लोगों की राय

बी ए - एम ए >> एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी प्रथम प्रश्नपत्र - हिन्दी काव्य का इतिहास

एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी प्रथम प्रश्नपत्र - हिन्दी काव्य का इतिहास

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :200
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2677
आईएसबीएन :0

Like this Hindi book 0

5 पाठक हैं

हिन्दी काव्य का इतिहास

अध्याय - 10

भारतेन्दु युग

 

प्रश्न- भारतेन्दुयुगीन कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों की सोदाहरण विवेचना कीजिए।

उत्तर -

भारतेन्दु युग का काव्यफलक अत्यन्त विस्तृत है एक ओर उसमें भक्तिकालीन तथा रीतिकालीन काव्य-प्रवृत्तियाँ मुखरित हुई हैं तो दूसरी ओर समकालीन परिवेश के प्रति जागरूकता भी स्पष्ट दिखाई पड़ती है। बालकृष्ण राव ने लिखा है कि- "इस काल में कविता ने सामन्ती दरबारा की चहारदीवारी से निकलकर जनजीवन का वरण किया है और साथ ही अपने मूल्यवान प्रांगण एवं आमरणों का तिरस्कार करके खुली हवा में सांस ली है। राष्ट्रीय चेतना से अनुस्तूप इस कविता प्रमुख प्रवृत्तियों को इस प्रकार निलम्बित किया जा सकता है।

(1) राष्ट्रीय चेतना - राष्ट्रीय चेतना का स्फुरण और अभिव्यंजन कालीन कविता की प्रमुख और प्राथमिक विशेषता है। भारतेन्दु का काव्य इसी राष्ट्रीय चेतना का काव्य है। उन्होंने यह लिख कि "पै धन विदेश चलि जातु यही अति ख्वारी" राष्ट्रीय का ही परिचय दिया है। ये व पंक्तियाँ हैं जिनमें भारतेन्दु की पीड़ा का अनुमान भी लगाया जा सकता है। इस काल के कवियों का स्वाभिमान कभी प्राचीन गौरव के स्मरण से मुखरित होने वाला है और कभी इस महान् राष्ट्र के दयनीय पतन पर अश्रु प्रवाहित करता रहता है। भारतेन्दु जी की "विजयिनी विजय बैंजती", प्रेमघन की आनन्द रूणोदत्त, प्रतापनारायण मिश्र की महपर्व व और नया संवत् तथा राधाकृष्ण दास की भारत बारहमासा और विनय शीर्षक कविताएँ देशभक्ति और राष्ट्रीयता के भावों से युक्त हैं। इस काल के कवियों की कविताओं में देशभक्ति के साथ-साथ राजभक्ति भी मिलती है।

(2) प्राचीन और नवीन समन्वय - भारतेन्दु युगीन कविता की दूसरी प्रवृतृति प्राचीन और नवीन का समन्वय था। यह समन्वय देशप्रेम, समाज सुधार के साथ-साथ भाषा, भाव और छन्द की दृष्टि से भी सामंजस्य का युग था। इसी समन्वय की प्रवृत्ति के कारण इस काल के कवियों ने पुराने भक्त कवियों की तरह भक्तिभाव युक्त पद भी लिखे हैं और लीलादी का गायन करते हुए रीतिकाल कवि की भाँति नायिका के नख - शिख का वर्णन भी किया। भक्ति और श्रृंगार, भाषा और भाव तथा सुधार और उपदेश की प्रवृत्तियों का समन्वित रूप इस काल की कविता में मिलता है।

(3) जनवादी विचारधारा - भारतेन्दुकालीन कविता की तीसरी प्रवृत्ति जनवादी विचारधारा से सम्बन्धित है। यह प्रवृत्ति इस काल की कविता की विषय-वस्तु और शैली दोनों में देखी जा सकती है। इसी प्रवृत्ति को स्पष्ट करते हुए डॉ. रामविलास शर्मा ने लिखा है "भारतेन्दु की जनवादी विचारधारा इन कवियों की सुधारवादी दृष्टि में निहित है। भारतेन्दु युग (जनवादी विचारधारा) साहित्य जनवादी इस अर्थ में है कि वह भारतीय समाज में पुराने ढांचे से सन्तुष्ट न होकर उसमें सुधार भी चाहता है। वह केवल राजनीतिक स्वाधीनता का साहित्य न होकर मनुष्य की एकता, समता और भाईचारे का भी साहित्य है। भारतेन्दु स्वदेशी आन्दोलन के ही अग्रदूत न थे, वे समाजसुधारकों में भी प्रमुख थे। स्त्री-शिक्षा, विधवा-विवाह और विदेश यात्रा आदि के समर्थक थे। इससे भी बढ़कर महत्व की बात यह थी कि भारतीय महाजनों के पुराने पेशे सूदखोरी की उन्होंने कड़ी आलोचना की थी - "सर्वदा से अच्छे लोग, ब्याज खाना और चूड़ी पहनना, एक-सा समझते हैं पर अब के आलसियों को इसी का आलम्बन है। न हाथ हिलाना पड़े और न उन्हें कुछ कार्य करना, अर्थात् हाथ हिलाना पड़े या पैर, बैठे-ठाले भुगतान कर लिया। अपनी जनवादी प्रवृत्ति के कारण उन्होंने समाज के दोषयुक्त अंग की कटु आलोचना करते हुए लिखा है- "बफरते माल बनिया से समाज़ को शिकायत है।' 'लाला' का चित्र प्रस्तुत करते हुए वे लिख गये हैं -

"लाला की मैंसी शोर-निचोवत में शशी जब,
दूध ओह माँ मिल गया है कि भैया जो है सो है।
'

व्यापक मानवतावादी भूमिका पर लिखी गई भारतेन्दु कविता में नवयुग की चेतना का जो स्वरूप है वह भी इस काव्य को जनवादी करार देने को प्रेरित करता है। प्रतापनारायण मिश्र स्त्रियों की शिक्षा के पक्षपाती, विधवाओं के दुःख से दुःखी और बाल-विवाह के विरोधी थे। इस दुःख और विरोध में भी जनवादी विचारधारा को देखा जा सकता है। इसी प्रकार यह भी स्पष्ट हो जाता है कि आलोच्य काल का कवि विषय-वस्तु के धरातल पर ही नहीं, शैली की भूमिका पर भी जनवादी ही था। कजरी, मुठरी, लावनी, मुकरी और पहेली आदि शैलियाँ इसी जनवादी स्वर को प्रमाणित और पुष्ट करती हैं। यही इन कवियों की सामाजिक चेतना का स्वरूप भी है।

(4) आर्थिक चेतना - भारतीय अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करने की कामना से इस युग के कवियों ने स्वदेशी उद्योगों को प्रोत्साहन देने और स्वदेशी वस्तुओं के प्रयोग पर विशेष बल दिया। जीवत विदेश की वस्तु लै तो बिन कछु नहीं कर सकत" के प्रतिपादक भारतेन्दु ने प्रबोधिनी " शीर्षक कविता में विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार की घोषणा की।' 'प्रेमबन्ध' की 'आर्याभिनंदन', प्रतापनारायण मिश्र की 'होली' और 'अम्बिकादत्त व्यास' की 'भारत धर्म' कविताएँ भी इन कवियों की आर्थिक चेतना को स्पष्ट करती है। इनमें भारत की दुर्दशा के यथार्थ चित्र हैं। इस काल के कवियों ने प्राचीन भारत की समृद्धि का वर्णन करते हुए सामयिक काल के आर्थिक शोषण, अकाल, महंगाई, महामारी और करों के बोझ से त्रस्त जनता के करुणाजनक चित्र प्रस्तुत किये हैं।

(5) भक्ति और देशानुराग का सम्मिलित रूप - आलोच्यकाल की कविता में भक्ति और देशानुराग का मिला-जुला रूप देखने को मिलता है। इस काल का भक्ति काव्य तीनों रूपों में मिलता है निर्गुण भक्ति, वैष्णव भक्ति और स्वदेशानुराग भक्ति। इनमें पहले दो रूप तो परम्परा विहित ही हैं, किन्तु भक्ति और देशप्रेम का एक ही भूमिका पर प्रस्तुतीकरण इस काल की मौलिकता है। रामभक्ति की तुलना में कृष्णभक्ति को निरूपित करने वाली रचनाएँ इस काल में अधिक लिखी गई है। इसी से प्रेरित शृंगार भावना को इस काल के कवियों ने पर्याप्त महत्व दिया है "मेरे तो साधन एक ही है, अंग नंदलाला वृषभानु' के गायक भारतेन्दु राधा-कृष्ण के अनन्य भक्त थे। अपनी भक्तिभावना को इस काल के कवियों ने कहीं-कहीं उर्दू-पद शैली में भी प्रस्तुत किया है- "ढूँढा फिरा मैं इस दुनियाँ में पश्चिम से ले पूरब तक कहीं न पाई दिलदार प्रेम की तेरे झलक।" देशानुराग व्यंजक भक्ति का स्वर भारतेन्दु, प्रेमघन राधाकृष्णदास, प्रतापनारायण मिश्र और जगमोहन सिंह की कविताओं में देखा जा सकता है।

(6) शृंगार - जहाँ तक श्रृंगारिकता का प्रश्न है वह प्रतापनारायण मिश्र को छोड़कर प्रायः सभी कवियों में मिलती है। सामान्यतः इन कवियों ने राधाकृष्ण के माध्यम से ही अपनी शृंगार व प्रणय की भावनाओं को व्यक्त किया है। रीतिकालीन पद्धति पर अपना नख - शिख वर्णन, षट, ऋतु वर्णन, नायिका भेद वर्णन किया गया है तो उर्दू कविता से प्रभावित होकर प्रेमजनित पीड़ा को शब्दबद्ध किया गया है। भारतेन्दु की प्रेम दशा वर्णन विषयक सवैयों में पर्याप्त सरलता विद्यमान है -

"आज लौ न मिलें तो कहा हम तो तुमरे सब भांति कहावे।
मेरी उराहनों कुछुनाहिं सबै फलु आपुने भाग को पावै।
जो हरिचन्द भई सु भई अब प्रान चले चहैं तासों सुनावै।
प्यारे जू हैं जग की यह रीति विदा के समै सब कंठ लगावै ॥

 

(7) प्रकृति चित्रण - भारतेन्दु युग में प्राप्त प्रकृति चित्रण का वर्णन परम्परागत ही है। यह आलम्बन और उद्दीपन रूपों में ही अधिक मिला है। ऋतु वर्णन में ऋतु विशेष वर्णन नायक-नायिका की मनोदशा की व्यंजना के लिए किया गया है। प्रेमघन की 'मयंक महिमा' और प्रतापनारायण मिश्र की 'प्रेम पुष्पांजलि' में प्रकृति की आकर्षक छवियाँ मिलती हैं। ठाकुर जगमोहन सिंह की कविताओं में प्रकृति का वास्तविक सौन्दर्य देखा जा सकता है। इनके प्रकृति निरूपण में सूक्ष्म निरीक्षण तो हैं ही प्राकृतिक दृश्यों का हृदयकारी वर्णन भी उपलब्ध है।

(8) अन्य विशेषताएँ - भारतेन्दु युगीन काव्य की उपर्युक्त विशेषताओं के अलावा हास्य- व्यंग्य की प्रवृत्ति, समस्या पूर्ति की प्रवृत्ति और काव्यानुवाद की प्रवृत्तियों को भी भुलाया नहीं जा सकता है। इस काल की गैर-प्रवृत्तियाँ हैं। व्यंग्य का एक उदाहरण लीजिए -

"जग जानें इंगलिश हमै वाणी वस्त्रहिं जोय।
मिटै बदन कर श्याम रंग जन्म सुफल तब होय ॥'

(9) कला निरूपण का सौन्दर्य - भारतेन्दु युग की कविता के कलापक्ष की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन इस प्रकार किया जा सकता है -

(क) कविता के क्षेत्र में ब्रजभाषा और गद्य के क्षेत्र में प्रमुखतः खड़ी बोली का प्रयोग किया गया है। ब्रजभाषा में कमनीयता का भारतेन्दु की भाषा में सरसता और जगमोहन सिंह के प्रकृति वर्णन में रागात्मक और         स्वच्छन्दता को प्रायः सभी कवियों में देखा जा सकता है। लोकोक्तियों और मुहावरों का प्रयोग भी इस काल की भाषा में मिलता है।
(ख) काव्य रूपों की दृष्टि से इस काल में प्रधानतः मुक्त काव्य की रचना हुई है। यों कुछ कवियों ने जनवादी चेतना के कारण कजलियाँ, होली, लावनियाँ, गजले, शेर, स्यापा और मसरिया भी लिखे हैं। प्रबन्ध नीतियों     और निबन्ध गीतियों का प्रणयन भी हुआ है, किन्तु अपवाद स्वरूप।
(ग) भारतेन्दुयुगीन कवियों में प्रयुक्त अलंकार महज और अकृत्रिम है। वे भाषा - अभिव्यंजनों में साधक और शैली में सरसता के प्रेरक बनकर आये हैं।
(घ) छन्दों की दृष्टि से देखें तो दोहा, चौपाई, रोला सोरठा, हरिगीतिका कुण्डलियाँ आदि मात्रिक छन्दों का प्रयोग किया गया है तो वर्णिक छन्दों में कवित्त, सवैया, मदाक्रान्ता, शिखरिणी, वंशस्थ बसन्त तिलक आदि     के प्रयोग में लिया गया है।

भारतेन्दु युगीन कविता राष्ट्रीयता की प्रेरक, सामाजिक चेतना और प्रसारिका जीवन के प्रति सहानुभूतिशील और भक्ति व शृंगार की समानान्तर धाराओं में विभाजित अकृत्रिम कला की पोषिका कविता थी। यह वह कविता थी जिसने कविता को राजप्रसादों की कैद से मुक्ति दिलाकर जन- जीवन के चौराहे पर ला खड़ा किया।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. प्रश्न- इतिहास क्या है? इतिहास की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  2. प्रश्न- हिन्दी साहित्य का आरम्भ आप कब से मानते हैं और क्यों?
  3. प्रश्न- इतिहास दर्शन और साहित्येतिहास का संक्षेप में विश्लेषण कीजिए।
  4. प्रश्न- साहित्य के इतिहास के महत्व की समीक्षा कीजिए।
  5. प्रश्न- साहित्य के इतिहास के महत्व पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  6. प्रश्न- साहित्य के इतिहास के सामान्य सिद्धान्त का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  7. प्रश्न- साहित्य के इतिहास दर्शन पर भारतीय एवं पाश्चात्य दृष्टिकोण का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  8. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन की परम्परा का विश्लेषण कीजिए।
  9. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन की परम्परा का संक्षेप में परिचय देते हुए आचार्य शुक्ल के इतिहास लेखन में योगदान की समीक्षा कीजिए।
  10. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन के आधार पर एक विस्तृत निबन्ध लिखिए।
  11. प्रश्न- इतिहास लेखन की समस्याओं के परिप्रेक्ष्य में हिन्दी साहित्य इतिहास लेखन की समस्या का वर्णन कीजिए।
  12. प्रश्न- हिन्दी साहित्य इतिहास लेखन की पद्धतियों पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  13. प्रश्न- सर जार्ज ग्रियर्सन के साहित्य के इतिहास लेखन पर संक्षिप्त चर्चा कीजिए।
  14. प्रश्न- नागरी प्रचारिणी सभा काशी द्वारा 16 खंडों में प्रकाशित हिन्दी साहित्य के वृहत इतिहास पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  15. प्रश्न- हिन्दी भाषा और साहित्य के प्रारम्भिक तिथि की समस्या पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  16. प्रश्न- साहित्यकारों के चयन एवं उनके जीवन वृत्त की समस्या का इतिहास लेखन पर पड़ने वाले प्रभाव का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  17. प्रश्न- हिन्दी साहित्येतिहास काल विभाजन एवं नामकरण की समस्या का वर्णन कीजिए।
  18. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास का काल विभाजन आप किस आधार पर करेंगे? आचार्य शुक्ल ने हिन्दी साहित्य के इतिहास का जो विभाजन किया है क्या आप उससे सहमत हैं? तर्कपूर्ण उत्तर दीजिए।
  19. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास में काल सीमा सम्बन्धी मतभेदों का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
  20. प्रश्न- काल विभाजन की उपयोगिता पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  21. प्रश्न- काल विभाजन की प्रचलित पद्धतियों को संक्षेप में लिखिए।
  22. प्रश्न- रासो काव्य परम्परा में पृथ्वीराज रासो का स्थान निर्धारित कीजिए।
  23. प्रश्न- रासो शब्द की व्युत्पत्ति बताते हुए रासो काव्य परम्परा की विवेचना कीजिए।
  24. प्रश्न- निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए - (1) परमाल रासो (3) बीसलदेव रासो (2) खुमान रासो (4) पृथ्वीराज रासो
  25. प्रश्न- रासो ग्रन्थ की प्रामाणिकता पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  26. प्रश्न- विद्यापति भक्त कवि है या शृंगारी? पक्ष अथवा विपक्ष में तर्क दीजिए।
  27. प्रश्न- "विद्यापति हिन्दी परम्परा के कवि है, किसी अन्य भाषा के नहीं।' इस कथन की पुष्टि करते हुए उनकी काव्य भाषा का विश्लेषण कीजिए।
  28. प्रश्न- विद्यापति का जीवन-परिचय देते हुए उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  29. प्रश्न- लोक गायक जगनिक पर प्रकाश डालिए।
  30. प्रश्न- अमीर खुसरो के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
  31. प्रश्न- अमीर खुसरो की कविताओं में व्यक्त राष्ट्र-प्रेम की भावना लोक तत्व और काव्य सौष्ठव पर प्रकाश डालिए।
  32. प्रश्न- चंदबरदायी का जीवन परिचय लिखिए।
  33. प्रश्न- अमीर खुसरो का संक्षित परिचय देते हुए उनके काव्य की विशेषताओं एवं पहेलियों का उदाहरण प्रस्तुत कीजिए।
  34. प्रश्न- अमीर खुसरो सूफी संत थे। इस आधार पर उनके व्यक्तित्व के विषय में आप क्या जानते हैं?
  35. प्रश्न- अमीर खुसरो के काल में भाषा का क्या स्वरूप था?
  36. प्रश्न- विद्यापति की भक्ति भावना का विवेचन कीजिए।
  37. प्रश्न- हिन्दी साहित्य की भक्तिकालीन परिस्थितियों की विवेचना कीजिए।
  38. प्रश्न- भक्ति आन्दोलन के उदय के कारणों की समीक्षा कीजिए।
  39. प्रश्न- भक्तिकाल को हिन्दी साहित्य का स्वर्णयुग क्यों कहते हैं? सकारण उत्तर दीजिए।
  40. प्रश्न- सन्त काव्य परम्परा में कबीर के योगदान को स्पष्ट कीजिए।
  41. प्रश्न- मध्यकालीन हिन्दी सन्त काव्य परम्परा का उल्लेख करते हुए प्रमुख सन्तों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  42. प्रश्न- हिन्दी में सूफी प्रेमाख्यानक परम्परा का उल्लेख करते हुए उसमें मलिक मुहम्मद जायसी के पद्मावत का स्थान निरूपित कीजिए।
  43. प्रश्न- कबीर के रहस्यवाद की समीक्षात्मक आलोचना कीजिए।
  44. प्रश्न- महाकवि सूरदास के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की समीक्षा कीजिए।
  45. प्रश्न- भक्तिकाल की प्रमुख प्रवृत्तियाँ या विशेषताएँ बताइये।
  46. प्रश्न- भक्तिकाल में उच्चकोटि के काव्य रचना पर प्रकाश डालिए।
  47. प्रश्न- 'भक्तिकाल स्वर्णयुग है।' इस कथन की मीमांसा कीजिए।
  48. प्रश्न- जायसी की रचनाओं का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
  49. प्रश्न- सूफी काव्य का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  50. प्रश्न- निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए -
  51. प्रश्न- तुलसीदास कृत रामचरितमानस पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
  52. प्रश्न- गोस्वामी तुलसीदास के जीवन चरित्र एवं रचनाओं का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  53. प्रश्न- प्रमुख निर्गुण संत कवि और उनके अवदान विवेचना कीजिए।
  54. प्रश्न- कबीर सच्चे माने में समाज सुधारक थे। स्पष्ट कीजिए।
  55. प्रश्न- सगुण भक्ति धारा से आप क्या समझते हैं? उसकी दो प्रमुख शाखाओं की पारस्परिक समानताओं-असमानताओं की उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए।
  56. प्रश्न- रामभक्ति शाखा तथा कृष्णभक्ति शाखा का तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
  57. प्रश्न- हिन्दी की निर्गुण और सगुण काव्यधाराओं की सामान्य विशेषताओं का परिचय देते हुए हिन्दी के भक्ति साहित्य के महत्व पर प्रकाश डालिए।
  58. प्रश्न- निर्गुण भक्तिकाव्य परम्परा में ज्ञानाश्रयी शाखा के कवियों के काव्य की प्रमुख प्रवृत्तियों पर प्रकाश डालिए।
  59. प्रश्न- कबीर की भाषा 'पंचमेल खिचड़ी' है। सउदाहरण स्पष्ट कीजिए।
  60. प्रश्न- निर्गुण भक्ति शाखा एवं सगुण भक्ति काव्य का तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
  61. प्रश्न- रीतिकालीन ऐतिहासिक, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं राजनैतिक पृष्ठभूमि की समीक्षा कीजिए।
  62. प्रश्न- रीतिकालीन कवियों के आचार्यत्व पर एक समीक्षात्मक निबन्ध लिखिए।
  63. प्रश्न- रीतिकालीन प्रमुख प्रवृत्तियों की विवेचना कीजिए तथा तत्कालीन परिस्थितियों से उनका सामंजस्य स्थापित कीजिए।
  64. प्रश्न- रीति से अभिप्राय स्पष्ट करते हुए रीतिकाल के नामकरण पर विचार कीजिए।
  65. प्रश्न- रीतिकालीन हिन्दी कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों या विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  66. प्रश्न- रीतिकालीन रीतिमुक्त काव्यधारा के प्रमुख कवियों का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार दीजिए कि प्रत्येक कवि का वैशिष्ट्य उद्घाटित हो जाये।
  67. प्रश्न- आचार्य केशवदास का संक्षिप्त जीवन परिचय देते हुए उनकी काव्यगत विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  68. प्रश्न- रीतिबद्ध काव्यधारा और रीतिमुक्त काव्यधारा में भेद स्पष्ट कीजिए।
  69. प्रश्न- रीतिकाल की सामान्य विशेषताएँ बताइये।
  70. प्रश्न- रीतिमुक्त कवियों की विशेषताएँ बताइये।
  71. प्रश्न- रीतिकाल के नामकरण पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  72. प्रश्न- रीतिकालीन साहित्य के स्रोत को संक्षेप में बताइये।
  73. प्रश्न- रीतिकालीन साहित्यिक ग्रन्थों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  74. प्रश्न- रीतिकाल की सांस्कृतिक परिस्थितियों पर प्रकाश डालिए।
  75. प्रश्न- बिहारी के साहित्यिक व्यक्तित्व की संक्षेप मे विवेचना कीजिए।
  76. प्रश्न- रीतिकालीन आचार्य कुलपति मिश्र के साहित्यिक जीवन का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  77. प्रश्न- रीतिकालीन कवि बोधा के कवित्व पर प्रकाश डालिए।
  78. प्रश्न- रीतिकालीन कवि मतिराम के साहित्यिक जीवन पर प्रकाश डालिए।
  79. प्रश्न- सन्त कवि रज्जब पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  80. प्रश्न- आधुनिककाल की सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमि, सन् 1857 ई. की राजक्रान्ति और पुनर्जागरण की व्याख्या कीजिए।
  81. प्रश्न- हिन्दी नवजागरण की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  82. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के आधुनिककाल का प्रारम्भ कहाँ से माना जाये और क्यों?
  83. प्रश्न- आधुनिक काल के नामकरण पर प्रकाश डालिए।
  84. प्रश्न- भारतेन्दुयुगीन कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों की सोदाहरण विवेचना कीजिए।
  85. प्रश्न- भारतेन्दु युगीन काव्य की भावगत एवं कलागत सौन्दर्य का वर्णन कीजिए।
  86. प्रश्न- भारतेन्दु युग की समय सीमा एवं प्रमुख साहित्यकारों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  87. प्रश्न- भारतेन्दुयुगीन काव्य की राजभक्ति पर प्रकाश डालिए।
  88. प्रश्न- भारतेन्दुयुगीन काव्य का संक्षेप में मूल्यांकन कीजिए।
  89. प्रश्न- भारतेन्दुयुगीन गद्यसाहित्य का संक्षेप में मूल्यांकान कीजिए।
  90. प्रश्न- भारतेन्दु युग की विशेषताएँ बताइये।
  91. प्रश्न- द्विवेदी युग का परिचय देते हुए इस युग के हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में योगदान की समीक्षा कीजिए।
  92. प्रश्न- द्विवेदी युगीन काव्य की विशेषताओं का सोदाहरण मूल्यांकन कीजिए।
  93. प्रश्न- द्विवेदी युगीन हिन्दी कविता की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।
  94. प्रश्न- द्विवेदी युग की छः प्रमुख विशेषताएँ बताइये।
  95. प्रश्न- द्विवेदीयुगीन भाषा व कलात्मकता पर प्रकाश डालिए।
  96. प्रश्न- छायावाद का अर्थ और स्वरूप परिभाषित कीजिए तथा बताइये कि इसका उद्भव किस परिवेश में हुआ?
  97. प्रश्न- छायावाद के प्रमुख कवि और उनके काव्यों पर प्रकाश डालिए।
  98. प्रश्न- छायावादी काव्य की मूलभूत विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
  99. प्रश्न- छायावादी रहस्यवादी काव्यधारा का संक्षिप्त उल्लेख करते हुए छायावाद के महत्व का मूल्यांकन कीजिए।
  100. प्रश्न- छायावादी युगीन काव्य में राष्ट्रीय काव्यधारा का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  101. प्रश्न- 'कवि 'कुछ ऐसी तान सुनाओ, जिससे उथल-पुथल मच जायें। स्वच्छन्दतावाद या रोमांटिसिज्म किसे कहते हैं?
  102. प्रश्न- छायावाद के रहस्यानुभूति पर प्रकाश डालिए।
  103. प्रश्न- छायावादी काव्य में अभिव्यक्त नारी सौन्दर्य एवं प्रेम चित्रण पर टिप्पणी कीजिए।
  104. प्रश्न- छायावाद की काव्यगत विशेषताएँ बताइये।
  105. प्रश्न- छायावादी काव्यधारा का क्यों पतन हुआ?
  106. प्रश्न- प्रगतिवाद के अर्थ एवं स्वरूप को स्पष्ट करते हुए प्रगतिवाद के राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक तथा साहित्यिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
  107. प्रश्न- प्रगतिवादी काव्य की प्रमुख प्रवृत्तियों का वर्णन कीजिए।
  108. प्रश्न- प्रयोगवाद के नामकरण एवं स्वरूप पर प्रकाश डालते हुए इसके उद्भव के कारणों का विश्लेषण कीजिए।
  109. प्रश्न- प्रयोगवाद की परिभाषा देते हुए उसकी साहित्यिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
  110. प्रश्न- 'नयी कविता' की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  111. प्रश्न- समसामयिक कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों का समीक्षात्मक परिचय दीजिए।
  112. प्रश्न- प्रगतिवाद का परिचय दीजिए।
  113. प्रश्न- प्रगतिवाद की पाँच सामान्य विशेषताएँ लिखिए।
  114. प्रश्न- प्रयोगवाद का क्या तात्पर्य है? स्पष्ट कीजिए।
  115. प्रश्न- प्रयोगवाद और नई कविता क्या है?
  116. प्रश्न- 'नई कविता' से क्या तात्पर्य है?
  117. प्रश्न- प्रयोगवाद और नयी कविता के अन्तर को स्पष्ट कीजिए।
  118. प्रश्न- समकालीन हिन्दी कविता तथा उनके कवियों के नाम लिखिए।
  119. प्रश्न- समकालीन कविता का संक्षिप्त परिचय दीजिए।

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book