बी ए - एम ए >> एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र प्रथम प्रश्नपत्र - प्राचीन समाजशास्त्रीय परम्परायें एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र प्रथम प्रश्नपत्र - प्राचीन समाजशास्त्रीय परम्परायेंसरल प्रश्नोत्तर समूह
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एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र प्रथम प्रश्नपत्र - प्राचीन समाजशास्त्रीय परम्परायें
अध्याय - 7
परेटो
(Pareto)
प्रश्न- परेटो की वैज्ञानिक समाजशास्त्र की अवधारणा क्या है?
सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न - परेटो का समाजशास्त्र में क्या योगदान है?
उत्तर -
परेटो की वैज्ञानिक समाजशास्त्र की अवधारणा
परेटो अपने से पहले के विद्वानों द्वारा किए गए विभिन्न सामाजिक घटनाओं के अध्ययन व विश्लेषण तथा उनके द्वारा प्रतिपादित समाजशास्त्र की अवधारणा से सन्तुष्ट प्रतीत नहीं होते हैं। परेटो का विश्वास है कि उनके पूर्व के विद्वानों के कोई भी अध्ययन वैज्ञानिक पद्धति के अनुसार नहीं. किए गए थे, न ही उन्होंने समाजशास्त्र के अध्ययन को वास्तविक तथ्यों पर आधारित किया था। इस कारण उनके अध्ययन या तो दार्शनिक थे, या केवल सैद्धान्तिक। इसलिए इनके द्वारा प्रस्तावित समाजशास्त्र भी यथार्थ और वैज्ञानिक स्तर तक पहुँचने में असफल रहा है। इनकी इस कमी को दूर करके परेटो एक ऐसे समाजशास्त्र का निर्माण करना चाहते हैं जोकि वास्तविक रूप में यथार्थ और वैज्ञानिक हो। इस समाजशास्त्र का केवल दृष्टिकोण ही नहीं, बल्कि पद्धति भी पूर्णरूप से वैज्ञानिक होगी। इस वैज्ञानिक समाजशास्त्र में अन्य प्राकृतिक विज्ञानों की भाँति समाज के अध्ययन में वैज्ञानिक पद्धतियों का प्रयोग किया जाएगा। अपने इस समाजशास्त्र को परेटो ने तार्किक प्रयोगात्मक विज्ञान (Logico-experimental Science) का नाम दिया। वह समाजशास्त्र तार्किक प्रयोगात्मक पद्धति का अनुसरण करेगा। इस पद्धति के तीन प्रमुख स्तर या आधार हैं-
(अ) निरीक्षण,
(ब) तथ्ययुक्त या वैषयिक अनुभव तथा
(स) निरीक्षण व अनुभव के आधार पर निकाले गए तर्क-सम्मत निष्कर्ष।
इस प्रकार वैज्ञानिक समाजशास्त्र सामाजिक घटनाओं का अध्ययन अनुभवों के आधार पर करता है, उन्हें वास्तविक निरीक्षण तथा प्रयोग की कसौटी पर कसता है, इसके पश्चात् इस प्रकार अध्ययन की गई विभिन्न घटनाओं में जो तत्व एक-से या समान हैं, उन्हें खोज निकालता है, और अन्त में इन समानताओं के आधार पर समाजशास्त्रीय नियमों का प्रतिपादन करता है या समाजशास्त्रीय नियमों का पता लगाता है। इस प्रकार, परेटो अनुभव और निरीक्षण को ही अपने समाजशास्त्र में मार्ग- दर्शक के रूप में ग्रहण करना चाहते हैं और उनकी सहायता से प्रयोगात्मक परीक्षा द्वारा विभिन्न घटनाओं में समानताओं को ढूँढ निकालकर सत्य के अधिकाधिक निकट पहुँचने की आशा करते हैं। इसी कारण परेटो का विश्वास है कि अनुभव, निरीक्षण और प्रयोग के आधार पर सामाजिक घटनाओं में समानताओं को ढूँढ निकालकर सत्य के अधिकाधिक निकट पहुँचने की आशा करते हैं। इसी कारण परेटो का विश्वास है कि अनुभव, निरीक्षण और प्रयोग के आधार पर सामाजिक घटनाओं में समानताओं को ढूँढ निकालना और उसी आधार पर सामाजिक नियमों का प्रतिपादन करना समाजशास्त्रियों का सबसे महत्वपूर्ण उद्देश्य होना चाहिए। इसीलिए परेटो का आग्रह है कि अन्य किसी यथार्थ विज्ञान की भाँति समाजशास्त्र को भी परिणामों की परवाह किए बिना तार्किक प्रयोगात्मक पद्धति (Logico- experimental Method) का अनुसरण करना चाहिए। यदि इस प्रकार का कोई क्षेत्र या विषय है जिसमें या जिसके अध्ययन में इस पद्धति का प्रयोग नहीं किया जा सकता, तो परेटो दृढ़तापूर्वक उसे समाजशास्त्र के क्षेत्र से अलग रखना ही उचित समझते हैं।
परेटो ने स्वीकार किया है कि तार्किक प्रयोगात्मक पद्धति के आधार पर हम सामाजिक घटनाओं के आध्यात्मिक स्तर तक नहीं पहुँचे सकतेय और हो सकता है कि इस पद्धति के द्वारा हम जिस नतीजे पर पहुँचें वह सामान्य धारणाओं का पूर्णतया विरोधी होय फिर भी यही एकमात्र पद्धति है जिसके द्वारा हम उस स्तर तक पहुँच सकते हैं जहाँ सत्य की प्राप्ति सम्भव हो सकती है। किसी भी वैज्ञानिक का सर्वश्रेष्ठ उद्देश्य सत्य की प्राप्ति हैय सत्य की खोज में लगे रहना ही वैज्ञानिक का एकमात्र कर्तव्य है। “सत्य की खोज करो, चाहे वह स्वर्ग हो या नरक" यही परेटो का अन्तिम निर्देश है।
परेटो का समाजशास्त्र ठोस प्रमाणों या तथ्यों पर आधारित है, जोकि वास्तविक निरीक्षण के आधार पर एकत्रित किए जाएँगे। परेटो को कल्पना या भावुकता से घृणा है। आप दर्शनशास्त्र से इसीलिए बहुत दूर रहना चाहते हैं और दृढ़तापूर्वक इस बात की घोषणा करते हैं कि आप केवल देखकर ही किसी तथ्य को जानेंगे। परेटो के अनुसार, कोई तर्क, कोई अनुमान, कोई नैतिकता या और कुछ भी जो वास्तविक तथ्यों से बाहर है या वास्तविक तथ्यों से परे है, और जो घटनाओं की समानताओं या विशेषताओं का वर्णन नहीं कर सकता है, वैज्ञानिक समाजशास्त्र के क्षेत्र के अन्तर्गत नहीं माना जा सकता है।
उपर्युक्त विवरण से यह स्पष्ट हो जाता है कि तार्किक प्रयोगात्मक समाजशास्त्र (Logico- experimental Sociology) की पद्धति पूर्णतया प्राकृतिक विज्ञानों की पद्धति के अनुरूप होगी। इस पद्धति का उद्देश्य, अन्य प्राकृतिक विज्ञानों की पद्धतियों की जटिल घटनाओं को, उनकी प्रयोगसिद्धं समानताओं को ढूँढ निकालकर सरल घटनाओं के रूप में प्रस्तुत करना है। जटिल से जटिल घटनाओं या वस्तु को सरल बना देने की शक्ति ही वैज्ञानिक पद्धति की कसौटी है। परन्तु इस वैज्ञानिक स्तर तक पहुँचने के लिए हमें आन्तरिक रूप में समस्त व्यक्तिगत विचारों और भावनाओं को दूर रखते हुए तथा धार्मिक, नैतिक, मानवीय या देशभक्ति की भावनाओं से बचते हुए, केवल वैज्ञानिक पद्धति के आधार पर ही आगे बढ़ना होगा।
चूँकि तार्किक प्रयोगात्मक समाजशास्त्र पूर्णतया वैज्ञानिक पद्धति पर आधारित है, इस कारण इस समाजशास्त्र के क्षेत्र के अन्तर्गत अनुमान, कल्पना, अन्धविश्वास, दार्शनिक सिद्धान्त आदि का कोई भी स्थान नहीं है। यह हो सकता है कि इस वैज्ञानिक समाजशास्त्र के अन्तर्गत हम भावनाओं, आवेगों, तथा अनुभूतियों का अध्ययन करें, परन्तु किसी भी मूल्य में सामाजिक घटनाओं के विश्लेषण, निरूपण या व्याख्या में इन भावनाओं आवेगों और अनुभूतियों का सहारा कदापि नहीं लिया जाएगा। दूसरे शब्दों में, तार्किक प्रयोगात्मक पद्धति व्यक्तिगत भावनाओं, आवेगों और अनुभूतियों से पूर्णतया परे होगी।
वैज्ञानिक समाजशास्त्र के प्रत्येक नियम पूर्णतया वास्तविक तथ्यों पर आधारित होते हैं। परन्तु इस सम्बन्ध में, जैसा कि परेटो का कथन है, यह भी स्मरणीय है कि कोई भी वास्तविक तथ्य पूर्णतया स्थिर नहीं होता है। चूँकि तथ्य स्वयं परविर्तनशील हैं, इस कारण समाजशास्त्रीय नियम भी परिवर्तनशील या सापेक्षिक (relative) होते हैं। दूसरे शब्दों में, तार्किक प्रयोगात्मक समाजशास्त्र में कुछ भी पूर्ण रूप से स्थिर या अन्तिम नहीं है, क्योंकि सामाजिक घटनाएँ और सामाजिक तथ्य स्वयं ही गतिशील और परिवर्तनशील हैं। इस कारण परेटो के वैज्ञानिक समाजशास्त्र में आवश्यकता, अपरिहार्यता, अन्तिम सत्य या अन्तिम निर्णायकवाद आदि के लिए कोई भी स्थान नहीं होगा।
इस प्रकार के किसी भी पूर्ण सत्य या तथ्य को स्वीकार कर लेने का अर्थ सामाजिक घटनाओं या तथ्यों की गतिशील या परिवर्तनशील प्रकृति को अस्वीकार करना होगा। इसी कारण वैज्ञानिक समाजशास्त्र का कोई भी निष्कर्ष या नियम अन्तिम नहीं होता। उसमें किसी भी समय परिवर्तन या परिवर्द्धन हो सकता है। जैसे ही नवीन तथ्य सामने आ जाते हैं, या कोई नवीन खोज पुराने निष्कर्षों या नियमों को गलत प्रमाणित कर देती है, वैसे ही उन नियमों या निष्कर्षों को बदलने या छोड़ने में तनिक भी हिचकिचाहट नहीं होनी चाहिए।
वैज्ञानिक समाजशास्त्र के प्रत्येक नियम पूर्णतया वास्तविक तथ्यों पर आधारित होते हैं, इस कारण तथ्यों के बदलने या नवीन तथ्यों के सामने आ जाने के साथ-साथ पुराने सामाजिक नियम या तो बदल दिए जाएँगे या उनमें आवश्यक सुधार कर दिए जाएँगे। परेटो के समाजशास्त्र में निरीक्षण या प्रयोगात्मक परीक्षा सदैव चलती रहती है और उसी के अनुसार नए सामाजिक नियम बनते हैं या पुराने सामाजिक नियमों को फिर से परखा और संशोधित किया जाता है, यदि विद्यमान तथ्य इस प्रकार की कोई माँग करते हैं। परेटो ने स्पष्ट ही कह दिया है कि जिस किसी भी वस्तु, विषय, तथ्य या घटना का निरीक्षण तथा प्रयोगात्मक परीक्षा सम्भव नहीं है, उसका तार्किक प्रयोगात्मक समाजशास्त्र के विषय - क्षेत्र में कोई भी स्थान नहीं है।
परेटो के समाजशास्त्र की दूसरी विशेषता यह है कि उन्होंने सामाजिक घटनाओं के अध्ययन में किसी भी एक कारक को अधिक प्रधानता नहीं दी है। उनका कहना है कि कोई भी एक कारक सामाजिक तथ्य को निर्धारित नहीं करता है और न ही किसी भी तथ्य या घटना का अन्य तथ्य और घटनाओं पर एकतरफा प्रभाव होता है। प्रत्येक तथ्य या घटना का अन्य सभी तथ्यों या घटनाओं पर तथा सभी तथ्यों या घटनाओं का प्रत्येक तथ्य का प्रभाव पड़ता है।
संक्षेप में, समस्त सामाजिक घटनाओं और तथ्यों में एक अन्तः सम्बन्ध और अन्तः निर्भरता होती हैं। उदाहरणार्थ, यदि किसी समाज के सदस्यों के गुण सामाजिक संगठन को प्रभावित करते हैं, तो सामाजिक संगठन भी सदस्यों के गुणों को प्रभावित करेगा। इसी को और भी विस्तृत अर्थ में हम इस तरह कह सकते हैं कि जिस प्रकार एक ओर समाज व्यक्ति के व्यक्तित्व निर्माण में सहायता करके उसे सामाजिक प्राणी के रूप में विकसित करता है, उसी प्रकार व्यक्ति का विकसित व्यक्तित्व समाज के स्वरूपों को निश्चित करता है, इस प्रकार समाज का व्यक्ति पर या व्यक्ति का समाज पर एकतरफा प्रभाव नहीं है; बल्कि इन दोनों का दोनों पर एक आन्तरिक प्रभाव और एक का दूसरे के साथ एक घनिष्ठ सम्बन्ध तथा पारस्परिक निर्भरता है।
परेटो का समाजशास्त्र अपने अध्ययन में विभिन्न सामाजिक घटनाओं तथा तथ्यों में पाए जाने वाले अन्तः सम्बन्धों तथा पारस्परिक निर्भरता को स्पष्ट रूप से स्वीकार करता है।
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- प्रश्न- समाजशास्त्र के उद्भव की ऐतिहासिक, सामाजिक, आर्थिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- समाजशास्त्र के उद्भव की विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- समाजशास्त्र के उद्भव में सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों का संक्षिप्त वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- समाजशास्त्र की उत्पत्ति एवं विकास के विभिन्न चरणों की व्याख्या कीजिये।
- प्रश्न- भारत में समाजशास्त्र के विभिन्न चरणों का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- भारत में समाजशास्त्र के विकास की प्रवृत्तियों का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक विचारधारा की प्रकृति व उसकी विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- ज्ञान का समाजशास्त्र क्या है? दुर्खीम के अनुसार इसकी विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- 'दुर्खीम बौद्धिक पक्ष' की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- दुर्खीम का समाजशास्त्र में योगदान बताइये।
- प्रश्न- समाजशास्त्र के विकास में दुर्खीम का योगदान बताइये।
- प्रश्न- विसंगति की अवधारणा का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- कॉम्ट तथा दुर्खीम की देन की तुलना कीजिये।
- प्रश्न- दुर्खीम का समाजशास्त्रीय योगदान बताइये।
- प्रश्न- 'दुर्खीम ने समाजशास्त्र की अध्ययन पद्धति को समृद्ध बनाया' व्याख्या कीजिये।
- प्रश्न- दुर्खीम की कृतियाँ कौन-कौन सी हैं? स्पष्ट करें।
- प्रश्न- इमाइल दुर्खीम के जीवन-चित्रण तथा प्रमुख कृतियों पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- दुर्खीम के समाजशास्त्रीय प्रत्यक्षवाद के नियम बताइए।
- प्रश्न- दुर्खीम के आत्महत्या-सिद्धान्त की आलोचनात्मक जाँच कीजिये।
- प्रश्न- दुर्खीम के आत्महत्या के सिद्धान्त के क्या प्रकार हैं?
- प्रश्न- आत्महत्या का परिचय, अर्थ, परिभाषा तथा कारण बताइये।
- प्रश्न- दुर्खीम के आत्महत्या के सिद्धान्त की विवेचना करते हुए उसके महत्व पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- दुर्खीम के आत्महत्या सिद्धान्त के महत्व पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'आत्महत्या सामाजिक कारकों की उपज है न कि वैयक्तिक कारकों की। दुर्खीम के इस कथन की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- आत्महत्या का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- अहम्वादी आत्महत्या के सम्बन्ध में दुर्खीम के विचारों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- दुर्खीम के अनुसार आत्महत्या से आप क्या समझते हैं? इसके कारणों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- दुर्खीम के आत्महत्या के सिद्धान्त को परिभाषित कीजिये।
- प्रश्न- दुर्खीम के अनुसार 'विसंगत आत्महत्या' क्या है?
- प्रश्न- आत्महत्या का समाज के साथ व्यक्ति के एकीकरण की समस्या।
- प्रश्न- दुर्खीम के पद्धतिशास्त्र की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- दुर्खीम के पद्धतिशास्त्र की विशेषताएँ लिखिए।
- प्रश्न- सामाजिक तथ्य की अवधारणा की विस्तृत व्याख्या कीजिये।
- प्रश्न- बाह्यता (Exteriority) एवं बाध्यता (Constraint) क्या है? वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- दुर्खीम ने सामाजिक तथ्य की व्याख्या किस प्रकार की है?
- प्रश्न- समाजशास्त्रीय पद्धति के नियम' पुस्तक में दुर्खीम ने सामाजिक तथ्य को कैसे परिभाषित किया है?
- प्रश्न- दुर्खीम के सामाजिक तथ्य की विशेषताओं का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- दुर्खीम ने सामाजिक तथ्यों के लिये कौन-कौन से नियमों का उल्लेख किया है?
- प्रश्न- दुर्खीम ने सामान्य और व्याधिकीय तथ्यों में किस आधार पर अंतर किया है?
- प्रश्न- दुर्खीम द्वारा निर्णीत “अपराध एक सामान्य सामाजिक तथ्य है" को रॉबर्ट बीरस्टीड मानने को तैयार नहीं है। स्पष्ट करें।
- प्रश्न- अपराध सामूहिक भावनाओं पर आघात है। स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- दुर्खीम के अनुसार दण्ड क्या है?
- प्रश्न- दुर्खीम ने धर्म और जादू में क्या अंतर किये हैं?
- प्रश्न- टोटमवाद से दुर्खीम का क्या अर्थ है?
- प्रश्न- दुर्खीम ने धर्म के किन-किन प्रकार्यों का उल्लेख किया है?
- प्रश्न- दुर्खीम का धर्म का क्या सिद्धांत है?
- प्रश्न- दुर्खीम के सामाजिक तथ्यों की अवधारणा पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- दुर्खीम के धर्म के सामाजिक सिद्धान्तों को विश्लेषित कीजिए।
- प्रश्न- दुर्खीम ने अपने पूर्ववर्तियों की धर्म की अवधारणों की आलोचना किस प्रकार की है।
- प्रश्न- दुर्खीम के धर्म की अवधारणा को विशेषताओं सहित स्पष्ट करें।
- प्रश्न- दुर्खीम की धर्म की अवधारणा का आलोचनात्मक मूल्यांकन करें।
- प्रश्न- धर्म के समाजशास्त्र के क्षेत्र में दुर्खीम और वेबर के योगदान की तुलना कीजिए।
- प्रश्न- पवित्र और अपवित्र, सर्वोच्च देवता के रूप में समाज धार्मिक अनुष्ठान और उनके प्रकार बताइये।
- प्रश्न- टोटमवाद क्या है? व्याख्या कीजिये।
- प्रश्न- 'कार्ल मार्क्स के अनुसार ऐतिहासिक भौतिकवाद की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- ऐतिहासिक भौतिकवाद की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- मार्क्स के ऐतिहासिक युगों के विभाजन को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- मार्क्स के ऐतिहासिक सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- मार्क्स की वैचारिक या वैचारिकी के सिद्धान्त का विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- मार्क्स के अनुसार अलगाव को कैसे समाप्त किया जा सकता है?
- प्रश्न- मार्क्स का 'आर्थिक निश्चयवाद का सिद्धान्त' बताइए। 'सामाजिक परिवर्तन' के लिए इसकी सार्थकता समझाइए।
- प्रश्न- मार्क्स के अनुसार वर्ग संघर्ष का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- मार्क्स के विचारों में समाज में वर्गों का जन्म कब और क्यों हुआ?
- प्रश्न- आदिम साम्यवादी युग में वर्ग और श्रम विभाजन का कौन-सा स्वरूप पाया जाता था?
- प्रश्न- दासत्व युग में वर्ग व्यवस्था की व्याख्या कीजिये।
- प्रश्न- मार्क्स ने वर्गों की सार्वभौमिक प्रकृति को कैसे स्पष्ट किया है?
- प्रश्न- पूर्व में विद्यमान वर्ग संघर्ष की धारणा में मार्क्स ने क्या जोड़ा?
- प्रश्न- मार्क्स ने 'वर्ग संघर्ष' की अवधारणा को किस अर्थ में प्रयुक्त किया?
- प्रश्न- मार्क्स के वर्ग संघर्ष के विवेचन में प्रमुख कमियाँ क्या रही है?
- प्रश्न- वर्ग और वर्ग संघर्ष की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- कार्ल मार्क्स के "द्वन्द्वात्मक भौतिकवादी सिद्धान्त" का मूल्याकंन कीजिए।
- प्रश्न- कार्ल मार्क्स की वर्गविहीन समाज की अवधारणा को संक्षेप में समझाइए।
- प्रश्न- कार्ल मार्क्स के राज्य सम्बन्धी विचारों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- पूँजीवादी व्यवस्था तथा राज्य में क्या सम्बन्ध है?
- प्रश्न- मार्क्स की राज्य सम्बन्धी नई धारणा राज्य तथा सामाजिक वर्ग के बार में समझाइये।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के परिप्रेक्ष्य के रूप में विखंडित, ऐतिहासिक, भौतिकवादी अवधारणा बताइये |
- प्रश्न- स्तरीकरण के प्रमुख सिद्धांत बताइये।
- प्रश्न- कार्ल मार्क्स के 'ऐतिहासिक भौतिकवाद' से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- मार्क्स के अनुसार वर्ग संघर्ष का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- मार्क्स के विचारों में समाज में वर्गों का जन्म कब और क्यों हुआ?
- प्रश्न- मार्क्स ने वर्गों की सार्वभौमिक प्रकृति को कैसे स्पष्ट किया है?
- प्रश्न- पूर्व में विद्यमान वर्ग संघर्ष की धारणा में मार्क्स ने क्या जोड़ा?
- प्रश्न- मार्क्स ने 'वर्ग संघर्ष' की अवधारणा को किस अर्थ में प्रयुक्त किया?
- प्रश्न- मार्क्स के वर्ग संघर्ष के विवेचन में प्रमुख कमियाँ क्या रही हैं?
- प्रश्न- वर्ग और वर्ग संघर्ष की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- समाजशास्त्र को मार्क्स का क्या योगदान मिला?
- प्रश्न- मार्क्स ने समाजवाद को क्या योगदान दिया?
- प्रश्न- साम्यवादी समाज के निर्माण के लिये मार्क्स ने क्या कार्य पद्धति सुझाई?
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के बारे में मार्क्स के विचारों को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद की मुख्य विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- सामाजिक विकास की विभिन्न अवस्थाएँ क्या हैं?
- प्रश्न- मार्क्स द्वारा प्रस्तुत वर्ग संघर्ष के कारणों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक विकास की विभिन्न अवस्थाएँ क्या हैं?
- प्रश्न- सर्वहारा क्रान्ति की विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- मार्क्स के अनुसार अलगाववाद के लिए उत्तरदायी कारकों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- मार्क्स का आर्थिक निश्चयवाद का सिद्धान्त बताइए। 'सामाजिक परिवर्तन' के लिए इसकी सार्थकता बताइए।
- प्रश्न- द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद की मुख्य विशेषतायें बताइये।
- प्रश्न- मैक्स वेबर के बौद्धिक पक्ष के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- वेबर का समाजशास्त्र में क्या योगदान है?
- प्रश्न- वेबर के अनुसार सामाजिक क्रिया क्या है? सामाजिक क्रिया के विभिन्न प्रचारों का वर्णन भी कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक क्रिया के विभिन्न प्रकार क्या हैं?
- प्रश्न- नौकरशाही किसे कहते हैं? वेबर के नौकरशाही सिद्धान्त की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- वेबर का नौकरशाही सिद्धान्त क्या है?
- प्रश्न- नौकरशाही की प्रमुख विशेषताएँ बतलाइये।
- प्रश्न- सत्ता क्या हैं? व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- मैक्स वैबर के अनुसार समाजशास्त्र को परिभाषित किजिये।
- प्रश्न- वेबर का पद्धतिशास्त्र तथा मूल्यांकनात्मक निर्णय क्या हैं? स्पष्ट करो।
- प्रश्न- आदर्श प्ररूप की धारणा का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- करिश्माई सत्ता के मुख्य लक्षणों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'प्रोटेस्टेण्ट आचार और पूँजीवाद की आत्मा' सम्बन्धी मैक्स वेबर के सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- कार्य प्रणाली का योगदान या कार्य प्रणाली का अर्थ, परिभाषा बताइये।
- प्रश्न- मैक्स वेबर के 'आदर्श प्रारूप' की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- मैक्स वैबर का संक्षिप्त जीवन-चित्रण तथा प्रमुख कृतियों का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- मैक्स वेबर का बौद्धिक दृष्टिकोण क्या है?
- प्रश्न- सामाजिक क्रिया को स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- मैक्स वेबर द्वारा दिये गये सामाजिक क्रिया के प्रकारों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- वैबर के अनुसार सामाजिक वर्ग और स्थिति क्या है? बताइये।
- प्रश्न- वेबर का सामाजिक संगठन का सिद्धान्त क्या है? बताइये।
- प्रश्न- वेबर का धर्म का समाजशास्त्र क्या है? बताइये।
- प्रश्न- धर्म के सम्बन्ध में कार्ल मार्क्स तथा मैक्स वेबर के विचारों की तुलना कीजिए।
- प्रश्न- वेबर ने शक्ति को किस प्रकार समझाया?
- प्रश्न- नौकरशाही के दोष समझाइए?
- प्रश्न- वेबर के पद्धतिशास्त्र में आदर्श प्रारूप की अवधारणा का क्या महत्त्व है?
- प्रश्न- मैक्स वेबर द्वारा प्रदत्त आदर्श प्रारूप की विशेषताएँ बताइये। .
- प्रश्न- वेबर की आदर्श प्रारूप की अवधारणा से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- डिर्क केसलर की आदर्श प्रारूप हेतु क्या विचारधाराएँ हैं?
- प्रश्न- मैक्सवेबर के अनुसार दफ्तरी कार्य व्यवस्थाएँ किस तरह की होती हैं?
- प्रश्न- मैक्स वेबर के अनुसार, कर्मचारी-तंत्र के कौन-कौन से कारण हैं? स्पष्ट करें।
- प्रश्न- 'मैक्स वेबर ने कर्मचारी तंत्र का मात्र औपचारिक रूप से ही अध्ययन किया है।' स्पष्ट करें।
- प्रश्न- रोबर्ट मार्टन ने कर्मचारी तंत्र के दुष्कार्य क्या बताये हैं?
- प्रश्न- मैक्स वेबर के अनुसार, 'कार्य ही जीवन तथा कुशलता ही धन है' किस तरह से?
- प्रश्न- “जो व्यक्ति व्यवसाय में कुशल है, धन और समाज दोनों ही पाते हैं।" मैक्स वेबर की विचारधारा पर स्पष्ट करें।
- प्रश्न- मैक्स वेबर की धर्म के समाजशास्त्र की कौन-कौन सी विशेषताएँ हैं? स्पष्ट करें।
- प्रश्न- मैक्स वेबर का पद्धतिशास्त्र क्या है? इसकी विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- वेबर का धर्म का सिद्धान्त क्या है?
- प्रश्न- वेबर का पूँजीवाद समाज में नौकरशाही व्यवस्था पर लेख लिखिये।
- प्रश्न- प्रोटेस्टेन्टिजम और पूँजीवाद के बीच सम्बन्धों पर वेबर के विचारों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- वेबर द्वारा प्रतिपादित आदर्श प्ररूप की अवधारणा स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- परेटो की वैज्ञानिक समाजशास्त्र की अवधारणा क्या है?
- प्रश्न- परेटो के अनुसार समाजशास्त्र की प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं?
- प्रश्न- परेटो की वैज्ञानिक समाजशास्त्र की अवधारणा का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- विलफ्रेडो परेटो की प्रमुख कृतियों के साथ संक्षिप्त परिचय दीजिये।
- प्रश्न- पैरेटो के “सामाजिक क्रिया सिद्धान्त का परीक्षण कीजिए?
- प्रश्न- परेटो के अनुसार तर्कसंगत और अतर्कसंगत क्रियाओं की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- परेटो ने अतर्कसंगत क्रियाओं को कैसे समझाया?
- प्रश्न- विशिष्ट चालक की अवधारणा का वर्णन कीजिए एवं महत्व बताइये।
- प्रश्न- विशिष्ट चालक का महत्व बताइये।
- प्रश्न- पैरेटो के भ्रान्त-तर्क के सिद्धांत की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- पैरेटो के 'अवशेष' के सिद्धांत का क्या महत्त्व है?
- प्रश्न- भ्रान्त तर्क की अवधारणा क्या है?
- प्रश्न- भ्रान्त-तर्क का वर्गीकरण कीजिये।
- प्रश्न- संक्षेप में परेटो का समाजशास्त्र में योगदान बताइये।
- प्रश्न- पैरेटो की मानवीय क्रियाओं के वर्गीकरण की चर्चा कीजिये।
- प्रश्न- तार्किक क्रिया व अतार्किक क्रिया में अन्तर स्पष्ट कीजिये।