लोगों की राय

बी ए - एम ए >> एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी चतुर्थ प्रश्नपत्र - कथा-साहित्य

एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी चतुर्थ प्रश्नपत्र - कथा-साहित्य

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :200
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2680
आईएसबीएन :0

Like this Hindi book 0

5 पाठक हैं

एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी चतुर्थ प्रश्नपत्र - कथा-साहित्य

व्याख्या भाग

 

प्रश्न- निम्न में से किन्हीं तीन गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (उसने कहा था)

 

उत्तर -

(1)

चार दिन तक पलक नहीं झंपी। बिना फेरे घोडा बिगड़ता है और बिना लडे सिपाही। मुझे तो संगीन चढ़ाकर मार्च का हुक्म मिल जाये। फिर सात जर्मनों को अकेला मारकर न लौहूँ तो मुझे दरबार साहब की देहली पर मत्था टेकना नसीब न हो।

संदर्भ - प्रस्तुत गद्यांश हिन्दी के बहुचर्चित कहानीकार पं. चन्द्रधर शर्मा गुलेरी द्वारा रचित उनकी सुप्रसिद्ध कहानी 'उसने कहा था' से अवतरित है।

प्रसंग - "उसने कहा था" प्रथम विश्व युद्ध की पृष्ठभूमियों में लिखी गई कहानी है और यहीं कहानी हिन्दी की पहली श्रेष्ठ कहानी भी निर्विवाद रूप से सिद्ध होती है। लहनासिंह, सूबेदार हजारासिंह, और उसका पुत्र बोधासिंह इंग्लैण्ड की ओर से जर्मनी के विरुद्ध लड़ाई लड़ रहें हैं वे मोर्चे पर लड़ाई लड़ रहे हैं। वे मोर्चे पर लड़ाई का इन्तजार करते-करते ऊब गए हैं और यह चाहते हैं कि जल्दी से लड़ाई शुरू हो ताकि इस एकरसता से मुक्ति मिले। इसी ऊब के कारण लहनासिंह ये पंक्तियाँ कहता है -

व्याख्या - लहनासिंह एकरसता से व्यथित होकर कहता है कि पिछले चार दिन से एक पल भर के लिए भी नहीं सो पाया हूँ अर्थात् चार दिन में लगातार पहरे पर हूँ और खंदक में बैठे-बैठे रात काट रहा हूँ। मगर ऐसे निष्क्रिय, शिथिल और जड़ रहने का क्या औचित्य है? यदि घोडे को न दौड़ाये जाये तो वह बिगड़ जाता है क्योंकि उसका दौड़ने का अभ्यास समाप्त हो जाता है और फिर वह ठीक प्रकार से दौड़ नहीं पायेगा अर्थात् घोड़ा काम का नहीं रहता। उसी प्रकार बिना लड़े भी सिपाही बिगड़ जाता है अर्थात् उसका अभ्यास और उत्साह समाप्त हो जाता है और फिर वह ठीक प्रकार से लड़ नहीं पायेगा। इसलिए निष्क्रिय बैठे रहने से हमारी आदत बिगड़ती है। अच्छा हो यदि हमारी आदत बिगड़ने की बजाय हमें आगे बढ़ने और जर्मनों पर हमला करने का आदेश दे दिया जाये तो आप हमारी वीरता और शौर्य देखना। मैं अकेला ही वीरता और शौर्य का प्रदर्शन करता हुआ सात जर्मनों को मार कर लौटूंगा और यदि मैं ऐसा न कर सका तो मुझे दरबार साहब (स्वर्ण मन्दिर) की देहली पर मत्था टेकना नसीब न हो अर्थात् मुझे स्वर्ण मन्दिर, अमृतसर के दर्शन करने का भी अवसर प्राप्त न हो।

विशेष -
(1) प्रस्तुत अवतरण की भाषा सजीव तथा सरल है। गुलेरी जी की भाषा पर पंजाबी भाषा का प्रभाव है।
(2) प्रस्तुत अवतरण भाव पक्ष और कला पक्ष की दृष्टि से अत्युत्तम है।
(3) उसने कहा था' न केवल गुलेरी जी की वरन् हिन्दी साहित्य की अनुपम निधि है। प्रेम, शौर्य, त्याग जैसे उदात्त मूल्यों पर आधारित यह कहानी लहनासिंह के चरित्र द्वारा भारतीय किसान के साहस, बुद्धिमानी और कर्त्तव्यपरायणता को उजागर करती है।

 

(2)

"कल, देखते नहीं यह रेशम से कढ़ा हुआ सालू?"
लड़की भाग गयी। लड़के ने घर की राह ली। रास्ते में एक लड़के को मोरी में धकेल दिया, एक छाबड़ीवाले की दिन भर की कमाई खोयी, एक कुत्ते पर पत्थर मारा और एक गोभीवाले के ठेले में दूध उँडेल दिया। सामने नहाकर आती हुई किसी वैष्णवी से टकराकर अन्धे की उपाधि पायी। तब कहीं घर पहुँचा।

संदर्भ - प्रस्तुत अवतरण चन्द्रधर गुलेरी कृत 'उसने कहा था' कहानी से उद्धृत है।

प्रसंग - इसमें उस बालक की मनःस्थिति का चित्रण है तो अपनी ही उम्र की एक बालिका से पूछता रहता है कि "तेरी कुड़माई हो गई?" यह उसे खिझाने के लिए होता था। पर एक बार जब उसके प्रश्न के उत्तर में वह 'हाँ' कर देती है तो उसके मन में कुछ बेचैनी होती है जिससे उसके भीतर की गुप्त पर सहज प्रीति का अनुमान लगाया जा सकता है।

व्याख्या - बालपन की यह साहचर्य भावना वास्तव में किशोर प्रीति थी। इसी कारण लड़की के कुड़माई हो जाने पर रेशम से कढ़ा हुआ सालू पहनने पर लड़के की स्थिति विचित्र हो जाती है, उसे बेचैनी और अपने चारों ओर की दुनिया सूनी नजर आने लगती है। इसलिए वह ऐसे-ऐसे कार्य करता है जो सामान्यतः वह कभी नहीं करता। लड़की के चले जाने के बाद वह चुपचाप घर न आकर लोगों से पंगे लेता हुआ आता है। किसी लड़की को मोरी में धकेल देता है तो किसी की छावड़ी गिरा देता है, कुत्ते पर पत्थर मारता है और गोभी के ठेले पर दूध गिरा देता है। इतना ही नहीं वह पूजा कर घर लौट रही वैष्णवी से टकराता है जिस कारण वह उसे अंधा कहने को विवश हो जाती है। यह सब करता हुआ वह घर पहुँचता है, पर अपनी इस बेचैनी को कोई नाम नहीं दे पाता।

विशेष-
(1) किशोर प्रेम का वर्णन किया गया है जहाँ लड़के को यह नहीं पता कि वह लड़की से प्रेम करता है पर लड़की के कहीं और कुड़माई हो जाने पर उसे अपने चारों ओर सूना सा ही वातावरण दिखाई पड़ता है।
(2) प्रस्तुत अवतरण की भाषा सजीव एवं सरल है।

 

(3)

"हाँ-हाँ" - "वहीं जब आप खोते पर सवार थे और आपका खानसामा अब्दुल्ला रास्ते के एक मन्दिर में जल चढ़ाने को रह गया।' "बेशक पाजी कहीं का" -
"सामने से वह नीलगाय निकली कि ऐसी बड़ी मैंने कभी न देखी थी। और आपकी एक गोली कन्धे में लगी और पुट्ठे में निकली।

संदर्भ - प्रस्तुत अवतरण बहुचर्चित कहानीकार पं. चन्द्रधर शर्मा गुलेरी कृत 'उसने कहा था। कहानी से लिया गया है।

प्रसंग - जर्मन सिपाही के लपटन साहब (भारतीय अफसर) का वेश धारण कर उनकी खंदक में पहुँचने और दस आदमियों को छोड़कर बाकियों को आगे जाने का हुक्म देने पर लहनासिंह को उसकी नीयत पर कुछ शक हो जाता है।

व्याख्या - लहनासिंह को लगता है कि वह उनका लपटन साहब नहीं हैं बल्कि कोई जर्मन सिपाही है। इसी की जाँच करने के लिए वह ऐसे प्रश्न करता है कि जिससे उसको पता चल सके कि आने वाला व्यक्ति कौन है। लपटन साहब को तो भारतीय संस्कृति की पहचान है। कारण उन्हें पता है अफसर गधे पर बैठकर घोड़े पर बैठते हैं परन्तु अन्य व्यक्ति इस बात को नहीं जानते। इतना ही नहीं लहनासिंह उससे पूछता है कि उनका खानसामा जो मुस्लिम है वह मंदिर में जल चढाने को रुक जाता है और जगाधरी में नील गाय का शिकार किया जाता है। इतना ही नहीं अफसर की एक गोली कन्धे पर लगती है तो पट्टे से निकलती है। ये सभी ऐसे बातें हैं जो सच नहीं हो सकती, मुसलमान मूर्ति पर जल नहीं चढ़ाते, जगाधरी में नील गाय नहीं मिलती। इन प्रश्नों के माध्यम से लहनासिंह समझ जाता है कि आने वाला व्यक्ति शत्रु है। तब वह अपनी सूझ-बूझ से उसका सामना करता है।

विशेष -
प्रस्तुत प्रसंग द्वारा लहनासिंह की सूझ-बूझ का परिचय मिलता है जिससे वह शत्रु के दाँत खट्टे करता है।

 

(4)

तुम्हें याद है, एक दिन ताँगे वाले का घोड़ा दही वाले की दुकान के पास बिगड़ गया था। तुमने उस दिन मेरे प्राण बचाये थे। आप घोड़े की लातों में चले गये थे और मुझे उठाकर दुकान के तख्ते पर खड़ा कर दिया था। ऐसे ही इन दोनों को बचाना। यह मेरी भिक्षा है। तुम्हारे आगे मैं आँचल पसारती हूँ।

संदर्भ - प्रस्तुत पंक्तियाँ ' उसने कहा था कहानी से ली गई है। जिसके लेखक पं. चन्द्रधर शर्मा गुलेरी जी हैं।

प्रसंग - प्रस्तुत अवतरण में लहनासिंह को पूर्वदीप्त शैली में पहले की सभी स्मृतियाँ साफ दिखने लगती हैं।

व्याख्या - लहनासिंह को याद आता है कि वह सूबेदार के घर गया था तो सूबेदारनी वही लड़की थी जिससे पच्चीस वर्ष पहले वह पूछता था कि तेरी कुड़माई हो गई। सूबेदारनी भी उसे पहचान लेती है और उसे अपनी प्रीत का वास्ता देती है जिस पर उसे अखंड विश्वास है। वह उसे याद दिलाती है कि एक बार बचपन में उसने उसे मौत के मुँह से बचाया था, उसके प्राणों की रक्षा की थी। जैसे उसने बचपन में उसके प्राणों की रक्षा की थी, वैसे ही अब वह लड़ाई में उसके पति और उसके पुत्र की रक्षा करेगा, उन्हें मुसीबतों से बचाएगा, अपने पुराने प्रेमी से वह आँचल फैलाकर यही भिक्षा माँगती है और उसे विश्वास है कि वह ऐसा करेगा।

विशेष-
(1) ऐसे प्रेम को दर्शाया गया है जहाँ पच्चीस वर्षों बाद भी प्रेमिका को अपने प्रेमी पर अखण्ड विश्वास है कि वह उसके वचन की रक्षा करेगा। प्रेम के उदात्त रूप का वर्णन है।
(2) भाषा - सरल, स्वाभाविक बोलचाल की है परन्तु भावपूर्ण है जिससे पात्र की मनोदशा साकार हो उठती है।

 

(5)

लड़ाई के समय चाँद निकल आया था। ऐसा चाँद जिसके प्रकाश से संस्कृत कवियों का दिया हुआ 'क्षयी' नाम सार्थक होता है और हवा ऐसी चल रही थी जैसे कि बाणभट्ट की भाषा में 'दन्तवीणोपदेशाचार्य' कहलाती है।

संदर्भ - प्रस्तुत अवतरण हिन्दी के बहुचर्चित कहानीकार पं. चन्द्रधर शर्मा गुलेरी द्वारा रचित उनकी सुप्रसिद्ध कहानी 'उसने कहा था' से अवतरित है।

प्रसंग - 'उसने कहा था हिन्दी की पहली सर्वाग यथार्थवादी कहानी है, जो कला की प्रत्येक कसौटी - मापदण्ड पर खरी उतरती है। जर्मन लपटन वहाँ आकर सूबेदार साहब को वहाँ दस, सैनिकों को छोड़कर बाकी को मील भर की दूरी पर पूरब के कोने वाली जर्मन खाई पर आक्रमण करने के लिए भेजने का आदेश देता है। सूबेदार हजारासिंह अपने सैनिकों को लेकर चला जाता है। लेकिन लहनासिंह अपनी कुशाग्र बुद्धि से जासूस लपटन को पहचान लेता है और उसकी कपाल-क्रिया कर डालता है। इसी बीच सत्तर जर्मन सैनिक आक्रमण कर देते हैं। लहनासिंह और उसके साथी अत्यन्त वीरतापूर्वक लड़ाई लड़ते हैं लेकिन पसली में गोली लग जाती है। वह घाव को गीली मिट्टी से पूर देता है तथा किसी को भी यह खबर नहीं हुई कि उसे बड़ा भारी घाव लगा है। लहनासिंह ने साफा कसकर कमरबन्द की तरह लपेट लिया। उसी प्रसंग में कहानीकार ने रात के दृश्य का वर्णन किया है।

व्याख्या - जब जर्मन और भारतीय सैनिकों के बीच युद्ध चल रहा था तो इस युद्ध में तिरसेठ जर्मन और पन्द्रह सिक्खों के प्राण गये थे। उस लड़ाई के समय चन्द्रमा में चाँद की धवल और शुभ्र चाँदनी छिटकी हुई थी। कृष्ण पक्ष की रात्रि थी। कृष्ण पक्ष में चन्द्रमा की कलाएँ घटती रहती हैं। इसीलिए संस्कृत कवियों ने कलाओं के घटते रहने के कारण या सबसे पहले क्षय रोग हो जाने के कारण उस (चन्द्रमा) को क्षयी कहा है जाता है। मलयाचल पर्वत की शीतल और सुगन्धित बयार बह रही थी अर्थात् ठण्डी तेज हवा चलने के कारण कड़ाके की ठण्ड पड़ रही थी। जिसके कारण सैनिकों के दाँत भी बजने लगे थे। संस्कृत कवि बाणभट्ट की भाषा में इसे (वायु को) दंतवीणापदेशाचार्य कहा जा सकता है। अर्थात् दन्तवीणा का उपदेश देने वाला आचार्य यही मलयाचल पर्वत की शीतल सुगन्धित वायु दाँतों को वीणा का उपदेश दे रही है। अर्थात् कड़कड़ाती ठण्डी वायु के कारण सैनिकों के दाँत किटकिटाने लगे थे।

विशेष-

(1) प्रस्तुत अवतरण की भाषा सजीव तथा सरल और परिनिष्ठित परिमार्जित भाषा प्रयुक्त हुई है। प्रस्तुत अवतरण में संस्कृत के महाकवि बाणभट्ट का चित्रांकन हुआ है, जिन्होंने कादम्बरी और हर्षचरित नामक रचनाएँ रची थीं। क्षयी और दन्तवीणोपदेशाचार्य शब्द गुलेरी जी के संस्कृत साहित्य के गहरे गम्भीर अध्ययन को उजागर करते हैं।

(6)

सूबेदारनी रोने लगी। 'अब दोनों जाते हैं। मेरे भाग तुम्हें याद है, एक दिन ताँगे वाले का घोड़ा दही वाले की दुकान के पास बिगड़ गया था। तुमने उस दिन मेरे प्राण बचाये थे। आप घोड़े की लातों में चले गये थे और मुझे उठाकर दुकान के तख्ते पर खड़ा कर दिया था। ऐसे ही इन दोनों को बचाना। यह मेरी भिक्षा है। तुम्हारे आगे मैं आँचल पसारती हूँ

संदर्भ - प्रस्तुत गद्यांश हिन्दी के प्रसिद्ध कहानीकार चन्द्रधर शर्मा गुलेरी की कहानी 'उसने कहा था' से उद्धृत की गई है।

प्रसंग - प्रस्तुत कहानी में कथाकार ने लहनासिंह के शौर्य त्याग को महिमामण्डित किया है। वास्तव में गुलेरी जी की यह सर्वांगपूर्ण यथार्थवादी कहानी है जो कहानी कला की कसौटी पर खरी उतरती है। सूबेदारनी लहनासिंह को पहचान लेती है यथा आँचल पसारकर भीख माँगती है कि मेरे तो भाग फूट गये। यदि सरकार स्त्रियों को भी एक सेना बना देती तो मैं भी उनके साथ लड़ाई लड़ने के लिए चली जाती। मेरे पास एक ही बेटा है बोधासिंह और बाकी उसके बाद चार पुत्र और हुए लेकिन सभी मृत्यु की गोद में समा गये लेकिन अब सूबेदार हजारासिंह और पुत्र बोधासिंह लड़ाई लड़ने के लिए जा रहे हैं इसलिए अब तुम उनके प्राणों की रक्षा करना।

व्याख्या - सूबेदारनी यह कह कर रोने लगी कि अब दोनों मेरा पति सूबेदार हजारासिंह और मेरा पुत्र- बोधा युद्ध में जा रहे हैं पता नहीं उनके प्राण बचकर आयेंगे या नहीं। इसलिए मेरे तो भाग ही खोटे हैं। शायद तुम्हें याद हो कि एक बार ताँगे वाले का घोड़ा दही की दुकान के सामने बिगड़ गया था और मैं वहाँ दही लेने के लिए गई थी तो तुमने उस दिन मेरे प्राणों की रक्षा की थी। तुमने अपने प्राणों की परवाह न करते हुए अर्थात् अपने आप तो तुम घोड़े की लातों में चले गए थे अर्थात् अपने प्राणों को संकट में डालकर तुमने मेरे प्राणों की रक्षा की थी। मुझे सुरक्षित उठाकर दुकान के तख्ते पर तुमने खड़ा कर दिया था। जिस प्रकार तुमने अपने प्राणों को संकट में डालकर मेरे प्राणों को बचाया है इसी प्रकार तुम अब इन दोनों मेरे पति सूबेदार हजारासिंह और मेरे पुत्र बोधासिंह के प्राण बचाना। वह लहनासिंह के समक्ष अपना आँचल पसारकर दोनों के प्राणों की भिक्षा माँगती है।

विशेष -
1. प्रस्तुत अवतरण की भाषा सजीव तथा सरल है। गुलेरी जी ने परिमार्जित-प्रौढ़ भाषा प्रयुक्त की है।
2. सूबेदारनी का लहनासिंह पर अगाध असीम विश्वास है। इसी भाव की अभिव्यक्ति हुई है।
3. भावात्मक शैली प्रयुक्त हुई है।

 

(7)

मृत्यु के कुछ समय पहले स्मृति बहुत साफ हो जाती है। जन्म भर की घटनाएँ एक- एक करके सामने आती है। सारे दृश्यों के रंग साफ होते हैं, समय की धुन्ध बिल्कुल उन पर से हट जाती है।

संदर्भ - प्रस्तुत अवतरण प्रसिद्ध कहानीकार चन्द्रधर शर्मा गुलेरी की कहानी 'उसने कहा था' से लिया गया है।

प्रसंग - घायल लहनासिंह मृतप्राय सा हो गया है तथा उसकी स्मृति में अतीत की अनेक घटनाएँ उभरने लगती हैं। कभी वह अपने भतीजे कीरतसिंह का स्मरण करता है तो कभी पच्चीस वर्ष पहले घटित कुड़माई वाली घटना को ताजा करता है। वैसे प्रस्तुत कहानी में पहली बार फ्लैश बैक पद्धति का निर्वाह हुआ है।

व्याख्या - यह एक सर्वविदित और सार्वभौमिक तथ्य है कि मृत्यु के सन्निकट आने पर या जीवन के अन्तिम क्षणों से कुछ पूर्व व्यक्ति की स्मृति बिल्कुल स्वच्छ और उज्जवल हो जाती है। इसी प्रकार युद्ध में बुरी तरह से घायल लहनासिंह मृतप्राय सा हो जाता है और उसके जीवन में घटी सारी सारी घटनाएँ चलचित्र की भाँति स्मृति में आने लगती है। जैसे अमृतसर के चौक बाजार में लड़की का मिलना तथा उससे कुड़माई के बारे में पूछना और कुड़माई होने पर उसका व्याकुल- व्यथित व निराश होना। पच्चीस वर्ष बाद फिर सूबेदार हजारासिंह के घर पर जाना तथा उसकी पत्नी सूबेदारनी द्वारा उसे पहचानना और पति -पुत्र के प्राणों की रक्षा हेतु प्रार्थना करना आदि घटनाएँ रह-रहकर उसकी स्मृति को कौंधती है। जीवन भर भोगी घटनाएँ और उसके रंग इतने स्वच्छ और उज्जवल हो जाते हैं कि समय की धुन्ध भी उनके ऊपर से हट जाती हैं अर्थात् अत्यधिक समय बीत जाने के कारण उन स्मृतियों के ऊपर काल की धुन्ध छा जाती है। लेकिन मृत्यु के समय वह धुन्ध भी उज्जवल और साफ हो जाती है तथा विगत जीवन भी उसकी आँखों के समक्ष एकदम साफ बनकर उभर आता है। अब लहनासिंह की मृत्यु अत्यन्त सन्निकट है इसीलिए उसके जीवन की सारी घटनाएँ अत्यन्त उज्जवल रूप में आकर उसकी स्मृति को बेंधती हैं।

विशेष -

1. प्रस्तुत अवतरण की भाषा सजीव तथा सरल है। संस्कृत के तत्सम शब्द प्रयुक्त हुए हैं।
2. प्रस्तुत अवतरण में लहनासिंह के चरित्र को प्रकट किया गया है।

 

(8)

"बिजली की तरह दोनों हाथों से उल्टी बन्दूक को बढ़ाकर लहनासिंह ने साहब कि कुहनी पर तान दे के मारा। धमाके के साथ साहब के हाथ से दियासलाई गिर पड़ी। लहनासिंह ने एक कुंदा साहब की गरदन पर मारा और साहब 'आक्क, मीन गौट्ट कहते हुए चित्त हो गये। लहनासिंह ने तीनों गोले बीनकर खंदक के बाहर फेंके और साहब को घसीटकर सिगड़ी के पास लिटाया। जेबों की तलाशी ली। तीन-चार लिफाफे और एक डायरी निकाल कर उन्हें अपने जेब के हवाले किया।"

व्याख्या - लहनासिंह बिजली की तरह दोनों हाथों से बन्दूक को उठा लेता है और लपटन साहब की कुहनी पर बहुत जोर से प्रहार करता है। लहनासिंह कुहनी पर इतनी तेज बंदूक मारता है कि उनके हाँथ से दियासलाई भी गिर जाती है। लहनासिंह ने एक और बन्दूक की बट साहब की गर्दन पर मारी। गर्दन पर बन्दूक के लगते ही साहब अंग्रेजी में चिल्ला पड़े 'आक्ख मीन गौट्ट' और यह कहते हुए वह मूर्छा खाकर पृथ्वी पर गिर पड़े। उनके जमीन में गिरते ही लहनासिंह ने तीनों बम के गोले जल्दी से उठाकर खाकी में फेंक दिये और फिर वह लपटन साहब को खींचकर अंगीठी के पास ले आया। अंगीठी की रोशनी में साहब की सभी जेबों की तलाशी ली। उनकी जेब से तीन-चार लिफाफे और एक डायरी निकली, उन सबको उसने अपनी जेब के अन्दर रख लिया।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. प्रश्न- गोदान में उल्लिखित समस्याओं का विवेचना कीजिए।
  2. प्रश्न- 'गोदान' के नामकरण के औचित्य पर विचार प्रकट कीजिए।
  3. प्रश्न- प्रेमचन्द का आदर्शोन्मुख यथार्थवाद क्या है? गोदान में उसका किस रूप में निर्वाह हुआ है?
  4. प्रश्न- 'मेहता प्रेमचन्द के आदर्शों के प्रतिनिधि हैं।' इस कथन की सार्थकता पर विचार कीजिए।
  5. प्रश्न- "गोदान और कृषक जीवन का जो चित्र अंकित है वह आज भी हमारी समाज-व्यवस्था की एक दारुण सच्चाई है।' प्रमाणित कीजिए।
  6. प्रश्न- छायावादोत्तर उपन्यास-साहित्य का विवेचन कीजिए।
  7. प्रश्न- उपन्यास के तत्वों की दृष्टि से 'गोदान' की संक्षिप्त समालोचना कीजिए।
  8. प्रश्न- 'गोदान' महाकाव्यात्मक उपन्यास है। कथन की समीक्षा कीजिए।
  9. प्रश्न- गोदान उपन्यास में निहित प्रेमचन्द के उद्देश्य और सन्देश को प्रकट कीजिए।
  10. प्रश्न- गोदान की औपन्यासिक विशिष्टताओं पर प्रकाश डालिए।
  11. प्रश्न- प्रेमचन्द के उपन्यासों की संक्षेप में विशेषताएँ बताइये।
  12. प्रश्न- छायावादोत्तर उपन्यासों की कथावस्तु का विश्लेषण कीजिए।
  13. प्रश्न- 'गोदान' की भाषा-शैली के विषय में अपने संक्षिप्त विचार प्रस्तुत कीजिए।
  14. प्रश्न- हिन्दी के यथार्थवादी उपन्यासों का विवेचन कीजिए।
  15. प्रश्न- 'गोदान' में प्रेमचन्द ने मेहनत और मुनाफे की दुनिया के बीच की गहराती खाई को बड़ी बारीकी से चित्रित किया है। प्रमाणित कीजिए।
  16. प्रश्न- क्या प्रेमचन्द आदर्शवादी उपन्यासकार थे? संक्षिप्त उत्तर दीजिए।
  17. प्रश्न- 'गोदान' के माध्यम से ग्रामीण कथा एवं शहरी कथा पर प्रकाश डालिए।
  18. प्रश्न- होरी की चरित्र की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  19. प्रश्न- धनिया यथार्थवादी पात्र है या आदर्शवादी? स्पष्ट कीजिए।
  20. प्रश्न- प्रेमचन्द के उपन्यास 'गोदान' के निम्न गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए।
  21. प्रश्न- 'मैला आँचल एक सफल आँचलिक उपन्यास है' इस उक्ति पर प्रकाश डालिए।
  22. प्रश्न- उपन्यास में समस्या चित्रण का महत्व बताते हुये 'मैला आँचल' की समीक्षा कीजिए।
  23. प्रश्न- आजादी के फलस्वरूप गाँवों में आये आन्तरिक और परिवेशगत परिवर्तनों का 'मैला आँचल' उपन्यास में सूक्ष्म वर्णन हुआ है, सिद्ध कीजिए।
  24. प्रश्न- 'मैला आँचल' की प्रमुख विशेषताओं का निरूपण कीजिए।
  25. प्रश्न- फणीश्वरनाथ रेणुजी ने 'मैला आँचल' उपन्यास में किन-किन समस्याओं का अंकन किया है और उनको कहाँ तक सफलता मिली है? स्पष्ट कीजिए।
  26. प्रश्न- "परम्परागत रूप में आँचलिक उपन्यास में कोई नायक नहीं होता।' इस कथन के आधार पर मैला आँचल के नामक का निर्धारण कीजिए।
  27. प्रश्न- नामकरण की सार्थकता की दृष्टि से 'मैला आँचल' उपन्यास की समीक्षा कीजिए।
  28. प्रश्न- 'मैला आँचल' में ग्राम्य जीवन में चित्रित सामाजिक सम्बन्धों का वर्णन कीजिए।
  29. प्रश्न- मैला आँचल उपन्यास को आँचलिक उपन्यास की कसौटी पर कसकर सिद्ध कीजिए कि क्या मैला आँचल एक आँचलिक उपन्यास है?
  30. प्रश्न- मैला आँचल में वर्णित पर्व-त्योहारों का वर्णन कीजिए।
  31. प्रश्न- मैला आँचल की कथावस्तु संक्षेप में लिखिए।
  32. प्रश्न- मैला आँचल उपन्यास के कथा विकास में प्रयुक्त वर्णनात्मक पद्धति पर प्रकाश डालिए।
  33. प्रश्न- कथावस्तु के गुणों की दृष्टि से मैला आँचल उपन्यास की संक्षिप्त विवेचना कीजिए।
  34. प्रश्न- 'मैला आँचल' उपन्यास का नायक डॉ. प्रशांत है या मेरीगंज का आँचल? स्पष्ट कीजिए।
  35. प्रश्न- मैला आँचल उपन्यास की संवाद योजना पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  36. प्रश्न- निम्न में से किन्हीं तीन गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (मैला आँचल)
  37. प्रश्न- चन्द्रधर शर्मा गुलेरी की कहानी कला की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  38. प्रश्न- चन्द्रधर शर्मा गुलेरी की कहानी 'उसने कहा था' का सारांश लिखिए।
  39. प्रश्न- कहानी के तत्त्वों के आधार पर 'उसने कहा था' कहानी की समीक्षा कीजिए।
  40. प्रश्न- प्रेम और त्याग के आदर्श के रूप में 'उसने कहा था' कहानी के नायक लहनासिंह की चारित्रिक विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  41. प्रश्न- सूबेदारनी की चारित्रिक विशेषताओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  42. प्रश्न- अमृतसर के बम्बूकार्ट वालों की बातों और अन्य शहरों के इक्के वालों की बातों में लेखक ने क्या अन्तर बताया है?
  43. प्रश्न- मरते समय लहनासिंह को कौन सी बात याद आई?
  44. प्रश्न- चन्द्रधर शर्मा गुलेरी की कहानी कला की विवेचना कीजिए।
  45. प्रश्न- 'उसने कहा था' नामक कहानी के आधार पर लहना सिंह का चरित्र-चित्रण कीजिए।
  46. प्रश्न- निम्न में से किन्हीं तीन गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (उसने कहा था)
  47. प्रश्न- प्रेमचन्द की कहानी कला पर प्रकाश डालिए।
  48. प्रश्न- कफन कहानी का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
  49. प्रश्न- कफन कहानी के उद्देश्य की विश्लेषणात्मक विवेचना कीजिए।
  50. प्रश्न- 'कफन' कहानी के आधार पर घीसू का चरित्र चित्रण कीजिए।
  51. प्रश्न- मुंशी प्रेमचन्द की कहानियाँ आज भी प्रासंगिक हैं, इस उक्ति के प्रकाश में मुंशी जी की कहानियों की समीक्षा कीजिए।
  52. प्रश्न- मुंशी प्रेमचन्द की कहानियाँ आज भी प्रासंगिक हैं। इस उक्ति के प्रकाश में मुंशी जी की कहानियों की समीक्षा कीजिए।
  53. प्रश्न- घीसू और माधव की प्रवृत्ति के बारे में लिखिए।
  54. प्रश्न- घीसू ने जमींदार साहब के घर जाकर क्या कहा?
  55. प्रश्न- बुधिया के जीवन के मार्मिक पक्ष को उद्घाटित कीजिए।
  56. प्रश्न- कफन लेने के बजाय घीसू और माधव ने उन पाँच रुपयों का क्या किया?
  57. प्रश्न- शराब के नशे में चूर घीसू और माधव बुधिया के बैकुण्ठ जाने के बारे में क्या कहते हैं?
  58. प्रश्न- आलू खाते समय घीसू और माधव की आँखों से आँसू क्यों निकल आये?
  59. प्रश्न- 'कफन' की बुधिया किसकी पत्नी है?
  60. प्रश्न- निम्न में से किन्हीं तीन गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (कफन)
  61. प्रश्न- कहानी कला के तत्वों के आधार पर प्रसाद की कहांनी मधुआ की समीक्षा कीजिए।
  62. प्रश्न- 'मधुआ' कहानी के नायक का चरित्र-चित्रण कीजिए।
  63. प्रश्न- 'मधुआ' कहानी का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।
  64. प्रश्न- निम्न में से किन्हीं तीन गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (मधुआ)
  65. प्रश्न- अमरकांत की कहानी कला एवं विशेषता पर प्रकाश डालिए।
  66. प्रश्न- अमरकान्त का जीवन परिचय संक्षेप में लिखिये।
  67. प्रश्न- अमरकान्त जी के कहानी संग्रह तथा उपन्यास एवं बाल साहित्य का नाम बताइये।
  68. प्रश्न- अमरकान्त का समकालीन हिन्दी कहानी पर क्या प्रभाव पडा?
  69. प्रश्न- 'अमरकान्त निम्न मध्यमवर्गीय जीवन के चितेरे हैं। सिद्ध कीजिए।
  70. प्रश्न- निम्न में से किन्हीं तीन गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (जिन्दगी और जोंक)
  71. प्रश्न- मन्नू भण्डारी की कहानी कला पर समीक्षात्मक विचार प्रस्तुत कीजिए।
  72. प्रश्न- कहानी कला की दृष्टि से मन्नू भण्डारी रचित कहानी 'यही सच है' का मूल्यांकन कीजिए।
  73. प्रश्न- 'यही सच है' कहानी के उद्देश्य और नामकरण पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  74. प्रश्न- 'यही सच है' कहानी की प्रमुख विशेषताओं का संक्षिप्त विवेचन कीजिए।
  75. प्रश्न- कुबरा मौलबी दुलारी को कहाँ ले जाना चाहता था?
  76. प्रश्न- 'निशीथ' किस कहानी का पात्र है?
  77. प्रश्न- निम्न में से किन्हीं तीन गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (यही सच है)
  78. प्रश्न- कहानी के तत्वों के आधार पर चीफ की दावत कहानी की समीक्षा प्रस्तुत कीजिये।
  79. प्रश्न- 'चीफ की दावत' कहानी के उद्देश्य पर प्रकाश डालिए।
  80. प्रश्न- चीफ की दावत की केन्द्रीय समस्या क्या है?
  81. प्रश्न- निम्न में से किन्हीं तीन गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (चीफ की दावत)
  82. प्रश्न- फणीश्वरनाथ रेणु की कहानी कला की समीक्षा कीजिए।
  83. प्रश्न- रेणु की 'तीसरी कसम' कहानी के विशेष अपने मन्तव्य प्रकट कीजिए।
  84. प्रश्न- हीरामन के चरित्र पर प्रकाश डालिए।
  85. प्रश्न- हीराबाई का चरित्र-चित्रण कीजिए।
  86. प्रश्न- 'तीसरी कसम' कहानी की भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।
  87. प्रश्न- 'तीसरी कसम उर्फ मारे गये गुलफाम कहानी के उद्देश्य पर प्रकाश डालिए।
  88. प्रश्न- फणीश्वरनाथ रेणु का संक्षिप्त जीवन-परिचय लिखिए।
  89. प्रश्न- फणीश्वरनाथ रेणु जी के रचनाओं का वर्णन कीजिए।
  90. प्रश्न- क्या फणीश्वरनाथ रेणु की कहानियों का मूल स्वर मानवतावाद है? वर्णन कीजिए।
  91. प्रश्न- हीराबाई को हीरामन का कौन-सा गीत सबसे अच्छा लगता है?
  92. प्रश्न- निम्न में से किन्हीं तीन गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (तीसरी कसम)
  93. प्रश्न- 'परिन्दे' कहानी संग्रह और निर्मल वर्मा का परिचय देते हुए, 'परिन्दे' कहानी का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
  94. प्रश्न- कहानी कला की दृष्टि से 'परिन्दे' कहानी की समीक्षा अपने शब्दों में लिखिए।
  95. प्रश्न- निर्मल वर्मा के व्यक्तित्व और उनके साहित्य एवं भाषा-शैली का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  96. प्रश्न- निम्न में से किन्हीं तीन गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (परिन्दे)
  97. प्रश्न- ऊषा प्रियंवदा के कृतित्व का सामान्य परिचय देते हुए कथा-साहित्य में उनके योगदान की विवेचना कीजिए।
  98. प्रश्न- कहानी कला के तत्त्वों के आधार पर ऊषा प्रियंवदा की 'वापसी' कहानी की समीक्षा कीजिए।
  99. प्रश्न- निम्न में से किन्हीं तीन गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (वापसी)
  100. प्रश्न- कहानीकार ज्ञान रंजन की कहानी कला पर प्रकाश डालिए।
  101. प्रश्न- कहानी 'पिता' पारिवारिक समस्या प्रधान कहानी है। स्पष्ट कीजिए।
  102. प्रश्न- कहानी 'पिता' में लेखक वातावरण की सृष्टि कैसे करता है?
  103. प्रश्न- निम्न में से किन्हीं तीन गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (पिता)

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book