बी ए - एम ए >> एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी चतुर्थ प्रश्नपत्र - कथा-साहित्य एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी चतुर्थ प्रश्नपत्र - कथा-साहित्यसरल प्रश्नोत्तर समूह
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एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी चतुर्थ प्रश्नपत्र - कथा-साहित्य
अध्याय - 3
उसने कहा था - चन्द्रधर शर्मा गुलेरी
प्रश्न- चन्द्रधर शर्मा गुलेरी की कहानी कला की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर -
हिन्दी के प्रथम सफल कहानीकारों में चन्द्रधर शर्मा गुलेरी जी को याद किया जाता है। गुलेरी जी की तीन प्रसिद्ध कहानियाँ थीं उसने कहा था, सुखमय जीवन, बुद्धू का काँटा। प्रेमचन्दयुगीन कहानीकार गुलेरी की कहानीकाल की प्रमुख विशेषताएँ निम्न है -
(1) सुगठित कथानक - चन्द्रधर शर्मा गुलेरी द्वारा लिखित तीनों कहानियों के कथानक सुसंगठित उदात्त एवं सशक्त कहे जा सकते हैं। इनकी कहानियों के कथानकों की प्रवृत्ति यथार्थ और आदर्श के समन्वय को स्थापित करने में पूर्णतः सफल रही है। 'उसने कहा था ' उनकी अमर रचना है। इस कहानी की सफलता ने गुलेरी जी को भी अमर बना दिया। डॉ. हुक्मचन्द राजपाल के मतानुसार सन् 1915 में चन्द्रधर शर्मा गुलरी कृत 'उसने कहा था ' "नामक कहानी प्रकाश में आयी। 'उसने कहा था अपने सहज पुलकित रसोद्रेक के कारण ही हिन्दी कहानी साहित्य का क्रोशस्तंभ बन सकी। निस्संदेह हिन्दी कहानियों में जो लोकप्रियता और अमरत्व 'उसने कहा था' को प्राप्त है, वह हिन्दी की किसी कहानी को नहीं है।' 'उसने कहा था' कहानी के साथ उनकी दो अन्य कहानियाँ 'सुखमय जीवन' और 'बुद्ध का कांटा अपने सुगठित कथानक के लिए काफी चर्चित रही है। इन कहानियों की कथावस्तु यथार्थ के आधार पर संचित घटनामूलक है। इनका किसी ऐतिहासिक एवं पौराणिक तथ्य से कोई सम्बन्ध नहीं है। इनकी घटनाएँ स्वयं इतनी प्रभावोत्पादक है कि कथावस्तु में सौन्दर्य का आना स्वाभाविक सा लगता है। कहानी के उद्देश्य को ध्यान में रखकर यदि कथावस्तु पर विचार किया जाए तो यह कहना अनुचित नहीं होगा कि कहानियों की कथावस्तु अपने ढंग में उपयुक्त ही नहीं, वरन् अद्वितीय भी है। कथानक के संगुफन ने इन कहानियों को नाटकीयता, उत्सुकता, तीव्रता, स्वाभाविकता और गहनता प्रदान की है।
(2) प्रेम और कर्त्तव्य के द्वंद्व का चित्रण - गुलेरी जी की तीनों कहानियों के कथानक सामाजिक धरातल पर प्रेम और कर्त्तव्य के ताने-बाने से बुने प्रतीत होते हैं। 'उसने कहा था ' उनकी एक परम्परागत कहानी है, जिसकी यथार्थ भूमि युद्धस्थल के माध्यम से प्रेम और कर्त्तव्य द्वन्द्व को बड़ी ही सूक्ष्मता के साथ रूपायित करती है। इस द्वन्द्व में नायक का चरित्र पूर्ण रूप से तपकर नाटकीय ढंग से पाठक के समक्ष आ खड़ा होता है। अपने अंत पर पहुँचकर कहानी का एकदम पटाक्षेप हो जाता है। सम्पूर्ण कथानक में सहज एवं सच्चे प्रेम की मिठास और कर्त्तव्य की खुशबू मिलकर पाठक में रोमांच पैदा कर देती है। 'उसने कहा था के लहनासिंह के प्रेम में बलिदान कर्त्तव्य और त्याग की भावना तो मुखरित होती ही है साथ ही सूबेदारनी के उदात्त गंभीर प्रेम और अडिग विश्वास को गुलेरी ने पूर्ण उच्चता प्रदान की है। बचपन में उपजी प्रेम-भावना ने लहनासिंह को अपराजय गहनता प्रदान की है। 'बुद्ध का कांटा' कहानी में प्रणय पक्ष का सूक्ष्म विवेचन मानवीय धरातल पर किया गया है। सूबेदारनी के वास्तविक बोले हुए दो संवाद ही हैं - देखते नहीं, यह रेशम से कड़ा हुआ सालू और युद्ध में जाते समय - 'ऐसे ही इन दोनों को बचाना' और ये दोनों संवाद ही लहनासिंह और सूबेदारनी के आपसी सच्चे प्रेम और कर्त्तव्य को उच्चता प्रदान करते हैं। वस्तुतः गुलेरी की कहानियों में प्रेम और कर्त्तव्य की एक भीनी महक है।
(3) उत्कृष्ट पात्र योजना - गुलेरी जी की कहानियों के पात्र उदात्त भावनाओं से ओत-प्रोत हैं। वे अपने कर्त्तव्य के लिए बलिदान करने में हिचक महसूस नहीं करते हैं। लेखक ने पात्रों को वर्णन से सम्बन्धित स्थानों के अनुकूल पूर्णतः चुनकर रखा है। फलस्वरूप कोई भी पात्र अनावश्यक अथवा अस्वाभाविक प्रतीत नहीं होता है। 'उसने कहा था' के नायक लहनासिंह का चरित्र अन्य पात्रों की सहायता से निरन्तर निखरता ही गया है। चरित्र चित्रण की उत्तमता के लिए कहानी में जिस पद्धति की आवश्यकता होती है वहीं गुलेरी जी की कहानियों में दृष्टिगोचर होती है। जटिल परिस्थितियों में भी कर्त्तव्य के प्रति सजगता, सद्वृत्तियों का तारतम्य कहानियों में चरित्र योजना को और भी उत्कृष्ट बना देते हैं। लहनासिंह का चरित्र बालक के रूप में, युद्ध के कुशल सैनिक के रूप में तथा चिर-परिचित सूबेदारनी को दिए गए वचन का निर्वाह करने वाले के रूप में, सभी प्रकार से श्रेष्ठ, उत्कृष्ट और उत्तम है। सूबेदारनी के चरित्र में एक निश्छल प्रेमिका, पतिव्रता पत्नी और ममतामयी माँ के वे सभी गुण मौजूद हैं जो भारतीय नारी की गरिमा को बनाए रखते हैं। वस्तुतः गुलेरी जी की कहानियों की पात्र योजना उत्कृष्ट एवं उच्चकोटि की है। (4) संवाद योजना/ कथोपकथन कथोपकथन कथानक को गति प्रदान करने और पात्रों के निर्माण में सहायक सिद्ध होते हैं। फलस्वरूप संवाद योजना का कहानी लेखन की सफलता में विशेष महत्त्व स्वीकार किया जाता है। गुलेरी जी की संवाद - योजना की एक खास बात यह है कि वे पात्रों के बीच में स्वयं आकर टिका टिप्पणी नहीं करते। वे अपनी बात को पात्रों के पारस्परिक कथोपकथन के द्वारा ही सारी भावाभिव्यक्ति हो जाती है। चरित्र चित्रण के अंश पर भी इस प्रकार के संवादों का बहुत ही सुन्दर प्रभाव पड़ता है। संवाद बहुत ही सरल, सहज, सटीक, संक्षिप्त, जिज्ञासवर्धक, पात्रानुकूल और मानसिक द्वन्द्व को उद्घाटित करने वाले रखे गए हैं। पात्रों की आपसी बातचीत पाठक तटस्थ भाव से सुनता है। 'उसने कहा था कहानी में चित्रित, अमृतसर के बाजार के एक चौक पर लहनासिंह और सूबेदारनी के बचपन का आपसी वार्तालाप प्रस्तुत है.
'तेरा घर कहाँ है?'
'मगरे में - और तेरे?'
'माँझे में यहाँ कहाँ रहती है।
'अतर सिंह की बैठक में, वह मेरे मामा होते हैं?'
'मैं भी मामा के यहाँ आया हूँ, उनका घर गुरु बाजार में है।"
इस प्रकार संवाद कथानक को गति प्रदान करने वाली शक्ति रखते हैं तथा मनोवैज्ञानिकता उनमें स्वाभाविकता बनाये रखती है।
(5) यथार्थवादी परिवेश - देशकाल और वातावरण के प्रति गुलेरी सदैव यथार्थवादी रहे हैं। वे परिवेश को लेकर सदैव सतर्क एवं जागरूक नजर आते हैं। उनकी कहानियों में यथार्थवादी परिवेश का चित्रण हुआ है। 'उसने कहा था कहानी के देशकाल की समयावधि दीर्घ है। कई बार पाठक परिवेश में चक्कर काटने लगता है।
लेखक ने अमृतसर के बाजारों और सड़कों के चित्रण में यथार्थ की तूलिका से रंग भरे गए हैं। कहानी में युद्धस्थल के चित्रण को देखकर ऐसा लगता है मानों लेखक स्वयं युद्ध क्षेत्र से सीधा प्रसारण कर रहा हो। युद्धावकाश के समय सैनिकों के गन्दे गाने, फिरंगी मेमों की बातें, फूहड़ मजाक सभी कुछ यथार्थ के सूक्ष्म रेशों से गूंथा हुआ लगता है। वस्तुतः देशकाल और वातावरण में लेखक ने यथार्थवादी प्रवृत्ति अपनाई है।
(6) भाषा-शैली - गुलेरी जी की कथा शैली निस्सन्देह अद्वितीय है। वास्तव में पूरी कहानी की एकमात्र श्रेष्ठता एवं अमरता इनकी शैली पर अवलम्बित है। चित्रण की सजीवता, वर्णन की उत्कृष्टता, कथा की क्रमबद्धता तथा भाषा की उपयुक्तता इस शैली का प्रधान गुण है। इन सबसे बढ़कर कहानी का अन्त अत्यंत रोचक कौतूहलपूर्ण एवं कलात्मक है। पाठक अन्त में विषाद की गहरी छाया में अभिभूत हो जाता है। फ्लेश बैक (पूर्वदीप्ति) शैली ने इस कहानी के प्रभाव को और भी स्थायी बना दिया है। घटना गुम्फन कहानीकार ने इतनी चतुराई से किया है कि अतिरेक के कारण उत्पन्न अविश्वसनीय और संयोग तत्त्व अकस्मात् विलीन हो जाते हैं। कहानी का कथानक तीव्र गति से आगे बढ़ता है और साथ ही साथ पाठक को गतिमान बनाये रखती है। इस तीव्र गति के फलस्वरूप कथानक में आया असन्तुलन छिप जाता है। मनो-विश्लेषणात्मक शैली के कारण पात्रों का चित्रण साकार हो उठा है।
गुलेरी जी की कहानियों की भाषा विषय के अनुकूल है। अमृतसर के बाजार में कहानी का आरम्भ होता है। और इस चित्रण में लेखक ने भाषा में 'लोकल टच' का प्रयोग किया है। वहाँ रहने वाले स्थानीय लोगों और इक्के वालों की आवाजों से वातावरण में रोमानीयत पैदा हो जाती है। भाषा में पंजाबी के शब्दों का अत्यधिक प्रयोग खटकता नहीं है। तत्सम और तद्भव के साथ देशज शब्दों में संगति है। तत्सम और तद्भव के साथ देशज शब्दों में संगति है। वस्तुतः भाषा-शैली की दृष्टि से गुलेरी की कहानियों में नवीनता और ताजगी है।
(7) उद्देश्य गुलेरी जी की कहानियाँ सोद्देश्य है। प्रत्येक कहानी एक उदात्त एवं महान उद्देश्य की पुष्टि करती है। इनकी कहानियों का मूल स्वर प्रेम और कर्त्तव्य पर आधारित है। इनकी कहानियों के पात्र अपने कर्तव्य के लिए अपने प्रेम को कुर्बान कर देते हैं। इसी उद्देश्य में भारतीयता की जड़े गहरे पैठी हैं। मानवीय मूल्यों और मर्यादाओं की स्थापना करना किसी साहित्यकार का प्रथम कर्म होता है। और इस कर्म में लेखक पूर्णतः सफल रहे हैं। 'उसने कहा था' कहानी में लहनासिंह के चरित्र में यह उद्देश्य स्पष्ट दिखाई पड़ता है कि उसका बचपन का प्रेम कर्त्तव्यनिष्ठ होकर, त्याग और बलिदान की सीमाओं को छूने लगता है। अतः कहानी का उद्देश्य पाठकों के समक्ष सच्चे प्रेम में वचन पूर्ण करने का मंगलकारी संदेश उस्थित करना है।
(8) शीर्षक गुलेरी की कहानियों के शीर्षक पाठक में एक जिज्ञासा पैदा करते हैं। शीर्षक के मामले में उनकी सफलतम कहानी 'उसने कहा था' का सम्पूर्ण हिन्दी कहानी साहित्य कोई सानी नहीं है। इतना शानदार और जिज्ञासावर्धक शीर्षक के शीर्षक पढ़ते ही पाठक के दिमाग में एक अपूर्व कौतूहल वृत्ति जाग्रत हो जाती है। वस्तुतः सबसे बढ़कर इस कहानी का शीर्षक बड़ा ही कौतूहलवर्धक है।
निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि चन्द्रधर शर्मा गुलेरी ने केवल तीन कहानियों की सृजना की ओर इनमें भी वे 'उसने कहा था' कहानी लिखकर अमर हो गए हैं। 'उसने कहा था ' कहानी के बिना हिन्दी कहानी की चर्चा अधूरी मानी जाती है। सुगठित कथानक नाटकीय तत्त्व, कौतूहल प्रवृत्ति और सूक्ष्म जीवन तथ्यों का उद्घाटन आदि ने इनकी कहानियों में मार्मिकता, विशदता और हृदयग्रहिता पूर्ण रूप से भर दी है। कहने का अभिप्राय यह है कि गुलेरी अनुभूति और अभिव्यक्ति में सर्वरूपेण सफल और सम्पन्न है।
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- प्रश्न- गोदान में उल्लिखित समस्याओं का विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- 'गोदान' के नामकरण के औचित्य पर विचार प्रकट कीजिए।
- प्रश्न- प्रेमचन्द का आदर्शोन्मुख यथार्थवाद क्या है? गोदान में उसका किस रूप में निर्वाह हुआ है?
- प्रश्न- 'मेहता प्रेमचन्द के आदर्शों के प्रतिनिधि हैं।' इस कथन की सार्थकता पर विचार कीजिए।
- प्रश्न- "गोदान और कृषक जीवन का जो चित्र अंकित है वह आज भी हमारी समाज-व्यवस्था की एक दारुण सच्चाई है।' प्रमाणित कीजिए।
- प्रश्न- छायावादोत्तर उपन्यास-साहित्य का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- उपन्यास के तत्वों की दृष्टि से 'गोदान' की संक्षिप्त समालोचना कीजिए।
- प्रश्न- 'गोदान' महाकाव्यात्मक उपन्यास है। कथन की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- गोदान उपन्यास में निहित प्रेमचन्द के उद्देश्य और सन्देश को प्रकट कीजिए।
- प्रश्न- गोदान की औपन्यासिक विशिष्टताओं पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- प्रेमचन्द के उपन्यासों की संक्षेप में विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- छायावादोत्तर उपन्यासों की कथावस्तु का विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- 'गोदान' की भाषा-शैली के विषय में अपने संक्षिप्त विचार प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी के यथार्थवादी उपन्यासों का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- 'गोदान' में प्रेमचन्द ने मेहनत और मुनाफे की दुनिया के बीच की गहराती खाई को बड़ी बारीकी से चित्रित किया है। प्रमाणित कीजिए।
- प्रश्न- क्या प्रेमचन्द आदर्शवादी उपन्यासकार थे? संक्षिप्त उत्तर दीजिए।
- प्रश्न- 'गोदान' के माध्यम से ग्रामीण कथा एवं शहरी कथा पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- होरी की चरित्र की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- धनिया यथार्थवादी पात्र है या आदर्शवादी? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- प्रेमचन्द के उपन्यास 'गोदान' के निम्न गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- 'मैला आँचल एक सफल आँचलिक उपन्यास है' इस उक्ति पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- उपन्यास में समस्या चित्रण का महत्व बताते हुये 'मैला आँचल' की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- आजादी के फलस्वरूप गाँवों में आये आन्तरिक और परिवेशगत परिवर्तनों का 'मैला आँचल' उपन्यास में सूक्ष्म वर्णन हुआ है, सिद्ध कीजिए।
- प्रश्न- 'मैला आँचल' की प्रमुख विशेषताओं का निरूपण कीजिए।
- प्रश्न- फणीश्वरनाथ रेणुजी ने 'मैला आँचल' उपन्यास में किन-किन समस्याओं का अंकन किया है और उनको कहाँ तक सफलता मिली है? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- "परम्परागत रूप में आँचलिक उपन्यास में कोई नायक नहीं होता।' इस कथन के आधार पर मैला आँचल के नामक का निर्धारण कीजिए।
- प्रश्न- नामकरण की सार्थकता की दृष्टि से 'मैला आँचल' उपन्यास की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- 'मैला आँचल' में ग्राम्य जीवन में चित्रित सामाजिक सम्बन्धों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- मैला आँचल उपन्यास को आँचलिक उपन्यास की कसौटी पर कसकर सिद्ध कीजिए कि क्या मैला आँचल एक आँचलिक उपन्यास है?
- प्रश्न- मैला आँचल में वर्णित पर्व-त्योहारों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- मैला आँचल की कथावस्तु संक्षेप में लिखिए।
- प्रश्न- मैला आँचल उपन्यास के कथा विकास में प्रयुक्त वर्णनात्मक पद्धति पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- कथावस्तु के गुणों की दृष्टि से मैला आँचल उपन्यास की संक्षिप्त विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- 'मैला आँचल' उपन्यास का नायक डॉ. प्रशांत है या मेरीगंज का आँचल? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- मैला आँचल उपन्यास की संवाद योजना पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- निम्न में से किन्हीं तीन गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (मैला आँचल)
- प्रश्न- चन्द्रधर शर्मा गुलेरी की कहानी कला की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- चन्द्रधर शर्मा गुलेरी की कहानी 'उसने कहा था' का सारांश लिखिए।
- प्रश्न- कहानी के तत्त्वों के आधार पर 'उसने कहा था' कहानी की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- प्रेम और त्याग के आदर्श के रूप में 'उसने कहा था' कहानी के नायक लहनासिंह की चारित्रिक विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सूबेदारनी की चारित्रिक विशेषताओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- अमृतसर के बम्बूकार्ट वालों की बातों और अन्य शहरों के इक्के वालों की बातों में लेखक ने क्या अन्तर बताया है?
- प्रश्न- मरते समय लहनासिंह को कौन सी बात याद आई?
- प्रश्न- चन्द्रधर शर्मा गुलेरी की कहानी कला की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- 'उसने कहा था' नामक कहानी के आधार पर लहना सिंह का चरित्र-चित्रण कीजिए।
- प्रश्न- निम्न में से किन्हीं तीन गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (उसने कहा था)
- प्रश्न- प्रेमचन्द की कहानी कला पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- कफन कहानी का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
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