बी ए - एम ए >> एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र प्रथम प्रश्नपत्र - प्राचीन समाजशास्त्रीय परम्परायें एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र प्रथम प्रश्नपत्र - प्राचीन समाजशास्त्रीय परम्परायेंसरल प्रश्नोत्तर समूह
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एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र प्रथम प्रश्नपत्र - प्राचीन समाजशास्त्रीय परम्परायें
प्रश्न- वेबर का धर्म का समाजशास्त्र क्या है? बताइये।
उत्तर -
(Sociology of Religion)
कानूनी, आर्थिक और सामाजिक इतिहास के अध्ययन में मैक्स वेबर की देन महत्त्वपूर्ण है, परन्तु आपकी सबसे महत्त्वपूर्ण और सर्वाधिक विदित देन धर्म का समाजशास्त्र' है। इस सिद्धान्त में वेबर ने इस तथ्य पर विचार किया है कि धर्म और आर्थिक व सामाजिक घटनाओं में क्या सम्बन्ध है। पारसन्स ने इस सम्बन्ध में लिखा है, “निःसन्देह वेबर समस्त सम्बन्धित क्षेत्रों में एक असाधारण रूप में योग्य सामाजिक और आर्थिक इतिहासकार थे और इस कारण आप सरलता से अपने बाकी शैक्षणिक जीवन को एक महान् ऐतिहासिक अध्ययन की पूर्ति में लगा सकते थे। परन्तु ऐसा करने के बजाय आप सर्वथा क्षेत्र की ओर मुड़े और समस्त महान् विश्व धर्मों के धार्मिक आचारों (religious ethics) तथा उनसे सम्बन्धित सामाजिक तथा आर्थिक संगठन के बीच पाए जाने वाले विद्यमान सम्बन्धों के विशुद्ध तुलनात्मक अध्ययन-कार्य में लग गए।" इस तुलनात्मक अध्ययन का सर्वप्रमुख उद्देश्य यह प्रमाणित करना था कि सामाजिक संरचना में समग्र रूप में कौन से तत्त्व समाज के लिए विशेष रूप से विशिष्ट और केन्द्रीय महत्त्व के हैं।
ऐतिहासिक उद्गमों की समस्या को प्रस्तुत करने में वेबर निःसन्देह मार्क्सवादी दृष्टिकोण से प्रभावित थे। फिर भी आपने अनुभव किया कि इस व्याख्या की प्रणाली को विकास की प्रक्रिया पर लागू नहीं किया जा सकता है। वेबर का विश्वास है कि ऐतिहासिक विकास की प्रक्रिया केवल आर्थिक कारक या जीवित रहने के साधन पर ही निर्भर नहीं है। अधिक अच्छा यह हो कि उस आधार को आचार और धार्मिक विश्वासों से सम्बन्धित प्रत्यक्ष और व्यावहारिक मूल्य के अनुसार ढूँढ़ा जाए। मार्क्स की भाँति वैबर ने यह तो स्वीकार किया कि सामाजिक संरचना में आर्थिक कारक ही महत्त्वपूर्ण हैं, परन्तु उन्होंने यह मानने से इनकार किया कि आर्थिक कारक ही एकमात्र कारक है और कला, साहित्य, सामाजिक व राजनीतिक संरचना, विज्ञान, दर्शन और धर्म सब-कुछ आर्थिक कारक के द्वारा ही निश्चित होते हैं। आपके मतानुसार धार्मिक आचार और आर्थिकव्यवस्था एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं और कभी-कभी नैतिक या आचारशास्त्रीय सिद्धान्त या धारणाएँ आर्थिक परिवर्तन का मार्ग प्रशस्त करती हैं।
मैक्स वेबर के उक्त मत के पीछे, जैसाकि पारसन्स ने लिखा है, गहरी पद्धतिशास्त्रीय (methodological) अन्तर्दृष्टि है। वैबर का उद्देश्य ऐतिहासिक क्रम से सभी विशिष्ट तथ्यों का विश्लेषण तथा स्पष्टीकरण करना नहीं है, बल्कि सबसे महत्त्वपूर्ण परिवर्तनीय तत्त्वों (variable elements) को निश्चित रूप से पृथक् करना तथा परिवर्तनीय अवस्थाओं के अन्तर्गत उनकी क्रिया, कार्य या प्रभावों का अध्ययन करके उनके कार्य-कारण महत्त्व को दर्शाना है। जैसाकि आगे की विवेचना से स्पष्ट होगा, वेबर ने अपने इस अध्ययन में धार्मिक कारक को एक परिवर्तनीय तत्त्व (variable element) माना है और उसका आर्थिक तथा अन्य सामाजिक घटनाओं पर जो कार्य-कारण प्रभाव पड़ता है उसका विश्लेषण तथा निरूपण करने का प्रयत्न किया है। वेबर का विश्वास है कि केवल कुछ अर्थों में समान और अन्यों में भिन्न उदाहरणों का अध्ययन करके ही किसी कारक के कार्य-कारण प्रभाव का निर्णय सम्भव है। इसी कारण आपने किसी एक धर्म को नहीं, कुछ वर्षों में महान् विश्व-धर्मों को अपने अध्ययन में स्थान दिया। ऐसा करने का पूंजीवाद के विकास में एकमात्र कारक है। अन्य अनेक कारकों का भी योग इस दिशा में अवश्य रहा होगा। इस अर्थ में, मैक्स वेबर को एक कारकवादी नहीं, बल्कि बहुकारकवादी (Pluralist) माना जा सकता है।
वैबर ने पूँजीवाद तथा प्रोटेस्टेण्ट आचारों के बीच सम्बन्ध को स्पष्ट करने के लिए अनेक ऐतिहासिक प्रमाणों को प्रस्तुत किया है। आपने यह दर्शाया है कि पूँजीवाद का सर्वोत्तम विकास इंगलैण्ड, अमेरिका, हालैण्ड आदि उन देशों में हुआ है जहाँ कि लोग प्रोटेस्टेण्ट धर्म के अनुयायी हैं। इसके विपरीत, इटली, स्पेन आदि देशों के लोग कैथोलिक धर्म के अनुयायी होने के कारण पूँजीवाद को अधिक विकसित नहीं कर पाए हैं। इसी प्रकार मैक्स वेबर ने और भी अनेक प्रमाण ऐसे दिए हैं जिनसे इस सिद्धान्त की पुष्टि हो सके कि आधुनिक पूँजीवाद प्रोटेस्टेण्ट धर्म से अत्यधिक प्रभावित हुआ है। यद्यपि यह धर्म पूँजीवाद की उत्पत्ति और विकास में एकमात्र कारक नहीं है, फिर भी सबसे अधिक प्रभावशाली कारक या शक्ति अवश्य ही रहा है।
इसी तरह मैक्स वेबर ने कन्फ्यूशियन धर्म, बौद्ध धर्म, हिन्दू धर्म, इस्लाम धर्म और यहूदी धर्म का विश्लेषण किया और यह सिद्ध करने का प्रयत्न किया कि इन सभी धर्मों के आर्थिक आचारों के अनुरूप ही समाज का आर्थिक तथा सामाजिक संगठन निश्चित हुआ है। उदाहरणार्थ, हिन्दू धर्म को ही लीजिए। मैक्स वेबर ने हिन्दू धर्म को जिस रूप में देखा और प्रस्तुत किया है उसके अनुसार मूल अर्थों में हिन्दू धर्म में मुक्ति का अर्थ केवल 'कर्म के चक्र से मुक्ति' है; किन्तु इस लक्ष्य को दूसरे लोगों से अधिक सांसारिक सफलता पाकर प्राप्त नहीं किया जा सकता है। दूसरे शब्दों में, यदि आप दूसरे व्यक्तियों से कहीं अधिक सांसारिक सफलताएँ प्राप्त करते हैं, तो वे सफलताएँ आपके मुक्ति प्राप्ति में सहायक कदापि सिद्ध न होंगी। मुक्ति तो समस्त सांसारिक 'मायाओं', इच्छाओं और अभिरुचियों से अपने को पूर्णतया अलग या दूर रखकर और ब्रह्मा से साक्षात्कार करके उसमें अपने को विलीन कर देने पर ही प्राप्त की जा सकती है। संक्षेप में, हिन्दू धर्म ने इसके मानने वालों को भौतिक उन्नति करने में, या सांसारिक सफलताएँ अथवा लौकिक लक्ष्यों को प्राप्त करने में किसी प्रत्यक्ष अभिरुचि (interest) की प्रेरणा नहीं दी। इसी कारण हिन्दू धर्म को मानने वाले भौतिक उन्नति में नहीं, आध्यात्मिक उन्नति में संसार में सबसे आगे रहे। साथ ही इस धर्म का हिन्दू सामाजिक संगठन के स्वरूप को निश्चित करने में भी पर्याप्त योग रहा। आध्यात्मिक लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए यह आवश्यक था कि धार्मिक नियमों को कठोरता से लागू किया जाए। इसी कारण सामाजिक व्यवस्था और कार्य करने की रीति में हमें इतनी कट्टरता दिखाई पड़ती है। धर्म के इस कट्टरपन की एक सामाजिक अभिव्यक्ति हिन्दू जाति प्रथा है। जाति प्रथा को स्थिर रखने में 'कर्म के सिद्धान्त का अत्यधिक योग रहा है। जाति प्रथा में परम्परागत कर्त्तव्यों, विशेषकर धार्मिक संस्कारों या कर्त्तव्यों को सच्चाई से पूरा करना ही अच्छे व्यवहार का एकमात्र मापदण्ड है। सबको यह विश्वास दिलाया जाता है कि जाति प्रथा के अन्तर्गत प्रत्येक जाति को जो कर्म या कार्य सौंपा गया है, उसके प्रति निष्ठा रखते हुए अपने कर्मों तथा कर्तव्यों को करते रहने से ही व्यक्ति एक उच्चतर जाति में प्रवेश लेकर अपनी आधारभूत धार्मिक स्थिति (status) में सुधार की कोई आशा कर सकता है। इस प्रकार हम यह कह सकते हैं कि हिन्दू धर्म ने इस समाज के आर्थिक तथा सामाजिक संगठन को निश्चित करने में पर्याप्त योग दिया है।
उपर्युक्त विवेचना से स्पष्ट है कि मैक्स वेबर के धर्म के समाजशास्त्र की मूल विशेषता धर्म तथा आर्थिक व सामाजिक संगठन के बीच सम्बन्ध का सिद्धान्त है। जैसा कि वेबर ने बार-बार कहा है कि विचार नहीं, बल्कि धार्मिक स्वार्थ कर्म को प्रेरित करते हैं और ये कर्म आर्थिक व सामाजिक संगठन को निश्चित करते हैं। धर्म के समाजशास्त्र का यही मूल तत्त्व है।
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- प्रश्न- समाजशास्त्र के उद्भव की ऐतिहासिक, सामाजिक, आर्थिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- समाजशास्त्र के उद्भव की विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- समाजशास्त्र के उद्भव में सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों का संक्षिप्त वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- समाजशास्त्र की उत्पत्ति एवं विकास के विभिन्न चरणों की व्याख्या कीजिये।
- प्रश्न- भारत में समाजशास्त्र के विभिन्न चरणों का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- भारत में समाजशास्त्र के विकास की प्रवृत्तियों का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक विचारधारा की प्रकृति व उसकी विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- ज्ञान का समाजशास्त्र क्या है? दुर्खीम के अनुसार इसकी विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- 'दुर्खीम बौद्धिक पक्ष' की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- दुर्खीम का समाजशास्त्र में योगदान बताइये।
- प्रश्न- समाजशास्त्र के विकास में दुर्खीम का योगदान बताइये।
- प्रश्न- विसंगति की अवधारणा का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- कॉम्ट तथा दुर्खीम की देन की तुलना कीजिये।
- प्रश्न- दुर्खीम का समाजशास्त्रीय योगदान बताइये।
- प्रश्न- 'दुर्खीम ने समाजशास्त्र की अध्ययन पद्धति को समृद्ध बनाया' व्याख्या कीजिये।
- प्रश्न- दुर्खीम की कृतियाँ कौन-कौन सी हैं? स्पष्ट करें।
- प्रश्न- इमाइल दुर्खीम के जीवन-चित्रण तथा प्रमुख कृतियों पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- दुर्खीम के समाजशास्त्रीय प्रत्यक्षवाद के नियम बताइए।
- प्रश्न- दुर्खीम के आत्महत्या-सिद्धान्त की आलोचनात्मक जाँच कीजिये।
- प्रश्न- दुर्खीम के आत्महत्या के सिद्धान्त के क्या प्रकार हैं?
- प्रश्न- आत्महत्या का परिचय, अर्थ, परिभाषा तथा कारण बताइये।
- प्रश्न- दुर्खीम के आत्महत्या के सिद्धान्त की विवेचना करते हुए उसके महत्व पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- दुर्खीम के आत्महत्या सिद्धान्त के महत्व पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'आत्महत्या सामाजिक कारकों की उपज है न कि वैयक्तिक कारकों की। दुर्खीम के इस कथन की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- आत्महत्या का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- अहम्वादी आत्महत्या के सम्बन्ध में दुर्खीम के विचारों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- दुर्खीम के अनुसार आत्महत्या से आप क्या समझते हैं? इसके कारणों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- दुर्खीम के आत्महत्या के सिद्धान्त को परिभाषित कीजिये।
- प्रश्न- दुर्खीम के अनुसार 'विसंगत आत्महत्या' क्या है?
- प्रश्न- आत्महत्या का समाज के साथ व्यक्ति के एकीकरण की समस्या।
- प्रश्न- दुर्खीम के पद्धतिशास्त्र की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- दुर्खीम के पद्धतिशास्त्र की विशेषताएँ लिखिए।
- प्रश्न- सामाजिक तथ्य की अवधारणा की विस्तृत व्याख्या कीजिये।
- प्रश्न- बाह्यता (Exteriority) एवं बाध्यता (Constraint) क्या है? वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- दुर्खीम ने सामाजिक तथ्य की व्याख्या किस प्रकार की है?
- प्रश्न- समाजशास्त्रीय पद्धति के नियम' पुस्तक में दुर्खीम ने सामाजिक तथ्य को कैसे परिभाषित किया है?
- प्रश्न- दुर्खीम के सामाजिक तथ्य की विशेषताओं का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- दुर्खीम ने सामाजिक तथ्यों के लिये कौन-कौन से नियमों का उल्लेख किया है?
- प्रश्न- दुर्खीम ने सामान्य और व्याधिकीय तथ्यों में किस आधार पर अंतर किया है?
- प्रश्न- दुर्खीम द्वारा निर्णीत “अपराध एक सामान्य सामाजिक तथ्य है" को रॉबर्ट बीरस्टीड मानने को तैयार नहीं है। स्पष्ट करें।
- प्रश्न- अपराध सामूहिक भावनाओं पर आघात है। स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- दुर्खीम के अनुसार दण्ड क्या है?
- प्रश्न- दुर्खीम ने धर्म और जादू में क्या अंतर किये हैं?
- प्रश्न- टोटमवाद से दुर्खीम का क्या अर्थ है?
- प्रश्न- दुर्खीम ने धर्म के किन-किन प्रकार्यों का उल्लेख किया है?
- प्रश्न- दुर्खीम का धर्म का क्या सिद्धांत है?
- प्रश्न- दुर्खीम के सामाजिक तथ्यों की अवधारणा पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- दुर्खीम के धर्म के सामाजिक सिद्धान्तों को विश्लेषित कीजिए।
- प्रश्न- दुर्खीम ने अपने पूर्ववर्तियों की धर्म की अवधारणों की आलोचना किस प्रकार की है।
- प्रश्न- दुर्खीम के धर्म की अवधारणा को विशेषताओं सहित स्पष्ट करें।
- प्रश्न- दुर्खीम की धर्म की अवधारणा का आलोचनात्मक मूल्यांकन करें।
- प्रश्न- धर्म के समाजशास्त्र के क्षेत्र में दुर्खीम और वेबर के योगदान की तुलना कीजिए।
- प्रश्न- पवित्र और अपवित्र, सर्वोच्च देवता के रूप में समाज धार्मिक अनुष्ठान और उनके प्रकार बताइये।
- प्रश्न- टोटमवाद क्या है? व्याख्या कीजिये।
- प्रश्न- 'कार्ल मार्क्स के अनुसार ऐतिहासिक भौतिकवाद की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- ऐतिहासिक भौतिकवाद की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- मार्क्स के ऐतिहासिक युगों के विभाजन को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- मार्क्स के ऐतिहासिक सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- मार्क्स की वैचारिक या वैचारिकी के सिद्धान्त का विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- मार्क्स के अनुसार अलगाव को कैसे समाप्त किया जा सकता है?
- प्रश्न- मार्क्स का 'आर्थिक निश्चयवाद का सिद्धान्त' बताइए। 'सामाजिक परिवर्तन' के लिए इसकी सार्थकता समझाइए।
- प्रश्न- मार्क्स के अनुसार वर्ग संघर्ष का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- मार्क्स के विचारों में समाज में वर्गों का जन्म कब और क्यों हुआ?
- प्रश्न- आदिम साम्यवादी युग में वर्ग और श्रम विभाजन का कौन-सा स्वरूप पाया जाता था?
- प्रश्न- दासत्व युग में वर्ग व्यवस्था की व्याख्या कीजिये।
- प्रश्न- मार्क्स ने वर्गों की सार्वभौमिक प्रकृति को कैसे स्पष्ट किया है?
- प्रश्न- पूर्व में विद्यमान वर्ग संघर्ष की धारणा में मार्क्स ने क्या जोड़ा?
- प्रश्न- मार्क्स ने 'वर्ग संघर्ष' की अवधारणा को किस अर्थ में प्रयुक्त किया?
- प्रश्न- मार्क्स के वर्ग संघर्ष के विवेचन में प्रमुख कमियाँ क्या रही है?
- प्रश्न- वर्ग और वर्ग संघर्ष की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- कार्ल मार्क्स के "द्वन्द्वात्मक भौतिकवादी सिद्धान्त" का मूल्याकंन कीजिए।
- प्रश्न- कार्ल मार्क्स की वर्गविहीन समाज की अवधारणा को संक्षेप में समझाइए।
- प्रश्न- कार्ल मार्क्स के राज्य सम्बन्धी विचारों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- पूँजीवादी व्यवस्था तथा राज्य में क्या सम्बन्ध है?
- प्रश्न- मार्क्स की राज्य सम्बन्धी नई धारणा राज्य तथा सामाजिक वर्ग के बार में समझाइये।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के परिप्रेक्ष्य के रूप में विखंडित, ऐतिहासिक, भौतिकवादी अवधारणा बताइये |
- प्रश्न- स्तरीकरण के प्रमुख सिद्धांत बताइये।
- प्रश्न- कार्ल मार्क्स के 'ऐतिहासिक भौतिकवाद' से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- मार्क्स के अनुसार वर्ग संघर्ष का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- मार्क्स के विचारों में समाज में वर्गों का जन्म कब और क्यों हुआ?
- प्रश्न- मार्क्स ने वर्गों की सार्वभौमिक प्रकृति को कैसे स्पष्ट किया है?
- प्रश्न- पूर्व में विद्यमान वर्ग संघर्ष की धारणा में मार्क्स ने क्या जोड़ा?
- प्रश्न- मार्क्स ने 'वर्ग संघर्ष' की अवधारणा को किस अर्थ में प्रयुक्त किया?
- प्रश्न- मार्क्स के वर्ग संघर्ष के विवेचन में प्रमुख कमियाँ क्या रही हैं?
- प्रश्न- वर्ग और वर्ग संघर्ष की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- समाजशास्त्र को मार्क्स का क्या योगदान मिला?
- प्रश्न- मार्क्स ने समाजवाद को क्या योगदान दिया?
- प्रश्न- साम्यवादी समाज के निर्माण के लिये मार्क्स ने क्या कार्य पद्धति सुझाई?
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के बारे में मार्क्स के विचारों को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद की मुख्य विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- सामाजिक विकास की विभिन्न अवस्थाएँ क्या हैं?
- प्रश्न- मार्क्स द्वारा प्रस्तुत वर्ग संघर्ष के कारणों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक विकास की विभिन्न अवस्थाएँ क्या हैं?
- प्रश्न- सर्वहारा क्रान्ति की विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- मार्क्स के अनुसार अलगाववाद के लिए उत्तरदायी कारकों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- मार्क्स का आर्थिक निश्चयवाद का सिद्धान्त बताइए। 'सामाजिक परिवर्तन' के लिए इसकी सार्थकता बताइए।
- प्रश्न- द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद की मुख्य विशेषतायें बताइये।
- प्रश्न- मैक्स वेबर के बौद्धिक पक्ष के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- वेबर का समाजशास्त्र में क्या योगदान है?
- प्रश्न- वेबर के अनुसार सामाजिक क्रिया क्या है? सामाजिक क्रिया के विभिन्न प्रचारों का वर्णन भी कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक क्रिया के विभिन्न प्रकार क्या हैं?
- प्रश्न- नौकरशाही किसे कहते हैं? वेबर के नौकरशाही सिद्धान्त की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- वेबर का नौकरशाही सिद्धान्त क्या है?
- प्रश्न- नौकरशाही की प्रमुख विशेषताएँ बतलाइये।
- प्रश्न- सत्ता क्या हैं? व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- मैक्स वैबर के अनुसार समाजशास्त्र को परिभाषित किजिये।
- प्रश्न- वेबर का पद्धतिशास्त्र तथा मूल्यांकनात्मक निर्णय क्या हैं? स्पष्ट करो।
- प्रश्न- आदर्श प्ररूप की धारणा का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- करिश्माई सत्ता के मुख्य लक्षणों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'प्रोटेस्टेण्ट आचार और पूँजीवाद की आत्मा' सम्बन्धी मैक्स वेबर के सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- कार्य प्रणाली का योगदान या कार्य प्रणाली का अर्थ, परिभाषा बताइये।
- प्रश्न- मैक्स वेबर के 'आदर्श प्रारूप' की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- मैक्स वैबर का संक्षिप्त जीवन-चित्रण तथा प्रमुख कृतियों का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- मैक्स वेबर का बौद्धिक दृष्टिकोण क्या है?
- प्रश्न- सामाजिक क्रिया को स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- मैक्स वेबर द्वारा दिये गये सामाजिक क्रिया के प्रकारों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- वैबर के अनुसार सामाजिक वर्ग और स्थिति क्या है? बताइये।
- प्रश्न- वेबर का सामाजिक संगठन का सिद्धान्त क्या है? बताइये।
- प्रश्न- वेबर का धर्म का समाजशास्त्र क्या है? बताइये।
- प्रश्न- धर्म के सम्बन्ध में कार्ल मार्क्स तथा मैक्स वेबर के विचारों की तुलना कीजिए।
- प्रश्न- वेबर ने शक्ति को किस प्रकार समझाया?
- प्रश्न- नौकरशाही के दोष समझाइए?
- प्रश्न- वेबर के पद्धतिशास्त्र में आदर्श प्रारूप की अवधारणा का क्या महत्त्व है?
- प्रश्न- मैक्स वेबर द्वारा प्रदत्त आदर्श प्रारूप की विशेषताएँ बताइये। .
- प्रश्न- वेबर की आदर्श प्रारूप की अवधारणा से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- डिर्क केसलर की आदर्श प्रारूप हेतु क्या विचारधाराएँ हैं?
- प्रश्न- मैक्सवेबर के अनुसार दफ्तरी कार्य व्यवस्थाएँ किस तरह की होती हैं?
- प्रश्न- मैक्स वेबर के अनुसार, कर्मचारी-तंत्र के कौन-कौन से कारण हैं? स्पष्ट करें।
- प्रश्न- 'मैक्स वेबर ने कर्मचारी तंत्र का मात्र औपचारिक रूप से ही अध्ययन किया है।' स्पष्ट करें।
- प्रश्न- रोबर्ट मार्टन ने कर्मचारी तंत्र के दुष्कार्य क्या बताये हैं?
- प्रश्न- मैक्स वेबर के अनुसार, 'कार्य ही जीवन तथा कुशलता ही धन है' किस तरह से?
- प्रश्न- “जो व्यक्ति व्यवसाय में कुशल है, धन और समाज दोनों ही पाते हैं।" मैक्स वेबर की विचारधारा पर स्पष्ट करें।
- प्रश्न- मैक्स वेबर की धर्म के समाजशास्त्र की कौन-कौन सी विशेषताएँ हैं? स्पष्ट करें।
- प्रश्न- मैक्स वेबर का पद्धतिशास्त्र क्या है? इसकी विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- वेबर का धर्म का सिद्धान्त क्या है?
- प्रश्न- वेबर का पूँजीवाद समाज में नौकरशाही व्यवस्था पर लेख लिखिये।
- प्रश्न- प्रोटेस्टेन्टिजम और पूँजीवाद के बीच सम्बन्धों पर वेबर के विचारों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- वेबर द्वारा प्रतिपादित आदर्श प्ररूप की अवधारणा स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- परेटो की वैज्ञानिक समाजशास्त्र की अवधारणा क्या है?
- प्रश्न- परेटो के अनुसार समाजशास्त्र की प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं?
- प्रश्न- परेटो की वैज्ञानिक समाजशास्त्र की अवधारणा का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- विलफ्रेडो परेटो की प्रमुख कृतियों के साथ संक्षिप्त परिचय दीजिये।
- प्रश्न- पैरेटो के “सामाजिक क्रिया सिद्धान्त का परीक्षण कीजिए?
- प्रश्न- परेटो के अनुसार तर्कसंगत और अतर्कसंगत क्रियाओं की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- परेटो ने अतर्कसंगत क्रियाओं को कैसे समझाया?
- प्रश्न- विशिष्ट चालक की अवधारणा का वर्णन कीजिए एवं महत्व बताइये।
- प्रश्न- विशिष्ट चालक का महत्व बताइये।
- प्रश्न- पैरेटो के भ्रान्त-तर्क के सिद्धांत की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- पैरेटो के 'अवशेष' के सिद्धांत का क्या महत्त्व है?
- प्रश्न- भ्रान्त तर्क की अवधारणा क्या है?
- प्रश्न- भ्रान्त-तर्क का वर्गीकरण कीजिये।
- प्रश्न- संक्षेप में परेटो का समाजशास्त्र में योगदान बताइये।
- प्रश्न- पैरेटो की मानवीय क्रियाओं के वर्गीकरण की चर्चा कीजिये।
- प्रश्न- तार्किक क्रिया व अतार्किक क्रिया में अन्तर स्पष्ट कीजिये।