पर आधारित सामाजिक सम्बन्धों का मसला माना जाता है। आय, दौलत, व्यवसाय, शिक्षा, शक्ति, जीवन-शैली आदि द्वारा वितरणीय न्याय या अन्याय की प्रकृति और प्रक्रिया का निर्धारण होता है। इन आधारों से उभरे विभेदीकरण के आधार पर एक समाज के लोगों में सामाजिक सम्बन्ध निर्धारित होते हैं। इस प्रकार जन्म, सजातीयता, प्रजाति और उपरोक्त वर्णित कसौटियों सहित प्रस्थिति निर्धारण के अनेक तरीके हो सकते हैं। स्तरीकरण के अनेक तरीके हो सकते हैं।
असमानता क्यों?
राल्फ डेरेनडार्फ ने कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न उठाये हैं। ये प्रश्न हैं- मनुष्यों में असमानता क्यों पाई जाती है? इसके कारण क्या हैं? क्या यह कम की जा सकती है या पूर्णतः समाप्त की जा सकती है? या हमें असमानता को मानव समाज की संरचना में एक अनिवार्य तत्व मानकर स्वीकार करना चाहिये?
असमानता के इतिहास का वर्णन करते हुए, डेरेनडार्फ का मत है कि 18वीं सदी में असमानता की उत्पत्ति प्रमुख बिन्दु था, 19वीं सदी में वर्गों के सामाजिक निर्माण पर बहस होती है और आज (20वीं और 21 वीं सदियों में) हम सामाजिक स्तरीकरण के सिद्धान्त पर चर्चा कर रहे हैं। मूल समस्या बनी हुई है, परन्तु इसके लिये एक नई सोच ढूँढ़ी जा सकती है। डेरेनडार्फ का निम्न कथन महत्वपूर्ण है -
"खराट चालक और नलफिटर, सेना का जनरल और साजेन्ट, कुलीन बालक और परिश्रमी बालक, बुद्धिमान और अबुद्धिमान ये सभी असमान जोड़े हैं और कम-से-कम दो सन्दर्भों में इनमें अन्तर करना होगा। प्रथम, हमें प्राकृतिक योग्यता और सामाजिक पद स्थानों पर आधारित असमानताओं के बीच अन्तर करना चाहिये और द्वितीय हमें उन असमानताओं में अन्तर करना चाहिये जिनमें मूल्यांकनपरक श्रेणी व्यवस्था नहीं होती है और जिनमें होती है। "
इन दो उपागमों के मिश्रण के आधार पर, डेरेनडार्फ ने चार प्रकार की असमानता का उल्लेख किया है। व्यक्ति के सन्दर्भ में, ये हैं-
(अ) शारीरिक लक्षणों, चरित्र और हितों में प्राकृतिक अन्तरों का प्रकार
(ब) बुद्धि, कौशल और ताकत में श्रेणी के प्राकृतिक अन्तर।
इसी प्रकार, समाज के सन्दर्भ में, ये हैं -
( स ) सामान्यतया समान श्रेणी के पद - स्थानों का सामाजिक विभेदीकरण
(द) प्रसिद्धि व दौलत पर आधारित सामाजिक विभेदीकरण, जिसको सामाजिक प्रस्थिति की श्रेणी - व्यवस्था द्वारा दिखाया जाता है।
रूसो के प्राकृतिक और सामाजिक असमानताओं के बीच भेद और प्राकृतिक असमानताओं को मानते हुए, डेरेनडार्फ ने मुख्यतः स्तरीकरण जैसी असमानताओं में रुचि प्रकट की है। असमानतायें वितरणीय और गैर-वितरणीय दोनों होती हैं। दौलत और प्रतिष्ठा स्तरीकरण के क्षेत्र से सम्बन्धित होने के कारण वितरणीय हैं। सम्पत्ति और करिश्मा गैर-वितरणीय हैं। 'वितरणीय' और 'गैर-वितरणीय' को 'अकर्मक' और 'सकर्मक' असमानतायें भी कहा जा सकता है। रूसो की तरह अरस्तु भी सामाजिक स्तरीकरण (असमानता) की उत्पत्ति के बारे में जानना चाहते थे, लेकिन दोनों में आज हम जो सामाजिक स्तरीकरण की समझ के लिये चाहते हैं, उसकी कमी थी। प्राकृतिक समानता के बारे में अरस्तु के विचार पर टिप्पणी करते हुए डेरेनडार्फ ने कहा है- "यदि प्रकृति द्वारा मनुष्य बराबर हैं, तब प्रकृति या ईश्वर द्वारा सामाजिक असमानतायें स्थापित नहीं की जा सकतीं और यदि वे इस तरह से स्थापित नहीं हैं, तब वे परिवर्तनशील हैं और आज का अति-सुविधा प्राप्त जन आने वाले कल का बहिष्कृत व्यक्ति हो सकता है, यह भी सम्भव हो सकता है कि असमानतायें समाप्त हो जायें।” मनुष्यों और नागरिकों के अधिकारों की जड़ें एक ऐसे दर्शन में पाई जाती हैं। इसलिये डेरेनडार्फ के अनुसार सामाजिक विभेद सामान्य उपयोगिता पर ही निर्भर हो सकते हैं।
डेरेनडार्फ ने निम्न प्रश्न भी प्रस्तुत किये हैं -
1. यदि मनुष्य प्रकृति से श्रेणी में समान हैं तो सामाजिक असमानतायें कहाँ से उभरती
2. यदि सब मनुष्य स्वतंत्र और अधिकारों में जन्म से समान हैं, तब हम कैसे कह सकते हैं कि कुछ धनवान हैं और अन्य निर्धन हैं, कुछ का आदर होता है और दूसरों को नजरअंदाज किया जाता है और कुछ शक्तिमान हैं व दूसरे चाकरी में हैं?
यह स्पष्ट है कि असमानता की मूल अवस्था की मान्यता और असमानता की उत्पत्ति का कारण सम्पत्ति के रूप में आज तक बिना चुनौती के रहे हैं। सैद्धान्तिक दृष्टि से एक समाज को निजी सम्पत्तिविहीन समझ सकते हैं, लेकिन वास्तविकता में यहाँ तक कि पूर्व - सोवियत संघ, पूर्वी यूरोप के देश और आज का चीन धन और आय के अन्तरों को स्वीकार करते हैं, अतः वहाँ भी सामाजिक असमानता है। श्रम के विभाजन के आधार पर व्यवसाय और आय में अन्तर पाये जाते हैं। यह वर्ग निर्माण (अर्थात् श्रेणी की असमानता) का भी आधार है। चूँकि व्यवसाय विभेदीकृत हैं, इसलिये सामाजिक वर्गों और पद-स्थानों का उभरना एक अनिवार्य परिणाम है।
सामाजिक असमानता की सर्वव्याप्ता
टॉलकाट पारसन्स, किंग्सले डेविस, डब्ल्यू० ई० मूर और अन्य विद्वानों के विचारों को ध्यान में रखते हुए, हम कह सकते हैं कि असमानता सभी मानव समाजों में व्याप्त है और उनके साथ व्यवहार का एक मानक पुँज और नियमांकन जुड़े हुए हैं। एक वृहद् अर्थ में कानून सब मानकों और नियमांकनों का प्रतिनिधित्व करता है और इस तरह कानून सामाजिक असमानता की एक आवश्यक और पर्याप्त शर्त या अवस्था है। "क्योंकि कानून है, इसलिये असमानता है, यदि कानून है तो लोगों में असमानता भी होनी चाहिये।”
कानून की नजर में सब मनुष्य बराबर हो सकते हैं, परन्तु इसके पश्चात् वे अधिक समय तक बराबर नहीं रह सकते। दूसरे शब्दों में, मानक और नियमांकन अर्थात् कानून लोगों को असमान बनाते हैं। यहाँ पर दो बिन्दुओं को जानना चाहिये - (i) प्रत्येक समाज एक नैतिक समुदाय है और इसलिये मानकों को मानना पड़ता है, ताकि समाज के सदस्यों का आचरण नियंत्रित किया जा सके और (ii) इन मानकों को लागू करने के लिये वैधता या मान्यता (नियमांकन) की आवश्यकता होती है, ताकि उनके पालन करने वालों को पुरस्कृत और अपराधियों को दण्डित किया जा सके। स्पष्टतः यह एक प्रकार्यवादी दृष्टिकोण है।
डेरेनडार्फ के अनुसार, सामाजिक स्तरीकरण हमारे प्रतिदिन के जीवन में एक बहुत वास्तविक तत्व है। यह वितरणीय व्यवस्था की एक व्यवस्था है, अर्थात् वांछित और दुर्लभ वस्तुओं के विभेदीकरण वितरण की व्यवस्था है। सम्मानं और दौलत के अलावा प्रतिष्ठा और आय, वैधशक्ति, संरक्षण या शक्ति का वितरण, कार्यों या गुणों (विशेषताओं) को पुरस्कार ( प्रतिफल ) के रूप में विभेदीय श्रेणियों की कसौटियाँ माना जा सकता है। वेबर के द्वारा किये गये शक्ति और सत्ता के बीच अन्तर को मानते हुए, डेरेनडार्फ का मत है कि सामाजिक स्तरीकरण के ढाँचे तार्किक दृष्टि से शक्ति और शक्ति संरचनाओं से पहले पाये जाते हैं। इस प्रकार असमानता का स्पष्टीकरण (समझ) शक्ति संरचनाओं में स्थित है। दूसरे शब्दों में,, सामाजिक असमानता की व्याख्या में मानक, नियमांकन और शक्ति, निकट से सम्बन्धित प्रघटनायें हैं। असमानता एक वास्तविकता है। पूर्णत: समतावादी समाज का विचार अवास्तविक व भयानक है।
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- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण क्या है? सामाजिक स्तरीकरण की विशेषताओं का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण की क्या आवश्यकता है? सामाजिक स्तरीकरण के प्रमुख आधारों को स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण को निर्धारित करने वाले कारक कौन-कौन से हैं?
- प्रश्न- सामाजिक विभेदीकरण किसे कहते हैं? सामाजिक स्तरीकरण और सामाजिक विभेदीकरण में अन्तर बताइये।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण से सम्बन्धित आधारभूत अवधारणाओं का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के सम्बन्ध में पदानुक्रम / सोपान की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- असमानता से क्या आशय है? मनुष्यों में असमानता क्यों पाई जाती है? इसके क्या कारण हैं?
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के स्वरूप का संक्षिप्त विवेचन कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के अकार्य/दोषों का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
- प्रश्न- वैश्विक स्तरीकरण से क्या आशय है?
- प्रश्न- सामाजिक विभेदीकरण की विशेषताओं को लिखिये।
- प्रश्न- जाति सोपान से क्या आशय है?
- प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता क्या है? उपयुक्त उदाहरण देते हुए सामाजिक गतिशीलता के विभिन्न प्रकारों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता के प्रमुख घटकों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक वातावरण में परिवर्तन किन कारणों से आता है?
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण की खुली एवं बन्द व्यवस्था में गतिशीलता का वर्णन कीजिए तथा दोनों में अन्तर भी स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय समाज में सामाजिक गतिशीलता का विवेचन कीजिए तथा भारतीय समाज में गतिशीलता के निर्धारक भी बताइए।
- प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता का अर्थ लिखिये।
- प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता के पक्षों का संक्षिप्त विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के संरचनात्मक प्रकार्यात्मक दृष्टिकोण का विवेचन कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के मार्क्सवादी दृष्टिकोण का विवेचन कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण पर मेक्स वेबर के दृष्टिकोण का विवेचन कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण की विभिन्न अवधारणाओं का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये।
- प्रश्न- डेविस व मूर के सामाजिक स्तरीकरण के प्रकार्यवादी सिद्धान्त का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के प्रकार्य पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- डेविस-मूर के संरचनात्मक प्रकार्यात्मक सिद्धान्त का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
- प्रश्न- स्तरीकरण की प्राकार्यात्मक आवश्यकता का विवेचन कीजिये।
- प्रश्न- डेविस-मूर के रचनात्मक प्रकार्यात्मक सिद्धान्त पर एक आलोचनात्मक टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- जाति की परिभाषा दीजिये तथा उसकी प्रमुख विशेषतायें बताइये।
- प्रश्न- भारत में जाति-व्यवस्था की उत्पत्ति के विभिन्न सिद्धान्तों का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- जाति प्रथा के गुणों व दोषों का विवेचन कीजिये।
- प्रश्न- जाति-व्यवस्था के स्थायित्व के लिये उत्तरदायी कारकों का विवेचन कीजिये।
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- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण व्यवस्था के रूप में वर्ग की आवधारणा का वर्णन कीजिये।
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- प्रश्न- धर्म की आधुनिक प्रवृत्तियों की विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- समाज एवं धर्म में होने वाले परिवर्तनों का उल्लेख कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण में धर्म की भूमिका को स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- जाति और जनजाति में अन्तर स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- जाति और वर्ग में अन्तर बताइये।
- प्रश्न- स्तरीकरण की व्यवस्था के रूप में जाति व्यवस्था को रेखांकित कीजिये।
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- प्रश्न- खुली संस्तरण व्यवस्था से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- धर्म की आधुनिक किन्हीं तीन प्रवृत्तियों का उल्लेख कीजिये।
- प्रश्न- "धर्म सामाजिक संगठन का आधार है।" इस कथन का संक्षेप में उत्तर दीजिये।
- प्रश्न- क्या धर्म सामाजिक एकता में सहायक है? अपना तर्क दीजिये।
- प्रश्न- 'धर्म सामाजिक नियन्त्रण का प्रभावशाली साधन है। इस सन्दर्भ में अपना उत्तर दीजिये।
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- प्रश्न- जेण्डर समाजीकरण की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
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