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एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी द्वितीय प्रश्नपत्र - साहित्यालोचन

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :160
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2678
आईएसबीएन :0

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एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी द्वितीय प्रश्नपत्र - साहित्यालोचन

प्रश्न- हिन्दी में ऐतिहासिक आलोचना का आरम्भ कहाँ से हुआ?

उत्तर -

हिन्दी में ऐतिहासिक आलोचना के आरम्भ का सवाल जब आता है तो निश्चित रूप से ' यह बात हमें आचार्य प्रवर रामचंद्र शुक्ल से करनी पड़ती है। श्री शुक्ल जी ने सूर की कृष्ण परम्परा और तुलसी की राम परम्परा का विवेचन किया है। इन लेखों में यह दिखाने का प्रयास किया गया है कि वैदिककाल से लेकर भक्तिकाल तक विष्णु किन अवस्थाओं को पार करके पहुंचा है और हिन्दुओं ने विष्णु के किस रूप को ग्रहण किया है। इसमें लेखक ने यह भी स्वीकार किया है कि श्रृंगार रस तत्कालीन परिस्थितियों का परिणाम नहीं था। ऐतिहासिक आलोचना पद्धति द्वारा लेखक ने सिद्ध करने का प्रयास किया है कि सूर और तुलसी की काव्य परम्परा बहुत प्राचीन है। भूषण का विवेचन करते समय लेखक ने तत्कालीन राजनैतिक, सामाजिक और धार्मिक परिस्थितियों का विवेचन किया है। लेखक का कहना है कि इन परिस्थितियों ने भूषण को अत्यधिक प्रभावित किया। कवि यह भी निष्कर्ष देता है कि तुलसी ने रावण में तत्कालीन अत्याचारों का चित्रण है। यह पुस्तक ऐतिहासिक समीक्षा पद्धति की एक प्रामाणिक रचना है। शुक्ल पद्धति के आलोचकों में पं0 विश्वनाथ प्रसाद मिश्र ने भूषण ग्रन्थावली की भूमिका में ऐतिहासिक समीक्षा पद्धति का समुचित प्रयोग किया है।

डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी ने आरम्भ से ही ऐतिहासिक समीक्षा पद्धति को अपनयाआ, वे साहित्य को एक अविच्छिन्न धारा के रूप में देखना चाहते थे। उनकी 'कबीर' नामक रचना ऐतिहासिक आलोचना शैली के प्रौढ़ रूप का उदाहरण है। इसमें उन्होंने आलोचना की ऐतिहासिक समीक्षा को अपनाते हुए कबीरदास पर विचार किया है। हिन्दी के अन्य आलोचकों ने इसे साहित्य के युग तथा तत्कालीन परिस्थितियों का सहज प्रभाव कहा है। उनका कहना है कि भक्तिकाल की प्रौढ़ रचना के मूल में मुगल दरबार की प्रेरणाएँ काम कर रही थीं। 'हिस्ट्री ऑफ हिन्दी लिटरेचर' में गियर्सन ने भी ऐसी धारणाएँ व्यक्त की। हिन्दी साहित्य के प्रवर्तकों ने भी इसी धारणा को अपना लिया। वे सूर और तुलसी को तत्कालीन अवस्थाओं की उपज मानने लगे। परिणाम यह हुआ कि हिन्दी की परम्परा उपेक्षित होने लगी। हिन्दी साहित्य का उसकी पूर्ववर्ती परम्परा से सम्बद्ध स्थापित करने के लिए असंख्य आलोचक ऐतिहासिक दृष्टिकोण को अपनाने लगे। द्विवेदी जी ने हिन्दी साहित्य सम्बन्धी इन भ्रान्तियों को दूर किया। उन्होंने हिन्दी साहित्य परम्परा का सम्बन्ध भारत की मूल चिन्तन धारा से जोड़ा। द्विवेदी जी का विचार है कि कबीर की चिन्तनधारा केवल मुसलमानों के आगमन का परिणाम नहीं है बल्कि वह तो एक लम्बी परम्परा की विशेष अवस्था है। ऐतिहासिक समीक्षा पद्धति का सहारा लेते हुए द्विवेदी जी संस्कृत के साहित्य, अपभ्रंश के लोक साहित्य नाथ सम्प्रदाय की विचारधारा तथा वैष्णव भक्तों की भक्ति पद्धति को भक्तिकालीन विभिन्न काव्य धाराओं के लिए उत्तरदायी मानते हैं। द्विवेदी जी ने यह भी सिद्ध किया है कि कबीर पर अपने परिवार की परम्परा तथा नाथ सम्प्रदाय का पूरा-पूरा प्रभाव है। इन जोगियों में निराकार की पूजा होती ती। वे ये तो जुलाहे थे या भीख माँगकर गुजारा करते थे। ये लोग ब्राह्मणों से घृणा करते थे।

संक्षेप में हम कह सकते हैं कि आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने ऐतिहासिक समीक्षा पद्धति का सहारा लेते हुए कबीरदास और उनके साहित्य का मूल्याँकन किया। अपनी 'कबीर' नामक रचना में वे कहते हैं- "वे मुसलमान होकर भी असल में मुसलमान नहीं थे। वे हिन्दू होकर भी हिन्दू नहीं थे, वे साधु होकर भी साधु (अग्रहस्थ ) नहीं थे। वे वैष्णव होकर भी वैष्णव नहीं थे। - - - - - - -वे कुछ भगवान् की ओर से ही सबसे न्यारे बनाकर भेजे गये थे। वे भगवान् के नृसिंहावतार की मानव प्रतिमूर्ति थे। नृसिंह की भाँति वे नाना असम्भव समझी जाने वाली परिस्थितियों के मिलन-बिन्दु पर अवतीर्ण हुए थे। - - - - - असम्भव व्यापार के लिए शायद ऐसी ही परस्पर विरोधी कोटियों का मिलन बिन्दु भगवान् को अभीष्ट होता है। कबीरदास ऐसे ही मिलन - बिन्दु पर खड़े थे। जहाँ पर एक ओर हिन्दुत्व निकल जाता है और दूसरी ओर मुसलमानत्व - - - - - जहाँ एक ओर योग मार्ग निकल जाता है दूसरी ओर भक्ति मार्ग जहाँ से एक तरफ निर्गुण भावना निकल जाती है दूसरी ओर सगुण साधना।'

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- आलोचना को परिभाषित करते हुए उसके विभिन्न प्रकारों का वर्णन कीजिए।
  2. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के उद्भव एवं विकास पर प्रकाश डालिए।
  3. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के विकासक्रम में आचार्य रामचंद्र शुक्ल के योगदान की समीक्षा कीजिए।
  4. प्रश्न- आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी की आलोचना पद्धति का मूल्याँकन कीजिए।
  5. प्रश्न- डॉ. नगेन्द्र एवं हिन्दी आलोचना पर एक निबन्ध लिखिए।
  6. प्रश्न- नयी आलोचना या नई समीक्षा विषय पर प्रकाश डालिए।
  7. प्रश्न- भारतेन्दुयुगीन आलोचना पद्धति पर प्रकाश डालिए।
  8. प्रश्न- द्विवेदी युगीन आलोचना पद्धति का वर्णन कीजिए।
  9. प्रश्न- आलोचना के क्षेत्र में काशी नागरी प्रचारिणी सभा के योगदान की समीक्षा कीजिए।
  10. प्रश्न- नन्द दुलारे वाजपेयी के आलोचना ग्रन्थों का वर्णन कीजिए।
  11. प्रश्न- हजारी प्रसाद द्विवेदी के आलोचना साहित्य पर प्रकाश डालिए।
  12. प्रश्न- प्रारम्भिक हिन्दी आलोचना के स्वरूप एवं विकास पर प्रकाश डालिए।
  13. प्रश्न- पाश्चात्य साहित्यलोचन और हिन्दी आलोचना के विषय पर विस्तृत लेख लिखिए।
  14. प्रश्न- हिन्दी आलोचना पर एक विस्तृत निबन्ध लिखिए।
  15. प्रश्न- आधुनिक काल पर प्रकाश डालिए।
  16. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद से क्या तात्पर्य है? उसका उदय किन परिस्थितियों में हुआ?
  17. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद की अवधारणा को स्पष्ट करते हुए उसकी प्रमुख विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  18. प्रश्न- हिन्दी आलोचना पद्धतियों को बताइए। आलोचना के प्रकारों का भी वर्णन कीजिए।
  19. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद के अर्थ और स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  20. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद की प्रमुख प्रवृत्तियों का उल्लेख भर कीजिए।
  21. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद के व्यक्तित्ववादी दृष्टिकोण पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  22. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद कृत्रिमता से मुक्ति का आग्रही है इस पर विचार करते हुए उसकी सौन्दर्यानुभूति पर टिप्णी लिखिए।
  23. प्रश्न- स्वच्छंदतावादी काव्य कल्पना के प्राचुर्य एवं लोक कल्याण की भावना से युक्त है विचार कीजिए।
  24. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद में 'अभ्दुत तत्त्व' के स्वरूप को स्पष्ट करते हुए इस कथन कि 'स्वच्छंदतावादी विचारधारा राष्ट्र प्रेम को महत्व देती है' पर अपना मत प्रकट कीजिए।
  25. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद यथार्थ जगत से पलायन का आग्रही है तथा स्वः दुःखानुभूति के वर्णन पर बल देता है, विचार कीजिए।
  26. प्रश्न- 'स्वच्छंदतावाद प्रचलित मान्यताओं के प्रति विद्रोह करते हुए आत्माभिव्यक्ति तथा प्रकृति के प्रति अनुराग के चित्रण को महत्व देता है। विचार कीजिए।
  27. प्रश्न- आधुनिक साहित्य में मनोविश्लेषणवाद के योगदान की विवेचना कीजिए।
  28. प्रश्न- कार्लमार्क्स की किस रचना में मार्क्सवाद का जन्म हुआ? उनके द्वारा प्रतिपादित द्वंद्वात्मक भौतिकवाद की व्याख्या कीजिए।
  29. प्रश्न- द्वंद्वात्मक भौतिकवाद पर एक टिप्पणी लिखिए।
  30. प्रश्न- ऐतिहासिक भौतिकवाद को समझाइए।
  31. प्रश्न- मार्क्स के साहित्य एवं कला सम्बन्धी विचारों पर प्रकाश डालिए।
  32. प्रश्न- साहित्य समीक्षा के सन्दर्भ में मार्क्सवाद की कतिपय सीमाओं का उल्लेख कीजिए।
  33. प्रश्न- साहित्य में मार्क्सवादी दृष्टिकोण पर प्रकाश डालिए।
  34. प्रश्न- मनोविश्लेषणवाद पर एक संक्षिप्त टिप्पणी प्रस्तुत कीजिए।
  35. प्रश्न- मनोविश्लेषवाद की समीक्षा दीजिए।
  36. प्रश्न- समकालीन समीक्षा मनोविश्लेषणवादी समीक्षा से किस प्रकार भिन्न है? स्पष्ट कीजिए।
  37. प्रश्न- मार्क्सवाद की दृष्टिकोण मानवतावादी है इस कथन के आलोक में मार्क्सवाद पर विचार कीजिए?
  38. प्रश्न- मार्क्सवाद का साहित्य के प्रति क्या दृष्टिकण है? इसे स्पष्ट करते हुए शैली उसकी धारणाओं पर प्रकाश डालिए।
  39. प्रश्न- मार्क्सवादी साहित्य के मूल्याँकन का आधार स्पष्ट करते हुए साहित्य की सामाजिक उपयोगिता पर प्रकाश डालिए।
  40. प्रश्न- "साहित्य सामाजिक चेतना का प्रतिफल है" इस कथन पर विचार करते हुए सर्वहारा के प्रति मार्क्सवाद की धारणा पर प्रकाश डालिए।
  41. प्रश्न- मार्क्सवाद सामाजिक यथार्थ को साहित्य का विषय बनाता है इस पर विचार करते हुए काव्य रूप के सम्बन्ध में उसकी धारणा पर प्रकाश डालिए।
  42. प्रश्न- मार्क्सवादी समीक्षा पर टिप्पणी लिखिए।
  43. प्रश्न- कला एवं कलाकार की स्वतंत्रता के सम्बन्ध में मार्क्सवाद की क्या मान्यता है?
  44. प्रश्न- नयी समीक्षा पद्धति पर लेख लिखिए।
  45. प्रश्न- आधुनिक समीक्षा पद्धति पर प्रकाश डालिए।
  46. प्रश्न- 'समीक्षा के नये प्रतिमान' अथवा 'साहित्य के नवीन प्रतिमानों को विस्तारपूर्वक समझाइए।
  47. प्रश्न- ऐतिहासिक आलोचना क्या है? स्पष्ट कीजिए।
  48. प्रश्न- मार्क्सवादी आलोचकों का ऐतिहासिक आलोचना के प्रति क्या दृष्टिकोण है?
  49. प्रश्न- हिन्दी में ऐतिहासिक आलोचना का आरम्भ कहाँ से हुआ?
  50. प्रश्न- आधुनिककाल में ऐतिहासिक आलोचना की स्थिति पर प्रकाश डालते हुए उसके विकास क्रम को निरूपित कीजिए।
  51. प्रश्न- ऐतिहासिक आलोचना के महत्व पर प्रकाश डालिए।
  52. प्रश्न- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के सैद्धान्तिक दृष्टिकोण व व्यवहारिक दृष्टि पर प्रकाश डालिए।
  53. प्रश्न- शुक्लोत्तर हिन्दी आलोचना एवं स्वातन्त्र्योत्तर हिन्दी आलोचना पर प्रकाश डालिए।
  54. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के विकास में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के योगदान का मूल्यांकन उनकी पद्धतियों तथा कृतियों के आधार पर कीजिए।
  55. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के विकास में नन्ददुलारे बाजपेयी के योगदान का मूल्याकन उनकी पद्धतियों तथा कृतियों के आधार पर कीजिए।
  56. प्रश्न- हिन्दी आलोचक हजारी प्रसाद द्विवेदी का हिन्दी आलोचना के विकास में योगदान उनकी कृतियों के आधार पर कीजिए।
  57. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के विकास में डॉ. नगेन्द्र के योगदान का मूल्यांकन उनकी पद्धतियों तथा कृतियों के आधार पर कीजिए।
  58. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के विकास में डॉ. रामविलास शर्मा के योगदान बताइए।

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