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एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र तृतीय प्रश्नपत्र - सामाजिक स्तरीकरण एवं गतिशीलता

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2683
आईएसबीएन :0

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एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र तृतीय प्रश्नपत्र - सामाजिक स्तरीकरण एवं गतिशीलता

प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण पर मेक्स वेबर के दृष्टिकोण का विवेचन कीजिये।

उत्तर -

सामाजिक स्तरीकरण पर मेक्स वेबर का दृष्टिकोण

सामाजिक स्तरीकरण के बारे में मेक्स वेबर का गहन और तर्कसंगत दृष्टिकोण वर्ग और स्तरीकरण पर मार्क्सवादी अवधारणा की एक आलोचनात्मक टिप्पणी के रूप में समझा जा सकता है। वेबर के सामाजिक स्तरीकरण के सिद्धान्त की विशिष्टता 'शक्ति' है। वेबर ने समाज की तीन 'व्यवस्थाओं, अर्थात्, सामाजिक और राजनीतिक व्यवस्थाओं में, एक स्पष्ट रेखा अंकित की है। वेबर के अनुसार, एक समुदाय में 'वर्ग', 'प्रस्थिति समूह', और 'पार्टियाँ' ( शक्ति समूह), शक्ति वितरण की प्रघटनायें हैं। इस विभेद के आधार पर वेबर का सिद्धान्त बहुआयामी कहा जाता है। इसके विपरीत मार्क्स द्वारा प्रतिपादित सिद्धांत एकल-आयामी हैं।

वर्ग के सन्दर्भ में, वेबर के अनुसार, निम्न तीन बिन्दु महत्वपूर्ण हैं -
(अ) बहुत से लोगों के लिये उनके जीवन के अवसरों का एक विशेष कारक (तत्व) समान होता है।
(ब) यह तत्व वस्तुओं के संग्रह और आय के अवसरों के रूप में पूर्णत: आर्थिक हितों के सन्दर्भ में देखा जाता है।
(स) इसके अतिरिक्त, यह तत्व वस्तु / पदार्थ की अवस्थाओं या श्रम बाजारों के अन्तर्गत पाया जाता है।

इन तीन बिन्दुओं को एक साथ रखने पर 'वर्ग स्थिति' इंगित होती है। वर्ग स्थिति का निर्धारण बाजार स्थिति से होता है। 'वर्ग' शब्द का अभिप्राय लोगों के किसी भी ऐसे समूह से है जो एक जैसी वर्ग स्थिति में पाया जाता है इसलिये, 'सम्पत्ति' और 'सम्पत्ति का अभाव' सब वर्ग परिस्थितियों की आधारभूत श्रेणियाँ हैं। बाजार स्थिति में प्रतियोगिता के कारण कुछ खिलाड़ी (कर्ता) बाहर हो जाते हैं, और कुछ को संरक्षण प्राप्त होता है। इस प्रकार अंत में वर्ग स्थिति बाजार स्थिति बन जाती है। बाजार में अवसर की प्रकृति ही निर्णयकारी क्षण होती है।

एक समाज में सामाजिक सम्मान का जिस प्रकार से वितरण होता है, उसके द्वारा 'सामाजिक संगठन' (व्यवस्था) को परिभाषित किया जाता है। सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था दोनों राजनीतिक व्यवस्था (संगठन) से जुड़ी हुई हैं। परन्तु, दोनों एक समान नहीं हैं। बहुत हद तक सामाजिक व्यवस्था का निर्धारण आर्थिक व्यवस्था द्वारा होता है और फिर इस पर सामाजिक व्यवस्था की प्रतिक्रिया होती है। यहाँ पर हमें वेबर की वर्ग की व्याख्या में मार्क्सवादी विचार का बुद्धिमत्तापूर्ण उपयोग दिखाई देता है। एच०एच० गर्थ और सी० डब्ल्यू० मिल्स के अनुसार, वेबर के कार्य का एक भाग मार्क्स के आर्थिक भौतिकवाद को राजनीतिक और सैनिक भौतिकवाद द्वारा 'घुमा-फिरा कर' प्रस्तुत करने का प्रयास कहा जा सकता है, लेकिन वेबर ने यह स्पष्ट कहा है कि 'प्रस्थिति समूह' और 'वर्ग' एक-दूसरे से अलग हैं।

प्रस्थिति समूह केवल बाजार सिद्धान्त से कार्य नहीं करते हैं वर्गों के विपरीत, प्राय: प्रस्थिति समूह समुदाय होते हैं और सामान्यतया उनका स्वरूप अनिश्चित होता है। 'वर्ग-स्थिति' की तरह ही 'प्रस्थिति-स्थिति' पाई जाती है, और इसमें सम्मान का सामाजिक मापन होता है, जो अधिकतर लोगों को मान्य होता है। यह तथ्य वर्ग- स्थिति से बंधा हुआ हो सकता है, और इसके विपरीत वर्ग- स्थिति, प्रस्थिति स्थिति से बंधी हुई पाई जा सकती है, लेकिन प्रस्थिति - सम्मान अनिवार्यत: वर्ग स्थिति से जुड़ा हुआ नहीं हो सकता। प्रायः यह केवल सम्पत्ति के भावों के स्पष्ट विरोध में पाया जाता है। सम्पत्तिवान और सम्पत्तिविहीन दोनों लोग एक ही प्रस्थिति समूह में पाये जा सकते हैं, लेकिन मार्क्सवादी पैराडाइम में पूँजीपति और सर्वहारा के बीच इस प्रकार की समानता की सोच संभव नहीं है। पूँजीपति और सर्वहारा दो विपरीत दिशाओं में हैं, क्योंकि वे वर्ग पर आधारित दुश्मन हैं, और उनकी प्रस्थितियाँ भी उत्पादन व्यवस्था में उनके विरोधी स्थानों के कारण भिन्न होती हैं।

प्रस्थिति सम्मान के सन्दर्भ में, वेबर ने 'प्रस्थिति स्तरीकरण की गारन्टीज' का उपयोग किया है, और यह एक विशिष्ट जीवन शैली द्वारा प्रदर्शित की जाती है। यहाँ अत्यधिक महत्वपूर्ण बिन्दु यह है कि "सामाजिक मेल-मिलाप पर बंधन रहते हैं और यह आर्थिक प्रस्थिति के अधीन नहीं है। 'प्रस्थिति चक्र' विवाहों द्वारा स्पष्ट दिखाई देता है। प्रस्थिति समूहों को गलियों, पड़ोसों, समूहों, मंदिरों विशेष स्थानों आदि पर एकत्रित होते हुए देख सकते हैं। 'सजातीय अलगाव' और 'जाति', प्रस्थिति चक्रों के उत्तम उदाहरण हैं। प्रस्थिति स्तरीकरण की व्यवस्था को स्थिरता कानून द्वारा मान्य सामाजिक व्यवस्था और परम्पराओं व संस्कारों दोनों से प्राप्त होती है। प्रस्थिति समूहों से जीवन के 'शैलीकरण' की उत्पत्ति होती है। वस्तुओं का उपभोग और 'जीवन शैलियाँ प्रस्थिति समूहों के स्तरीकरण के सूचक हैं।

वेबर के सामाजिक स्तरीकरण की सोच में अतिमहत्वपूर्ण तत्व 'शक्ति' हैं वेबर के अनुसार, "शक्ति एक व्यक्ति या बहुत से व्यक्तियों के द्वारा, अन्य लोगों के विरोध के बावजूद भी, जो उस क्रिया में भागीदारी करते हैं, एक सामूहिक कार्य में अपनी इच्छा को पूरा करने का अवसर है। " शक्ति आर्थिक या सामाजिक तौर पर निर्धारित हो सकती है। परन्तु शक्ति अपने आप में आर्थिक और सामाजिक आधार पर निर्धारित शक्ति से भिन्न है। इसके विपरीत, आर्थिक शक्ति अन्य आधारों पर विद्यमान शक्ति का परिणाम हो सकती है। एक व्यक्ति अपने आपको आर्थिक रूप से शक्तिशाली बनाने के लिय ही दौड़भाग नहीं करता। शक्ति (आर्थिक शक्ति सहित ) केवल शक्ति पाने के लिये महत्वपूर्ण मानी जा सकती है अनेक बार शक्ति प्राप्त करने की इच्छा 'सामाजिक सम्मान' द्वारा भी निर्धारित होती है, लेकिन केवल आर्थिक शक्ति या रुपये की नग्न शक्ति, किसी भी तरह सामाजिक सम्मान का आधार नहीं मानी जा सकती है। शक्ति को भी सामाजिक सम्मान का एकमात्र आधार नहीं मान सकते। प्रेरित / प्रदत्त सामाजिक सम्मान या प्रतिष्ठा भी राजनीतिक या आर्थिक शक्ति का आधार हो सकते हैं। शक्ति और सम्मान दोनों विधि व्यवस्था से आश्वस्त किये जा सकते हैं, परन्तु प्रायः यह उनका प्राथमिक स्रोत नहीं है। विधि व्यवस्था एक अतिरिक्त स्रोत है, और इसलिये इसके द्वारा शक्ति और सम्मान हमेशा प्राप्त नहीं किये जा सकते।

वेबर ने अपने प्रसिद्ध निबंध 'क्लास, स्टेटस, पार्टी' में कहा है कि पार्टियाँ ( राजनीतिक दल) शक्ति के मकान में रहती हैं। पार्टियों का कार्य 'सामाजिक शक्ति' की प्राप्ति की ओर अग्रसर रहता है, अर्थात् शक्ति सार्वजनिक कार्य को, बिना उसकी विषयसूची जाने प्रभावित करती है। शक्ति किसी भी संगठन या एक विशेष सन्दर्भ में विद्यमान रहती है, जहाँ पर कार्यकर्ताओं व भागीदारों में अन्तर्क्रिया पाई जाती है। पार्टियाँ हमेशा समाज में ढलती हैं, एक उद्देश्य को लेकर बढ़ती हैं, चाहे वह निजी कारण से ही हो। 'वर्ग स्थिति' और 'प्रस्थिति स्थिति', 'पार्टियों का निर्धारण कर सकती है, लेकिन पार्टियाँ न तो 'वर्ग' ही हो सकती हैं, और न ही 'प्रस्थिति समूह'। वे आंशिक रूप में 'वर्ग हैं और आंशिक रूप में 'वर्ग' हैं और आंशिक रूप में 'प्रस्थिति पार्टियाँ' हैं और कभी-कभी वे दोनों ही नहीं हैं। पार्टियाँ समुदाय में प्रभुत्व की संरचना को दिखाती हैं। शक्ति प्राप्ति के साधन, नग्न हिंसा से लेकर धन प्रलोभन द्वारा, मतों के लिये प्रचार, सामाजिक प्रभाव, जोशीले भाषण, सुझाव, भद्दे झूठ आदि हो सकते हैं।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण क्या है? सामाजिक स्तरीकरण की विशेषताओं का वर्णन कीजिये।
  2. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण की क्या आवश्यकता है? सामाजिक स्तरीकरण के प्रमुख आधारों को स्पष्ट कीजिये।
  3. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण को निर्धारित करने वाले कारक कौन-कौन से हैं?
  4. प्रश्न- सामाजिक विभेदीकरण किसे कहते हैं? सामाजिक स्तरीकरण और सामाजिक विभेदीकरण में अन्तर बताइये।
  5. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण से सम्बन्धित आधारभूत अवधारणाओं का विवेचन कीजिए।
  6. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के सम्बन्ध में पदानुक्रम / सोपान की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  7. प्रश्न- असमानता से क्या आशय है? मनुष्यों में असमानता क्यों पाई जाती है? इसके क्या कारण हैं?
  8. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के स्वरूप का संक्षिप्त विवेचन कीजिये।
  9. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के अकार्य/दोषों का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
  10. प्रश्न- वैश्विक स्तरीकरण से क्या आशय है?
  11. प्रश्न- सामाजिक विभेदीकरण की विशेषताओं को लिखिये।
  12. प्रश्न- जाति सोपान से क्या आशय है?
  13. प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता क्या है? उपयुक्त उदाहरण देते हुए सामाजिक गतिशीलता के विभिन्न प्रकारों का वर्णन कीजिए।
  14. प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता के प्रमुख घटकों का वर्णन कीजिए।
  15. प्रश्न- सामाजिक वातावरण में परिवर्तन किन कारणों से आता है?
  16. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण की खुली एवं बन्द व्यवस्था में गतिशीलता का वर्णन कीजिए तथा दोनों में अन्तर भी स्पष्ट कीजिए।
  17. प्रश्न- भारतीय समाज में सामाजिक गतिशीलता का विवेचन कीजिए तथा भारतीय समाज में गतिशीलता के निर्धारक भी बताइए।
  18. प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता का अर्थ लिखिये।
  19. प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता के पक्षों का संक्षिप्त विवेचन कीजिए।
  20. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के संरचनात्मक प्रकार्यात्मक दृष्टिकोण का विवेचन कीजिये।
  21. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के मार्क्सवादी दृष्टिकोण का विवेचन कीजिये।
  22. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण पर मेक्स वेबर के दृष्टिकोण का विवेचन कीजिये।
  23. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण की विभिन्न अवधारणाओं का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये।
  24. प्रश्न- डेविस व मूर के सामाजिक स्तरीकरण के प्रकार्यवादी सिद्धान्त का वर्णन कीजिये।
  25. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के प्रकार्य पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
  26. प्रश्न- डेविस-मूर के संरचनात्मक प्रकार्यात्मक सिद्धान्त का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
  27. प्रश्न- स्तरीकरण की प्राकार्यात्मक आवश्यकता का विवेचन कीजिये।
  28. प्रश्न- डेविस-मूर के रचनात्मक प्रकार्यात्मक सिद्धान्त पर एक आलोचनात्मक टिप्पणी लिखिये।
  29. प्रश्न- जाति की परिभाषा दीजिये तथा उसकी प्रमुख विशेषतायें बताइये।
  30. प्रश्न- भारत में जाति-व्यवस्था की उत्पत्ति के विभिन्न सिद्धान्तों का वर्णन कीजिये।
  31. प्रश्न- जाति प्रथा के गुणों व दोषों का विवेचन कीजिये।
  32. प्रश्न- जाति-व्यवस्था के स्थायित्व के लिये उत्तरदायी कारकों का विवेचन कीजिये।
  33. प्रश्न- जाति व्यवस्था को दुर्बल करने वाली परिस्थितियाँ कौन-सी हैं?
  34. प्रश्न- भारतवर्ष में जाति प्रथा में वर्तमान परिवर्तनों का विवेचन कीजिये।
  35. प्रश्न- जाति व्यवस्था में गतिशीलता सम्बन्धी विचारों का विवेचन कीजिये।
  36. प्रश्न- वर्ग किसे कहते हैं? वर्ग की मुख्य विशेषताओं का वर्णन कीजिये।
  37. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण व्यवस्था के रूप में वर्ग की आवधारणा का वर्णन कीजिये।
  38. प्रश्न- अंग्रेजी उपनिवेशवाद और स्थानीय निवेश के परिणामस्वरूप भारतीय समाज में उत्पन्न होने वाले वर्गों का परिचय दीजिये।
  39. प्रश्न- जाति, वर्ग स्तरीकरण की व्याख्या कीजिये।
  40. प्रश्न- 'शहरीं वर्ग और सामाजिक गतिशीलता पर टिप्पणी लिखिये।
  41. प्रश्न- खेतिहर वर्ग की सामाजिक गतिशीलता पर प्रकाश डालिये।
  42. प्रश्न- धर्म क्या है? धर्म की विशेषतायें बताइये।
  43. प्रश्न- धर्म (धार्मिक संस्थाओं) के कार्यों एवं महत्व की विवेचना कीजिये।
  44. प्रश्न- धर्म की आधुनिक प्रवृत्तियों की विवेचना कीजिये।
  45. प्रश्न- समाज एवं धर्म में होने वाले परिवर्तनों का उल्लेख कीजिये।
  46. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण में धर्म की भूमिका को स्पष्ट कीजिये।
  47. प्रश्न- जाति और जनजाति में अन्तर स्पष्ट कीजिये।
  48. प्रश्न- जाति और वर्ग में अन्तर बताइये।
  49. प्रश्न- स्तरीकरण की व्यवस्था के रूप में जाति व्यवस्था को रेखांकित कीजिये।
  50. प्रश्न- आंद्रे बेत्तेई ने भारतीय समाज के जाति मॉडल की किन विशेषताओं का वर्णन किया है?
  51. प्रश्न- बंद संस्तरण व्यवस्था से आप क्या समझते हैं?
  52. प्रश्न- खुली संस्तरण व्यवस्था से आप क्या समझते हैं?
  53. प्रश्न- धर्म की आधुनिक किन्हीं तीन प्रवृत्तियों का उल्लेख कीजिये।
  54. प्रश्न- "धर्म सामाजिक संगठन का आधार है।" इस कथन का संक्षेप में उत्तर दीजिये।
  55. प्रश्न- क्या धर्म सामाजिक एकता में सहायक है? अपना तर्क दीजिये।
  56. प्रश्न- 'धर्म सामाजिक नियन्त्रण का प्रभावशाली साधन है। इस सन्दर्भ में अपना उत्तर दीजिये।
  57. प्रश्न- वर्तमान में धार्मिक जीवन (धर्म) में होने वाले परिवर्तन लिखिये।
  58. प्रश्न- जेण्डर शब्द की अवधारणा को स्पष्ट कीजिये।
  59. प्रश्न- जेण्डर संवेदनशीलता से क्या आशय हैं?
  60. प्रश्न- जेण्डर संवेदशीलता का समाज में क्या भूमिका है?
  61. प्रश्न- जेण्डर समाजीकरण की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  62. प्रश्न- समाजीकरण और जेण्डर स्तरीकरण पर टिप्पणी लिखिए।
  63. प्रश्न- समाज में लैंगिक भेदभाव के कारण बताइये।
  64. प्रश्न- लैंगिक असमता का अर्थ एवं प्रकारों का संक्षिप्त वर्णन कीजिये।
  65. प्रश्न- परिवार में लैंगिक भेदभाव पर प्रकाश डालिए।
  66. प्रश्न- परिवार में जेण्डर के समाजीकरण का विस्तृत वर्णन कीजिये।
  67. प्रश्न- लैंगिक समानता के विकास में परिवार की भूमिका का वर्णन कीजिये।
  68. प्रश्न- पितृसत्ता और महिलाओं के दमन की स्थिति का विवेचन कीजिये।
  69. प्रश्न- लैंगिक श्रम विभाजन के हाशियाकरण के विभिन्न पहलुओं की चर्चा कीजिए।
  70. प्रश्न- महिला सशक्तीकरण की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  71. प्रश्न- पितृसत्तात्मक के आनुभविकता और व्यावहारिक पक्ष का संक्षिप्त वर्णन कीजिये।
  72. प्रश्न- जाति व्यवस्था और ब्राह्मणवादी पितृसत्ता से क्या आशय है?
  73. प्रश्न- पुरुष प्रधानता की हानिकारकं स्थिति का वर्णन कीजिये।
  74. प्रश्न- आधुनिक भारतीय समाज में स्त्रियों की स्थिति में क्या परिवर्तन आया है?
  75. प्रश्न- महिलाओं की कार्यात्मक महत्ता का वर्णन कीजिए।
  76. प्रश्न- सामाजिक क्षेत्र में लैंगिक विषमता का वर्णन कीजिये।
  77. प्रश्न- आर्थिक क्षेत्र में लैंगिक विषमता की स्थिति स्पष्ट कीजिये।
  78. प्रश्न- अनुसूचित जाति से क्या आशय है? उनमें सामाजिक गतिशीलता तथा सामाजिक न्याय का वर्णन कीजिये।
  79. प्रश्न- जनजाति का अर्थ एवं परिभाषाएँ लिखिए तथा जनजाति की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  80. प्रश्न- भारतीय जनजातियों की समस्याओं का वर्णन कीजिए।
  81. प्रश्न- अनुसूचित जातियों एवं पिछड़े वर्गों की समस्याओं का वर्णन कीजिए।
  82. प्रश्न- जनजातियों में महिलाओं की प्रस्थिति में परिवर्तन के लिये उत्तरदायी कारणों का वर्णन कीजिये।
  83. प्रश्न- सीमान्तकारी महिलाओं के सशक्तीकरण हेतु किये जाने वाले प्रयासो का वर्णन कीजिये।
  84. प्रश्न- अल्पसंख्यक कौन हैं? अल्पसंख्यकों की समस्याओं का वर्णन कीजिए एवं उनका समाधान बताइये।
  85. प्रश्न- भारत में मुस्लिम अल्पसंख्यकों की स्थिति एवं समस्याओं का वर्णन कीजिए।
  86. प्रश्न- धार्मिक अल्पसंख्यक समूहों से क्या आशय है?
  87. प्रश्न- सीमान्तिकरण अथवा हाशियाकरण से क्या आशय है?
  88. प्रश्न- सीमान्तकारी समूह की विशेषताएँ लिखिये।
  89. प्रश्न- आदिवासियों के हाशियाकरण पर टिप्पणी लिखिए।
  90. प्रश्न- जनजाति से क्या तात्पर्य है?
  91. प्रश्न- भारत के सन्दर्भ में अल्पसंख्यक शब्द की व्याख्या कीजिये।
  92. प्रश्न- अस्पृश्य जातियों की प्रमुख निर्योग्यताएँ बताइये।
  93. प्रश्न- अस्पृश्यता निवारण व अनुसूचित जातियों के भेद को मिटाने के लिये क्या प्रयास किये गये हैं?
  94. प्रश्न- मुस्लिम अल्पसंख्यक की समस्यायें लिखिये।

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