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एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र प्रथम प्रश्नपत्र - प्राचीन समाजशास्त्रीय परम्परायें

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :200
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2681
आईएसबीएन :0

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एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र प्रथम प्रश्नपत्र - प्राचीन समाजशास्त्रीय परम्परायें

प्रश्न- परेटो के अनुसार समाजशास्त्र की प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं?

उत्तर -

परेटो के अनुसार समाजशास्त्र की प्रमुख विशेषताएँ

परेटो अपने समाजशास्त्र को एक सुदृढ़ वैज्ञानिक स्तर पर लाकर प्रतिष्ठित करना चाहते हैं और इस कारण आप हर प्रकार से वैज्ञानिक पद्धति को सामाजिक घटनाओं के सम्बन्ध में अपनाने के पक्ष में हैं। परेटो के इस वैज्ञानिक समाजशास्त्र की चार प्रमुख विशेषताएँ हैं-

(1) यह समाजशास्त्र अन्य विशुद्ध विज्ञानों की भाँति 'क्या रहा है' और 'क्या है' का वर्णन करेगा और सर्वरूप से 'क्या होगा' या 'क्या होना चाहिए' से बचने का प्रयत्न करेगा। 'क्या होगा' और 'क्या होना चाहिए' से सम्बन्धित समस्त विषय बहुत-कुछ अनुमान या कल्पना पर आधारित होने के कारण विज्ञान की सामग्री नहीं बन सकते।

(2) यह समाजशास्त्र अपने लिए एक वैज्ञानिक स्तर बनाए रखने हेतु किसी भी पूर्व धारणा (pre-conception) के आधार पर कार्य नहीं करेगा। दूसरे शब्दों में, समाजशास्त्र किसी भी चीज या घटना को पहले से ही तब तक स्वीकार नहीं कर लेगा या सच नहीं मानेगा जब तक कि उसकी पुष्टि कुछ वास्तविक प्रमाणों या तथ्यों द्वारा न हो जाएगी।

(3) यह वैज्ञानिक समाजशात्र सामाजिक घटनाओं के अध्ययन में उनकी पारस्परिक निर्भरता तथा कार्यात्मक सम्बन्ध (functional relation) को स्वीकार करेगा। साथ ही, गुणात्मक तथ्यों (qualitative facts) पर अधिक भरोसा न करके संख्यात्मक (quantitative) या परिमाणात्मक तथ्यों के आधार पर सामाजिक घटनाओं का विश्लेषण तथा निरूपण करेगा। परन्तु निरीक्षण द्वारा तथ्यों को एकत्रित करने में इस बात का सदैव ध्यान रखना होगा कि कहीं केवल अनोखे, आकस्मिक या बिल्कुल ही अस्थिर और अनिश्चित तथ्यों का ही संकलन, विश्लेषण तथा निरूपण न हो जाए।

(4) वैज्ञानिक समाजशास्त्र का सर्वप्रथम कार्य या उद्देश्य सामाजिक घटनाओं का वर्णन करना और उनमें पाई जाने वाली समानताओं के आधार पर सामाजिक नियमों का प्रतिपादन करना है, न कि सामाजिक योजना बनाना या उपदेश देना। विज्ञान की प्रगति का अर्थ अधिकाधिक यथार्थता या निश्चितता को प्राप्त करना है, और निश्चितता की प्राप्ति तभी सम्भव है जबकि सामाजिक तथ्यों की यथासम्भव संख्यात्मक या परिमाणात्मक अभिव्यक्ति हो। यह हमें क्रमशः अधिकाधिक ऐसे सन्तोषजनक निष्कर्षो पर पहुँचा देगी जोकि सामाजिक घटनाओं की वास्तविकता या सत्यता को प्रकट करेंगे। इसके लिए सबसे आवश्यक बात यह है कि जिनकी प्रयोगात्मक परीक्षा हो सकती है ऐसे तथ्यों को उन तथ्यों से पृथक् रखा जाए जिनकी इस प्रकार परीक्षा नहीं हो सकती।

परेटो का कहना है कि उनके पहले के समाजशास्त्रियों ने जिन समाजशास्त्रीय नियमों या सिद्धान्तों को प्रस्तुत किया है, उनमें से कोई भी तार्किक प्रयोगात्मक पद्धति के अनुरूप नहीं है। दूसरे शब्दो में, उनके द्वारा प्रतिपादित कोई भी सिद्धान्त विज्ञान सम्मत नहीं हैं। वैसे तो असंख्य समाजशास्त्रीय सिद्धान्त व नियम हैं, परन्तु वे सभी सैद्धान्तिक, दार्शनिक, तार्किक प्रयोगात्मक पद्धति से दूर, अन्तिम और उपदेशमूलक सिद्धान्त व नियम हैं। वे न तो वास्तविक तथ्यों पर आधारित हैं और न ही उनकी परीक्षा, उन्हें प्रतिपादित करने वाले विद्वानों ने, वास्तविक निरीक्षण और प्रयोगों के द्वारा की है। यहाँ तक कि कॉम्ट तथा स्पेन्सर के समाजशास्त्र में भी यही कमी पाई जाती है। परेटो का यह विश्वास है कि प्रायः सभी विद्यमान समाजशास्त्रीय नियम धार्मिक या नैतिक परिकल्पनाओं पर आधारित हैं।

उनसे कोई भी लाभ हमें नहीं होता है, इसके अतिरिक्त पुराने नियमों को केवल नवीन शब्दों में प्रस्तुत किया या दोहराया जाता है। वर्तमान समाजशास्त्र का क्षेत्र इस प्रकार के निरर्थक, अवैज्ञानिक सिद्धान्तों, अवधारणाओं, यहाँ तक कि नियमों से भरपूर है। उदाहरणार्थ, धर्म, प्रजातन्त्र, प्रगति, विकास आदि से सम्बन्धित कितनी ही अवधारणाएँ हैं, 'मानवता का धर्म' जैसे कितने ही सिद्धान्त हैं, परन्तु इनमें से किसी को क्योंकि ये सभी उपदेश, निर्देश, 'क्या होना चाहिए', 'क्या अच्छा है' और 'क्या बुरा', ऐसी ही असंख्य बातों से भरपूर हैं। उसी प्रकार उद्विकास, प्रगति, सांस्कृतिक विकास आदि से सम्बन्धित कितने ही नियम हमें देखने को मिलते हैं, परन्तु वे सबके सब वैज्ञानिक आधारों से बहुत दूर हैं इस प्रकार के सिद्धान्त, अवधारणाएँ या नियम वैज्ञानिक विशेषताओं को नहीं रखते हैं। वे बहुत कुछ आध्यात्मिक या काल्पनिकं होते हैं और इस कारण वैज्ञानिक स्तर तक पहुँचने में सर्वथा असमर्थ रहते हैं।

इसके विपरीत, परेटो के तार्किक प्रयोगात्मक समाजशास्त्र के निष्कर्ष तथा परिणाम पूर्णतया वास्तविक तथ्यों पर आधारित होंगे, वास्तविक निरीक्षण और प्रयोगों द्वारा परीक्षित होंगे और समस्त अनुमानों, भावनाओं, सिद्धान्तों, आवेगों और पूर्व-कल्पित धारणाओं से पूर्णतया मुक्त होंगे।

परेटो के वैज्ञानिक समाजशास्त्र की अवधारणा के उपरोक्त विवरण से यह स्पष्ट है कि आप वैज्ञानिक समाजशास्त्र के विषय क्षेत्र के अन्तर्गत किसी भी ऐसे सिद्धान्त या विश्वास को मान्यता देने को तैयार नहीं है जोकि तार्किक प्रयोगात्मक पद्धति की कसौटी में कसा हुआ नहीं है। परेटो की दृढ़ धारणा यह है कि जो कुछ भी सैद्धान्तिक, अनार्थिक अन्तिम अथवा अत्यधिक नैतिक है, वह विज्ञान की सामग्री नहीं बन सकता। परन्तु इसको तात्पर्य ग्रह नहीं है कि वे बिल्कुल निरर्थक ही हैं। परेटो अन्य किन्हीं भी विज्ञानों की तुलना में इनकी उपयोगिता को स्पष्ट रूप से स्वीकार करते हैं। परन्तु साथ ही उनका कहना है कि ये सब कितने ही उपयोगी क्यों न हों लेकिन इनमें सत्यता नहीं होती, जबकि वैज्ञानिक को सत्य की ही खोज करनी चाहिए। इस प्रकार, जैसाकि सोरोकिन ने लिखा है, “परेटो सत्यता को उपयोगिता से पृथक् करते हैं। यदि वे निर्दयतापूर्वक समस्त अवैज्ञानिक धारणाओं को विज्ञान के क्षेत्र से निकाल फेंकने के पक्ष में हैं, तो वह इस कारण कि परेटो विज्ञान को अन्य प्रकार के सामाजिक चिन्तन के साथ मिश्रित होने से बचाना चाहते हैं।"

समाजशास्त्र का एक घनिष्ठ सम्बन्ध अन्य विशिष्ट विज्ञानों से है क्योंकि समाजशास्त्र, एक अर्थ में, विशिष्ट विज्ञानों का ही एक सामान्य या समन्वयात्मक रूप है।

इस सम्बन्ध में परेटो का विश्वास है कि विभिन्न विज्ञानों के अध्ययन से समाजशास्त्र का अध्ययन अधिक सम्पूर्ण है; क्योंकि यह विज्ञान विभिन्न सामाजिक घटनाओं तथा तथ्यों के पारस्परिक सम्बन्धों तथा निर्भरता को स्वीकार करता है। जो सामाजिक विज्ञान इस अन्तःसम्बन्ध तथा अन्तः निर्भरता को स्वीकार नहीं करता है, वह कदापि यथार्थ नहीं हो सकता। एक अर्थशास्त्री के रूप में परेटो इस धारणा के तो पक्ष में हैं कि व्यक्ति तथा समाज का एक आर्थिक आधार अवश्य ही होता है, परन्तु यही सब कुछ नहीं है। एक सामाजिक प्राणी के रूप में एक व्यक्ति की केवल आर्थिक आवश्यकताएँ ही नहीं, अन्य अनेक प्रकार की आवश्यकताएँ भी होती हैं।

परेटो के मतानुसार व्यक्ति के सम्बन्ध में उचित ज्ञान प्राप्त करने के लिए उसकी मूल प्रवृत्तियों, कोमल भावनाओं, उद्वेगों, अनुभूतियों आदि को भी ध्यान में रखना होगा। वह विज्ञान, जोकि मानव जीवन के इन विभिन्न पक्षों का अध्ययन और विश्लेषण संयुक्त या समन्वयात्मक रूप से करता है, समाजशास्त्र है। समाजशास्त्र का विज्ञान केवल परिणामों का भी उपभोग करता हुआ सामाजिक घटनाओं का समन्वयात्मक अध्ययन करता है और इस प्रकार के अध्ययन से विभिन्न सामाजिक घटनाओं में जो समानताएँ पाई जाती हैं, उसी के आधार पर समाजशास्त्रीय नियमों का प्रतिपादन करता है।

इस प्रकार के समन्वयात्मक अध्ययन द्वारा ही वास्तविक मानव और उसके वास्तविक जीवन * का उचित ज्ञान सम्भव है। मानव जीवन तथा उसके द्वारा उत्पन्न सामाजिक घटनाओं को समझने का अन्य कोई उपाय नहीं है। इसीलिए परेटो की यह दृढ़ धारणा रही है कि कोई भी सामाजिक अध्ययन या विज्ञान बिना दूसरों की सहायता के प्रगति नहीं कर सकता।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- समाजशास्त्र के उद्भव की ऐतिहासिक, सामाजिक, आर्थिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिये।
  2. प्रश्न- समाजशास्त्र के उद्भव की विवेचना कीजिये।
  3. प्रश्न- समाजशास्त्र के उद्भव में सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों का संक्षिप्त वर्णन कीजिये।
  4. प्रश्न- समाजशास्त्र की उत्पत्ति एवं विकास के विभिन्न चरणों की व्याख्या कीजिये।
  5. प्रश्न- भारत में समाजशास्त्र के विभिन्न चरणों का वर्णन कीजिये।
  6. प्रश्न- भारत में समाजशास्त्र के विकास की प्रवृत्तियों का वर्णन कीजिये।
  7. प्रश्न- सामाजिक विचारधारा की प्रकृति व उसकी विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  8. प्रश्न- ज्ञान का समाजशास्त्र क्या है? दुर्खीम के अनुसार इसकी विवेचना कीजिए।
  9. प्रश्न- 'दुर्खीम बौद्धिक पक्ष' की विवेचना कीजिए।
  10. प्रश्न- दुर्खीम का समाजशास्त्र में योगदान बताइये।
  11. प्रश्न- समाजशास्त्र के विकास में दुर्खीम का योगदान बताइये।
  12. प्रश्न- विसंगति की अवधारणा का वर्णन कीजिए।
  13. प्रश्न- कॉम्ट तथा दुर्खीम की देन की तुलना कीजिये।
  14. प्रश्न- दुर्खीम का समाजशास्त्रीय योगदान बताइये।
  15. प्रश्न- 'दुर्खीम ने समाजशास्त्र की अध्ययन पद्धति को समृद्ध बनाया' व्याख्या कीजिये।
  16. प्रश्न- दुर्खीम की कृतियाँ कौन-कौन सी हैं? स्पष्ट करें।
  17. प्रश्न- इमाइल दुर्खीम के जीवन-चित्रण तथा प्रमुख कृतियों पर प्रकाश डालिये।
  18. प्रश्न- दुर्खीम के समाजशास्त्रीय प्रत्यक्षवाद के नियम बताइए।
  19. प्रश्न- दुर्खीम के आत्महत्या-सिद्धान्त की आलोचनात्मक जाँच कीजिये।
  20. प्रश्न- दुर्खीम के आत्महत्या के सिद्धान्त के क्या प्रकार हैं?
  21. प्रश्न- आत्महत्या का परिचय, अर्थ, परिभाषा तथा कारण बताइये।
  22. प्रश्न- दुर्खीम के आत्महत्या के सिद्धान्त की विवेचना करते हुए उसके महत्व पर प्रकाश डालिए।
  23. प्रश्न- दुर्खीम के आत्महत्या सिद्धान्त के महत्व पर प्रकाश डालिए।
  24. प्रश्न- 'आत्महत्या सामाजिक कारकों की उपज है न कि वैयक्तिक कारकों की। दुर्खीम के इस कथन की विवेचना कीजिए।
  25. प्रश्न- आत्महत्या का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
  26. प्रश्न- अहम्वादी आत्महत्या के सम्बन्ध में दुर्खीम के विचारों की विवेचना कीजिए।
  27. प्रश्न- दुर्खीम के अनुसार आत्महत्या से आप क्या समझते हैं? इसके कारणों की विवेचना कीजिए।
  28. प्रश्न- दुर्खीम के आत्महत्या के सिद्धान्त को परिभाषित कीजिये।
  29. प्रश्न- दुर्खीम के अनुसार 'विसंगत आत्महत्या' क्या है?
  30. प्रश्न- आत्महत्या का समाज के साथ व्यक्ति के एकीकरण की समस्या।
  31. प्रश्न- दुर्खीम के पद्धतिशास्त्र की विवेचना कीजिए।
  32. प्रश्न- दुर्खीम के पद्धतिशास्त्र की विशेषताएँ लिखिए।
  33. प्रश्न- सामाजिक तथ्य की अवधारणा की विस्तृत व्याख्या कीजिये।
  34. प्रश्न- बाह्यता (Exteriority) एवं बाध्यता (Constraint) क्या है? वर्णन कीजिये।
  35. प्रश्न- दुर्खीम ने सामाजिक तथ्य की व्याख्या किस प्रकार की है?
  36. प्रश्न- समाजशास्त्रीय पद्धति के नियम' पुस्तक में दुर्खीम ने सामाजिक तथ्य को कैसे परिभाषित किया है?
  37. प्रश्न- दुर्खीम के सामाजिक तथ्य की विशेषताओं का मूल्यांकन कीजिए।
  38. प्रश्न- दुर्खीम ने सामाजिक तथ्यों के लिये कौन-कौन से नियमों का उल्लेख किया है?
  39. प्रश्न- दुर्खीम ने सामान्य और व्याधिकीय तथ्यों में किस आधार पर अंतर किया है?
  40. प्रश्न- दुर्खीम द्वारा निर्णीत “अपराध एक सामान्य सामाजिक तथ्य है" को रॉबर्ट बीरस्टीड मानने को तैयार नहीं है। स्पष्ट करें।
  41. प्रश्न- अपराध सामूहिक भावनाओं पर आघात है। स्पष्ट कीजिये।
  42. प्रश्न- दुर्खीम के अनुसार दण्ड क्या है?
  43. प्रश्न- दुर्खीम ने धर्म और जादू में क्या अंतर किये हैं?
  44. प्रश्न- टोटमवाद से दुर्खीम का क्या अर्थ है?
  45. प्रश्न- दुर्खीम ने धर्म के किन-किन प्रकार्यों का उल्लेख किया है?
  46. प्रश्न- दुर्खीम का धर्म का क्या सिद्धांत है?
  47. प्रश्न- दुर्खीम के सामाजिक तथ्यों की अवधारणा पर प्रकाश डालिये।
  48. प्रश्न- दुर्खीम के धर्म के सामाजिक सिद्धान्तों को विश्लेषित कीजिए।
  49. प्रश्न- दुर्खीम ने अपने पूर्ववर्तियों की धर्म की अवधारणों की आलोचना किस प्रकार की है।
  50. प्रश्न- दुर्खीम के धर्म की अवधारणा को विशेषताओं सहित स्पष्ट करें।
  51. प्रश्न- दुर्खीम की धर्म की अवधारणा का आलोचनात्मक मूल्यांकन करें।
  52. प्रश्न- धर्म के समाजशास्त्र के क्षेत्र में दुर्खीम और वेबर के योगदान की तुलना कीजिए।
  53. प्रश्न- पवित्र और अपवित्र, सर्वोच्च देवता के रूप में समाज धार्मिक अनुष्ठान और उनके प्रकार बताइये।
  54. प्रश्न- टोटमवाद क्या है? व्याख्या कीजिये।
  55. प्रश्न- 'कार्ल मार्क्स के अनुसार ऐतिहासिक भौतिकवाद की व्याख्या कीजिए।
  56. प्रश्न- ऐतिहासिक भौतिकवाद की व्याख्या कीजिए।
  57. प्रश्न- मार्क्स के ऐतिहासिक युगों के विभाजन को स्पष्ट कीजिए।
  58. प्रश्न- मार्क्स के ऐतिहासिक सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  59. प्रश्न- मार्क्स की वैचारिक या वैचारिकी के सिद्धान्त का विश्लेषण कीजिए।
  60. प्रश्न- मार्क्स के अनुसार अलगाव को कैसे समाप्त किया जा सकता है?
  61. प्रश्न- मार्क्स का 'आर्थिक निश्चयवाद का सिद्धान्त' बताइए। 'सामाजिक परिवर्तन' के लिए इसकी सार्थकता समझाइए।
  62. प्रश्न- मार्क्स के अनुसार वर्ग संघर्ष का वर्णन कीजिए।
  63. प्रश्न- मार्क्स के विचारों में समाज में वर्गों का जन्म कब और क्यों हुआ?
  64. प्रश्न- आदिम साम्यवादी युग में वर्ग और श्रम विभाजन का कौन-सा स्वरूप पाया जाता था?
  65. प्रश्न- दासत्व युग में वर्ग व्यवस्था की व्याख्या कीजिये।
  66. प्रश्न- मार्क्स ने वर्गों की सार्वभौमिक प्रकृति को कैसे स्पष्ट किया है?
  67. प्रश्न- पूर्व में विद्यमान वर्ग संघर्ष की धारणा में मार्क्स ने क्या जोड़ा?
  68. प्रश्न- मार्क्स ने 'वर्ग संघर्ष' की अवधारणा को किस अर्थ में प्रयुक्त किया?
  69. प्रश्न- मार्क्स के वर्ग संघर्ष के विवेचन में प्रमुख कमियाँ क्या रही है?
  70. प्रश्न- वर्ग और वर्ग संघर्ष की विवेचना कीजिए।
  71. प्रश्न- कार्ल मार्क्स के "द्वन्द्वात्मक भौतिकवादी सिद्धान्त" का मूल्याकंन कीजिए।
  72. प्रश्न- कार्ल मार्क्स की वर्गविहीन समाज की अवधारणा को संक्षेप में समझाइए।
  73. प्रश्न- कार्ल मार्क्स के राज्य सम्बन्धी विचारों की विवेचना कीजिए।
  74. प्रश्न- पूँजीवादी व्यवस्था तथा राज्य में क्या सम्बन्ध है?
  75. प्रश्न- मार्क्स की राज्य सम्बन्धी नई धारणा राज्य तथा सामाजिक वर्ग के बार में समझाइये।
  76. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के परिप्रेक्ष्य के रूप में विखंडित, ऐतिहासिक, भौतिकवादी अवधारणा बताइये |
  77. प्रश्न- स्तरीकरण के प्रमुख सिद्धांत बताइये।
  78. प्रश्न- कार्ल मार्क्स के 'ऐतिहासिक भौतिकवाद' से आप क्या समझते हैं?
  79. प्रश्न- मार्क्स के अनुसार वर्ग संघर्ष का वर्णन कीजिए।
  80. प्रश्न- मार्क्स के विचारों में समाज में वर्गों का जन्म कब और क्यों हुआ?
  81. प्रश्न- मार्क्स ने वर्गों की सार्वभौमिक प्रकृति को कैसे स्पष्ट किया है?
  82. प्रश्न- पूर्व में विद्यमान वर्ग संघर्ष की धारणा में मार्क्स ने क्या जोड़ा?
  83. प्रश्न- मार्क्स ने 'वर्ग संघर्ष' की अवधारणा को किस अर्थ में प्रयुक्त किया?
  84. प्रश्न- मार्क्स के वर्ग संघर्ष के विवेचन में प्रमुख कमियाँ क्या रही हैं?
  85. प्रश्न- वर्ग और वर्ग संघर्ष की विवेचना कीजिए।
  86. प्रश्न- समाजशास्त्र को मार्क्स का क्या योगदान मिला?
  87. प्रश्न- मार्क्स ने समाजवाद को क्या योगदान दिया?
  88. प्रश्न- साम्यवादी समाज के निर्माण के लिये मार्क्स ने क्या कार्य पद्धति सुझाई?
  89. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के बारे में मार्क्स के विचारों को स्पष्ट कीजिए।
  90. प्रश्न- द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  91. प्रश्न- द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद की मुख्य विशेषताएँ बताइये।
  92. प्रश्न- सामाजिक विकास की विभिन्न अवस्थाएँ क्या हैं?
  93. प्रश्न- मार्क्स द्वारा प्रस्तुत वर्ग संघर्ष के कारणों की विवेचना कीजिए।
  94. प्रश्न- सामाजिक विकास की विभिन्न अवस्थाएँ क्या हैं?
  95. प्रश्न- सर्वहारा क्रान्ति की विशेषताएँ बताइये।
  96. प्रश्न- मार्क्स के अनुसार अलगाववाद के लिए उत्तरदायी कारकों पर प्रकाश डालिए।
  97. प्रश्न- मार्क्स का आर्थिक निश्चयवाद का सिद्धान्त बताइए। 'सामाजिक परिवर्तन' के लिए इसकी सार्थकता बताइए।
  98. प्रश्न- द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद की मुख्य विशेषतायें बताइये।
  99. प्रश्न- मैक्स वेबर के बौद्धिक पक्ष के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालिये।
  100. प्रश्न- वेबर का समाजशास्त्र में क्या योगदान है?
  101. प्रश्न- वेबर के अनुसार सामाजिक क्रिया क्या है? सामाजिक क्रिया के विभिन्न प्रचारों का वर्णन भी कीजिए।
  102. प्रश्न- सामाजिक क्रिया के विभिन्न प्रकार क्या हैं?
  103. प्रश्न- नौकरशाही किसे कहते हैं? वेबर के नौकरशाही सिद्धान्त की समीक्षा कीजिए।
  104. प्रश्न- वेबर का नौकरशाही सिद्धान्त क्या है?
  105. प्रश्न- नौकरशाही की प्रमुख विशेषताएँ बतलाइये।
  106. प्रश्न- सत्ता क्या हैं? व्याख्या कीजिए।
  107. प्रश्न- मैक्स वैबर के अनुसार समाजशास्त्र को परिभाषित किजिये।
  108. प्रश्न- वेबर का पद्धतिशास्त्र तथा मूल्यांकनात्मक निर्णय क्या हैं? स्पष्ट करो।
  109. प्रश्न- आदर्श प्ररूप की धारणा का वर्णन कीजिए।
  110. प्रश्न- करिश्माई सत्ता के मुख्य लक्षणों पर प्रकाश डालिए।
  111. प्रश्न- 'प्रोटेस्टेण्ट आचार और पूँजीवाद की आत्मा' सम्बन्धी मैक्स वेबर के सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  112. प्रश्न- कार्य प्रणाली का योगदान या कार्य प्रणाली का अर्थ, परिभाषा बताइये।
  113. प्रश्न- मैक्स वेबर के 'आदर्श प्रारूप' की विवेचना कीजिए।
  114. प्रश्न- मैक्स वैबर का संक्षिप्त जीवन-चित्रण तथा प्रमुख कृतियों का वर्णन कीजिये।
  115. प्रश्न- मैक्स वेबर का बौद्धिक दृष्टिकोण क्या है?
  116. प्रश्न- सामाजिक क्रिया को स्पष्ट कीजिये।
  117. प्रश्न- मैक्स वेबर द्वारा दिये गये सामाजिक क्रिया के प्रकारों की विवेचना कीजिए।
  118. प्रश्न- वैबर के अनुसार सामाजिक वर्ग और स्थिति क्या है? बताइये।
  119. प्रश्न- वेबर का सामाजिक संगठन का सिद्धान्त क्या है? बताइये।
  120. प्रश्न- वेबर का धर्म का समाजशास्त्र क्या है? बताइये।
  121. प्रश्न- धर्म के सम्बन्ध में कार्ल मार्क्स तथा मैक्स वेबर के विचारों की तुलना कीजिए।
  122. प्रश्न- वेबर ने शक्ति को किस प्रकार समझाया?
  123. प्रश्न- नौकरशाही के दोष समझाइए?
  124. प्रश्न- वेबर के पद्धतिशास्त्र में आदर्श प्रारूप की अवधारणा का क्या महत्त्व है?
  125. प्रश्न- मैक्स वेबर द्वारा प्रदत्त आदर्श प्रारूप की विशेषताएँ बताइये। .
  126. प्रश्न- वेबर की आदर्श प्रारूप की अवधारणा से आप क्या समझते हैं?
  127. प्रश्न- डिर्क केसलर की आदर्श प्रारूप हेतु क्या विचारधाराएँ हैं?
  128. प्रश्न- मैक्सवेबर के अनुसार दफ्तरी कार्य व्यवस्थाएँ किस तरह की होती हैं?
  129. प्रश्न- मैक्स वेबर के अनुसार, कर्मचारी-तंत्र के कौन-कौन से कारण हैं? स्पष्ट करें।
  130. प्रश्न- 'मैक्स वेबर ने कर्मचारी तंत्र का मात्र औपचारिक रूप से ही अध्ययन किया है।' स्पष्ट करें।
  131. प्रश्न- रोबर्ट मार्टन ने कर्मचारी तंत्र के दुष्कार्य क्या बताये हैं?
  132. प्रश्न- मैक्स वेबर के अनुसार, 'कार्य ही जीवन तथा कुशलता ही धन है' किस तरह से?
  133. प्रश्न- “जो व्यक्ति व्यवसाय में कुशल है, धन और समाज दोनों ही पाते हैं।" मैक्स वेबर की विचारधारा पर स्पष्ट करें।
  134. प्रश्न- मैक्स वेबर की धर्म के समाजशास्त्र की कौन-कौन सी विशेषताएँ हैं? स्पष्ट करें।
  135. प्रश्न- मैक्स वेबर का पद्धतिशास्त्र क्या है? इसकी विशेषताएँ बताइये।
  136. प्रश्न- वेबर का धर्म का सिद्धान्त क्या है?
  137. प्रश्न- वेबर का पूँजीवाद समाज में नौकरशाही व्यवस्था पर लेख लिखिये।
  138. प्रश्न- प्रोटेस्टेन्टिजम और पूँजीवाद के बीच सम्बन्धों पर वेबर के विचारों की विवेचना कीजिए।
  139. प्रश्न- वेबर द्वारा प्रतिपादित आदर्श प्ररूप की अवधारणा स्पष्ट कीजिए।
  140. प्रश्न- परेटो की वैज्ञानिक समाजशास्त्र की अवधारणा क्या है?
  141. प्रश्न- परेटो के अनुसार समाजशास्त्र की प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं?
  142. प्रश्न- परेटो की वैज्ञानिक समाजशास्त्र की अवधारणा का वर्णन कीजिये।
  143. प्रश्न- विलफ्रेडो परेटो की प्रमुख कृतियों के साथ संक्षिप्त परिचय दीजिये।
  144. प्रश्न- पैरेटो के “सामाजिक क्रिया सिद्धान्त का परीक्षण कीजिए?
  145. प्रश्न- परेटो के अनुसार तर्कसंगत और अतर्कसंगत क्रियाओं की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  146. प्रश्न- परेटो ने अतर्कसंगत क्रियाओं को कैसे समझाया?
  147. प्रश्न- विशिष्ट चालक की अवधारणा का वर्णन कीजिए एवं महत्व बताइये।
  148. प्रश्न- विशिष्ट चालक का महत्व बताइये।
  149. प्रश्न- पैरेटो के भ्रान्त-तर्क के सिद्धांत की विवेचना कीजिए।
  150. प्रश्न- पैरेटो के 'अवशेष' के सिद्धांत का क्या महत्त्व है?
  151. प्रश्न- भ्रान्त तर्क की अवधारणा क्या है?
  152. प्रश्न- भ्रान्त-तर्क का वर्गीकरण कीजिये।
  153. प्रश्न- संक्षेप में परेटो का समाजशास्त्र में योगदान बताइये।
  154. प्रश्न- पैरेटो की मानवीय क्रियाओं के वर्गीकरण की चर्चा कीजिये।
  155. प्रश्न- तार्किक क्रिया व अतार्किक क्रिया में अन्तर स्पष्ट कीजिये।

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