बी ए - एम ए >> एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र द्वितीय प्रश्नपत्र - भारतीय समाज के परिप्रेक्ष्य एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र द्वितीय प्रश्नपत्र - भारतीय समाज के परिप्रेक्ष्यसरल प्रश्नोत्तर समूह
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एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र द्वितीय प्रश्नपत्र - भारतीय समाज के परिप्रेक्ष्य
प्रश्न- राधाकमल मुकर्जी का मार्क्सवादी परिप्रेक्ष्य क्या है?
उत्तर -
(Marxian Perspective of Radhnakamal Mukarjee)
राधाकमल मुकर्जी ने समाज के एक महाविज्ञान की कल्पना की थी तथा सभी सामाजिक विज्ञानों, विशेष रूप से अर्थशास्त्र एवं समाजशास्त्र को परस्पर नजदीक लाने का सफल प्रयास किया। उनके अनुसार समाजशास्त्र की विषय-वस्तु व्यक्तियों में पाए जाने वाले पारिस्थितिकीय सम्बन्ध हैं तथा इसलिए इनका वस्तुनिष्ठ रूप से अध्ययन किया जाना चाहिए। उनके समाज के बारे में विचारों को महाविज्ञान इसलिए कहा जाता है क्योंकि उनके अनुसार समाज के बारे में सामान्य सिद्धान्त में परिस्थितिकीय सिद्धान्त, समाजशास्त्र सिद्धान्त तथा मूल्यों व प्रतीकों के सिद्धान्त को सम्मिलित करना अनिवार्य है। मुकर्जी ने सामाजिक विज्ञान में जो सन्दर्भ संरचना विकसित की उसमें उन्होंने एक तो प्राकृतिक तथा सामाजिक विज्ञानों में द्वैतता को मानने से इनकार कर दिया और दूसरे सामाजिक विज्ञान के दर्शन को ज्ञान के एकीकरण से सम्बन्धित बताया। श्रीवास्तव के अनुसार, "दर्शन हमें 'सत्यता क्या है' को जानने तथा 'सत्य' को खोजने की प्रक्रियाएँ ढूँढने में सहायक है। राधाकमल मुकर्जी ने दर्शन को पहले अर्थ में लिया है, जबकि अन्य सामाजिक वैज्ञानिक दर्शन के दूसरे प्रकार्य को मानते हैं। उनके लिए, सामाजिक विज्ञान का दर्शन सामाजिक घटना के सामान्य या एकीकृत सिद्धान्त से सम्बन्धित है, यह मानवीय ज्ञान के एकीकरण में एक यन्त्र का कार्य करता है" उन्होंने मूल्यों को सामाजिक विज्ञानों की मुख्य सामग्री माना है क्योंकि मूल्य-मुक्त : विज्ञान मानव अनुभवों की व्याख्या नहीं कर सकता। इतना ही नहीं, उन्होंने सामाजिक वास्तविकता की प्रकृति स्पष्ट करने और क्षेत्र के आधार पर सामाजिक विज्ञानों का वर्गीकरण करके समाजशास्त्र को महत्वपूर्ण योगदान दिया है। मुकर्जी ने मूल्यों को सामाजिक विज्ञानों की मुख्य सामग्री माना है। मूल्यों की सामाजिक संरचना तथा मूल्यों का सोपान व संस्तरण स्पष्ट करके मुकर्जी ने मूल्यों के समाजशास्त्र की नींव रखी। उनके अनुसार मूल्यों को अनदेखा करके सामाजिक वास्तविकता नहीं समझा जा सकता। मूल्यों का वस्तुनिष्ठ अध्ययन सम्भव है। मुकर्जी ने मूल्यों को दो श्रणियों - साध्य-मूल्य तथा साधन मूल्य में विभाजित किया है।
प्रथम मूल्य वे लक्ष्य व सन्तुष्टियाँ हैं जिन्हें मनुष्य या समाज जीवन व मस्तिष्क के विकास व विस्तार की प्रक्रिया में अपने लिए स्वीकार कर लेते हैं, जिनका व्यक्ति अपने व्यवहार में आन्तरीकरण कर लेता है और जो स्वयं साध्य होते हैं। दूसरे वे मूल्य हैं जो स्वयं साध्य-मूल्यों को उन्नत करने के लिये साधन के रूप में प्रयोग किए जाते हैं। प्रथम प्रकार के मूल्य अमूर्त व लोकातीत होते हैं, जबकि द्वितीय विशिष्ट एवं अस्तित्वात्मक होते हैं। उनके अनुसार प्रथम प्रकार के मूल्यों का सम्बन्ध समाज व व्यक्ति के जीवन के उच्चतम आदर्शों तथा मूल्यों से होता है; जबकि द्वितीय मूल्यों का लौकिक लक्ष्यों की पूर्ति के साधन या उपकरण के रूप में प्रयोग किया जाता है। सामान्य रूप से मनुष्य का सम्बन्ध साध्य मूल्यों की अपेक्षा साधन मूल्यों से अधिक होता है और इसीलिये इनकी विवेचना सामाजिक मूल्यों में अधिक की जाती है।
सामाजिक मूल्य सार्वभौमिक नहीं होते अपितु परिस्थिति एवं क्षेत्रीय आधार पर विकसित होने के कारण इनमें सार्वभौमिकता का अभाव पाया जाता है। अन्य शब्दों में कहा जा सकता है कि यद्यपि मूल्य प्रत्येक समाज में पाये जाते हैं, फिर भी इनकी प्रकृति एवं क्षेत्र सभी जगह एक समान नहीं होते। उदाहरण भारत में हिन्दू विवाह से सम्बन्धित मूल्य, मुस्लिम विवाह के मूल्यों अथवा पश्चिमी देशों में विवाह के मूल्यों से भिन्न हैं। उनके अनुसार मूल्य-सिद्धान्त सामाजिक संगठन एवं सामाजिक संरचना से सम्बन्धित है तथा इसीलिए इनमें स्थानीयता पाई जाती है। सामाजिक मूल्य व्यक्तित्व निर्माण में विशेष योगदान देते हैं। व्यक्ति समाजीकरण के माध्यम से समाज द्वारा मान्यता प्राप्त मूल्यों का आन्तरीकरण कर लेता है तथा मूल्यों में वृद्धि के कारण ही उसके नैतिक जीवन का विकास होता है। मूल्य ही व्यक्ति को यह बताते हैं कि उसके समाज में क्या करना है और क्या नहीं करना है। ये एक प्रकार के मानव अभियान्त्रिकी का कार्य करते हैं। जीवन-निर्वाह से सम्बन्धित होने के कारण कुछ मूल्यों का स्थान सबसे भिन्न होता है। इन्हें साधन, बाह्य या क्रियात्मक मूल्य भी कहा जाता है। मुकर्जी ने मूल्यों तथा अपमूल्यों में भी भेद किया है। समाज द्वारा स्वीकृत लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए स्वीकृत मानदण्डों की उपेक्षा कर जब उनके विरुद्ध आचरण किया जाता है, तो इस स्थिति को सामाजिक मूल्यों का उल्लघंन अथवा अपमूल्य कहा जाता है। मूल्यों एवं अपमूल्यों में संघर्ष की स्थिति समाज के एकीकरण को प्रभावित करती है। राधाकमल मुकर्जी ने भारत में समाजशास्त्र के विकास में अद्वितीय योगदान दिया है। पी. सी. जोशी ने उचित ही लिखा है कि, "मुकर्जी को एक पुनर्जागरण व्यक्ति" के रूप में सदैव याद रखा जाएगा जिसने एक तरफ ज्ञान के एकीकरण तथा दूसरी तरफ सोचने व कार्य करने के एकीकरण का प्रतिनिधित्व किया। उन्होंने अपने व्यक्तित्व और चिन्तन में व्यक्ति के खण्डकीय व अलगाव, जो भारत के औद्योगिक युग में परिवर्तन की विशेषता है, के विरोध का प्रतिनिधित्व किया। उनका विरोध पश्चिमी उद्योगवाद के अमानवीकरण के प्रति भी रहा।
मुकर्जी ने भारतीय सामाजिक यथार्थ को समझने के लिए पश्चिमी समाज विज्ञान मॉडल को पूरी तरह अस्वीकार किया है तथा इनके स्थान पर एक ऐसे मानव सापेक्षित सामान्य सिद्धान्त के प्रयोग का सुझाव दिया है जिसमें वैशिष्टतया के साथ-साथ सार्वभौमिक मापदण्ड भी सम्मिलित हो। मुकर्जी ने बन्द व्यवस्था का विरोध किया है तथा स्वाभाविक एवं प्राकृतिक दर्शन व द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद से भी वह पूर्णरूप से सहमत नहीं थे। उन्होंने ऐसे समाज की कल्पना की है जिसमें एक संगठित व्यवस्था हो तथा जिसमें स्वतः प्रेरणा से संरचनात्मक प्रकार्यात्मक समन्वय की दशा में अन्तर्क्रिया गतिशील होती हो। निष्कर्ष में कहा जा सकता है कि यद्यपि मुकर्जी के अध्ययनों में मार्क्सवाद का थोड़ा बहुत प्रभाव रहा तथापि उन्होंने मार्क्सवाद को भी पूरी तरह से कभी भी स्वीकार नहीं किया।
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- प्रश्न- डॉ. अम्बेडकर का जीवन परिचय दीजिये।
- प्रश्न- डॉ. अम्बेडर की दलितोद्धार के प्रति यथार्थवाद दृष्टिकोण को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- डेविड हार्डीमैन का आधीनस्थ या दलितोद्धार परिप्रेक्ष्य के वैचारिक स्वरूप एवं पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
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- प्रश्न- हार्डीमैन द्वारा दलितोद्धार परिप्रेक्ष्य से अपने अध्ययन का विषय बनाये गए देवी 'आन्दोलन के परिणामों पर प्रकाश डालें।
- प्रश्न- डेविड हार्डीमैन के दलितोद्धार परिप्रेक्ष्य के योगदान पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
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- प्रश्न- डॉ. अम्बेडकर के सामाजिक कार्यों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- डॉ. अम्बेडकर के विचारों एवं कार्यों का संक्षिप्त मूल्यांकन कीजिए।