बी ए - एम ए >> एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी चतुर्थ प्रश्नपत्र - कथा-साहित्य एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी चतुर्थ प्रश्नपत्र - कथा-साहित्यसरल प्रश्नोत्तर समूह
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एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी चतुर्थ प्रश्नपत्र - कथा-साहित्य
प्रश्न- प्रेम और त्याग के आदर्श के रूप में 'उसने कहा था' कहानी के नायक लहनासिंह की चारित्रिक विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर -
पण्डित चन्द्रधर शर्मा गुलेरी द्वारा रचित 'उसने कहा था' एक चरित्र प्रधान कहानी है। प्रस्तुत कहानी का केन्द्रीय पात्र लहनासिंह है। लहनासिंह के विषय में अन्य पात्रों की प्रतिक्रियाएं हैं। अन्य पात्रों के कथन उसके चरित्र को उद्घाटित करते हैं। सूबेदारनी का उस पर अटूट विश्वास होता है। हजारासिंह उसको अत्यधिक प्रेम करता है। बोधासिंह उसके त्याग से अभिभूत है। वजीरासिंह उसके बहादुरी का कायल है लहनासिंह को छोड़कर कहानी के अन्य पात्र गौण प्रतीत होते हैं। बस, उन सबके चरित्र लहना सिंह के चरित्र के विकास में सहायक सिद्ध होते हैं। वे बहुत कम समय के लिए पाठक के समक्ष आ पाते हैं। लेखक का पूरा कौशल लहनासिंह के चरित्र को विकसित करने में लगता है। वस्तुतः लहनासिंह के चरित्र की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
(1) चंचल एवं बहिर्मुखी बालक - लहनासिंह पाठक के समक्ष एक बारह वर्षीय बालक के रूप में आता है। वह बहुत ही चंचल एवं बहिर्मुखी प्रवृत्ति का बालक है। वह अमृतसर अपने मामा के यहाँ आया हुआ है। उसके व्यवहार में संकोच एवं झिझक नहीं है। वह बहुत कम समय में ही एक आठ वर्षीय लड़की से मेलजोल बढ़ा लेता है। वह अपनी चंचलता और बहिर्मुखी प्रकृति के कारण उस लड़की से उसकी कुड़माई तक के बारे में पूछ लेता है। एक दिन जब वह लड़की उसे कहती है कि हाँ मेरी कुड़माई हो गई है। और कहती है- "देखते नहीं यह रेशम से कढ़ा हुआ सालू" तो वह अचेतन रूप से क्षुब्ध हो जाता है। लड़की अपने घर की तरफ भाग जाती है और उसने घर लौटते समय एक लड़के को मोरी में धेकल दिया, एक छाबड़ी वाले की दिनभर की कमाई खोई, एक कुत्ते पर पत्थर मारा और एक गोभी वाले के ठेले में दूध उड़ेल दिया। सामने से नहाकर आती हुई किसी वैष्णवी से टकराकर अन्धे की उपाधि पाई। तब कहीं वह घर पहुँचा। इस प्रकार बालक लहनासिंह के ये सभी हरकतें उसकी चंचल प्रवृत्ति का परिचय देती है।
(2) आदर्श प्रेमी - लहनासिंह सीधा-सादा सरल स्वभाव का एक आदर्श प्रेमी है। वह बालकपन में ही एक किशोर लड़की से प्रेम करने लगता है। फिर वह लड़की सूबेदारनी के रूप में एक लम्बे अर्से के बाद लहनासिंह को मिलती है। लहनासिंह सूबेदारनी के पति हजारासिंह और बेटे बोधासिंह की पलटन में फौजी हैं। वे प्रथम विश्वयुद्ध में अंग्रेजों की ओर से जर्मनी के विरुद्ध लड़ रहे थे। जब छुट्टियों में जब लहनासिंह हजारासिंह के घर जाता है तो वह लड़की जो कभी उसे अमृतसर के बाजार में सुन्दर लगी थी सूबेदारनी के रूप में मिलती है। वह युद्ध के मोर्चे पर अपने पति और बेटे की रक्षा के लिए लहनासिंह से कहती है। लहनासिंह अपने प्राणों की बाजी लगाकर उसके पति और बेटे दोनों की रक्षा करता है। उसका सूबेदारनी के प्रति मानसिक एवं आदर्शपरक प्रेम है जिसमें वासना की दुर्गन्ध नहीं है। वस्तुतः एक सच्चा आदर्श प्रेमी है।
(3) विनम्र और शिष्ट - लहनासिंह एक विनम्र और शिष्ट व्यक्ति है। जब वह सूबेदारनी को मिलने जाता है तो वह सूबेदार की पत्नी को 'माथा टेकना' कहता है। युद्ध में घायल बोधासिंह को एम्बूलैंस से सुरक्षित स्थान पर भेजते हुए वह सूबेदार साहब से कहता है "सुनिए तो, सूबेदारनी होरा को चिट्ठी लिखो तो मेरा मत्था टेकना लिख देना और घर जाओ तो कह देना कि मुझसे उसने कहा था, वह मैंने कर दिया।" लहनासिंह नकली लपटन साहब से भी सम्मानपूर्वक बात करता है, परन्तु उसकी सच्चाई जान लेने पर उसे जीवित भी नहीं छोड़ता। वह छोटों के प्रति सदैव प्यार और बड़ों के प्रति सम्मान रखता है। बोधासिंह, हजारासिंह और बजीरासिंह के प्रति उसका व्यवहार सदा विनम्र और शिष्ट होता है।
(4) वीर सैनिक - लहनासिंह एक वीर सैनिक है। जो न केवल सामान्य जीवन में बल्कि युद्ध क्षेत्र में अपने साहसी एवं वीर सैनिक होने का परिचय देता है। चार-चार दिन ठंडी खंदकों में पड़े रहते भी उसके चेहरे पर सिकन नहीं आती है। वह स्वयं ठंड में खंदक का पहरा देकर अपने कम्बल से बोधासिंह को ठंड से बचाता है। नकली लपटन का पता चलते ही वह बड़ी वीरता के साथ उसका मुकाबला करता है। जर्मन सैनिकों के आक्रमण वह स्वयं खंदक में खड़े होकर रोकता है। वह घायल होने के बावजूद भी अपनी संगीन से अनेक जर्मन सैनिकों को मौत के घाट उतार देता है। जर्मन सैनिकों से लड़ते हुए घायल लहनासिंह की वीरता परिचय लेखक इस प्रकार देता है- "अकाली सिक्खाँ दी फौज आयी ! वाहे गुरु जी की फतह !! वाहे गुरु जी का खालसा !!! सतश्री अकाल पुरुष !!! और लड़ाई खत्म हो गई। तिरसठ जर्मन या तो खेत रहे थे या कराह रहे थे। सिक्खों में पन्द्रह के प्राण गए। .... लहनासिंह की पसली में गोली लगी। उसने घाव को खंदक की गीली मिट्टी से पूर लिया और बाकी को साफा कसकर कमरबंद की तरह लपेट लिया। किसी को खबर न हुई कि लहना को दूसरा घाव भारी घाव लगा है।'
(5) बुद्धिमान एवं होशियार - लहनासिंह ऊपरी तौर पर एक सीधा-सादा सरल स्वभाव का जाट सिक्ख सिपाही है। परन्तु वह अपनी बुद्धि का इस्तेमाल समय रहते करता है। वह एक होशियार व्यक्ति है। वह काम करने से पूर्व उसका परिणाम जान लेता है। जैसे ही उसे संदेह होता है कि लपटन साहब के वेश में कोई जर्मन खंदक में घुस आया है तो वह एक क्षण भी बेकार किए बिना सूबेदार हजारासिंह को सैनिकों सहित खंदक से बाहर निकाल देता है। वह संदेह की पुष्टि के लिए लपटन साहब से कुछ प्रश्न पूछता है। उसके प्रश्नोत्तर से यह स्पष्ट हो जाता है कि यह लपटन नकली और जर्मन है क्योंकि न यह कभी भारत गया है और नहीं इसे भारतीय रीति-रिवाजों के बारे में कोई ज्ञान है। वह तुरन्त निर्णय लेता है। वह अपने अधिकार का प्रयोग करता हुआ वजीरासिंह को सूबेदार हजारासिंह के पीछे भेजता है और स्वयं नकली लपटन साहब की खबर लेता है। मुसीबत के समय भी वह कभी अपना विवेक और धैर्य नहीं त्यागता। एक आदर्श सैनिक के यही गुण होते हैं कि मुसीबत के समय में भी वह धैर्यपूर्ण एवं विवेकपूर्ण आचरण करे। वह अपने कार्य में कभी लापरवाही नहीं सहन करता। लहनासिंह में नेतृत्व की पूर्ण क्षमता है।
(6) भावुक एवं संवेदनशील - लहनासिंह एक भावुक एवं संवेदनशील प्राणी है। अमृतसर के बाजार में वह उस आठ वर्षीय लड़की से यह पूछ कर हटता है कि "तुम्हारी कुड़माई हो गई है। जब वह एक हाँ में उत्तर देती है तो वह भावुक सा हो जाता है। उसके प्रत्येक बात में भावुकता दृष्टिगोचर होती है। वह अपने प्राणों की बाजी लगाकर सूबेदार हजारासिंह और उसके बेटे की रक्षा करता है। जब वह लड़ते-लड़ते घायल हो जाता है तो उसके दिमाग में अतीत की स्मृतियाँ घूमने लगती हैं। उसे याद आता है कि जब सूबेदारनी ने उसे याद दिलाया था कि तुमने अमृतसर में मेरे प्राण बचाये थे क्योंकि दही वाली दुकान पर एक घोड़ा बिगड़ गया और तुम मुझे बचाते समय स्वयं घोड़े की लातों में चले गए थे और मुझे उठाकर तुमने दुकान के तख्ते पर खड़ा कर दिया था। ऐसे मेरे पति और बेटे को भी बचाना। यह मेरी भिक्षा है। तुम्हारे आगे मैं आँचल पसारती हूँ।" - सूबेदारनी रोने लगी थी और लहनासिंह की आँखों में भी आँसू भर आये थे। इस प्रकार लहनासिंह एक भावुक, संवेदनशील और कोमल भावनाओं वाला इंसान है।
(7) दयालु और परोपकार - लहनासिंह में दयालुता और परोपकार जैसे गुण मौजूद हैं। वह एक दयालु और परोपकारी इंसान है। वह कड़ाके की ठंड में अंग्रेजों की ओर से जर्मनों के विरुद्ध लड़ते हुए बोधासिंह को बुखार हो जाता है तो उसे ठंड लगने लगती है। पहरे पर खड़े लहनासिंह ने जब बोधा सिंह को कराहते हुए देखा तो लेखक ने उन दोनों की बातचीत को इस प्रकार व्यक्त किया है -
क्यों बोधा भाई क्या है।
'पानी पिला दो'
'लहनासिंह ने कटोरा उसके मुँह से लगाकर पूछा "कहो कैसे हो?"
पानी पीकर बोधासिंह बोला- कँपनी (कँपकपी) छूट रही है।
'रोम-रोम में तार दौड़ रहे हैं। दाँत बज रहे हैं।
'अच्छा मेरी जरसी पहन लो।
इस प्रकार उपरोक्त संवाद से लहनासिंह के दयालु और परोपकारी होने का पता चलता है। वह स्वयं ठंड में रहकर बोधासिंह की ठंड से रक्षा करता है।
(8) कर्त्तव्यनिष्ठ / कर्तव्यपरायण - लहनासिंह एक कर्तव्यपरायण व्यक्ति है। वह अपने कर्त्तव्य के लिए अपने प्राण देने में भी हिचक महसूस नहीं करता। वह युद्धभूमि और युद्धभूमि के बाहर अपना कर्त्तव्य अच्छी तरह समझता है। उसका अन्य सैनिकों से व्यवहार मैत्रीपूर्ण होता है। वह उनके प्रवृत्ति का रसिक व्यक्ति है। वे सूबेदारनी से दिए वचन को अपना कर्त्तव्य समझकर पूरा करता है। अगर अमृतसर में उसने सूबेदारनी को बालिका रूप में एक घोड़े के नीचे आने से बचाया था तो युवावस्था वह युद्धक्षेत्र में सूबेदारनी के पति हजारासिंह और बेटे बोधासिंह की रक्षा अपने प्राण देकर करता है। वस्तुतः लहनासिंह के समक्ष अपने कर्त्तव्य से बड़ी कोई चीज नहीं है।
निष्कर्ष - रूप में कहा जा सकता है कि लहनासिंह एक चंचल प्रवृत्ति का बालक वीर सैनिक, साहसी, होशियार भावुक, संवेदनशील, दयालु, परोपकारी और कर्तव्यपरायण व्यक्ति है। वह पाठक के समक्ष आदर्श मूल्यों की स्थापना करने वाला इंसान है।
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- प्रश्न- गोदान में उल्लिखित समस्याओं का विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- 'गोदान' के नामकरण के औचित्य पर विचार प्रकट कीजिए।
- प्रश्न- प्रेमचन्द का आदर्शोन्मुख यथार्थवाद क्या है? गोदान में उसका किस रूप में निर्वाह हुआ है?
- प्रश्न- 'मेहता प्रेमचन्द के आदर्शों के प्रतिनिधि हैं।' इस कथन की सार्थकता पर विचार कीजिए।
- प्रश्न- "गोदान और कृषक जीवन का जो चित्र अंकित है वह आज भी हमारी समाज-व्यवस्था की एक दारुण सच्चाई है।' प्रमाणित कीजिए।
- प्रश्न- छायावादोत्तर उपन्यास-साहित्य का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- उपन्यास के तत्वों की दृष्टि से 'गोदान' की संक्षिप्त समालोचना कीजिए।
- प्रश्न- 'गोदान' महाकाव्यात्मक उपन्यास है। कथन की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- गोदान उपन्यास में निहित प्रेमचन्द के उद्देश्य और सन्देश को प्रकट कीजिए।
- प्रश्न- गोदान की औपन्यासिक विशिष्टताओं पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- प्रेमचन्द के उपन्यासों की संक्षेप में विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- छायावादोत्तर उपन्यासों की कथावस्तु का विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- 'गोदान' की भाषा-शैली के विषय में अपने संक्षिप्त विचार प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी के यथार्थवादी उपन्यासों का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- 'गोदान' में प्रेमचन्द ने मेहनत और मुनाफे की दुनिया के बीच की गहराती खाई को बड़ी बारीकी से चित्रित किया है। प्रमाणित कीजिए।
- प्रश्न- क्या प्रेमचन्द आदर्शवादी उपन्यासकार थे? संक्षिप्त उत्तर दीजिए।
- प्रश्न- 'गोदान' के माध्यम से ग्रामीण कथा एवं शहरी कथा पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- होरी की चरित्र की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- धनिया यथार्थवादी पात्र है या आदर्शवादी? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- प्रेमचन्द के उपन्यास 'गोदान' के निम्न गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- 'मैला आँचल एक सफल आँचलिक उपन्यास है' इस उक्ति पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- उपन्यास में समस्या चित्रण का महत्व बताते हुये 'मैला आँचल' की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- आजादी के फलस्वरूप गाँवों में आये आन्तरिक और परिवेशगत परिवर्तनों का 'मैला आँचल' उपन्यास में सूक्ष्म वर्णन हुआ है, सिद्ध कीजिए।
- प्रश्न- 'मैला आँचल' की प्रमुख विशेषताओं का निरूपण कीजिए।
- प्रश्न- फणीश्वरनाथ रेणुजी ने 'मैला आँचल' उपन्यास में किन-किन समस्याओं का अंकन किया है और उनको कहाँ तक सफलता मिली है? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- "परम्परागत रूप में आँचलिक उपन्यास में कोई नायक नहीं होता।' इस कथन के आधार पर मैला आँचल के नामक का निर्धारण कीजिए।
- प्रश्न- नामकरण की सार्थकता की दृष्टि से 'मैला आँचल' उपन्यास की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- 'मैला आँचल' में ग्राम्य जीवन में चित्रित सामाजिक सम्बन्धों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- मैला आँचल उपन्यास को आँचलिक उपन्यास की कसौटी पर कसकर सिद्ध कीजिए कि क्या मैला आँचल एक आँचलिक उपन्यास है?
- प्रश्न- मैला आँचल में वर्णित पर्व-त्योहारों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- मैला आँचल की कथावस्तु संक्षेप में लिखिए।
- प्रश्न- मैला आँचल उपन्यास के कथा विकास में प्रयुक्त वर्णनात्मक पद्धति पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- कथावस्तु के गुणों की दृष्टि से मैला आँचल उपन्यास की संक्षिप्त विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- 'मैला आँचल' उपन्यास का नायक डॉ. प्रशांत है या मेरीगंज का आँचल? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- मैला आँचल उपन्यास की संवाद योजना पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- निम्न में से किन्हीं तीन गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (मैला आँचल)
- प्रश्न- चन्द्रधर शर्मा गुलेरी की कहानी कला की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- चन्द्रधर शर्मा गुलेरी की कहानी 'उसने कहा था' का सारांश लिखिए।
- प्रश्न- कहानी के तत्त्वों के आधार पर 'उसने कहा था' कहानी की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- प्रेम और त्याग के आदर्श के रूप में 'उसने कहा था' कहानी के नायक लहनासिंह की चारित्रिक विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सूबेदारनी की चारित्रिक विशेषताओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- अमृतसर के बम्बूकार्ट वालों की बातों और अन्य शहरों के इक्के वालों की बातों में लेखक ने क्या अन्तर बताया है?
- प्रश्न- मरते समय लहनासिंह को कौन सी बात याद आई?
- प्रश्न- चन्द्रधर शर्मा गुलेरी की कहानी कला की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- 'उसने कहा था' नामक कहानी के आधार पर लहना सिंह का चरित्र-चित्रण कीजिए।
- प्रश्न- निम्न में से किन्हीं तीन गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (उसने कहा था)
- प्रश्न- प्रेमचन्द की कहानी कला पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- कफन कहानी का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
- प्रश्न- कफन कहानी के उद्देश्य की विश्लेषणात्मक विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- 'कफन' कहानी के आधार पर घीसू का चरित्र चित्रण कीजिए।
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